नई दिल्ली भाषा। अपने उपन्यासों में सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करने वाले प्रसिद्ध तमिल साहित्यकार पेरूमल मुरुगन का कहना है कि वह विभिन्न लेखन शैलियों का साथ प्रयोग करके सामाजिक विवादों को दूर करने और बतौर लेखक उनके सामने आने वाली चुनौतियों से निपटने का प्रयास करते हैं जो कि उनके अनुसार एक कठिन कार्य है। उन्होंने कहा, ‘मैं इन चुनौतियों से सीधा मुकाबला करता हूं और इसमें मुझे उन हथियारों से मदद मिलती है जो भाषा ने मुझे दिए हैं।’ इसी पुरस्कार की पृष्ठभूमि में पेरूमल मुरुगन ने अपनी लेखन यात्रा से जुड़े विभिन्न सवालों को लेकर ‘भाषा’ को विशेष साक्षात्कार दिया। तमिल भाषा को अपने रचना संसार का माध्यम बनाने वाले मुरुगन इस बात से सहमति नहीं रखते कि किसी भी भाषा को क्षेत्रीयता का तमगा पहनाया जाए और उसके विस्तार को सीमित किया जाए।
उन्होंने कहा, ‘इसके बजाय मैं इसे भारतीय भाषा कहना पसंद करूंगा। तमिल जैसी शास्त्रीय भाषा को क्षेत्रीय भाषा कहना मुझे उसका बहिष्कार जैसा प्रतीत होता है। मेरे लिए तमिल मेरी मातृ भाषा है, मैं केवल यही भाषा जानता हूं। इस भाषा ने न केवल मुझे मेरी पहचान दी है बल्कि मुझे सब कुछ दिया है।’ वह कहते हैं, ‘बल्कि यूं कहिए कि तमिल भाषा हजारों वर्षों की संस्कृति को भी समेटे हुए है। भाषा साहित्य का सार है।’ ‘सीज़न्स ऑफ़ द पाम’, जिसे 2005 में किरियामा पुरस्कार के लिए चुना गया था, ‘करंट शो’, ‘वन पार्ट वुमन’, ‘ए लोनली हार्वेस्ट’, ‘ट्रेल बाय साइलेंस’ और ‘पूनाची’ समेत करीब 12 उपन्यास और छह कविता संग्रह लिख चुके मुरुगन की रचनाएं अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं में अनूदित होकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाठकों तक पहुंची हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाठकों से जुड़ाव के संबंध में किए गए एक सवाल पर मुरुगन ने कहा, ‘अपने अनुभवों से मैंने यह देखा है कि मानवीय भावनाएं सार्वभौमिक होती हैं। राष्ट्रीयता से परे, भावनाओं को केंद्र में रखकर लिखे गए उपन्यास हर भाषा के पाठक को गहरे तक प्रभावित करते हैं। पाठक अपने संबंधों को विविध तरीके से व्यक्त करते हैं। मैं अपनी रचनाओं में मानवीय भावनाओं की बहुत सी परतें बुनता हूं, बहुत से सिरे बांधता हूं, मानवीय भावनाएं ही वह चुम्बक हैं जो पाठकों को खींचता है।’ पेरूमल मुरुगन के बहुत से उपन्यासों में सामाजिक कुरीतियों को लेकर कड़ी टिप्पणियां मिलती हैं। सामाजिक मुद्दों पर आत्मचिंतन और उनके समाधान में साहित्य की भूमिका संबंधी सवाल पर मुरुगन ने कहा, ‘साहित्य हमेशा से ही आधुनिक जीवन के बदलावों पर रौशनी डालने और उनकी संकल्पना करने में प्रमुख भूमिका निभाता आया है। इस प्रकार समाज को रास्ता दिखाने में साहित्य अग्रणी भूमिका में रहा है लेकिन अक्सर उसकी यह भूमिका दिखाई नहीं देती।’
तमिल लेखक पेरुमल मुरुगन को पिछले दिनों उनके उपन्यास ‘फायर बर्ड’ के लिए साहित्य जगत का प्रतिष्ठित पुरस्कार ‘जेसीबी प्राइज फॉर लिटरेचर’ प्रदान किया गया था। जननी कन्नड़ द्वारा तमिल से अनुवादित और ‘पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया’ द्वारा प्रकाशित उपन्यास विस्थापन के दर्द और लगातार बदलती दुनिया में स्थिरता के लिए मानवीय इच्छा की खोज करता है। 1966 में तमिलनाडु के नामक्कल जिले के थिरुचेंगोडुमुरुगन कस्बे में पैदा हुए पेरूमल मुरुगन ने साहित्य की दुनिया में अपने सफर की शुरूआत और प्रेरणा के संबंध में बताया, ‘मैंने बहुत कम उम्र में लिखना शुरू कर दिया था। स्कूली दिनों में दोस्तों और अध्यापकों को प्रभावित करने के लिए कविताएं लिखता था। वहीं से एक कवि के रूप में पहचान मिली। कविताएं मुझे समाधि की अवस्था में ले जाती थीं और उस समाधि की अवस्था में ही मैं लिखता चला गया।’ उनका कहना था, ‘मुझे लगता है कि मेरे भीतर जो खालीपन था, कविताओं ने उस अंधेरे कोने को भर दिया। यही मेरी प्रेरणा भी रही।’
