Thursday, November 21, 2024
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मणिपुर : लगातार उलझती जा रही समस्या का कब निकलेगा समाधान

मैतई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने के विरोध में पिछले डेढ़ वर्षों से लगातार आदिवासी समूहों में संघर्ष चल रहा है, जिसमें सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी आज तक मणिपुर नहीं गए, न ही समस्या के हल के लिए कभी कोई चर्चा ही की। इस प्रदेश में नागा एवं कुकी मैतेई द्वारा अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग के खिलाफ हैं। मैतेई एवं नागा कुकी के अलग प्रशासन की मांग के खिलाफ हैं। मैतेई वृहत्तर नागालिम की मांग के खिलाफ हैं। सवाल उठता है कि कैसे और कब इस समस्या का कोई हल निकलेगा। 

राष्ट्रीय झंडे को लेकर संविधान सभा में नेहरु द्वारा दिया गया भाषण

आज महान क्रांतिकारी, देश के पहले प्रधानमंत्री, शांतिदूत, चिंतक एवं लेखक पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्मदिन है। परम्परा के अनुसार दुनिया में अपने पुरखों को याद किया जाता है। हमारे पुरखे कैसे भी हों हम उन्हें याद करते हैं। एक चपरासी का पुत्र यदि आईएएस बन जाता है तो उसका सारा श्रेय वह अपने पिता को देता है। दूसरे देशों में भी यह परम्परा कायम है। चीन में भले ही कम्युनिस्ट क्रांति हुई हो और कम्युनिस्टों का राज आ गया हो फिर भी वहां सुन यात-सेन को याद किया जाता है। क्यूबा में फिडेल केस्ट्रो अपने देश के अनेक क्रांतिकारियों को याद करते हैं। मैंने स्वयं अपनी क्यूबा यात्रा के दौरान केस्ट्रो को वहां के पूर्वजों को याद करते सुना है। अमरीका में वहां के राष्ट्र की स्थापना करने वाले वाशिंगटन को अमरीका की क्रांति के दिवस पर याद किया जाता है। अमरीका ने उन्हें सबसे बड़ी श्रद्धांजलि अपनी राजधानी को उनके नाम पर रखकर दी है। देश के अनेक अखबार 14 नवंबर को जवाहरलाल नेहरू को याद नहीं करते हैं। मेरे घर प्रतिदिन अनेक अखबार आते हैं। मैं देख रहा हूं कि एक-दो अखबारों को छोड़कर किसी ने उन्हें याद नहीं किया आखिर क्यों? उनके जन्मदिन पर उन्हें हम याद करते हुए, अपनी ओर से और अपने साथ जुड़ी संस्थाओं की ओर से पंडित जवाहरलाल नेहरू को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। न सिर्फ भारत के नेता के रूप में बल्कि एक विश्व नेता के रूप में भी। इस अवसर पर मैं जवाहरलाल नेहरू द्वारा दिये गये एक भाषण को जारी कर रहा हूँ जो उन्होंने हमारे तिरंगे झंडे के सम्मान में संविधान सभा में दिया था।

अमर्त्य सेन के बहाने फासिस्ट मंसूबों के खिलाफ एक सोच

अमर्त्य सेन को 1998 में "कल्याणकारी अर्थशास्त्र में उनके योगदान के लिए" अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वे आज भी सक्रिय हैं। वे कभी भी नरेन्द्र मोदी को प्रधानमन्त्री के रूप में देखना नहीं चाहते थे, यह बात उन्होंने अपने एक साक्षत्कार में कही थी, जिसके बाद विरोधियों ने उनसे भारत रत्न वापस कर देने की बात कही। देश में चल रही फासिस्टों की सरकार ने उन्हें लगातार प्रताड़ित कर डराने और दबाने की कोशिश की, यहाँ तक कि उन्हें उनके पैतृक आवास से बेदखल करने की भी कोशिश की गई। आज उनके 92वें जन्मदिन पर याद करते हुए डॉ सुरेश खैरनार का लेख

