Saturday, July 27, 2024
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संविधान का उल्लंघन करने वाले ही घोषणा कर रहे हैं संविधान हत्या दिवस मनाने का

संविधान की धज्जियां उड़ाने वाली वर्तमान केंद्र सरकार ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाने की घोषणा की है। इनका कहना है कि 1975 में 25 जून को आपातकाल का लगाया जाना संविधान की हत्या करना ही था। यह आपातकाल एक बार लगा था लेकिन वर्ष 2014 से जब से भाजपा सरकार सत्ता में है, तब से पूरे देश में अघोषित आपातकाल लगा हुआ है और देश के संविधान के विरुद्ध ही सभी निर्णय लिए जा रहे हैं। सवाल यह है कि ऐसे में संविधान हत्या दिवस की घोषणा करना क्या उचित है?

देश की संस्कृति, सभ्यता, इतिहास पर हमला करने वाले कब नियंत्रित होंगे?

वर्ष 2014 में बीजेपी के आ जाने के बाद संघ और मजबूती से अपनी रणनीतियों को लागू करने की तेजी दिखा रही है। एक तरफ संविधान बदलकर हिन्दू राष्ट्र बनाने की जल्दी है, वहीं दूसरी तरफ देश की शिक्षा व कानून में बदलाव कर उसे अपने कब्जे में करने की रणनीति तैयार की जा रही है।

पिता, पुत्र और हिंदुत्व के एजेंडे की ओर ठेलमठेल

आरएसएस के एक शीर्ष पदाधिकारी इंद्रेश कुमार ने भी कहा कि अहंकार के कारण भाजपा की सीटों में गिरावट आई है। आरएसएस ने तुरंत इस बयान से पल्ला झाड़ लिया और इंद्रेश कुमार ने इसे वापस लेते हुए प्रमाणित किया कि केवल मोदी के नेतृत्व में ही भारत प्रगति कर सकता है। कई टिप्पणीकारों ने डॉ. भागवत के बयान को आरएसएस और भाजपा के बीच दरार के संकेत के रूप में लिया है।

एक वर्ष बाद मणिपुर पर दिए बयान से संघ और संघ प्रमुख मोहन भागवत का पाखंड सामने आया

18वीं लोकसभा में 400 पार का दावा करने वाली भाजपा 240 सीट पर ही सिमट गई। मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने लेकिन 32 सीटें गठबंधन से उधार लेकर। ऐसे में भाजपा के मातृ दल राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत को एक वर्ष बाद मणिपुर हिंसा की याद आई और एक कार्यक्रम में बयान दिया 'मणिपुर में पिछले एक वर्ष से अधिक समय से  शांति की राह देख रहा है। इस पर प्राथमिकता से विचार करना चाहिए।' इस बयान से संघ, संघ प्रमुख और संघ से जुड़े सभी संगठनों की मानसिकता एक बार फिर सामने आई।

क्या वास्तव में मोदी अवतारी पुरुष हैं ?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हिन्दू राष्ट्रवादी हैं और हिन्दू राष्ट्र के निर्माण के घोषित लक्ष्य वाले आरएसएस के प्रशिक्षित प्रचारक हैं। सांप्रदायिक राष्ट्रवाद को नस्ल या धर्म का लबादा ओढ़े तानाशाही बहुत पसंद आती है। धार्मिक राष्ट्रवादी समूह अपने सर्वोच्च नेता की छवि एक महामानव की बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखते। ऐसे में वे अवतारी पुरुष कैसे हुए?

नरेन्द्र मोदी : तानाशाही से देवत्व की ओर

गुजरात का मुख्यमंत्री रहने के दौरान से ही नरेन्द्र मोदी की छवि को एक करिश्माई नेता की बनाने का जो प्रयास शुरू हुआ, अब वह देवत्व तक आ चुका है।

भाजपा-आरएसएस के राजनैतिक संबंध आज भी पिता-पुत्र की भांति हैं – जेपी नड़ड़ा

वर्ष 2014 से केंद्र में आरएसएस पोषित भाजपा शासन कर रही है। अब वर्ष 2024 में तीसरी बार सरकार बनाने के लिए मशक्कत कर रही है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड़ड़ा ने साफ़तौर पर यह कहा कि लोग अपने मन इस भ्रम को मिटा दें कि इस चुनाव में आरएसएस भाजपा को किसी तरह से कोई सपोर्ट नहीं कर रहा है।

आखिर प्रगतिशील विचारों से क्यों जलती है भाजपा?

जब भी भाजपा के समक्ष संकट आता है तो वह सांप्रदायिकता की पनाह में चली जाती है। चूंकि कोई भी चुनाव आसान नहीं होता, इसलिए भाजपा मण्डल के उत्तरकाल के हर चुनाव में राम नाम जपने और मुस्लिम विद्वेष के प्रसार के लिए बाध्य रही।

भाजपा और आरएसएस की हिंदुत्ववादी मानसिकता स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के लिए सबसे बड़ा खतरा है

बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर ने देश में हिंदुत्ववादी ताकतों के मंसूबों को भापते हुए उस समय जो चिंता व्यक्त की थी वह अब पहले से कहीं ज्यादा खतरनाक स्थिति में पहुँच चुकी है। ऐसे में हमें आपसी भाई चारे को बनाये रखते हुए बीजेपी और आरएसएस के लोगों से दूर रहने की जरूरत है।

आरएसएस प्रमुख और भाजपा, आरक्षण समीक्षा की आड़ में पिछड़ों को उचित प्रतिनिधित्व से दूर रखने की मंशा रखते हैं

