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इलाहाबाद विवि : नियुक्तियों में कब तक चलेगा NFS का खेल?

देश में लगातार बेरोजगारी बढ़ती ही जा रही है। उच्च शिक्षित युवा नौकरियों के लिए लगातार भटक रहे हैं। इस वर्ष मार्च में बेरोजगारी दर 7.60 प्रतिशत थी,वहीं अप्रैल में बढ़कर 7.83 प्रतिशत हो गई। इसके बाद भी यदि कहीं छुटपुट रिक्तियां निकल रही है, वहाँ भी आरक्षित पदों के योग्य उम्मीदवारों को नॉट फॉर सूटेबल(NFS) घोषित कर दिया जा रहा है। देश में संविधान-लागू होने के बाद सभी को समान अधिकार प्राप्त हुआ, उसके बाद, ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग के लोग शिक्षित हो बेहतर योग्यता से सामने आने लगे, तब उनकी बेचैनी सामने आने लगी। इधर लगातार नॉट फॉर सूटेबल(NFS)के मामले बढ़ गए हैं। पढ़िए ज्ञानप्रकाश का लेख

इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना 23 सितंबर 1887 को हुई थी। यह विश्वविद्यालय 23 सितंबर, 2024 को अपनी स्थापना के 137 वर्ष पूरा कर रहा है, जिसमें आजाद भारत के 77 वर्ष, संवैधानिक भारत के 74 वर्ष, उच्च शिक्षा में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आरक्षण के 27 वर्ष, अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण के 16 वर्ष और आर्थिक रूप से कमजोर यानी सुदामा कोटा आरक्षण के 5 साल की शैक्षिक उपलब्धियों की एक झलक समीक्षात्मक अध्ययन से समझी जा सकती है।

उच्च शिक्षा या विश्वविद्यालयी शिक्षा का सामाजिकता, संवेदनशीलता, मानवता, समता एवं धर्मनिरपेक्षता से गहरा रिश्ता है। यह मानवीय मूल्यों के निखार के लिए जानी जाती है। लेकिन जब इस तंत्र पर एक जाति व वर्ग का नियंत्रण एवं वर्चस्व कायम रहता है तब मानवीय मूल्यों पर एकांगी दृष्टि का असर व परिणाम दिखाई देता है, जो समाज में जातीय श्रेष्ठता के रूप में स्वीकार किया जाता है।

यह एक समाज का शैक्षिक और सामाजिक पतन ही है कि वह उस साहित्यिक रचना का अखंड पाठ करता है, जिसमें उसकी जाति के लिए अपशब्द और विप्र श्रेष्ठता के वैभव का जिक्र भरपूर मात्रा में उपलब्ध रहता है। यह वैश्विक साहित्य के इतिहास में अपने आप में एक अनूठी घटना है। इस तरह एक वर्चस्ववादी और मनुवादी जाति समाज पर अपना नियंत्रण कायम करने के लिए एक जाल बुनती है।

आरक्षण लागू होने के बाद इस जाल में विभिन्न प्रकार की रुकावटें शामिल की गईं हैं। उनमें कुछ इस प्रकार हैं- जैसे, पहला, किसी आरक्षित श्रेणी के विद्यार्थी का एडमिशन अनारक्षित सीट पर हो रहा है तो जबरन उसका एडमिशन उसकी श्रेणी में करना, दूसरा उसे छात्रवृत्ति न प्रदान करने की धमकी देकर उसका एडमिशन उसकी कैटेगरी में करना, तीसरा प्रैक्टिकल और साक्षात्कार में आरक्षित श्रेणी के विद्यार्थियों को सवर्ण विद्यार्थियों के मुकाबले कम नंबर देना और चौथा, आरक्षित श्रेणी के लोग प्रोफेसर न बन जाएँ, इसलिए उनके लिए आरक्षित प्रोफेसर के पदों पर बार-बार NFS करना।

इतना शैक्षिक दमन झेलने के बाद भी यदि कोई आरक्षित श्रेणी का विद्यार्थी सवर्ण विद्यार्थी को खुली प्रतियोगिता( जो उसके हाथ में है, न की जातिवादी, मनुवादी एवं ब्राह्मणवादी गुरूओं की कृपा आधारित साक्षात्कार वाली) में परास्त करता है तो इसका एक ही आशय है कि वह उससे अधिक प्रतिभाशाली एवं योग्य है। इसके बाद भी उसका चयन साक्षात्कार समिति में शामिल सवर्ण प्रोफेसर अनारक्षित पद पर नहीं करते हैं।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एक बार फिर बड़े पैमाने पर एनएफएस(NFS) किया गया है। इस बार नॉट फाउंड सूटेबल का यह कारनामा दर्शनशास्त्र विभाग में रचा गया है। वैसे तो इतिहास में दर्ज है कि भारत में दार्शनिकों की कमी नहीं रही है लेकिन आज की सच्चाई यह भी है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय को दर्शन पढ़ाने के लिए योग्य प्राध्यापक ही नहीं मिल पा रहे हैं। क्या सवर्ण, क्या पिछड़े, क्या दलित, क्या मुस्लिम, क्या आदिवासी और क्या महिलाएं सब के सब इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव की नज़र में अयोग्य हैं।

