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हरियाणा चुनाव : जमीनी तैयारी के अभाव में कांग्रेस की हार

अठारहवीं लोकसभा में कांग्रेस ने जिस तरह प्रदर्शन किया था, उसे देखकर लगा था कि हरियाणा चुनाव में भी कोई बदलाव होगा। यहाँ तक कि सारे एग्जिट पोल भी कांग्रेस को 60 सीट जीतने की बात कहते रहे, वहीँ भाजपा को 20 से 28 सीट तक ही सीमित कर दिया था। लेकिन चुनावी नतीजे आने के बाद परिदृश्य पूरी तरह बदल गया। ऐसा क्यों हुआ? इस पर पढ़िए मनीष शर्मा की विश्लेष्णात्मक रिपोर्ट

अमेरिका में राहुल गाँधी के भाषण पर बचाव करती नज़र आ रही है भाजपा

राहुल गांधी पिछले कुछ वर्षों से एक परिपक्व सोच वाले जनता के प्रिय नेता बनकर सामने आए हैं। उन्होंने तीन दिवसीय अमेरिका प्रवास के दौरान भाजपा पर सीधे-सीधे निशाना साधा, जिस पर भाजपा नेताओं ने पलटकर जवाब दिया। यह घमासान अभी चल ही रहा है। जैसा कि भाजपा की पुरानी और घिसी-पिटी रणनीति है वैसा ही उसने इस बार भी किया है। राहुल गाँधी ने भाजपा के सांप्रदायिक एजेंडे की आलोचना की। भाजपा ने सिख विरोधी दंगे की बात शुरू कर दी।

क्या धर्मनिरपेक्षता पश्चिम का थोपा हुआ विचार है?

भारत में हिन्दू धर्म के बारे में कहा जाता है कि वह पारंपरिक अर्थ में धर्म नहीं है। यह केवल लोगों को भ्रमित करने का तरीका है। जो लोग धर्म का रक्षक होने का दावा करते हैं वे दरअसल जाति और लिंग पर आधारित प्राचीन ऊंच-नीच को बनाए रखना चाहते है। ये ताकतें प्रजातंत्र के आगाज़ से पहले की दुनिया वापस लाना चाहती हैं। वे नहीं चाहतीं कि हर व्यक्ति का एक वोट हो। वे चाहतीं हैं कि राजा को ईश्वर से जोड़ा जाए और पुरोहित वर्ग उसे सहारा दे। 

छत्तीसगढ़ में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ घृणा : खतरनाक रूप ले रहे हैं संघ-भाजपा के कारनामे

भाजपा की नीतियों को ही सरकार की नीतियों के रूप में दिमाग में बैठाने की कोशिशों का नतीजा यह है कि पुलिस और प्रशासन के विभिन्न हलकों में भाजपा की नीतियों का अंधानुकरण करने और पार्टी नेताओं तथा हिंदूवादी संगठनों के कार्यकर्ताओं की इच्छानुसार काम करने की प्रवृत्ति पैदा हुई है। बिलासपुर की घटना में पुलिस और सरकार का रूख यही बताता है कि संविधान के मूल्यों और उसकी भावना को खत्म करने और अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित करने के लिए कानून को तोड़ने-मरोड़ने का काम ऊंचे स्तर से ही जोर-शोर से जारी है।

‘एक देश एक चुनाव’ का जुमला लोकतंत्र को कहाँ ले जायेगा

भाजपा लगातार लोकतान्त्रिक तरीके से काम करने वाली संस्थाओं में बदलाव करने का काम कर रही है। ऐसी संस्थाओं में अपने लोगों की नियुक्ति कर, अपने तरीके से चला रही है। 'एक देश, एक चुनाव' की अवधारणा भाजपा के शासनकाल की उपज है। यह व्यवस्था देश में अधिनायकवाद या यूँ कहें कि हिटलरशाही अथवा तानाशाही को ही जन्म देगी। इस व्यवस्था के लागू होते ही देश में चौतरफा अराजकता का माहौल पैदा होने में देर नहीं लगेगी।

आरएसएस का इतिहास देशप्रेम का नहीं है सभापति महोदय..

