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मुनाफ़े की गंगा में कॉर्पोरेट की बढ़ती ताकत से आजीविका विहीन होता बनारस का माँझी समुदाय

ऐसा ही आंदोलन सन दो हजार उन्नीस की पहली जनवरी से शुरू हुआ था, जब मांझी समुदाय ने पहली बार गंगा में क्रूज चलाने के विरोध में नावें किनारे से बांध दी और अस्सी से राजघाट तक अपील की कि कोई भी अपनी नाव नहीं चलाएगा। मांझी समुदाय की मांग थी कि क्रूज को पहले से तय किए गए रास्ते खिड़किया घाट से दशाश्वमेघ घाट तक ही चलाया जाए न कि अस्सी घाट तक। वैसे तो पूरा मांझी समुदाय क्रूज के संचालन से ही नाराज था लेकिन जब उद्घाटन हो गया तो उन लोगों ने क्रूज को तय रास्ते पर चलाए जाने की मांग रखी।

वाराणसी। रामनगर से राजघाट तक गंगा में एक तूफान मचा हुआ है लेकिन विकास के गाजे-बाजे के शोर में इस तूफान की आवाज दब गई है। हालांकि यह कहना अधिक उपयुक्त है कि यह आवाज दबाने की हर संभव कोशिश की जा रही है लेकिन जो तंत्र इसे दबाने में लगा है उसे अच्छी तरह पता है कि अंदर कितनी हलचल है। क्रूज के शोर ने पानी के अंदर मछलियों, कछुओं और दूसरे जलीय जंतुओं के लिए खतरा पैदा कर दिया तो पानी के ऊपर बरसों से नाव चलाकर आजीविका कमाने वाले मल्लाह समुदाय के सामने रोजी और भविष्य का संकट पैदा कर दिया है। पहले एक क्रूज आया फिर चार क्रूज़ चलने लगे। पिछले दिनों जब वाटर टेक्सियों के चलाने का मामला सामने आया तब यह समुदाय इस बात से डर गया कि अगर ऐसा ही रहा तो उनकी नावें हमेशा के लिए किनारों पर बंध जाएंगी। आज गंगा पर आश्रित मल्लाह समुदाय आंदोलन कर रहा है।

ऐसा ही आंदोलन सन दो हजार उन्नीस की पहली जनवरी से शुरू हुआ था, जब मांझी समुदाय ने पहली बार गंगा में क्रूज चलाने के विरोध में नावें किनारे से बांध दी और अस्सी से राजघाट तक अपील की कि कोई भी अपनी नाव नहीं चलाएगा। मांझी समुदाय की मांग थी कि क्रूज को पहले से तय किए गए रास्ते खिड़किया घाट से दशाश्वमेघ घाट तक ही चलाया जाए न कि अस्सी घाट तक। वैसे तो पूरा मांझी समुदाय क्रूज के संचालन से ही नाराज था लेकिन जब उद्घाटन हो गया तो उन लोगों ने क्रूज को तय रास्ते पर चलाए जाने की मांग रखी।

 और अब दो हजार तेईस की ग्यारह जुलाई को रविदास घाट पर मांझी समुदाय ने एक बार फिर चार क्रूज का नाव से घेराव कर गंगा में चलने वाली वॉटर टैक्सी का सख्ती से विरोध किया। इस मुद्दे पर बात करने जब हमने मांझी समुदाय द्वारा बनाए संगठन माँ गंगा निषादराज सेवा न्यास के अध्यक्ष प्रमोद मांझी से मिलने दशाश्वमेध घाट पहुंचे तो वे सीढ़ियों के पास लगे हुए तख्त पर अपने 6-7 साथियों के साथ बैठकर आगे की रणनीति तय करते हुए, संस्था के लेटर पैड पर लोगों के हस्ताक्षर ले रहे थे। पूछने पर बताया कि वाटर टैक्सी के विरोध को सुलझाने के लिए डीएम ने एक ग्यारह सदस्यीय कमेटी के गठन करने का निर्देश दिया है, जिसमें मांझी समाज के कुल ग्यारह लोगों को शामिल करने की बात कही, जिनके साथ प्रशासन बातचीत कर हल निकालेगा।

दशाश्वमेघ घाट पर प्रमोद मांझी के साथ माझी समुदाय के सदस्य आगे की रणनीति बनाने के लिए इकट्ठे हुए

