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जातीय सर्वेक्षण पर वित्त मंत्री विजय चौधरी ने कहा केंद्र को हमसे सबक सीखना चाहिए

पटना (भाषा)। बीते सात अक्टूबर को बिहार विधानसभा में पेश की गई विस्तृत जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट पर चर्चा के दौरान सत्तापक्ष और विपक्षी नेताओं के बीच तीखी नोकझोंक होने के साथ, दोनों इस कवायद का श्रेय लेने की कोशिश करते दिखे। बिहार सरकार ने 215 अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अत्यंत पिछड़ा वर्ग […]

पटना (भाषा)। बीते सात अक्टूबर को बिहार विधानसभा में पेश की गई विस्तृत जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट पर चर्चा के दौरान सत्तापक्ष और विपक्षी नेताओं के बीच तीखी नोकझोंक होने के साथ, दोनों इस कवायद का श्रेय लेने की कोशिश करते दिखे। बिहार सरकार ने 215 अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अत्यंत पिछड़ा वर्ग की आर्थिक स्थिति पर रिपोर्ट और जाति आधारित सर्वेक्षण के आंकड़ों का दूसरा भाग मंगलवार को विधानसभा में पेश किया। राज्य विधानसभा में रिपोर्ट पेश करते हुए बिहार के वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी ने कहा कि जाति सर्वेक्षण अभ्यास का सफल समापन महागठबंधन सरकार की एक बड़ी उपलब्धि है। केंद्र को हमसे सबक सीखना चाहिए।

उल्लेखनीय है कि बिहार में जाति आधारित जनगणना का काम आसान नहीं रहा है। इस तरह की जनगणना को अदालत में भी चुनौती दी गई और यह मामला पटना हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। बिहार में जाति आधारित जनगणना के आंकड़े जारी होने के बाद कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने भी टिप्पणी की थी। उन्होंने सोशल प्लेटफार्म एक्स पर लिखा था, ‘बिहार की जातिगत जनगणना से पता चला है कि वहां ओबीसी + एससी + एसटी 84% हैं. केंद्र सरकार के 90 सचिवों में सिर्फ़ 3 ओबीसी हैं, जो भारत का मात्र 5% बजट संभालते हैं। इसलिए, भारत के जातिगत आंकड़े जानना ज़रूरी है. जितनी आबादी, उतना हक़ ये हमारा प्रण है।’

सदन में जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट पेश किए जाने के तुरंत बाद चर्चा की शुरुआत करते हुए विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि इस जाति आधारित सर्वेक्षण की नींव राज्य में राजग शासन के दौरान रखी गई थी। भाजपा सदस्यों ने जाति सर्वेक्षण के प्रस्ताव का समर्थन किया। भाजपा हमेशा गरीबों के कल्याण के पक्ष में है। सिन्हा ने कहा कि भाजपा ने कभी जाति सर्वेक्षण का विरोध नहीं किया लेकिन जब रिपोर्ट आई…, जिस तरह से रिपोर्ट तैयार की गई, वह विसंगतियों से भरी थी। सरकार ने उन लोगों की जानकारी नहीं दी जो बेरोजगार हैं। बेरोजगारी के मुद्दे पर चुप क्यों है सरकार? महागठबंधन सरकार में शामिल कांग्रेस ने अन्य पिछड़ा आयोग (ओबीसी) को संवैधानिक दर्जा नहीं दिया। भाजपा हमेशा पिछड़े वर्गों और महिलाओं की भलाई के लिए काम करती है। हमारे प्रधानमंत्री ओबीसी वर्ग से हैं। अति पिछड़ों के आंकड़ों को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। अगर महागठबंधन सरकार वास्तव में इस समुदाय की भलाई के बारे में चिंतित है, तो उन्हें इस समुदाय से किसी को मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री घोषित करना चाहिए।