शुरूआती साहित्यिक प्रभावों और प्रिय लेखकों के संबंध में पेरूमल ने कहा कि उनके भीतर पढ़ने की एक भूख थी और उस समय इतनी किताबें उपलब्ध नहीं होती थीं जो उनकी इस भूख को शांत कर सकें इसलिए वह जो कुछ भी हाथ में आता उसे पढ़ डालते थे। उनका कहना था, ‘मैंने जो कुछ भी पढ़ा, वह मेरे जीवन के साथ स्थायी रूप से जुड़ गया। मुरुगन के उपन्यास ‘पुक्कुली’ का अनिरुद्धन वासुदेवन ने ‘पायरी’ शीर्षक से अंग्रेजी में अनुवाद किया है और यह उपन्यास अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार 2023 की ‘लॉन्ग लिस्ट’ में शामिल किया गया था। उनकी रचनात्मक दिनचर्या के बारे में बात की जाए जो मुरुगन को सुबह का समय बहुत पसंद है वह कहते हैं कि इस समय दिमाग एक आलौकिक अवस्था में होता है, हर किसी नई चीज के स्वागत के लिए उसकी खिड़कियां खुली रहती हैं इसलिए उन्हें सुबह छह से नौ बजे के बीच लिखना पसंद है।
उन्होंने बताया, ‘लेखन को लेकर मैंने अपने लिए बहुत सख्त नियम नहीं बनाए हैं। चारदीवारी के भीतर बैठकर मैं नहीं लिख सकता। इसके बजाय मैं छत पर जाकर पेड़ों की हरियाली और पक्षियों के कलरव के बीच लिखता हूं। पीछे लैपटाप पर संगीत बजता रहता है।’ मुरुगन का 2010 में प्रकाशित उपन्यास ‘मधुरोभगन’ हो, ‘पूनाची’ (2016) हो, ‘पुक्कुझी’ (पायरी), या कन्या भ्रूण हत्या और लिंगानुपात में गिरावट पर केंद्रित ‘कंगनम’ (रिज़ॉल्व, 2008) हो- सभी कथानक में ग्रामीण भारत का सामाजिक सांस्कृतिक ताना बाना आधार बना है।
मुरुगन ने एक सवाल के जवाब में कहा, ‘मेरा जीवन ग्रामीण परिवेश में गुजरा है लेकिन इसके बावजूद ‘दूर खड़े रहकर’ परिप्रेक्ष्य को समझने की क्षमता मुझे अपनी पढ़ने की आदत से मिली। इसी निरपेक्ष भाव से मैं गहराई में अपने आसपास के वातावरण और परिवेश को परखता हूं, उसमें समग्रता से डूब कर उसके मायने तलाश करता हूं। जीवन में जो दृश्यों और क्षणों की विविधता है, वह मुझे लेखन के लिए प्रोत्साहित करती है।’ उनके उपन्यास, ‘मधुरोभगन’ (2010) जिसका अनुवाद ‘वन पार्ट वूमैन’ शीर्षक से किया गया था, में एक निसंतान दंपति काली और पोन्ना के सामाजिक कलंक और अपमान को झेलने की पीड़ा को कहानी का आधार बनाया गया है। इस उपन्यास को स्थानीय जातीय और हिंदू धार्मिक समुदायों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा था।
इसी संदर्भ में जब सवाल किया गया कि पेरूमल अपने लेखन में संवेदनशील विषयों पर चुनौतियों से किस प्रकार निपटते हैं, उन्होंने कहा, ‘विभिन्न लेखन शैलियों के साथ प्रयोग करके सामाजिक विवादों से निपटने का प्रयास करता हूं जो एक कठिन कार्य है।’ उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा,‘मेरे अनुभवों के विस्तार के साथ मेरे लेखन का दायरा भी बढ़ा है। यह एक सतत प्रक्रिया है। अलग-अलग समय पर अलग-अलग विषयों ने मुझे अपनी ओर खींचा। इसमें ग्रामीण जीवन से जुड़े पहलू अधिक प्रेरणादायी रहे।’ लेखन शैली पर उनका कहना था, ‘मेरी लेखन शैली एकदम स्पष्टतावादी है- मैं सब कुछ सीधे-सीधे कहना पसंद करता हूं।’। उभरते लेखकों, विशेष रूप से उन लेखकों को जो अपने लेखन में स्वयं की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को खंगालना और प्रस्तुत करना चाहते हैं, को सुझाव देते हुए उन्होंने कहा, ‘मेरी सलाह और सुझाव यही है कि निरपेक्ष भाव से दूर खड़े होकर चीजों को देखो।’ अपनी भावी रचनाओं के संबंध में उन्होंने बताया कि इस समय वह जानवरों और इंसानों के बीच के संबंधों को आधार बनाकर लघु कहानियां लिख रहे हैं ।