Saturday, December 14, 2024
Saturday, December 14, 2024




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमअर्थव्यवस्थाजम्मू : कृषि एवं पशुपालन में विशेष पहचान रखने वाला सरहदी गांव...

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

जम्मू : कृषि एवं पशुपालन में विशेष पहचान रखने वाला सरहदी गांव मंगनाड

सब्ज़ी उत्पादन के अलावा हमारा और कोई व्यवसाय नहीं है। हमारे पास जमीन के कुछ टुकड़े हैं, जिसपर हमने सब्जियां लगाना शुरू किया। हम हर सीजन पर कम से कम तीन से चार लाख रुपए की सब्ज़ियां आसानी से बेच देते हैं। वही इसी गांव में कुछ ऐसे भी किसान हैं जो सीजन पर कम से कम कई लाख की सब्ज़ियां बेच देते हैं। वह बताते हैं कि सब्जी उत्पादन में थोड़ी मेहनत लगती है।

हर एक व्यक्ति या स्थान अपनी विशेष पहचान रखता है। चाहे वह पहचान छोटी हो या बड़ी  ऐसा कोई स्थान नहीं है जिसकी अपनी कोई न कोई विशेषता ना हो। कुछ स्थान अपनी सुंदरता के लिए विशेष पहचान रखते हैं, कुछ खानपान के लिए, वहीं कुछ अपने पहनावे के लिए जाने जाते हैं, तो कुछ कलाकृतियों के लिए। परंतु अगर हम बात करें सरहद पर बसे मंगनाड गांव की, तो यह कृषि और पशुपालन के लिए धीरे धीरे अपनी पहचान बनाता जा रहा है। केंद्र प्रशासित राज्य जम्मू कश्मीर के जिला पुंछ से करीब 6 किमी की दूरी पर बसा यह गांव कृषि एवं पशुपालन के क्षेत्र में तेज़ी से अपनी पहचान बनाता जा रहा है।

दरअसल, बीते कई वर्षों की अगर बात की जाए तो यह गांव, पशुपालन के मामले में एक विशेष स्थान बनाए हुए है। ऐसा कोई घर नहीं है, जहां आपको माल मवेशी नहीं मिलेंगे। हालांकि ऐसा नहीं है कि यहां के लोग पूरी तरह पशुपालन पर ही निर्भर रहते हैं। कई लोग सरकारी कर्मचारी होते हुए भी पशुपालन और कृषि में बेहद दिलचस्पी रखते हैं। यही कारण है कि आज यह गांव न केवल अपने आसपास बल्कि पूरे पुंछ में दूध और सब्जी उगाने के लिए जाना जाने लगा है। हर सुबह कई लीटर दूध, गाड़ियों में भरकर शहर पहुंचाया जाता है। शहर के लोगों का मानना है कि यदि किसी कारणवश मंगनाड से दूध आना बंद हो जाए तो हमारे बच्चों के लिए मुसीबत आ जायेगी। यहां से दूध की सप्लाई का सिलसिला तो वर्षों पुराना है। लेकिन बीते 8-10 वर्षों में इस गांव ने सब्ज़ी उत्पादन में भी अपना प्रमुख स्थान बना लिया है। इसके लिए गांव वालों ने अच्छी खासी मेहनत की है। जिसका नतीजा यह हुआ कि आज यह गांव दूध के साथ-साथ सब्जियों उगाने और उन्हें बेचने के मामले में भी एक विशेष पहचान रखने लगा है।

आज इस गांव में चाहे किसी का निजी व्यवसाय हो, चाहे कोई सरकारी कर्मचारी हो, चाहे वह कुछ भी काम करता हो, परंतु वह सब्जी जरुर लगाएगा। लोगों का कृषि की तरफ बढ़ते हुए रुझान को देखते हुए कृषि विभाग ने भी लोगों की मदद की है। चाहे वह छोटा ट्रैक्टर हो, अच्छे बीज हों, कृषि के छोटे-छोटे कैंप हों, या पानी के लिए टैंक की व्यवस्था करनी हो। स्थानीय लोगों ने इसके लिए मिलकर मेहनत की और अपने गांव को एक पहचान दिला दी। चूंकि जम्मू कश्मीर पूरी तरह से एक पहाड़ी इलाका है। यहां कोई मैदानी खेत नहीं हैं कि हर काम सरलता से हो जाए। इस पहाड़ी क्षेत्र में भी सब्जी की पैदावार आज इस मुकाम पर है कि गांव से सुबह बड़ी मात्रा में सब्जियां शहर की मंडियों में पहुंचाई जाती है। इसकी महत्ता का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि जब कभी शहर में हड़ताल होती है या चक्का जाम होता है तो शहर के लोग दूध और सब्जी के लिए स्कूटर, मोटरसाइकिल से इस गांव में पहुंच जाते हैं। मौसम और समय के हिसाब से पूरे 12 महीने इस गांव में अलग-अलग तरह की सब्जियां उगाई जाती हैं।