आरजी कर मामले में सरकार की दबाव नीति जेंडर बायस का घिनौना रूप दिखाती है

अतीत में बंगाल एक मजबूत सामाजिक चेतना के लिए जाना जाता था, जहां आम लोग सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए हस्तक्षेप करते थे। हालांकि आज भी यह चेतना बनी हुई है, लेकिन लोग ऐसे गुंडों को मिलने वाले राजनीतिक संरक्षण के कारण हस्तक्षेप करने से डरने लगे हैं। आज बंगाल में ऐसे आवश्यक सामाजिक हस्तक्षेपों को समर्थन मिलने के बजाय उनके खिलाफ हिंसा होने की आशंका अधिक होती है।

पूरी दुनिया में न्याय की देवी महिला होने के बाद भी कोर्ट में महिला न्यायधीशों की संख्या कम क्यों

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश डी वाई चंद्रचूड अपनी सेवानिवृति के कुछ दिन पहले ही अदालतों में दिखने वाली न्याय की देवी की मूर्ति में बदलाव कर आँखों से पट्टी हटाकर हाथ में संविधान की किताब पकड़वाई है। यह बदलाव इस बात का सन्देश दे रहा है कि कानून अंधा नहीं होता। अपराधी के खिलाफ सही तरीके से कानूनी कार्रवाई की जाएगी। जिससे लोगों के बीच कानून की जो छवि अभी है, उसमें बदलाव किया जा सके।

मणिपुर : लगातार उलझती जा रही समस्या का कब निकलेगा समाधान

मैतई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने के विरोध में पिछले डेढ़ वर्षों से लगातार आदिवासी समूहों में संघर्ष चल रहा है, जिसमें सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी आज तक मणिपुर नहीं गए, न ही समस्या के हल के लिए कभी कोई चर्चा ही की। इस प्रदेश में नागा एवं कुकी मैतेई द्वारा अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग के खिलाफ हैं। मैतेई एवं नागा कुकी के अलग प्रशासन की मांग के खिलाफ हैं। मैतेई वृहत्तर नागालिम की मांग के खिलाफ हैं। सवाल उठता है कि कैसे और कब इस समस्या का कोई हल निकलेगा। 

राष्ट्रीय झंडे को लेकर संविधान सभा में नेहरु द्वारा दिया गया भाषण

आज महान क्रांतिकारी, देश के पहले प्रधानमंत्री, शांतिदूत, चिंतक एवं लेखक पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्मदिन है। परम्परा के अनुसार दुनिया में अपने पुरखों को याद किया जाता है। हमारे पुरखे कैसे भी हों हम उन्हें याद करते हैं। एक चपरासी का पुत्र यदि आईएएस बन जाता है तो उसका सारा श्रेय वह अपने पिता को देता है। दूसरे देशों में भी यह परम्परा कायम है। चीन में भले ही कम्युनिस्ट क्रांति हुई हो और कम्युनिस्टों का राज आ गया हो फिर भी वहां सुन यात-सेन को याद किया जाता है। क्यूबा में फिडेल केस्ट्रो अपने देश के अनेक क्रांतिकारियों को याद करते हैं। मैंने स्वयं अपनी क्यूबा यात्रा के दौरान केस्ट्रो को वहां के पूर्वजों को याद करते सुना है। अमरीका में वहां के राष्ट्र की स्थापना करने वाले वाशिंगटन को अमरीका की क्रांति के दिवस पर याद किया जाता है। अमरीका ने उन्हें सबसे बड़ी श्रद्धांजलि अपनी राजधानी को उनके नाम पर रखकर दी है। देश के अनेक अखबार 14 नवंबर को जवाहरलाल नेहरू को याद नहीं करते हैं। मेरे घर प्रतिदिन अनेक अखबार आते हैं। मैं देख रहा हूं कि एक-दो अखबारों को छोड़कर किसी ने उन्हें याद नहीं किया आखिर क्यों? उनके जन्मदिन पर उन्हें हम याद करते हुए, अपनी ओर से और अपने साथ जुड़ी संस्थाओं की ओर से पंडित जवाहरलाल नेहरू को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। न सिर्फ भारत के नेता के रूप में बल्कि एक विश्व नेता के रूप में भी। इस अवसर पर मैं जवाहरलाल नेहरू द्वारा दिये गये एक भाषण को जारी कर रहा हूँ जो उन्होंने हमारे तिरंगे झंडे के सम्मान में संविधान सभा में दिया था।