किन ग्यारह लोगों को कमेटी में रख रहे हैं? इस प्रश्न को सुनते ही प्रमोद मांझी ने जवाब दिया ग्यारह लोग ही क्यों? कमेटी में पूरा मांझी समाज का नाम जाएगा, बनारस के बहुत से सम्मानीय लोग भी इस कमेटी में शामिल होना चाहते हैं। इसके लिए हम लोग हस्ताक्षर अभियान के माध्यम से एक आवेदन डीएम महोदय को भेज रहे हैं। उन्होंने हस्ताक्षरयुक्त पैड निकालकर दिखाया। इस लड़ाई में रामनगर से लेकर सरायमोहाना तक के लोग शामिल हैं। हम लोग चाहते हैं कि इस मुद्दे पर जब भी बात हो तो कुछ गिने-चुने लोग ही बात करने न जाएं बल्कि हम हजारों की संख्या में हों और तब बात हो। यह भरोसे वाली बात भी है। यदि ग्यारह लोग बात करने जाएंगे तो हो सकता है कुछ लोग लालच में आकर उनके अनुसार समझौता कर पूरे मांझी समाज का नुकसान करवा दें।

आज की राजनैतिक परिस्थितियों को देखते हुए मांझी समुदाय ने ग्यारह सदस्यीय कमेटी के गठन को एक स्वर में नकार दिया है।

हस्ताक्षर अभियान में हस्ताक्षर करते हुए एक मांझी

जन्मजात कौशल वाला समुदाय मज़दूर बनकर रह जाएगा 

पूरी दुनिया की सभ्यताओं का विकास नदियों के माध्यम से हुआ है। देशों की खोज नदियों और समुद्रों के रास्ते ही हुई। चाहे नाविक क्रिस्टोफर कोलंबस हो या वास्कोडिगामा। समुद्री रास्ते की खोज के बाद ही सभ्यता का आदान-प्रदान हुआ। इस वजह से पूरी दुनिया में नाविकों के महत्व को नकारा नहीं जा सकता।

प्रमोद माँझी कहते हैं ‘हमारे समाज के लोग अन्य किसी काम का कोई हुनर नहीं रखते, उन्हें तो बस नाव चलाना ही आता है। ऐसे में वे जिस पेशे से अपनी रोजी-रोटी चला पाते हैं वह नाव चलाने का पेशा ही है। लेकिन केंद्र और राज्य सरकार उनसे यह पेशा पूरी तरह छीन लेने पर आमादा है। गंगा में पहले क्रूज चलवाया और अब वॉटर टैक्सी चलाने की तैयारी हो रही है। वॉटर टैक्सी के नाम पर 10 बोट आई हैं, जिनमें 6 बोट एम्बुलेंस के रूप में, 2 बोट शववाहिनी के रूप में और 2 बोट वॉटर टैक्सी के रूप में चलाने की योजना है। इसके लिए दशाश्वमेघ घाट पर जेट्टी बन चुकी है जबकि अस्सी घाट, नमो घाट और  कॉरीडोर पर जेट्टी बनाई जा रही है।

दशाश्वमेघ घाट पर बनी हुई जेट्टी

वॉटर टैक्सी चलाने का मतलब है कि मांझी समुदाय के रोजगार पर कब्ज़ा कर लेना क्योंकि बड़ी पूंजी लगाने वाले संचालक न केवल ग्राहकों को अपनी ओर खींचने में आसानी से सफल होंगे बल्कि वे धीरे-धीरे अधिक वाटर टेक्सियाँ गंगा में उतारेंगे जिससे हमारा स्पेस घटते-घटते पूरी तरह खत्म हो जाएगा।’ सभी की अपनी लकड़ी की नावें हैं जिनमें अधिकतर नावों में सीएनजी मोटर लगी हुई हैं। बनारस के 84 घाटों से  परंपरागत तरीके से नावें चलती हैं। हर घाट के अपने मांझी हैं। कोई मांझी किसी दूसरे घाट की सवारी नहीं ले सकता, सबके अपने क्षेत्र तय हैं। इस शहर के सांसद और देश के प्रधानमंत्री हम लोगों को उखाड़कर यहाँ का पूरा क्षेत्र और काम गुजरातियों के हाथ में देना चाहते हैं। यहाँ जितना भी निर्माण कार्य हुआ है उसके ठेकेदार और मजदूर, यहाँ तक कि घाटों में लगने वाले पत्थर भी गुजरात से मंगाए गए। क्या यहाँ यह सब उपलब्ध नहीं है। लेकिन मोदी जी की मंशा अब समझ में आ रही है।

प्रमोद मांझी से बातचीत करते हुए प्रशासन के लोग (सौजन्य  – शुभम साहनी) 

प्रमोद कहते हैं ‘डीएम साहब वॉटर टैक्सी के लिए टेन्डर जारी करना चाह रहे हैं। उन्होंने हम लोगों से कहा कि आप लोग टेन्डर भरिए आपके नाम से ही वॉटर टैक्सी अलाट हो जाएगी।’ लेकिन अजित साहनी उर्फ बाबू ने कहा कि ‘यदि एक बार हमने यह स्वीकार कर लिया तो अगली बार जरूरी नहीं कि हमारे नाम से टेन्डर निकले। वैसे भी यहाँ जितने नए निर्माण हो रहे हैं वे सब गुजरातियों के नाम से हो रहे हैं। सरकार धीरे-धीरे हम सबके रोजगार को छीनकर हमें इस काम से दूर कर मजदूर बना देना चाहती है, जबकि अभी हम अपनी-अपनी नावों के मालिक हैं।’

पूरा मामला क्या है? इस बात का जवाब देते हुए प्रमोद मांझी ने कहा कि ‘वास्तव में गंगा हमारी माँ है जिसके चलते हमारा परिवार और जीवन चलता है। वॉटर टैक्सी चलाने का मामला अचानक दो माह पहले ही सामने आया है। जैसे ही पता लगा हम लोगों ने इसे रोकने के लिए देश की महामहिम राष्ट्रपति से लेकर निचले स्तर तक हर किसी को इस संबंध में ज्ञापन सौंपा लेकिन बीस दिन तक किसी की तरफ से कोई कार्यवाही नहीं हुई, न ही कोई जवाब आया। तब मजबूरन मांझी समाज को इसे रोकने के लिए धरना देना पड़ा। हम लोगों ने रविदास घाट से चलने वाले चार क्रूज का घेराव अपनी-अपनी नावों से किया। घेराव दिन में 4 बजे से शाम 7-7.30 बजे तक चलता रहा।’ विरोध सोमवार से शुरू हो गया था इस वजह से बोट का चलना बंद कर दिया गया था। विरोध की जानकारी के बाद डीएम एस राजलिंगम बातचीत के लिए पहुँचे और माँ गंगा निषादराज सेवा न्यास के अध्यक्ष प्रमोद मांझी से बात की।

शंभू साहनी

लेकिन प्रमोद मांझी कहते हैं कि ‘यह बातचीत बिना किसी नतीजे के खत्म हो गई’ जबकि डीएम ने ग्यारह सदस्यीय कमेटी बनाकर बात करने की पेशकश की। प्रमोद मांझी का कहना कि ‘कमेटी में केवल ग्यारह लोग ही क्यों रहें। इसमें हमारे समुदाय के दो हजार लोगों के साथ ही बनारस के कई और लोग भी इस कमेटी में शामिल होना चाहते हैं। इसके लिए हम गंगा के सभी घाट के मांझी समुदाय के बीच हस्ताक्षर अभियान चलाकर यह बात डीएम तक पहुंचाना चाहते हैं।

मांझी समुदाय के शंभू साहनी ने कहा कि ‘क्रूज तो चल ही रहा है लेकिन अब वॉटर टैक्सी शुरू किए जाने की कवायद चल रही है, जिसका सीधा असर नाविकों की आजीविका पर पड़ेगा।’ प्रमोद मांझी कहते हैं कि ‘सरकार हमसे टैक्स और समर्थन तो लेती है लेकिन उसे हमारे भविष्य को लेकर कोई चिंता नहीं है न ही कोई योजना है।’

क्रूज को घेरते हुए (सौजन्य – शुभम साहनी)

प्रशासन पहले रोक लगा रहा है फिर पूरी तरह बंद करने पर मजबूर 

मांझी समाज के संचालक मण्डल के सक्रिय सदस्य पृथ्वीनाथ मांझी ने बताया कि ‘अभी तो कम संख्या में वॉटर टैक्सी लाई गई है लेकिन सरकार की पूरी योजना है कि बड़ी संख्या में गंगा में वॉटर टैक्सी चलवाई जाए और हमारी नावों को रिजेक्ट कर दिया जाए। घाट पर जितनी भी नावें खड़ी हैं, उसका निर्माण मांझी समाज के लोग मिलजुलकर ही करते हैं और अपने-अपने घाटों पर उसे बनाते, जिसमें महीनों लग जाते हैं। लेकिन इधर प्रशासन ने घाटों पर लकड़ी की नाव के निर्माण पर रोक लगा दी है। उनका कहना है कि आप किसी दूसरी जगह नाव बनाइये। इसका क्या मतलब निकलता है? सब समझ रहे हैं।’

पूरी दुनिया में सदियों से लकड़ी की नाव चलन में है। लेकिन बनारस में प्रशासन के लोग इसे डिफॉल्टर साबित कर रहे हैं। असल में वरुणा से अस्सी तक मल्लाहों का जो क्षेत्र है, वह इन लोगों को खटक रहा है। नमो घाट, ललिता घाट, दशाश्वमेघ घाट, केदार घाट और अस्सी घाट पर जेट्टी का निर्माण कर मल्लाहों को पूरी तरह समाप्त करने का मंसूबा बांध चुके हैं।