गांव की रहने वाली 54 वर्षीय मूर्ति देवी कहती हैं कि पहले हम 6 महीने में केवल एक सब्जी लगाते थे और फिर अगले 6 महीने में दूसरी सब्ज़ी उगाते थे। परंतु धीरे-धीरे हमें इतना अभ्यास हो गया कि अब हमने सब्जियों को चार कैटेगरी में बांट लिया है। अब हम मौसम देखते हैं कि किस मौसम में क्या चीज होगी उस हिसाब से हम लगभग 1 साल में चार किस्म की सब्जियां उगा लेते हैं। जैसे जुलाई अगस्त और सितंबर में होने वाली सब्जियां करेला, भिंडी, लौकी, कददू, राजमा की फली, हरी मिर्च, खीरा आदि कई सब्जियां उगाते हैं। अक्टूबर से लेकर दिसंबर जनवरी तक, गाजर, मूली, कडम, पालक आदि सब्जियां उगा लेते हैं। ऐसे ही गोभी, प्याज, आलू, मूली, शलगम इत्यादि सब्ज़ियों का उत्पादन किया जाता है। वह बताती हैं कि पूरे वर्ष यहां मौसम के हिसाब से सब्जियां मिल जाएंगी।

वहीं 40 वर्षीय सुशील कुमार कहते हैं कि सब्ज़ी उत्पादन के अलावा हमारा और कोई व्यवसाय नहीं है। हमारे पास जमीन के कुछ टुकड़े हैं, जिसपर हमने सब्जियां लगाना शुरू किया। हम हर सीजन पर कम से कम तीन से चार लाख रुपए की सब्ज़ियां आसानी से बेच देते हैं। वही इसी गांव में कुछ ऐसे भी किसान हैं जो सीजन पर कम से कम कई लाख की सब्ज़ियां बेच देते हैं। वह बताते हैं कि सब्जी उत्पादन में थोड़ी मेहनत लगती है। लगातार उसे खर-पतवार और प्रतिकूल मौसम से बचाना होता है। मेहनत का नतीजा यह होता है कि गांव वाले आज दूध और सब्जी से एक अच्छी खासी आमदनी प्राप्त कर रहे हैं। इसी गांव के 35 वर्षीय सोहनलाल कहते हैं कि पढ़ाई लिखाई करने के पश्चात भी जब कोई जॉब नहीं मिल पाई तो घर का गुजारा करने के लिए हमने दूध के कारोबार को आगे बढ़ाना शुरू किया। घर में पहले से मवेशी थे जिनका दूध केवल घर में ही इस्तेमाल किया जाता था। अब मैं दूध के कारोबार के साथ साथ अपनी छोटी से ज़मीन पर सब्ज़ी उत्पादन का काम भी करता हूं। सोहनलाल कहते हैं कि मैंने देखा कि गांव वाले सभी प्रकार की सब्ज़ियों का उत्पादन करते हैं सिवाए मशरूम के। इसके लिए मैंने कृषि विभाग से संपर्क किया और उनसे मशरूम उत्पादन की प्रक्रिया की सभी जानकारियां प्राप्त की।

इसी गांव के 29 वर्षीय हरीश कुमार कहते हैं कि इस गांव में चाहे किसी के पास अपना कोई काम धंधा भी हो, फिर भी वह पशुपालन में रुचि रखता है। कुछ पशुपालक इस गांव में ऐसे हैं जिनका प्रतिदिन कई लीटर अकेले दूध शहर जाता है। परंतु अगर बात सब्जी उगाने की की जाए तो अब लोग इस ओर भी ध्यान देने लगे हैं। हरीश इस गांव की सब्ज़ियों की डिमांड अधिक होने के पीछे कारण बताते हुए कहते हैं कि यहां के सब्ज़ी उत्पादक पूरी तरह से शुद्ध ऑर्गेनिक खेती करते हैं। जो न केवल स्वादिष्ट होती है बल्कि पौष्टिक और इंसानी सेहत के लिए लाभदायक भी होती है। कृषि विभाग का भी इस गांव के लोगों के साथ बहुत बड़ा सहयोग है। विभाग ने पशुओं के गोबर को जल्द ही खाद में बदलने के लिए कुछ विशेष प्रकार की शीट् भी लोगों को दी हैं। जिससे मात्र कुछ ही हफ्तों में गोबर पूरी तरह खाद में बदल जाता है। विभाग के इस पहल ने न केवल लोगों के जीवन में बदलाव ला दिया है बल्कि इस सरहदी गांव को एक पहचान भी दिला दी है। (साभार – चरखा फीचर)

 

 

 

 

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here