वरिष्ठ भाजपा विधायक नंद किशोर यादव ने कहा कि जाति-सर्वेक्षण करने का निर्णय राज्य में राजग शासन के दौरान लिया गया था। रिपोर्ट में कई विसंगतियां हैं, जिन्हें स्पष्ट करने की जरूरत है। सबसे पहले आंकड़े पंचायतवार देने चाहिए थे। इसके अलावा, सरकार ने दावा किया है कि राज्य में साक्षरता दर में वृद्धि हुई है, लेकिन अत्यंत पिछड़े वर्गों के लिए सीटें खाली रह गई हैं, इसका क्या? यादव ने कहा, रिपोर्ट में कहा गया है कि 12वीं उत्तीर्ण करने वाले लोगों की कुल संख्या कुल जनसंख्या का 9.19 प्रतिशत है…यह चौंकाने वाला है। इसी तरह राज्य में स्नातकों की कुल संख्या मात्र 6.11 फीसदी है। इसलिए, इन आंकड़ों से रिक्तियां कैसे भरी जाएंगी?

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने चर्चा में भाग लेते गलत आंकड़ों का आरोप लगाया और महागठबंधन सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि हम जाति-आधारित सर्वेक्षण के लिए नीतीश कुमार को धन्यवाद देना चाहते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में मुसहर समुदाय के 45 प्रतिशत से अधिक लोग अमीर हैं और भुइया समुदाय के 46 प्रतिशत लोग भी समृद्ध हैं। इसके लिए नीतीशजी को बधाई । मैं राज्य मंत्री विजय कुमार चौधरी से उस गांव का दौरा करने के लिए कह रहा हूं, जहां से डेटा एकत्र किया गया था। अगर हमें मुसहर और भुइया समुदाय के एक प्रतिशत से अधिक लोग अमीर मिले, तो मैं राजनीति छोड़ दूंगा।

चर्चा में भाग लेते हुए, भाकपा माले के विधायक अजीत कुशवाहा ने कहा कि हम सभी इस रिपोर्ट को लाने के लिए महागठबंधन सरकार और हमारे मुख्यमंत्री को धन्यवाद देते हैं, लेकिन मैं एक बात कहना चाहूंगा कि रिपोर्ट में उन लोगों का भी डेटा होना चाहिए जो राज्य में भूमिहीन हैं।

फ़िलहाल यह मामला अब भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, हालांकि कोर्ट ने इसपर किसी भी तरह की रोक लगाने से इनकार कर दिया था। वहीं, बीजेपी सांसद संजय जायसवाल दावा करते हैं कि बीते 33 साल में लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार जिन जातियों को आगे नहीं बढ़ा सके उनके लिए हम काम करेंगे। बिहार में जातिगत जनगणना के लिए राज्य में बीजेपी के ही वित्त मंत्री ने 500 करोड़ रुपये जारी किए थे और हर जगह हम साथ थे।

उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री ने विधानसभा में जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट पर चर्चा के बाद अपने संबोधन के दौरान उक्त बयान दिया। मुख्यमंत्री ने सदन में प्रस्ताव रखा कि सर्वेक्षण के मुताबिक एससी जो आबादी का 19.7 प्रतिशत है, को 20 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए जो मौजूदा 16 प्रतिशत से अधिक है। एसटी, जिनकी जनसंख्या में हिस्सेदारी 1.7 प्रतिशत है, का आरक्षण एक प्रतिशत से दोगुना कर दो प्रतिशत किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ओबीसी जो आबादी का 27 प्रतिशत है और उन्हें 12 प्रतिशत आरक्षण मिलता है जबकि अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) जो कि आबादी का 36 प्रतिशत हैं, उन्हें 18 प्रतिशत आरक्षण मिलता है।

नीतीश ने प्रस्ताव रखा कि दोनों समुदायों को एक साथ 43 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए। इन बढ़ोतरी में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण शामिल नहीं है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि ईडब्ल्यूएस कोटा के साथ बिहार का प्रस्तावित आरक्षण 75 प्रतिशत तक बढ़ जाएगा।

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