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बुनियादी सुविधाओं के अभाव में रहते हैं स्लम बस्तियों के लोग

'सबका साथ सबका विकास' यह बात कहने सुनने में अच्छी लगती है लेकिन देश के अनेक हिस्से ऐसे हैं, जहाँ बुनियादी सुविधाओं का अभाव देखने को मिलता है, जिसमें ग्रामीण इलाके के साथ ही शहरों से लगी हुई स्लम बस्तियां भी हैं, जहाँ रहने वाली महिलायें और बच्चे लगातार स्वास्थ्य सम्बन्धी दिक्कतों का सामना कर रहे हैं। इसे देखते हुए लोगों का कहना है कि सामाजिक संस्थाएं और कार्यकर्ता अपने सामूहिक प्रयास से उन बस्तियों की बुनियादी समस्यायों से निजात दिलवा सकते हैं लेकिन सवाल यह उठता है कि सरकार की अनेक योजनायें यहाँ सफल क्यों नहीं हो पाती हैं।

राजस्थान : शैक्षिक संसाधनों के नाम पर ग्रामीण इलाके पूरी तरह पिछड़े हुए हैं

ग्रामीण क्षेत्रों में शैक्षिक संसाधनों की कमी को पूरा करने के लिए एक ठोस रणनीति पर अमल करने की जरूरत है। जिसमें बुनियादी ढांचा और सुविधाएं उपलब्ध कराना अहम हैं। इनमें क्लास रूम की सुविधा उपलब्ध कराना, उचित स्वच्छता सुविधाओं को मुहैया कराना, शौचालय विशेष रूप से लड़कियों के लिए, साथ ही बिजली और पीने का साफ पानी मुख्य रूप से शामिल है।

शिक्षा की दिक्कत के अलावा भी ढेरों बुनियादी संरचनाओं की कमी से जूझ रहे हैं राजस्थान के गांव

अनेक बड़ी और अच्छी सरकारी योजनाओं से आज भी देश के कई गाँव वंचित हैं क्योंकि वहाँ तक कोई आधारभूत सुविधा नही पहुँच पा रही है, जिसके लिए राजस्थान में आयोजित हुए तीन दिवसीय 'राइजिंग राजस्थान ग्लोबल इंवेस्टमेंट समिट 2024' में 30 ट्रिलियन निवेश से संबंधित एमओयू पर हस्ताक्षर हुए। सवाल यह उठता है कि क्या इसके बाद क्या सुविधाएं गांवों तक पहुँच पायेंगी।

राजस्थान : शिक्षा के अभाव के कारण किशोरियां अपने अधिकारों को समझने से वंचित

शहर चाहे कितना भी सुंदर और व्यस्व्थित हो लेकिन कुछ क्षेत्रों में स्लम एरिया होते हैं, जहाँ के बच्चे शिक्षा,स्वास्थ्य और बुनियादी जरूरतों के अभाव में ज़िन्दगी गुजारने को मजबूर रहते हैं। इसका मुख्य कारण आर्थिक अभाव के साथ-साथ काम के सिलसिले में पलायन है। जिसकी वजह से बड़े होने के बाद, इनके क्या अधिकार हैं , समझने में असमर्थ होते हैं।

राजस्थान : शिक्षा और रोजगार की कमी से जूझता कालबेलिया समुदाय

कालबेलिया सदियों से एक घुमंतू समुदाय के रूप में दर्ज रहा है। ऐतिहासिक रूप से इन्हें सांप पकड़ने वाला समुदाय माना जाता है। यह एक जगह स्थायी निवास की अपेक्षा गांव के बाहर खुले मैदानों या चरागाहों में अपना पड़ाव डाला करते थे। वर्तमान में इस समुदाय में साक्षरता की दर कम है। वहीं सरकार की ओर से कई कल्याणकारी योजनाएं चलाने के बावजूद रोज़गार के मामले में इस समुदाय को अभी भी काफी विकास करने की आवश्यकता है।

राजस्थान : सरकारी योजनाओं के अभाव में मेहनत मजदूरी को मजबूर ग्रामीण

सरकार गरीबों केलिए अनेक योजनाएं लागू करती है लेकिन शिक्षा के अभाव में ये लोग योजना का फायदा कैसे और कब उठाना, मालूम नहीं कर पाते है। यदि किसी योजना की जानकारी मिलती भी है तो उसे पाने के लिए जानकार लोगों के पास भटकते रहते हैं। इस वजह से मजदूरी करना इनकी मजबूरी हो जाती है।

