‘नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल’ में प्रकाशित अपने अध्ययन में उन्होंने कहा कि समुद्र के तापमान में वृद्धि का क्षेत्र-वार वितरण हालांकि एक समान नहीं था और इस प्रकार मिली नई जानकारी ने समुद्र के स्तर में वृद्धि और जलवायु प्रभावों के बारे में हमारी समझ पर प्रभाव डाला।
मानव गतिविधि के कारण हरित गैसों के वायुमंडलीय स्तर में वृद्धि, पृथ्वी की जलवायु प्रणाली के भीतर गर्मी को रोकती है। हवा, भूमि और महासागरों को गर्म करती है एवं ध्रुवीय बर्फ को पिघलाती है। महासागर इस गर्मी का अधिकांश भाग ग्रहण करते हैं, मानव-जनित अतिरिक्त गर्मी का 90 प्रतिशत से अधिक अवशोषित करते हैं, जिससे वायुमंडलीय तापमान में वृद्धि नियंत्रित होती है। यूएनएसडब्ल्यू सेंटर फॉर मरीन साइंस एंड इनोवेशन के अध्ययन के सह-लेखक मैथ्यू इंग्लैंड ने कहा, हालांकि समुद्र के गर्म होने से जलवायु परिवर्तन की गति को धीमा करने में मदद मिलती है, लेकिन इसके लिये भी कीमत चुकानी पड़ती है। प्रमुख शोधकर्ता झी ली ने कहा, ‘इस अध्ययन में हम जो करना चाहते थे वह यह पता लगाना था कि समुद्र में गर्मी कहां से बढ़ रही है।’
उल्लेखनीय है कि अंटार्कटिका औसतन महाद्वीपों में सबसे ठंडा, शुष्क और तेज़ हवा वाला महाद्वीप है। इसकी औसत ऊंचाई भी सबसे अधिक है। अंटार्कटिका के पास पृथ्वी पर सबसे कम मापा तापमान 89.2 डिग्री सेल्सियस (-128.6 डिग्री फारेनहाइट) का रिकॉर्ड है। गर्मियों में तटीय क्षेत्रों का तापमान 10 डिग्री सेल्सियस यानी 50 डिग्री फ़ारेनहाइट से अधिक तक पहुँच सकता है। जानवरों की मूल प्रजातियों में घुन, नेमाटोड, पेंगुइन, सील और टार्डिग्रेड शामिल हैं। जहां वनस्पति होती है, वह अधिकतर लाइकेन या काई के रूप में होती है।
नई दिल्ली (भाषा)। अंटार्कटिका या दक्षिणी महासागर के आसपास के दक्षिणी जल ने पिछले दो दशकों में मानव गतिविधि के कारण होने वाली गर्मी की सबसे अधिक मात्रा को अवशोषित किया है, जो अटलांटिक, प्रशांत और हिंद महासागर द्वारा झेली गई कुल गर्मी के लगभग बराबर है। शोधकर्ताओं के एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई। ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय (यूएनएसडब्ल्यू) के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने कहा कि 1990 के दशक के बाद से महासागरों के गर्म होने में नाटकीय रूप से तेजी आई है, जो 1990-2000 की तुलना में 2010-2020 के दौरान लगभग दोगुनी हो गई है।