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ग्राउंड रिपोर्ट

बुजुर्गों के स्वास्थ्य सुविधा का ख्याल रखना भी जरूरी है

बुजुर्ग समाज के मूल्यवान सदस्य हैं, जिन्होंने अपनी उम्र का बड़ा हिस्सा अपने समाज की बेहतरी के लिए लगाया और उन्हें बुढ़ापे में हमारी देखभार व आत्मीयता की जरूरत होती है। लेकिन समाज में लोग अपने बुजुर्गों की देखभाल करने से लगातार बच रहे हैं। उनकी स्थिति आज दयनीय हो गई, क्योंकि एक समय के बाद शरीर को तमाम तरह की बीमारियां घेर लेती हैं। इलाज के लिए बुजुर्गों के पास पैसे नहीं होते, ऐसे में सरकार द्वारा कुछ स्वास्थ्य योजनाएँ लाई गई हैं, जिससे वे अपना इलाज करा सकें।

हमारे समाज के निर्माण में बच्चे, युवा, महिलाओं, किशोरियों और बुज़ुर्गों सभी का विशेष महत्व है। लेकिन इनमें बुजुर्गों की भूमिका और स्थिति कुछ विशेष होती है क्योंकि उन्हें अनुभव और ज्ञान का स्रोत माना जाता, जो न केवल परिवार बल्कि समाज को दिशा देने में भी सहायक सिद्ध होते है। हालांकि वर्तमान समय में बुजुर्गों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में काफी बदलाव आया है और उनके सामने कई चुनौतियां उत्पन्न हो रही हैं। इसमें सबसे बड़ी समस्या उनके स्वास्थ्य की होती है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ उनमें स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी बढ़ती जाती हैं। सरकार की ओर से बुज़ुर्गों के बेहतर इलाज के लिए कई योजनाएं संचालित की जा रही हैं ताकि आर्थिक रूप से कमज़ोर बुज़ुर्गों को अपने इलाज के लिए किसी पर निर्भर न रहना पड़े। लेकिन ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्थित स्लम बस्तियों में रहने वाले बुज़ुर्गों तक जानकारी की कमी और अन्य कई समस्याओं के कारण वह उन योजनाओं का लाभ उठाने से वंचित रह जाते हैं।

ऐसी ही एक स्लम बस्ती बिहार की राजधानी पटना स्थित आलमगंज है। जहां रहने वाले अधिकतर बुज़ुर्ग सरकार की ओर से मिलने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच नहीं पाते हैं। इस संबंध में 72 वर्षीय रामपरी देवी कहती हैं कि वह पिछले छह माह से आंखों की बीमारी से ग्रसित हैं। अब दिन के उजाले में भी  उन्हें देखने में कठिनाई होती हैं। वह जब इसका इलाज कराने सरकारी अस्पताल गईं तो उन्हें जांच सुविधाओं की कमी का हवाला देकर निजी क्लिनिक में जाने को कहा गया। वह कहती हैं कि घर में उनका बेटा अकेला कमाने वाला है। जो ऑटो चलाने का काम करता है। जबकि परिवार में 8 सदस्य है। ऐसे में उसकी आमदनी इतनी नहीं है कि निजी क्लिनिक में मेरी आंखों का इलाज करा सके।

इसी बस्ती की 75 वर्षीय इंद्रा देवी कहती हैं कि इस बढ़ती उम्र में सेहत लगातार गिरती रहती है। हर समय स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं सामने आती रहती है। लेकिन घर की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि सभी बीमारियों का इलाज करवा सकूं। वह कहती हैं कि अकेले बेटे की आमदनी इतनी नहीं है कि वह बच्चों की फीस के साथ-साथ हमारे इलाज का भी खर्च उठा सके। सरकार द्वारा उपलब्ध कराये जाने वाले आयुष्मान कार्ड जैसी सुविधा से अनभिज्ञ इंद्रा देवी कहती हैं कि न तो उन्हें घर में किसी ने इसके बारे में बताया और न ही अस्पताल वालों ने कभी इसकी जानकारी दी। कई बार सरकारी अस्पताल वाले सुविधाओं की कमी कह कर उन्हें निजी जांच केंद्र से शुगर और अर्थिरिटीज़ की जांच करवाने को कहते हैं। जो उनके लिए महंगा होता है।

