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काव्य संग्रह कूड़ी के गुलाब : बंधुआ मजदूरी से कविता तक

29 दिसम्बर  को ‘नव दलित लेखक संघ, दिल्ली के तत्वावधान में शाहदरा स्थित संघाराम बुद्ध विहार (शाहदरा) में एक आफलाइन काव्यपाठ गोष्ठी का आयोजन किया गया। पढ़िए विस्तृत रिपोर्ट।

आज जब हम गद्य अथवा कविता लेखन की बात करते हैं तो वह वार्ता निरंतर बदलती समकालीन परिस्थितिओं को ध्यान में रखे बिना सार्थक नहीं हो सकती। आज तो यह भी सोचना होगा कि सोशल मीडिया ने साहित्य को कैसे और किस हद तक प्रभावित किया है। कहना न होगा कि सोशल मीडिया के दुरुपयोग का साहित्य और रचनात्मकता पर इस हद असर हुआ है कि सोशल मीडिया टूल ने पढ़ने-लिखने में आमजन के साथ-साथ साहित्यकारों को भी लाभ पहुंचाया है। ज्ञान वर्द्धन तो हुआ ही, लेखन की कार्यशाला का भी लाभ नव लेखकों को मिला। वरिष्ठ लेखकों को भी ई-गोष्ठी, ई-समारोह तथा विश्व स्तर पर पढ़नेवाले सुधीजनों का साहचर्य मिला। सोशल मिडिया ने बहुत से उभरते और वरिष्ठ लेखकों को भी एक ‘प्लेटफॉर्म’ दिया है।

किंतु यह भी सत्य है कि सामाजिक मीडिया के दबाव और लेखकों की कंप्यूटर के माध्यम से अपनी पुस्तकों को बढ़ावा देने में सफल होने की इच्छा ने उनकी कहानियों की सामग्री को संकीर्ण कर दिया है क्योंकि वे व्यापक दर्शकों की प्रतिक्रियाएं प्राप्त करने और अपने लेखन को बेहतर स्वागत दिलाने के लिए अपने लेखन में लोकप्रिय विचारों, विषयों और कथानक बिंदुओं पर ध्यान ज्यादा रखते हैं, देश, काल और परिस्थिति की नहीं।

सोशल मीडिया पर लेखन और अन्य साहित्यिक गतिविधियों से जहाँ रचनात्मक सक्रियता बढ़ी है, वहीं इसकी अधिकता ने चिंतन-मनन पर आघात किया है। अच्छे लेखक हर जगह अच्छा लिखेंगे क्योंकि उन्हें मेहनत और मनन की आदत है। अच्छे लेखक अपनी लिखी कृति को परिष्कृत करते हैं, चिंतन- मनन, लिखने और छपने में समय लेते हैं। मगर जो मन की बात नहीं कही जा सकती बोगस हैं, वे हर जगह कचरा बिखेरते हैं। यह एक कटु सत्य है। सोशल मीडिया की सक्रियता और छपने-दिखने की हड़बड़ी में कई लेखक जाने-अनजाने बहुत सी गलतियां करते हैं।  किंतु इधर कुछ साहित्यिक संस्थाएं भी हैं जो न केवल ऑन लाइन गोष्ठियों का संचालन करती है अपितु भौतिक गोष्ठियों के जरिए साहित्य को बल प्रदान करने में आज भी सक्रिय हैं। इनमें से एक ‘नव दलित लेखक संघ, दिल्ली का नाम लिया जा सकता है।

हाल 29 दिसम्बर  को ‘नव दलित लेखक संघ, दिल्ली के तत्वावधान में शाहदरा स्थित संघाराम बुद्ध विहार (शाहदरा) में एक आफलाइन काव्यपाठ गोष्ठी का आयोजन किया गया।

पुस्तक लोकार्पण क़े बाद सर्वप्रथम डॉ. गीता कृष्णांगी ने हवा से भरे लोग, प्रेमालाप, ज़मीन का आदमी आदि कविताओं का प्रभावी पाठ किया।

अरुण कुमार पासवान ने बताया, ‘मैंने अमित धर्मसिंह की कविताएं इससे पूर्व प्रकाशित पद्यात्मक आत्मकथा “हमारे गांव में हमारा क्या है’ को पढ़कर जाना कि जमीन से जुड़ी कविताएं कैसी होती है। प्रस्तुत संग्रह  ‘कूड़ी के गुलाब’ भी उसी तरह की जमीनी कविताओं का संग्रह है। अमित जी के काव्य-संग्रह का जो ये शीर्षक “कूड़ी के गुलाब” मेरे प्रथम काव्य-संग्रह “अल्मोड़ा के गुलाब” की गहराइयों तक ले जाता है।

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शीलबोधि ने कहा, ‘वास्तव में अमित की कविताओं में जिन प्रतीकों के माध्यम से बातें कही जा रही हैं अगर उन्हें, आदमी कविताओं को पढ़ते हुए देख रहा है तो उसे बड़ा ही आनंद आएगा और जहां ये कविताएं खत्म होंगी, वहां आदमी उनकी कविताओं के गाम्भीर्य को जानकर आश्चर्य और विस्मृत से खड़ा रह जाएगा। कविताओं में जिस तरह से बिम्ब बनाया जाता है और जिस तरह शब्दों का विधान खड़ा किया जाता है, वह मुझे एकदम आश्चर्य में डालता है। मुझे लगता है कि कल जब हम न रहेंगे, तब भी ये कविताएं रहेंगी। तब ये इतिहास का एक बड़ा दस्तावेज बनेंगी।

डॉ. कुसुम वियोगी ने किताब पर बोलते हुए कहा कि ‘यह निःसंदेह एक बेहतरीन काव्य संग्रह है। दरअसल, हम लोग उन्मुक्त कविता को बहुत सहज कविता समझ लेते हैं, जबकि उन्मुक्त कविता या मुक्तछंद कविता इतनी सहज नहीं है, जितना कि हम समझकर चलते हैं। इनके भी कुछ  सिद्धांत हैं। अमित जी ने ग्राम्य परिवेश को बहुत नजदीक से देखा, परखा और भोगा हुआ है। अन्यथा बहुत सारे लोग गांव में रहकर आते हैं, हम भी गांव में रहकर आएं, लेकिन उस दृष्टि को नहीं पकड़ पाए जिसको अमित जी ने पकड़ा है। यही कारण है कि उनकी कविताओं में भाव, अनुभव, दृष्टि, और अधिक सूक्ष्म रूप में उभरकर सामने आती है। भाषा का, शब्दों का और कविता के शिल्प का जितना सफल प्रयोग किया है, वह हर किसी के वश की बात नहीं।

तेजपाल सिंह तेज ने एक टेलीफोनिक संदेश में अपनी टिप्पणी देते हुए कहा कि ये जो ‘कूड़ी के गुलाब’ एक समूची कविता है जिसमें निहित तमाम कविताएं जरूर ही वास्तविक ग्रामिण परिवेश को उकेरती ही नहीं अपितु उसकी दुर्दशा पर जोरों से  प्रहार करती हैं, ऐसा मेरा विश्वास है। किताब का शीर्षक ‘कूड़ी के गुलाब’ निसंदेश भावोत्पादक और प्रभावी है। व्यापक दृष्टि से समूचे ग्रामीण परिवेश की परतें निकोलने की दिशा में संकेत करता है। संग्रह की कविताएं पूरे ग्रामीण जन-जीवन को पाठकों के सामने जस का तस रखने का दम रखती हैं।

आज सबकी एक कमजोरी मोबाइल बन गया है। मैं समझता हूँ कि ‘मोबाइल उपवास’  ऐसा कारगर तरीका है जिससे मन- चिंतन तथा लेखन करने के लिए आवश्यक समय  मिल सकता है। मस्तिष्क फिर से रचनात्मक सक्रियता के ‘मोड’ में आ सकता है। कचरे की जगह परिपक्व लेखन या विमर्श सामने आ सकता है। यदि सोशल मीडिया का संतुलित और संयमित रूप में प्रयोग किया जाय तो अच्छा साहित्यिक सृजन भी कुछ अंगुलियों की दूरी पर ही है। सभी वरिष्ठ तथा नव लेखकों को सोशल मीडिया के संयत और संतुलित मात्रा में प्रयोग से इसका प्रचुर लाभ मिले, ऐसी मेरी अभिलाषा है।

 मुझे तो लगता है कि जैसे सारी कविताओं का मर्म अकेले शीर्षक में पूरी तरह किताब में समाया हुआ है। यह भी कि यदि किसी  कविता की एक पंक्ति भी हृदयग्राही हो जाती है तो कविता मुकम्मल हो जाती है। अमित जी की कविताओं में जो खास विश्षता है, वह है परिवेश के साथ ईमानदारी का दर्शं। अच्छा लगता है जब अमित जी जैसे कवि नए-नए बिंबों का खुलासा करते हैं। अमित जी ने यह कार्य बहुत ही सुंदर ढंग से किया है। वे निश्चित ही बधाई के पात्र हैं।”