अमर्त्य सेन के बहाने फासिस्ट मंसूबों के खिलाफ एक सोच

अमर्त्य सेन को 1998 में "कल्याणकारी अर्थशास्त्र में उनके योगदान के लिए" अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वे आज भी सक्रिय हैं। वे कभी भी नरेन्द्र मोदी को प्रधानमन्त्री के रूप में देखना नहीं चाहते थे, यह बात उन्होंने अपने एक साक्षत्कार में कही थी, जिसके बाद विरोधियों ने उनसे भारत रत्न वापस कर देने की बात कही। देश में चल रही फासिस्टों की सरकार ने उन्हें लगातार प्रताड़ित कर डराने और दबाने की कोशिश की, यहाँ तक कि उन्हें उनके पैतृक आवास से बेदखल करने की भी कोशिश की गई। आज उनके 92वें जन्मदिन पर याद करते हुए डॉ सुरेश खैरनार का लेख

आरजी कर मामले में सरकार की दबाव नीति जेंडर बायस का घिनौना रूप दिखाती है

अतीत में बंगाल एक मजबूत सामाजिक चेतना के लिए जाना जाता था, जहां आम लोग सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए हस्तक्षेप करते थे। हालांकि आज भी यह चेतना बनी हुई है, लेकिन लोग ऐसे गुंडों को मिलने वाले राजनीतिक संरक्षण के कारण हस्तक्षेप करने से डरने लगे हैं। आज बंगाल में ऐसे आवश्यक सामाजिक हस्तक्षेपों को समर्थन मिलने के बजाय उनके खिलाफ हिंसा होने की आशंका अधिक होती है।

पूरी दुनिया में न्याय की देवी महिला होने के बाद भी कोर्ट में महिला न्यायधीशों की संख्या कम क्यों

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश डी वाई चंद्रचूड अपनी सेवानिवृति के कुछ दिन पहले ही अदालतों में दिखने वाली न्याय की देवी की मूर्ति में बदलाव कर आँखों से पट्टी हटाकर हाथ में संविधान की किताब पकड़वाई है। यह बदलाव इस बात का सन्देश दे रहा है कि कानून अंधा नहीं होता। अपराधी के खिलाफ सही तरीके से कानूनी कार्रवाई की जाएगी। जिससे लोगों के बीच कानून की जो छवि अभी है, उसमें बदलाव किया जा सके।

प्रोफेसर जीएन साईबाबा असंवेदनशील न्याय-व्यवस्था के शिकार हुए

मानवाधिकार कार्यकर्ता और दिल्ली विवि में अंग्रेजी के प्रोफेसर जीएन साई बाबा ने कल हैदराबाद में अंतिम साँस ली। गौरतलब है कि प्रोफेसर साईंबाबा को उनके ‘कथित’ माओवादियों के साथ संबंधों के लिए गिरफ्तार किया था। बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा मेडिकल आधार पर जमानत दिए जाने और जून 2015 में उन्हें रिहा कर दिए जाने बाद भी, वे जेल में थे और उनकी सभी अपीलें अदालतों द्वारा खारिज कर दी गईं। वर्ष 2017 में एक सत्र न्यायालय द्वारा आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी और उनकी मेडिकल जमानत याचिका को उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था। 90 प्रतिशत विकलांग होने के बावजूद प्रोफेसर साईंबाबा को नागपुर की कुख्यात अंडा सेल में रखा गया था। सबसे दुखद बात यह थी कि उन्हें अपनी माँ के निधन के बाद उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए पैरोल नहीं दी गई थी।