कुछ समय पहले तक आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ओबीसी आरक्षण के सख्त खिलाफ थे और आरक्षण को लेकर लगातार विरोध में बयान दिया करते थे लेकिन चुनाव आते ही उनके सुर बदल गए क्योंकि देश में ओबीसी का बड़ा वोट बैंक हैं।

अग्निवीर योजना : दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक युवाओं के खिलाफ भाजपा-आरएसएस की बड़ी साजिश

अग्निवीर योजना की शुरुआत एक सोची समझी साजिश का हिस्सा है। भारतीय सेना में दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक युवाओं को शामिल होने से रोकने के लिए एक गहरा इकोसिस्टम तैयार किया गया है। नरेंद्र मोदी और आरएसएस द्वारा तैयार की गई इस रणनीति को समझना एक सामान्य भारतीय नागरिक के लिए आसान नहीं है।

भाजपा-आरएसएस की राजनीति हमेशा से ही दलित,पिछड़ा,अल्पसंख्यक विरोधी रही है

भाजपा और आरएसएस हमेशा से दलित,ओबीसी विरोधी रहे हैं। देश के संविधान को बदलने के लिए इस चुनाव में 400 पार का नारा दिया लेकिन संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने को लेकर जनता की तरफ से आ रहे विरोध को देखते हुए इन्होंने चुनाव का नेरेटिव बदल इनके शुभचिंतक होने की बात बार-बार दोहरा रहे हैं।

पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह चुनावी मंचों से मातृशक्ति और स्त्री सशक्तिकरण के खोखले दावे करते हैं

अपने चुनावी भाषणों में देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री देश की महिलाओं को मातृ शक्ति का दर्जा दे सम्मान की बात कर रहे हैं लेकिन उनके मुंह से भाजपा के कथित गुंडों और बलात्कारियों द्वारा की गई करतूतों पर एक बोल नहीं निकलता। आरएसएस की शाखाओं में शामिल होने वाले युवाओं को कभी नारी सम्मान की बात नहीं सिखाई जाती।

संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर विश्वास लायक नहीं हैं संघ और मोदी  

लोकसभा चुनावी भाषणों में अराक्षण और संविधान को लेकर मोदी और संघ के सुर इधर बदले हुए सुनाई दे रहे हैं लेकिन वास्तविकता यही है कि आरएसएस और भाजपा का निर्माण हिंदुत्ववादी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए हुआ। इस कारण संघ अपने जन्मकाल से लेकर आज तक लोकतंत्र, संविधान, सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता का स्वाभाविक हिमायती न बन सका। आज भी 400 सीट पाने का मुख्य उद्देश्य आसानी से संविधान में बदलाव करते हुए आरक्षण को पूरी तरह से खत्म करना है।

Lok Sabha Election : अखिलेश यादव ने कहा, वोट के लिए आरएसएस के सुर बदल गए हैं

एटा में जनसभा को संबोधित करते हुए सपा अध्यक्ष ने आरएसएस पर निशाना साधा।

गैर कांग्रेसवाद के गर्भ से निकली सांप्रदायिक सरकार के मुखिया की हताशा क्या कहती है?

सन 1950 से 1977 अर्थात 27 सालों में जनसंघ को सिर्फ छह प्रतिशत मतदाताओं ने पसंद किया था लेकिन 1963 के बाद डॉ. राम मनोहर लोहिया के गैर कांग्रेसी राजनीतिक कदम के चलते शिवसेना से लेकर मुस्लिम लीग और जनसंघ जैसे घोर सांप्रदायिक दलों के साथ गठजोड़ की वजह से जनसंघ को बहुत लाभ हुआ। इस लेख में जाने-माने लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ सुरेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीतिक विरासत के बहाने उनकी हताशा पर बात कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री मोदी पद की गरिमा के प्रतिकूल बातें क्यों कर रहे हैं?

वर्ष 2014 के बाद देश की स्थिति से सभी वाकिफ हैं। बीजेपी ने सांप्रदायिक घृणा फैला कर ध्रुवीकरण करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और इस काम का नेतृत्व किसके हाथ में है, सभी जानते हैं। इन्हीं बातों को उल्लेखित करते हुए डॉ सुरेश खैरनार ने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम खुला पत्र लिखा।

Lok Sabha Election : क्या संविधान को बचाने से बढ़कर इस बार कोई दूसरा बड़ा चुनावी मुद्दा है?

नरेंद्र मोदी 400 सीट जीतने के बाद संविधान बदलने की बात कई बार कह चुके हैं लेकिन इधर मोदी कह रहे हैं कि इस चुनाव में उन लोगों को सजा मिलेगी जिन्होंने संविधान के खिलाफ जाकर काम किया। ऐसे में मतदाता यह समझ लें कि कौन संविधान विरोधी है और किसे सजा दी जाये।

भारतीय संविधान के यम : नरेंद्र मोदी

सरकारी शिक्षण संस्थाओं को निजी हाथों में सौंपने के बाद देश के प्रधानमंत्री अब आरक्षण और संविधान को ही खत्म कर देने पर तुले हुए हैं। इसके लिए भाजपा को 400 के आंकड़े को पार करना होगा। भाजपा इसमें कितना कामयाब होती दिख रही है... पढ़िए एच एल दुसाध का लेख

Loksabha chunav : क्या हथियाराम मठ और संघ का गठजोड़ ग़ाज़ीपुर लोकसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी की नैया पार लगाएगा?

भाजपा से पारस नाथ राय को टिकट मिलने के बाद से ही जखनिया स्थित हथियाराम मठ चर्चा के केंद्र में है। गाजीपुर लोकसभा सीट पर भाजपा के प्रत्याशी उतारने में हथियाराम मठ की क्या भूमिका है?

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