राज्यसभा संसद में सभापति जगदीप धनखड़ ने सांसद रामजीलाल सुमन द्वारा आरएसएस का नाम लेने पर आपत्ति दर्ज कराते हुए आरएसएस को देशसेवा करने वाली ईकाई कहा। चूंकि धनखड़ महोदय खुद आरएसएस से तैयार हुए हैं, ऐसे में उसकी तारीफ करना उनका फर्ज बनता है जबकि महात्मा गांधी की हत्या से लेकर देश में हुए अनेक दंगों में उसकी क्या भूमिका रही है सभी जानते हैं।

सरकारी कर्मचारियों को आरएसएस से जोड़ने के परिणाम विध्वंसकारी होंगे

फासीवादी संगठन आरएसएस ने सरकारी कर्मचारियों को अपने संगठन की गतिविधियों में भाग लेने पर लगे प्रतिबंध से छूट दे दी है। जबकि कोई भी सरकारी कर्मचारी को किसी भी राजनैतिक संगठन से जुड़ने पर पूरी तरह से मनाही है ताकि वे संविधान के मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध रहें और अपने काम में राजनैतिक पक्षपात न करें। सवाल यह उठता है कि संघ का अगला एजेंडा क्या है, जिसमें वह सरकारी कर्मचारियों का उपयोग(दुरुपयोग) करेगा?

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पिछड़े, दलित, आदिवासी और दिव्यांगों के आठ पदों को NFS क्यों किया गया?

आज से 70 वर्ष पहले ऐसे वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था संविधान में लाई गई थी, जो सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से हाशिये पर जीवन जीने को मजबूर थे क्योंकि देश का सवर्ण तबका, खासकर ब्राह्मण, उन्हें आगे बढ़ने देना नहीं चाहते थे लेकिन संविधान के सामने विवश थे। हाशिये के इन समाजों ने शिक्षित हो आगे आना शुरू किया। यही बात भारतीय सवर्णों के लिए अपच हो गई। फिर भी भारतीय संविधान हाशिये के समाजों के अधिकारों की सुरक्षा करता रहा है। अब आरएसएस के दिमाग से संचालित भाजपानीत सरकार ने हाशिये के समाज के लोगों को फिर से हाशिये पर ढकेलने के लिए अलग षड्यंत्र कर रही है। देश का अपना संविधान होने के बावजूद आरएसएस यहाँ अपना एक अलग मनुवादी संविधान थोपने के प्रयास में है। प्रायः सभी चयन समितियों में अपने वर्चस्व का लाभ उठाकर शिक्षा और नौकरियों के मामले में उन्हें NFS कर हटाने के प्रयास में है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के ताजा मामले में जानिए कि कैसे आठ उम्मीदवारों को NFS कर दिया गया।

संविधान का उल्लंघन करने वाले ही घोषणा कर रहे हैं संविधान हत्या दिवस मनाने का

संविधान की धज्जियां उड़ाने वाली वर्तमान केंद्र सरकार ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाने की घोषणा की है। इनका कहना है कि 1975 में 25 जून को आपातकाल का लगाया जाना संविधान की हत्या करना ही था। यह आपातकाल एक बार लगा था लेकिन वर्ष 2014 से जब से भाजपा सरकार सत्ता में है, तब से पूरे देश में अघोषित आपातकाल लगा हुआ है और देश के संविधान के विरुद्ध ही सभी निर्णय लिए जा रहे हैं। सवाल यह है कि ऐसे में संविधान हत्या दिवस की घोषणा करना क्या उचित है?

देश की संस्कृति, सभ्यता, इतिहास पर हमला करने वाले कब नियंत्रित होंगे?

वर्ष 2014 में बीजेपी के आ जाने के बाद संघ और मजबूती से अपनी रणनीतियों को लागू करने की तेजी दिखा रही है। एक तरफ संविधान बदलकर हिन्दू राष्ट्र बनाने की जल्दी है, वहीं दूसरी तरफ देश की शिक्षा व कानून में बदलाव कर उसे अपने कब्जे में करने की रणनीति तैयार की जा रही है।

पिता, पुत्र और हिंदुत्व के एजेंडे की ओर ठेलमठेल

आरएसएस के एक शीर्ष पदाधिकारी इंद्रेश कुमार ने भी कहा कि अहंकार के कारण भाजपा की सीटों में गिरावट आई है। आरएसएस ने तुरंत इस बयान से पल्ला झाड़ लिया और इंद्रेश कुमार ने इसे वापस लेते हुए प्रमाणित किया कि केवल मोदी के नेतृत्व में ही भारत प्रगति कर सकता है। कई टिप्पणीकारों ने डॉ. भागवत के बयान को आरएसएस और भाजपा के बीच दरार के संकेत के रूप में लिया है।

एक वर्ष बाद मणिपुर पर दिए बयान से संघ और संघ प्रमुख मोहन भागवत का पाखंड सामने आया