दर्शनशास्त्र विभाग में अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी में प्रोफेसर का एक पद निकाला गया था, जिसमें 4 अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए शार्टलिस्ट किया गया, जिसके लिए एपीआई कटऑफ 349 अंक निर्धारित की गई थी, इसके बाद भी इनमें से किसी का चयन न करके ओबीसी श्रेणी के प्रोफेसर के पद को ही एनएफएस कर दिया गया। यही कारनामा इसी कटऑफ पर अनारक्षित श्रेणी के अभ्यर्थियों के साथ भी दुहराया गया, बस इस श्रेणी में साक्षात्कार के लिए शार्टलिस्ट हुए अभ्यर्थियों की संख्या 8 थी।

इस तरह सवर्ण प्रोफेसरों द्वारा बखानित दार्शनिक देश भारत में दर्शन पढ़ाने के लिए दो योग्य प्रोफेसर उपलब्ध नहीं हैं। भारत सरकार को जाँच करानी चाहिए कि उसके असिस्टेंट एवं एसोसिएट प्रोफेसर इतने अयोग्य कैसे हो रहे है?

इसी विभाग ने अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी में एसोसिएट प्रोफेसर का एक पद निकाला था, जिसमें 4 अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए शार्टलिस्ट किया गया, जिसकी एपीआई कटऑफ 323 अंक थी। साक्षात्कार समिति में शामिल सवर्ण प्रोफेसरों ने इन चारों अभ्यर्थियों को अयोग्य ठहराते हुए पद को ही एनएफएस कर दिया ठीक यही कारनामा साक्षात्कार समिति ने अनारक्षित श्रेणी के साथ भी किया, बस उसकी एपीआई कटऑफ 221.55 थी और साक्षात्कार के लिए शार्टलिस्ट हुए अभ्यर्थियों की संख्या 8 थी।

इलाहाबाद विवि में नियुक्ति में NFS की सूची जारी

इस तरह हम देखते हैं कि ओबीसी कटऑफ अनारक्षित/सामान्य कटऑफ से 102 अंक अधिक थी। इसके बाद भी ओबीसी अभ्यर्थी ओबीसी और अनारक्षित दोनों सीटों पर अयोग्य ठहराए जाते हैं। इससे जाहिर होता है कि साक्षात्कार में जाति, जनेऊ, जुगाड़ आधारित विप्र वर्चस्व हावी रहता है। बहरहाल, साक्षात्कार में पारदर्शिता संभव नहीं है हालाँकि उसका ढोंग जरूर किया जाता है।

इसी विभाग ने असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए कुल 16 पदों का विज्ञापन निकाला था, जिसमें श्रेणीवार पद क्रमशः इस प्रकार हैं, UR-5, EWS-2, OBC-4, SC-2, ST-2 और PwD श्रेणी के लिए 1 पद। इन 16 पदों में 13 पदों पर चयन किया गया जबकि तीन पदों पर एनएफएस लगा दिया गया। अनुसूचित जनजाति के लिए एपीआई 41 अंक थी, जिस पर 14 अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए शार्टलिस्ट किया गया, दो पदों के सापेक्ष दो का चयन कर लिया गया जबकि दिव्यांग श्रेणी की कटऑफ भी 41 अंक ही थी, 8 दिव्यांग अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए शार्टलिस्ट किया गया और उन्हें अयोग्य ठहराते हुए पद को ही एनएफएस कर दिया गया। इनके लिए न कोई अलग से सहूलियत बरती गई और न ही भारत सरकार द्वारा विकलांग से दिव्यांग तक की तय की गई शाब्दिक यात्रा का ख्याल रखा गया।

अनुसूचित जाति के 2 पदों के लिए 16 अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए शार्टलिस्ट किया गया, जिसमें एक पद पर चयन और एक पद को NFS कर दिया गया। अनारक्षित श्रेणी में 5 पदों के सापेक्ष 3 का चयन UR अभ्यर्थियों से और एक का चयन EWS अभ्यर्थी से कर दिया गया जबकि एक पद पर NFS लगा दिया गया। गौर करने वाली बात यह है कि अनारक्षित में सुदामा कोटे के अभ्यर्थियों का चयन कर लिया जाता है जबकि योग्य होने के बावजूद पिछड़े, दलित, आदिवासी और मुस्लिम अभ्यर्थियों का चयन उसमें नहीं किया जाता है। इस तरह कुल विज्ञापित 20 पदों में 13 पर चयन किया गया और 7 पर नॉट फाउंड सूटेब। .

दर्शनशास्त्र विषय के परिणाम के साथ ही 08 अगस्त 2024 को ‘Gandhian Institute’ विषय का भी परिणाम जारी किया गया, जिसमें पदों की कुल संख्या तीन थी, एक पद पर चयन किया गया, शेष दो पदों के बारे में विश्वविद्यालय ने कोई जानकारी नहीं दी है।

 

 

ज्ञानप्रकाश यादव
ज्ञानप्रकाश यादव
लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे हैं और सम-सामयिक, साहित्यिक एवं राजनीतिक विषयों पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन करते हैं।

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