राजस्थान : सरकारी योजनाओं से वंचित ग्रामीणों के लिए आज भी शिक्षा और रोजगार एक चुनौती

हमारे देश में सरकार ग्रामीण क्षेत्रों के विकास को ध्यान में रखते हुए कई लाभकारी योजनाएं संचालित करती है, इनमें रोज़गार से जुड़ी कई योजनाएं भी होती हैं। लेकिन अक्सर यह देखा जाता है कि ग्रामीण इन कल्याणकारी योजनाओं का बहुत अधिक लाभ नहीं उठा पाते हैं। इसका एक कारण जहां संबंधित विभाग द्वारा जमीनी स्तर पर इन योजनाओं के प्रचार-प्रसार में कुछ कमी का रह जाना होता है, तो वहीं दूसरी ओर ग्रामीणों का इस संबंध में पूर्ण रूप से जागरूक नहीं होना भी एक बड़ा कारण होता है।

उत्तराखण्ड : सरकार का नशा मुक्ति अभियान तभी सफल होगा, जब नशे की चीजों पर बिकने से रोक लगे

पढ़ने -लिखने की उम्र में आज बच्चे और युवा नशे की आदत के शिकार हो रहे हैं। यह अच्छा संकेत नहीं है। खासकर गांव में नशे का बढ़ता चलन बढ़ गया है। पूरे देश में डेढ़ करोड़ बच्चे नशे का सेवन करते हैं। इसमें से कुछ नशा तो ऐसा है जो सर्व सुलभ नहीं है। सरकार नशा मुक्ति अभियान तो चलाती है लेकिन शराब और नशे की अन्य चीजों पर रोक नहीं लगाती क्योंकि यह अच्छे राजस्व मिलने का साधन होते हैं, सवाल यह है कि ऐसे में नशा मुक्ति अभियान कितना सफल हो पाएगा?

ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों की कमी के चलते बच्चों की शिक्षा का स्तर लगातार गिर रहा है

सरकार शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए गाँव-गाँव में प्राथमिक विद्यालय खोलने पर ज़ोर दे रही है। लेकिन केवल स्कूल खोल लेने से शिक्षा का स्तर नहीं बढ़ सकता बल्कि शिक्षकों की पर्याप्त नियुक्ति भी जरूरी है। राजस्थान में कक्षा एक से आठ तक के 25 हजार 369 पद खाली पड़े हैं। इनके खाली रहने से पढ़ाई का सबसे ज्यादा असर ग्रामीण बच्चों पर पड़ता है। न उनकी नींव मजबूत हो पाती है न सही से अक्षर ज्ञान ही हो पाता है। इस वजह से स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी होती है।

प्रवासी मजदूरों के बच्चों की शिक्षा के लिए सरकार का ठोस कदम उठाना जरूरी

सरकार सर्व शिक्षा अभियान चलाती है, स्कूल खुलने पर प्रवेशोत्सव का आयोजन करती है ताकि गाँव का हर बच्चा स्कूल जाकर साक्षर हो सके लेकिन सवाल यह उठता है कि प्रवासी मजदूरों के साथ शहर जाने वाले बच्चे कैसे स्कूल जाएँ क्योंकि उनका न जनम प्रमाणपत्र बन पाता है और न ही वे लोग लंबे समय तक एक जगह रहकर काम करते हैं। ऐसे में उनके जैसे बच्चे कभी स्कूल का मुंह नहीं देख पाते। 

मध्य प्रदेश : प्राथमिक शिक्षा के स्तर में लगातार गिरावट हुई है

मध्य प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा के परिदृश्य में वह सब कुछ है जो किसी बड़ी रिपोर्ट में उसके दयनीय हालात की कहानी बयान करने के जरूरी तत्व होते हैं । मसलन छत और अध्यापक विहीन स्कूल, प्रयोगशाला, पेयजल और शौचालय का अभाव, जाति-वंचना और उत्पीड़न, अध्यापकों को दीगर कामों में लगाने, मिड डे मील और दूसरी वस्तुओं के बजट में भ्रष्टाचार आदि। मध्य प्रदेश प्राथमिक शिक्षा के मामले में कितना पिछड़ चुका है बता रही हैं ग्वालियर की सामाजिक कार्यकर्ता रीना शाक्य

Lok Sabha Election : शिक्षा और उससे जुड़े मुद्दे क्यों नहीं बन रहे हैं जरूरी सवाल?

पिछले दस वर्षों में शिक्षा का स्तर जितना गिरा है उतना पहले कभी नही। प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक सभी संस्थानों में विज्ञान और तर्क को दरकिनार कर धर्म को केंद्र में रखा गया। 2024 के लोकसभा चुनाव में शिक्षा जैसा महत्त्वपूर्ण मुद्दा जनता की नजर में क्यों नहीं है?

राष्ट्रीय आय एवं योग्यता आधारित परीक्षा में भदोही के 183 बच्चों ने सफलता पाई लेकिन खाली रह गईं एसटी की सभी सीटें

छात्रवृत्ति निर्धन बच्चों के आगे की पढ़ाई के लिए बहुत बड़ा आधार होती है। राष्ट्रीय आय एवं योग्यता आधारित छात्रवृत्ति परीक्षा में सफलता पाकर बहुत से बच्चों ने अपनी मंज़िलें पाई है। विगत वर्षों की तरह इस बार भी भदोही जिले के 183 बच्चों ने सफलता पाई है। हालांकि अनुसूचित जनजाति के कोटे की चार सीटें खाली ही रह गईं।

वाराणसी : पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र में निजी स्कूलों की मनमानी, बच्चों की पढ़ाई अभिभावकों के लिए बनी चुनौती

कोई भी स्कूल तभी अपने यहां फीस वृद्धि कर सकता है जब सीपीआई (उपभोक्ता सूची सूचकांक) में बढ़ोत्तरी होती है। यही नहीं कोई भी स्कूल अभिभावक को किसी भी विशेष दुकान से कापी-किताब खरीदने के लिए बाध्य नहीं कर सकता, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लागू किए गए अध्यादेश की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।

यूजीसी ने नेट परीक्षा को दो की जगह तीन श्रेणियों में बांटा, क्या अब पीएचडी में दाखिला लेना होगा सरल?

यूजीसी के नए नियमों के बाद पीएचडी में प्रवेश लेना सरल तो हो गया है लेकिन अभी भी कई आशंकाएं जाहिर की जा रही हैं।

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा ही रोजगार के लिए अवसर प्रदान करता है 

लोहार गाँव में मात्र दस प्रतिशत युवा ही कॉलेज तक पहुँच पाते हैं। आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण अधिकतर युवा 10वीं या बारहवीं के बाद पढ़ाई छोड़कर परिवार के साथ रोजगार की तलाश में पलायन करने लगते हैं। घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए लड़के स्कूली जीवन में ही बाहर जाकर कमाने का दृढ़ निश्चय कर लेते हैं। ऐसे में उनमें उच्च शिक्षा के प्रति लगाव की उम्मीद करना बेमानी होता है। 

Bhadohi के सरकारी स्कूलों के शिक्षक कैसे बना रहे हैं छात्रों का भविष्य

भदोही के सरकारी स्कूलों में आधुनिक एवं डिजिटल शिक्षा देने की मुहिम में अग्रसर प्राथमिक विद्यालय चितईपुर और बेजवाँ में देखने को मिली. इस...

बिहार : शिक्षित समाज के लिए समान भागीदारी आवश्यक है

देश के साथ ही बिहार में शिक्षा का स्तर यदि बढ़ाना है तो इसमें सभी वर्गों के लोगों को समान अवसर देना होगा, तभी एक स्वस्थ समाज का विकास होगा और समाज आगे बढ़ेगा।

केरल के शिक्षा विभाग ने 1890 के दशक से प्रकाशित 1,000 से अधिक पाठ्यपुस्तकों का किया डिजिटलीकरण 

तिरुवनंतपुरम (भाषा) केरल के शिक्षा विभाग ने विभिन्न विषयों पर आधारित किताबों डिजिटलीकरण किया है। यह डिजिटलीकरण 1,250 से अधिक पाठ्यपुस्तकों का किया गया...

बालिका शिक्षा के लिए समाज की भूमिका भी अहम

भारत में शिक्षा को लेकर आज़ादी के बाद से ही काफी गंभीरता से प्रयास किये जाते रहे हैं। केंद्र से लेकर देश की सभी...

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