Thursday, November 7, 2024
Thursday, November 7, 2024




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमराष्ट्रीय

राष्ट्रीय

अमर्त्य सेन के बहाने फासिस्ट मंसूबों के खिलाफ एक सोच

अमर्त्य सेन को 1998 में "कल्याणकारी अर्थशास्त्र में उनके योगदान के लिए" अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वे आज भी सक्रिय हैं। वे कभी भी नरेन्द्र मोदी को प्रधानमन्त्री के रूप में देखना नहीं चाहते थे, यह बात उन्होंने अपने एक साक्षत्कार में कही थी, जिसके बाद विरोधियों ने उनसे भारत रत्न वापस कर देने की बात कही। देश में चल रही फासिस्टों की सरकार ने उन्हें लगातार प्रताड़ित कर डराने और दबाने की कोशिश की, यहाँ तक कि उन्हें उनके पैतृक आवास से बेदखल करने की भी कोशिश की गई। आज उनके 92वें जन्मदिन पर याद करते हुए डॉ सुरेश खैरनार का लेख

आरजी कर मामले में सरकार की दबाव नीति जेंडर बायस का घिनौना रूप दिखाती है

अतीत में बंगाल एक मजबूत सामाजिक चेतना के लिए जाना जाता था, जहां आम लोग सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए हस्तक्षेप करते थे। हालांकि आज भी यह चेतना बनी हुई है, लेकिन लोग ऐसे गुंडों को मिलने वाले राजनीतिक संरक्षण के कारण हस्तक्षेप करने से डरने लगे हैं। आज बंगाल में ऐसे आवश्यक सामाजिक हस्तक्षेपों को समर्थन मिलने के बजाय उनके खिलाफ हिंसा होने की आशंका अधिक होती है।

पूरी दुनिया में न्याय की देवी महिला होने के बाद भी कोर्ट में महिला न्यायधीशों की संख्या कम क्यों

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश डी वाई चंद्रचूड अपनी सेवानिवृति के कुछ दिन पहले ही अदालतों में दिखने वाली न्याय की देवी की मूर्ति में बदलाव कर आँखों से पट्टी हटाकर हाथ में संविधान की किताब पकड़वाई है। यह बदलाव इस बात का सन्देश दे रहा है कि कानून अंधा नहीं होता। अपराधी के खिलाफ सही तरीके से कानूनी कार्रवाई की जाएगी। जिससे लोगों के बीच कानून की जो छवि अभी है, उसमें बदलाव किया जा सके।

प्रोफेसर जीएन साईबाबा असंवेदनशील न्याय-व्यवस्था के शिकार हुए

मानवाधिकार कार्यकर्ता और दिल्ली विवि में अंग्रेजी के प्रोफेसर जीएन साई बाबा ने कल हैदराबाद में अंतिम साँस ली। गौरतलब है कि प्रोफेसर साईंबाबा को उनके ‘कथित’ माओवादियों के साथ संबंधों के लिए गिरफ्तार किया था। बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा मेडिकल आधार पर जमानत दिए जाने और जून 2015 में उन्हें रिहा कर दिए जाने बाद भी, वे जेल में थे और उनकी सभी अपीलें अदालतों द्वारा खारिज कर दी गईं। वर्ष 2017 में एक सत्र न्यायालय द्वारा आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी और उनकी मेडिकल जमानत याचिका को उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था। 90 प्रतिशत विकलांग होने के बावजूद प्रोफेसर साईंबाबा को नागपुर की कुख्यात अंडा सेल में रखा गया था। सबसे दुखद बात यह थी कि उन्हें अपनी माँ के निधन के बाद उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए पैरोल नहीं दी गई थी।

क्या धर्मनिरपेक्षता पश्चिम का थोपा हुआ विचार है?

भारत में हिन्दू धर्म के बारे में कहा जाता है कि वह पारंपरिक अर्थ में धर्म नहीं है। यह केवल लोगों को भ्रमित करने का तरीका है। जो लोग धर्म का रक्षक होने का दावा करते हैं वे दरअसल जाति और लिंग पर आधारित प्राचीन ऊंच-नीच को बनाए रखना चाहते है। ये ताकतें प्रजातंत्र के आगाज़ से पहले की दुनिया वापस लाना चाहती हैं। वे नहीं चाहतीं कि हर व्यक्ति का एक वोट हो। वे चाहतीं हैं कि राजा को ईश्वर से जोड़ा जाए और पुरोहित वर्ग उसे सहारा दे। 

भोपाल गैस त्रासदी – एक रात के ज़ख्म अब दूसरी पीढ़ियों में टीस रहे हैं

इतिहास की सबसे बड़ी रासायनिक औद्योगिक त्रासदी के रूप में दर्ज भोपाल गैस त्रासदी के जख्म ऊपरी तौर पर आज भले ही गायब हो...

समाजसेवियों ने की गांधी विद्या संस्थान को मुक्त कर सर्व सेवा संघ को सौंपने की माँग

बोले समाजसेवी - गांधी विद्या संस्थान को दूसरी संस्था को सौंपना विधि विरुद्ध वाराणसी। बीते मंगलवार यानी 16 मई को कमिश्नर कौशलराज शर्मा के निर्देश...

महिला पहलवानों के पक्ष में बनारस की लड़कियों का ‘दख़ल’

दिल्ली पहुँचीं लड़कियों ने पीड़ित खिलाड़ियों से बातचीत कर दिया समर्थन वाराणसी। दिल्ली के जंतर-मंतर पर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे कुश्ती खिलाड़ियों के समर्थन में...

वर्धा यूनिवर्सिटी में लड़की से छेड़खानी, प्रबंधन बना लापरवाह

प्रशासन ने मानहानि और सुसाइड की धमकी देकर पीड़िता से ही लिखवाया माफ़ीनामा लड़कियों और स्त्रियों पर होने वाले यौन हिंसा जैसे जघन्य अपराध को...