सेन्टर फाॅर माॅनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की जनवरी 2023 में जारी रिर्पोट के अनुसार, भारत में दिसंबर 2021 तक बेरोजगारों की संख्या 5.3 करोड़ है, जिसमें 3.5 करोड़ लगातार काम खोज रहे हैं। भारत में रोजगार मिलने की दर बहुत कम है। ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी दर में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। जून, 2023 में यह 8.45 फीसदी के पार हो गयी, जबकि मई, 2023 में यह 7.68 फीसदी पर था। रोजगार सभी की जरूरत है।
अधिकतर शिक्षित होकर रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं। इनमें कुछ तो नौकरी को प्राप्त कर लेते हैं, परंतु अधिकतर इससे वंचित ही रह जाते हैं। जीवन में भोजन, कपड़ा व मकान सभी की जरूरत है। जिसका गुजारा रोजगार के बिना मुमकिन नहीं है। रोजगार से सिर्फ धन ही नहीं कमाया जाता है बल्कि प्रगति करने के मौके भी मिलते हैं। रोजगार हमे ज्ञान के साथ-साथ अपने क्षेत्र में कामयाब कैसे हो सकते हैं? यह भी सिखाता है।
वर्तमान समय में शिक्षा के बाद उसी क्षेत्र में नौकरी करने वालों की संख्या ना के बराबर होती है। अक्सर मनुष्य को अपने क्षेत्र से अलग क्षेत्रों में कार्य करना पड़ता है। वर्तमान समय में शिक्षा को रोजगार से जोड़ा जाता है। जो व्यक्ति जितना अधिक शिक्षित या अनुभवी होता है नौकरी में उसका महत्व उतना ही अधिक होता है। लेकिन शहरों की अपेक्षा देश के ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का स्तर आज भी बहुत खराब है। गांवों में न तो ढंग का स्कूल है और न ही उसमें बुनियादी सुविधाएं।
[bs-quote quote=”वर्तमान समय में शिक्षा सबकी जरूरत है। हम सभी के जीवन में शिक्षा का विशेष महत्व होता है। मनुष्य गरीब, अमीर कोई भी हो, शिक्षा हर किसी को प्राप्त करनी चाहिए क्योंकि इसका सम्बन्ध मनुष्य की उन्नति व उसकी क्षमताओं का ज्ञान कराने से होता है। जबकि मौजूदा हालात में शिक्षा को सिर्फ रोजगार पाने का मतलब समझा जा रहा है। ‘अच्छी शिक्षा ग्रहण करेंगे तो अच्छा रोजगार कर सकेंगे’ यह सोच विकसित हो गयी है। हालांकि यदि कोई व्यक्ति सही रूप से शिक्षा प्राप्त करता है तो वह इतना योग्य हो जायेगा कि खुद ही अपने लिए रोजगार खोज लेगा। जिस व्यक्ति के अंदर शिक्षा का ज्ञान होता है वह जीवन हर क्षेत्र में आगे बढ़ सकता है। शिक्षा व रोजगार एक सिक्के के दो पहलू हैं। एक का प्रभाव दूसरे पर दिखाई देता है।” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
यदि कुछ स्कूलों में होती भी है तो शिक्षक नियमित रूप से नहीं आते है। यदि सब कुछ सही होता है तो जागरूकता और शिक्षा के महत्व से अनजान अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते हैं। जबकि कुछ अभिभावक इन समस्याओं के कारण अपने बच्चों को शहरों के स्कूलों में पढ़ाने के लिए मजबूर हो जाते हैं, लेकिन जो अभिभावक आर्थिक रूप से सक्षम नहीं होते हैं, उनके बच्चों को उन्हीं स्कूलों में पढ़ने की मज़बूरी होती है। इसका सबसे अधिक नुकसान किशोरियों को होता है जो पढ़ना तो चाहती हैं लेकिन शिक्षा की जर्जर व्यवस्था की उनके सपनों को तोड़ देता है।
पर्वतीय क्षेत्रों में शिक्षा के संसाधनों व जागरूकता की कमी पर अपने विचार रखते हुए खीमानन्द इंटर कॉलेज, सेलालेख के प्रधानाचार्य मोहनचन्द्र मेलकानी बताते हैं कि पर्वतीय क्षेत्रों में परिवार उच्च शिक्षा के महत्व से अछूते हैं। उनका ध्यान बच्चों की उच्च शिक्षा पर न होकर घर की आर्थिक स्थिति सुधारने में अधिक होता है। अतः इंटर की शिक्षा के बाद उच्च शिक्षा के स्थान पर प्राइवेट नौकरी के लिए बच्चों को बाहर निकलने का दबाव बनाया जाता है जिससे उनका पूरा ध्यान पैसा कमाने पर केन्द्रित हो जाता है और वह उच्च शिक्षा से वंचित होकर होटलों, दुकानों, फैक्ट्रियों व कंपनियों में मामूली सी तनख्वाह पर काम करने लग जाते हैं। दूसरी तरफ उच्च व तकनीकी शिक्षा इतनी महंगी भी हो गयी है कि ग्रामीण समुदाय इस शिक्षा को अपने बच्चों को दिला पाने में सक्षम भी नहीं है।