वक्ताओं के बाद डॉ. अमित धर्मसिंह ने अपने लेखकीय व्यक्त्व में बताया, ‘कूड़ी के गुलाब’ में 2003 और 2017 के बीच जन्मी चुनिंदा कविताओं को संग्रहित किया गया है। सभी कविताओं को दो चरणों में विभक्त करते हुए बढ़ते कालक्रम में प्रस्तुत किया गया है ताकि कविता, कवित्व और विचार के विकासक्रम को आसानी से समझा जा सके। मेरी इन कविताओं के अंतर्गत बंधुआ मजदूरी से कविता तक पहँचने तक के सफर का समुचित उल्लेख है। मेरे लेखन के प्रति वक्ताओं की जो भी खट्टी-मीठी टिप्पणियां हैं, मेरा निश्चित ही मार्ग प्रशस्त करेंगी, ऐसा मेरा विश्वास है। उन्होंने ‘कूड़ी के गुलाब’ काव्य संग्रह में से ‘एक घर का जलना’, ‘देखो’,  ‘उन्माद’ और ‘हाथ एक’  शीर्षांकित कविताओं का पाठ भी किया।

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अध्यक्षता कर रहे बंशीधर नाहरवाल ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि अमित धर्मसिंह एक मंजे हुए कवि है। उनकी पहली कृतियों से भी दलित साहित्य बहुत समृद्ध हुआ है, और आज ‘कूड़ी के गुलाब’ नाम का भी काव्य संग्रह एक बेशकीमती नग की तरह दलित साहित्य में आ जड़ा है। कहा जाता है कि एक चावल चेक करके पता कर लिया जाता है कि चावल पके हैं, कि नहीं। इसी तरह, कविताओं और वक्तव्यों से जो सैंपल यहां प्रस्तुत किए गए हैं, उनसे सहज ही अंदाजा हो जाता है कि संग्रह बहुत ही उत्कृष्ट बन पड़ा है। जैसा कि कविता के विषय में अरुण पासवान जी ने अमित जी की एक कविता, कविता शीर्षक से ही पढ़कर बताया है कि कविता झरने के उस पानी के समान है जो पूर्व सूचना के फूट पड़ता है, पहाड़ के सीने से। ऐसा मानिए कि अमित जी की ये कविताएं भी ऐसी ही हैं।

गोष्ठी के प्रथम चरण में डॉ. अमित धर्मसिंह के स्वप्रकाशित काव्य संग्रह ‘कूड़ी के गुलाब’ का लोकार्पण हुआ। दूसरे चरण में सभा में उपस्थित कवियों का काव्यपाठ हुआ। पहले चरण का संचालन सलीमा ने तो दूसरे चरण का  सफल संचालन मामचंद सागर ने किया। गोष्ठी में माननीय एदलसिंह, फूलसिंह कुस्तवार, राधेश्याम कांसोटिया, डॉ. उषा सिंह, पुष्पा विवेक, बृजपाल सहज, जोगेंद्र सिंह, डॉ. कुसुम वियोगी उर्फ़ कबीर कात्यायन, अरुण कुमार पासवान, शीलबोधि, दिनेश आनंद, डॉ. घनश्याम दास, मदनलाल राज़, राजपाल सिंह राजा, इंद्रजीत सुकुमार, भिक्षु अश्वगोष एवं तेजपाल सिंह ‘तेज’ ने भी टेलीफोनिक काल के जरिए अपनी उपस्थित दर्ज कराई। सभी उपस्थित साहित्यकारों का धन्यवाद ज्ञापन गोष्ठी संयोजक डॉ. गीता कृष्णांगी ने किया।

काव्य संग्रह : कूड़ी के गुलाब, कवि : अमित धर्मसिंह, प्रकाशक : रचनाकार प्रकाशन, मुजफ्फरनगर,

प्रथम संकरण : 2023 (पेपरबैक), पृष्ठ संख्या : 212, मूल्य : 300/₹

 

तेजपाल सिंह 'तेज'
तेजपाल सिंह 'तेज'
लेखक हिन्दी अकादमी (दिल्ली) द्वारा बाल साहित्य पुरस्कार तथा साहित्यकार सम्मान से सम्मानित हैं और 2009 में स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त हो स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं।

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