18वीं लोकसभा में 400 पार का दावा करने वाली भाजपा 240 सीट पर ही सिमट गई। मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने लेकिन 32 सीटें गठबंधन से उधार लेकर। ऐसे में भाजपा के मातृ दल राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत को एक वर्ष बाद मणिपुर हिंसा की याद आई और एक कार्यक्रम में बयान दिया 'मणिपुर में पिछले एक वर्ष से अधिक समय से  शांति की राह देख रहा है। इस पर प्राथमिकता से विचार करना चाहिए।' इस बयान से संघ, संघ प्रमुख और संघ से जुड़े सभी संगठनों की मानसिकता एक बार फिर सामने आई।

क्या वास्तव में मोदी अवतारी पुरुष हैं ?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हिन्दू राष्ट्रवादी हैं और हिन्दू राष्ट्र के निर्माण के घोषित लक्ष्य वाले आरएसएस के प्रशिक्षित प्रचारक हैं। सांप्रदायिक राष्ट्रवाद को नस्ल या धर्म का लबादा ओढ़े तानाशाही बहुत पसंद आती है। धार्मिक राष्ट्रवादी समूह अपने सर्वोच्च नेता की छवि एक महामानव की बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखते। ऐसे में वे अवतारी पुरुष कैसे हुए?

नरेन्द्र मोदी : तानाशाही से देवत्व की ओर

गुजरात का मुख्यमंत्री रहने के दौरान से ही नरेन्द्र मोदी की छवि को एक करिश्माई नेता की बनाने का जो प्रयास शुरू हुआ, अब वह देवत्व तक आ चुका है।

भाजपा-आरएसएस के राजनैतिक संबंध आज भी पिता-पुत्र की भांति हैं – जेपी नड़ड़ा

वर्ष 2014 से केंद्र में आरएसएस पोषित भाजपा शासन कर रही है। अब वर्ष 2024 में तीसरी बार सरकार बनाने के लिए मशक्कत कर रही है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड़ड़ा ने साफ़तौर पर यह कहा कि लोग अपने मन इस भ्रम को मिटा दें कि इस चुनाव में आरएसएस भाजपा को किसी तरह से कोई सपोर्ट नहीं कर रहा है।

आखिर प्रगतिशील विचारों से क्यों जलती है भाजपा?

जब भी भाजपा के समक्ष संकट आता है तो वह सांप्रदायिकता की पनाह में चली जाती है। चूंकि कोई भी चुनाव आसान नहीं होता, इसलिए भाजपा मण्डल के उत्तरकाल के हर चुनाव में राम नाम जपने और मुस्लिम विद्वेष के प्रसार के लिए बाध्य रही।

भाजपा और आरएसएस की हिंदुत्ववादी मानसिकता स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के लिए सबसे बड़ा खतरा है

बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर ने देश में हिंदुत्ववादी ताकतों के मंसूबों को भापते हुए उस समय जो चिंता व्यक्त की थी वह अब पहले से कहीं ज्यादा खतरनाक स्थिति में पहुँच चुकी है। ऐसे में हमें आपसी भाई चारे को बनाये रखते हुए बीजेपी और आरएसएस के लोगों से दूर रहने की जरूरत है।

आरएसएस प्रमुख और भाजपा, आरक्षण समीक्षा की आड़ में पिछड़ों को उचित प्रतिनिधित्व से दूर रखने की मंशा रखते हैं

कुछ समय पहले तक आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ओबीसी आरक्षण के सख्त खिलाफ थे और आरक्षण को लेकर लगातार विरोध में बयान दिया करते थे लेकिन चुनाव आते ही उनके सुर बदल गए क्योंकि देश में ओबीसी का बड़ा वोट बैंक हैं।

अग्निवीर योजना : दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक युवाओं के खिलाफ भाजपा-आरएसएस की बड़ी साजिश

अग्निवीर योजना की शुरुआत एक सोची समझी साजिश का हिस्सा है। भारतीय सेना में दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक युवाओं को शामिल होने से रोकने के लिए एक गहरा इकोसिस्टम तैयार किया गया है। नरेंद्र मोदी और आरएसएस द्वारा तैयार की गई इस रणनीति को समझना एक सामान्य भारतीय नागरिक के लिए आसान नहीं है।

भाजपा-आरएसएस की राजनीति हमेशा से ही दलित,पिछड़ा,अल्पसंख्यक विरोधी रही है

भाजपा और आरएसएस हमेशा से दलित,ओबीसी विरोधी रहे हैं। देश के संविधान को बदलने के लिए इस चुनाव में 400 पार का नारा दिया लेकिन संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने को लेकर जनता की तरफ से आ रहे विरोध को देखते हुए इन्होंने चुनाव का नेरेटिव बदल इनके शुभचिंतक होने की बात बार-बार दोहरा रहे हैं।

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