पृथ्वीनाथ साहनी

बैठक में उपस्थित मांझी समुदाय के शंभू साहनी ने कहा कि ‘2014 से पहले भी किसी सरकार ने हमारे अस्तित्व को स्वीकार नहीं किया। न ही किसी तरह से हमारे विकास के लिए कोई काम किया लेकिन 2014 के बाद बीजेपी सरकार जिस तरह माझी समुदाय को पूरी तरह से उजाड़ने के लगातार प्रयास कर रही है, उसने हम लोगों को आंदोलन करने और अपनी आवाज उठाने के लिए मजबूर कर दिया है।’

पाँच हज़ार परिवारों के सामने मँडराता संकट 

प्रमोद माझी ने बताया कि बनारस के 84 घाटों से लगभग 4000 नावों का संचालन रोज होता है, जिनसे 5000 परिवार अपना जीवन यापन करते हैं। मांझी समुदाय की जनसंख्या 50 हजार से 60 हजार तक की है। हमारा काम पूर्वजों के समय से ही चलता आ रहा है।

मांझी समुदाय के बच्चे लगातार पढ़ाई करते हुए उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं लेकिन रोजगार के मामले में केवल दो लोगों को खेल कोटे से सेना और पुलिस में नौकरी मिली। इस वजह से पृथ्वीनाथ साहनी का कहना है कि यदि बच्चे पढ़-लिखकर भी बेरोजगार हैं तो फिर अपने पुश्तैनी काम ही करेंगे लेकिन ऐसे हालात में वे क्या करेंगे? जब सरकार द्वारा उन्हें अपने काम से विस्थापित करने का षड्यन्त्र किया जा रहा है।’

प्रमोद मांझी और प्रशासन

असल में बनारस पर्यटन के मामले में सोने का अंडा देने वाली मुर्गी है। यहाँ के कई हजार करोड़ रुपये के पर्यटन व्यवसाय में पानी पर किसानी का भी बड़ा हिस्सा है, जिस पर मुनाफाखोरों की पैनी नजर है। पहले एक क्रूज आया, अब इसकी संख्या चार हो गई। इसमें प्राइवेट और सरकारी दोनों तरह के क्रूज शामिल हैं। क्रूज और वॉटर टैक्सी चलाने के निर्णय ने मांझी समुदाय के भीतर एक असुरक्षा पैदा कर दिया है, क्योंकि इसकी रफ्तार और बाहरी कलेवर के साथ इसकी क्षमता साधारण नावों के मुकाबले ज्यादा ध्यान खिचेंगी। प्रयोग के तौर पर पहले एक क्रूज ही पानी में उतारा गया था लेकिन उसके बाद धीरे-धीरे चार क्रूज गंगा में चलने लगे। इसी तरह अभी वॉटर टैक्सियों की संख्या भले कम हो लेकिन आने वाले दिनों में इसमें मुनाफा देखते हुए संख्या में इजाफा होना तय है।

हाल-फिलहाल बनारस का जो स्वरूप दिखाई दे रहा है, उससे इतना तो समझ आ रहा है कि पुरानी जगहों पर नए-नए लोगों की ताजपोशी की जा रही है। बनारस की गलियां और पक्का मुहाल ढह चुका है। राजघाट में स्थापित सर्व सेवा संघ जैसे प्रतिष्ठान को लंबी लड़ाई के बाद ढहाने की तैयारी चल रही है। बरसों से पुराने बाशिंदों को बेरहमी से उजाड़ दिया गया है। यह देखते हुए मांझी समुदाय का अपने भविष्य को लेकर चिंतित होना वाजिब है।

वॉटर टैक्सी के संचालन के खिलाफ चल रहे आंदोलन को लेकर जब हमने वाराणसी के डीएम एस राजलिंगंम को फोन लगा कर इस मुद्दे पर उनके आगे के निर्णय के बारे में जानकारी लेनी चाही तो उनके पीआरओ ने बात तो नहीं कराई बल्कि एडीएम का नंबर देकर उनसे बात करने को कहा। एडीएम के फोन पर घंटी तो पूरी गई लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। प्रशासन वही करेगा जो सरकार चाहेगी लेकिन क्या उनके पास अपनी रोजी-रोटी खोने वाले पाँच हज़ार परिवारों के लिए भी कोई योजना है? माँझी समुदाय इस सवाल के साथ खड़ा है।

अपर्णा
अपर्णा
अपर्णा गाँव के लोग की संस्थापक और कार्यकारी संपादक हैं।

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