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ग्राउंड रिपोर्ट

‘प्राण प्रतिष्ठा’ कार्यक्रम में जाने से इन्कार कर विपक्ष के नेताओं ने अपने भीतर के भय और भाजपा के जाल को उतार फेंका है

लोकसभा चुनाव से पहले अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के बहाने बीजेपी और आरएसएस एक तरफ जहां राजनीतिक रोटियां सेंकने की भरपूर कोशिश कर रही है वहीं दूसरी तरफ विपक्ष के कई नेता पूरे कार्यक्रम को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और आरएसएस का निजी कार्यक्रम घोषित कर कार्यक्रम में जाने से इंकार कर चुके हैं। […]

लोकसभा चुनाव से पहले अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के बहाने बीजेपी और आरएसएस एक तरफ जहां राजनीतिक रोटियां सेंकने की भरपूर कोशिश कर रही है वहीं दूसरी तरफ विपक्ष के कई नेता पूरे कार्यक्रम को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और आरएसएस का निजी कार्यक्रम घोषित कर कार्यक्रम में जाने से इंकार कर चुके हैं। इससे नरेंद्र मोदी और आरएसएस के मंसूबों को झटका लगा है।  हालांकि, इस आयोजन को लेकर सियासी बयानबाजी भी हो रही है। कई राजनीतिक दलों ने इस समारोह को सत्ताधारी दल-भाजपा का बताते हुए सवाल खड़े किए हैं। कांग्रेस पार्टी ने शंकराचार्य के बयान को आधार बनाकर पूछा है कि ऐसे समारोह में सबसे बड़े धर्माधिकारी की अनदेखी क्यों की जा रही है? भाजपा ने कांग्रेस के इस रवैये पर पलटवार भी किया है।

हालांकि, सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने न्योते को अस्वीकार कर दिया है। कांग्रेस के अलावा भी विपक्ष के कई नेताओं ने निमंत्रण को ठुकराया है। कांग्रेस के आधिकारिक एलान के बाद देश की सियासत एक बार फिर गर्म हो गई है।

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के साथ ही कांग्रेस कि पूर्व सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने भी अयोध्या में होने वाले प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में जाने से इंकार कर दिया है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा है यदि कोई पार्टी का कार्यकर्ता कार्यक्रम में जाना चाहता है तो उसको मनाही नहीं है।

‘इंडिया’ गठबंधन के कई नेताओं ने घोषणा कि है कि वो कार्यक्रम का हिस्सा नहीं बनेंगे। कांग्रेस पार्टी के नेता जयराम रमेश ने एक बयान में कहा कि यह कार्यक्रम भाजपा और संघ का है। यहां आधे-अधूरे मंदिर का उद्घाटन किया जा रहा है।

इसके अलावा पूर्व कांग्रेस नेता और राज्यसभा संसद कपिल सिब्बल ने भी कहा है कि वह इसमें शामिल नहीं होंगे। तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी कार्यक्रम में शिरकत नहीं करेंगी। उन्होंने कहा लोकसभा चुनाव से पहले अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन करके भाजपा वोट जुटाने की चाल चल रही है। उन्होंने कहा  मैं ऐसे कार्यक्रमों का समर्थन नहीं करती हूं जो दूसरे समुदाय को शामिल न करें। ममता ने कहा कि मैं ऐसे त्योहार में भरोसा करती हूं जो सबको साथ लाए, सबकी बात करे। आपको जो करना है करो, आपको लोकसभा चुनाव के पहले ऐसी तिकड़म लगानी है, लगाओ, मुझे कोई परेशानी नहीं है। लेकिन दूसरे समुदाय के लोगों को दरकिनार करना सही नहीं है। जब तक मैं हूं, हिंदू और मुस्लिमों के बीच भेदभाव नहीं होने दूंगी।

उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना भी समारोह में शिरकत नहीं करेगी। पार्टी के नेता और सांसद संजय राउत ने कहा, ‘यह भाजपा के वर्चस्व वाला कार्यक्रम है। हमारा कोई भी कार्यकर्ता इसमें हिस्सा नहीं लेगा।’