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वहीं, कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल के सहायक प्रोफ़ेसर नन्दन सिंह कहते हैं कि राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में बच्चे शिक्षा तो प्राप्त कर रहे हैं, मगर उनको बेसिक जानकारियां नहीं मिल पा रही हैं। युवाओं का भविष्य को लेकर कोई ठोस उद्देश्य नहीं होता है। ज़्यादातर युवा केवल डिग्री लेने के उद्देश्य से एडमिशन लेते हैं। किस विषय को लेने से रोज़गार प्राप्त करने में आसानी होगी, यह न तो छात्र जानते हैं और न ही उनके अभिभावक को पता होता है। ऐसे समय में उनका कोई मार्गदर्शन करने वाला भी नहीं होता है। जागरूकता की कमी के चलते भी पर्वतीय समुदाय के युवा रोजगार से वंचित रहते हैं। जबकि अभ्यर्थी की जिस विषय में रूची हो, उन्हें इसकी विस्तृत जानकारी लेनी चाहिए।
प्रो. सिंह कहते हैं कि सरकार द्वारा युवा वर्ग को प्रशिक्षित करने के लिए कई सकारात्मक योजनाएं चलायी जा रही हैं, जिनका सफल परिणाम भी देखने को मिला है। आईटीआई के प्लेसमेंट्स में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में यातायात के पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं हैं, वहीं विज्ञान और संचार की बेहतर सुविधाओं के अभाव के कारण भी अधिकतर ग्रामीण प्रतिभाएं विशेषकर मध्यम वर्गीय परिवार के बच्चे आगे नहीं बढ़ पाते हैं। इस पर शासन, प्रशासन व राजनीतिक दलों को गंभीरता से सोचना होगा, साथ ही व्यावसायिक प्रशिक्षण और कौशल विकास को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। डिजिटल मंच रोजगार शिक्षा को दिये जाने का सशक्त माध्यम है। जिसका लाभ उठाने की ज़रूरत है।
वर्तमान समय में शिक्षा सबकी जरूरत है। हम सभी के जीवन में शिक्षा का विशेष महत्व होता है। मनुष्य गरीब, अमीर कोई भी हो, शिक्षा हर किसी को प्राप्त करनी चाहिए क्योंकि इसका सम्बन्ध मनुष्य की उन्नति व उसकी क्षमताओं का ज्ञान कराने से होता है। जबकि मौजूदा हालात में शिक्षा को सिर्फ रोजगार पाने का मतलब समझा जा रहा है। ‘अच्छी शिक्षा ग्रहण करेंगे तो अच्छा रोजगार कर सकेंगे’ यह सोच विकसित हो गयी है। हालांकि यदि कोई व्यक्ति सही रूप से शिक्षा प्राप्त करता है तो वह इतना योग्य हो जायेगा कि खुद ही अपने लिए रोजगार खोज लेगा। जिस व्यक्ति के अंदर शिक्षा का ज्ञान होता है वह जीवन हर क्षेत्र में आगे बढ़ सकता है। शिक्षा व रोजगार एक सिक्के के दो पहलू हैं। एक का प्रभाव दूसरे पर दिखाई देता है। अतः प्रयास यह होनी चाहिए कि शिक्षा को रोजगारपरक बनाया जाए व इसकी सहायता से भविष्य को संवारा जाए।
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सरकार द्वारा भी रोजगार हेतु कई योजनाओं का संचालन किया जा रहा है। जिसमें गरीबों और गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले लोगों के लिए ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, मेक इन इंडिया योजना अंतर्गत रोजगार के अवसरों में वृद्धि व महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 देश में जरूरतमंद लोगों को वर्ष में 100 दिन मजदूरी कार्य देकर आय सृजन करना प्रमुख है। राज्य के पौड़ी जिला स्थित पैठाणी में राज्य का पहला व्यावसायिक काॅलेज खुला जिसमें टूरिज्म एंड हाॅस्पिटेलिटी, हाॅस्पिटल हैल्थ केयर, रिन्यूवल एनर्जी, फायर सेफटी, फूड प्रोसेसिंग में बीटेक डिग्री व बैचलर ऑफ़ डिजाइनिंग के तहत प्रोडक्ट डिजाइनिंग की रोजगारपरक शिक्षा आधुनिक पैटर्न पर दी जा रही है। इसके अलावा सरकार द्वारा लघु और हस्तशिल्प संबंधित उद्योगों को प्रोत्साहन के साथ साथ परम्परागत कौशलों को बढ़ावा देते हुए इसे शिक्षा से जोड़ने की ज़रूरत है।
(सौजन्य – चरखा फीचर)
गिरीश बिष्ट रुद्रपुर (उत्तराखंड) में सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं।