भदोही जिले के भुर्रा गांव के लोग इस बात से चिंतित हैं कि गंगा नदी धीरे-धीरे जमीन का कटान कर रही है। पास का गांव हरिहरपुर डूब चुका है। उन्हें अपने गांव के अस्तित्व की भी चिंता है। शासन-प्रशासन ने वहां ठोकर बना दिया था, जिससे गांव वालों का कहना है कि कटान और भी तेजी से हो रहा है।
उत्तराखंड में अभी तक नदियों पर बन रहे सभी प्रोजेक्ट जल विद्युत परियोजनाएँ हैं और सिंचाई या पीने के पानी के लिए अभी तक इन योजनाओं का उपयोग नहीं किया गया है लेकिन मैदानी क्षेत्र शुरू होते ही उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली पानी को लेकर उसका बंटवारा शुरू करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय घुमक्कड़, जाने-माने लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता विद्या भूषण रावत कई साल से भारत की नदियों की यात्रा कर रहे हैं। हाल ही में चंबल की यात्रा से लौटे रावत जी ने यह मार्मिक ग्राउंड रिपोर्ट लिखी है :
ऐसा ही आंदोलन सन दो हजार उन्नीस की पहली जनवरी से शुरू हुआ था, जब मांझी समुदाय ने पहली बार गंगा में क्रूज चलाने के विरोध में नावें किनारे से बांध दी और अस्सी से राजघाट तक अपील की कि कोई भी अपनी नाव नहीं चलाएगा। मांझी समुदाय की मांग थी कि क्रूज को पहले से तय किए गए रास्ते खिड़किया घाट से दशाश्वमेघ घाट तक ही चलाया जाए न कि अस्सी घाट तक। वैसे तो पूरा मांझी समुदाय क्रूज के संचालन से ही नाराज था लेकिन जब उद्घाटन हो गया तो उन लोगों ने क्रूज को तय रास्ते पर चलाए जाने की मांग रखी।
वरुणा कॉरिडोर बनवाकर सपा सुप्रीमो अखिलेश ने साल 2016 में खूब सुर्खियां बटोरी थी। उस समय इस नदी को बचाने के लिए मुहिम चला रहे जनसरोकारीय संगठनों और स्थानीय लोगों में उम्मीद जगी कि नदी साफ हो जाएगी। सत्ता बदली तो जैसे इस नदी के नसीब ही फूट गए। इसका भाग्य संवारने के लिए कोई दूसरा भगीरथ नहीं आया। अब जनवादी संगठन पदयात्रा निकाल रहे हैं और इस नदी के पुनरुद्धार के लिए मुहिम चला रहे हैं।
बनारस को निडर होकर गंगा के साथ हो रहे खिलवाड़ के खिलाफ खड़ा होना होगा और इस अभियान को रोजाना गतिविधियों और नयी सूझ के साथ जोड़ना होगा। बनारस सिर्फ धार्मिक अनुष्ठानों की ही नहीं, हमारी अंतर्राष्ट्रीयता की भी राजधानी है। साफ नदी जल और खोई हुई पहचान को वापस पाने के लिए हमें संघर्ष करना होगा।