उद्धव ठाकरे, ने कहा है कि वह और उनकी पार्टी के नेता उस दिन नासिक में कालाराम मंदिर जाएंगे और गोदावरी नदी तट पर ‘महाआरती’ करेंगे। अपनी मां मीना ठाकरे को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि देने के बाद यहां पत्रकारों से बात करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा था , अयोध्या राम मंदिर का अभिषेक गौरव और स्वाभिमान का विषय है। उस दिन हम कालाराम मंदिर जाएंगे, जहां डॉ बाबासाहेब अंबेडकर और (समाज सुधारक) साने गुरुजी को विरोध प्रदर्शन किया था। शाम 7.30 बजे, हम गोदावरी नदी के तट पर महाआरती करेंगे।

अयोध्या न जाने का फैसला लेने वाले कद्दावर नेताओं में शरद पवार का नाम भी शामिल है। उन्होंने कहा है कि 22 जनवरी के समारोह में अयोध्या में काफी भीड़ होगी। ऐसे में वे मंदिर निर्माण पूरा होने के बाद रामलला के दर्शन करेंगे। पवार के इस बयान को अधूरे राममंदिर में प्राण प्रतिष्ठा से भी जोड़कर देखा जा रहा है। गौरतलब है कि ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने  22 जनवरी के मुहूर्त और मंदिर का पूरा निर्माण होने से पहले प्राण प्रतिष्ठा पर सवाल खड़े किए हैं।

राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय को पत्र लिखकर पवार ने अयोध्या आने में असमर्थता जताई। पवार ने निमंत्रण के लिए आभार प्रकट करते हुए कहा, श्रीराम भारत ही नहीं, विश्वभर में फैले करोड़ों भक्तों की श्रद्धा और आस्था के प्रतीक हैं। अयोध्या के समारोह को लेकर राम भक्तों में उत्सुकता और आतुरता है और वे भारी संख्या में वहां पहुंच रहे हैं। उनके माध्यम से इस ऐतिहासिक समारोह का आनंद मुझ तक पहुंचेगा।

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी, सीपीआईएम नेता वृंदा करात ने भी 22 जनवरी को अयोध्या आने का न्योता अस्वीकार कर दिया है। लेफ्ट पार्टी ने कहा है कि उसका मानना है कि धर्म व्यक्तिगत मामला है। वाम दल के पोलित ब्यूरो ने एक बयान जारी कर कहा है कि यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है कि बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने एक धार्मिक समारोह को राज्य प्रायोजित कार्यक्रम में बदल दिया है। इसमें सीधे प्रधानमंत्री, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और भाजपा के कार्यकर्ताओं के साथ ही अधिकारी शामिल हो रहे हैं।

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने अयोध्या में होने वाले प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने से इनकार कर दिया है। राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने कहा कि वे राम मंदिर कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अयोध्या नहीं जाएंगे।

वंचित बहुजन आघाड़ी (वीबीए) के अध्यक्ष प्रकाश आंबेडकर ने 22 जनवरी को अयोध्या में नए राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए राम मंदिर ट्रस्ट के निमंत्रण को बुधवार को अस्वीकार कर दिया।

ट्रस्ट को लिखे पत्र में उन्होंने कहा कि इस आयोजन को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने हथिया लिया है। उन्होंने कहा, ‘एक धार्मिक आयोजन को राजनीतिक अभियान में बदल दिया गया है।’

वीबीए प्रमुख ने कहा कि उनके दादा डॉ. बी आर आंबेडकर ने चेतावनी दी थी कि अगर राजनीतिक दल जाति और धर्म को राष्ट्र से ऊपर रखेंगे तो स्वतंत्रता एक बार फिर खतरे में पड़ जाएगी।

बहरहाल, जो भी हो लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आधे-अधूरे राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के बहाने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चुनावी वैतरणी को पार लगाना चाह रहे है। दूसरी तरफ विपक्ष उनके इस मंसूबे से भली भांति वाकिफ है और कोशिश कर रहा है कि यह सिर्फ पार्टी विशेष का ही कार्यक्रम बन कर रह जाय। इसमें काफी हद तक सच्चाई भी है ।

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