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पटना सचिवालय और पटना जंक्शन से कुछ ही दूरी पर स्थित इस स्लम बस्ती की आबादी लगभग एक हजार के आसपास है। जहां करीब 60 प्रतिशत ओबीसी और 20 प्रतिशत अल्पसंख्यक समुदाय के लोग निवास करते हैं. तीन मोहल्ले अदालतगंज, ईख कॉलोनी और ड्राइवर कॉलोनी में विभाजित इस स्लम एरिया में साफ़-सफाई की बहुत कमी नज़र आती है। यहां रहने वाले सभी परिवार बेहतर रोज़ी-रोटी की तलाश में बिहार के अन्य दूर-दराज़ ज़िलों के ग्रामीण क्षेत्रों से प्रवास करके आये हैं। इन बस्तियों में रहने वाले बुज़ुर्गों में अधिकतर को सरकार द्वारा दी जाने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पाता है। कई सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं की कमी कह कर उन्हें निजी अस्पताल में जाने को कहा जाता है। लेकिन आर्थिक रूप से कमज़ोर इन स्लम बस्तियों में रहने वाले लोगों के पास इतना पैसा नहीं है कि वह अपने बुज़ुर्गों का निजी अस्पताल में इलाज करवा सकें।

इस संबंध में 36 वर्षीय अशोक कहते हैं कि उनकी मां काफी बुज़ुर्ग हो चुकी हैं और अर्थिरिटीज़ के दर्द की वजह से चलने फिरने में भी सक्षम नहीं हैं। जिससे कारण उनका इलाज बहुत ज़रूरी हो गया है। लेकिन सरकारी अस्पताल में इलाज की सुविधा इतनी नहीं है कि वह उन्हें वहां दिखा सके। ऐसे में उन्हें निजी अस्पताल से ही इलाज करवाना पड़ता है। उन्होंने बताया कि सरकार के आयुष्मान कार्ड और वृद्धावस्था पेंशन जैसी सुविधा के कारण उन्हें अपनी मां का इलाज करवाने में काफी सहायता मिल जाती है। लेकिन बस्ती के कई ऐसे बुज़ुर्ग हैं जिनके पास इसकी सुविधा नहीं होने के कारण वह इसका लाभ नहीं उठा पाते है और इलाज से वंचित रह जाते है।

हाल ही में, केंद्र सरकार ने 70 वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी वरिष्ठ नागरिकों को आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत स्वास्थ्य कवरेज प्रदान करने का निर्णय लिया है, चाहे उनकी आय कुछ भी हो। इससे बिहार के लगभग 38 लाख बुजुर्गों को लाभ मिल रहा है। जिन्हें प्रति वर्ष 5 लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज की सुविधा प्रदान की जा रही है। इसके अतिरिक्त 22 सितंबर को बिहार सरकार ने आयुष्मान भारत योजना से वंचित परिवारों के लिए मुख्यमंत्री जन आरोग्य योजना की शुरुआत की है। इसके तहत राज्य के 58 लाख राशन कार्ड धारक परिवारों को प्रति वर्ष 5 लाख रुपये तक का मुफ्त स्वास्थ्य बीमा प्रदान किये जाने का प्रावधान रखा गया है। वहीं गंभीर और असाध्य रोगों से ग्रसित गरीब मरीजों के लिए बिहार सरकार द्वारा मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता कोष योजना संचालित की जा रही है। इसके तहत 14 असाध्य बीमारियों के इलाज के लिए 20 हजार रुपये से लेकर 5 लाख रुपये तक की सहायता राशि प्रदान की जाती है। इसमें रोगी को बिहार का नागरिक होना और वार्षिक आय 2.5 लाख रुपये से कम होना अनिवार्य है।

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सरकार और विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा बुजुर्गों की स्थिति और उनके स्वास्थ्य को बेहतर बनाने की दिशा में कई प्रयास किये जा रहे हैं। वृद्धावस्था पेंशन और उन्हें बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराकर ही बुजुर्गों को सम्मानजनक जीवन प्रदान किया जा सकता है। समाज में जागरूकता फैलाना और बुजुर्गों के प्रति सम्मान का भाव स्थापित करना आवश्यक है। पारिवारिक स्तर पर बुजुर्गों को मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक सहयोग प्रदान किया जाना चाहिए ताकि वे सम्मानपूर्वक जीवन जी सके। वास्तव में, बुजुर्गों का महत्व आज भी समाज के लिए बहुत अहम है। उनके पास अनुभव और जीवन के गहन ज्ञान होते हैं, जो युवा पीढ़ी के लिए अत्यंत लाभकारी हो सकते हैं। उनके द्वारा दी गई सीख समाज को विकास की ओर प्रेरित करती है। बुजुर्ग न केवल परिवार के मार्गदर्शक होते हैं, बल्कि समाज की धरोहर भी होते हैं। उनका अनुभव और ज्ञान नई पीढ़ी के विकास में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। ऐसे में उनके स्वास्थ्य का ख्याल रखना सभी की ज़िम्मेदारी होती है। यदि सरकार उनके बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की योजना बनाती है तो उसे उन तक पहुंचना और इसके लाभ से उन्हें जोड़ना समाज की ज़िम्मेदारी भी है। (साभार-चरखा फीचर्स)

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