हरियाणा के हिसार में एमएसपी की मांग को लेकर कर रहे किसान प्रदर्शन कर रहे थे। हिसार के खेड़ी चौपटा में इकट्ठा होकर ये किसान खनौरी बार्डर पर कूच करने के लिए इकट्ठा हुए थे। हजारों की भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने लाठी चार्ज किया और आँसू गैस छोड़ा, इस बात से नाराज किसानों ने पत्थर फेंके। जिसके बाद अनेक किसान घायल हो गए और गंभीर चोटें आईं। ‘दिल्ली चलो’ मार्च में हिस्सा लेने आए एक 62 वर्षीय किसान की हार्ट अटैक से मौत हो गई। इस आंदोलन में अब तक तीन किसानों की मौत हो चुकी है।
विगत 11 दिनों से एमएसपी गारंटी की मांग करते किसान हरियाणा सरकार के निशाने पर है। हरियाणा सरकार उन पर लगातार आँसू गैस के गोले दाग रही और पहले तो पेलेट गन से ही हमला कर रही थी लेकिन अब गोली चलाकर निशाना बना रही है।
कल ही हरियाणा में बजट पेश करते हुए मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर लगभग 5 लाख किसानों का कर्ज, ब्याज और पेनल्टी की माफी की घोषणा की। जबकि उनके ही गृह राज्य में किसान आंदोलन कर रहे हैं और यही सरकार अपने किसानों पर लाठी, गोली और आँसू गैस चलवा रही है। उनके हाथ-पैर तोड़कर बोरे में बांधकर खेतों में फिंकवा रही है। पंजाब के आंदोलन कर रहे को हरियाणा में घुसने से रोकने के लिए सात-सात लेयर की बेरिकेडिंग करवाई गई है। यह सब अचानक एक दिन की योजना नहीं है बल्कि पहले से तैयार योजना के तहत किसानों को रोकना और उनका दमन करना है। किसानों के प्रति इस व्यवहार से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि हरियाणा सरकार का शासन कितने दोहरे चरित्र का है।
गुरुवार को इन्हीं मनोहर लाल खट्टर ने आंदोलन कर रहे किसानों और किसान नेताओं पर रासुका लगाने की घोषणा कर उनकी संपत्ति कुर्क करने का आदेश दिया था। कल इस आदेश को वापस लिए गया है।
पंजाब और हरियाणा में उन्नत तरीके से खेती के जाना जाता है। हरियाणा में पिछले पाँच वर्षों में 23 किसानों ने कर्ज के बोझ के कारण आत्महत्या की है।
21 फरवरी को पुलिस की गोली से एक किसान की मौत के बाद 2 दिन आंदोलन स्थगित करने के बाद कल याने शुक्रवार को संयुक्त किसान मोर्चा और अन्य किसान संगठनों ने काला दिवस मानते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह, मनोहर लाला खट्टर और अनिल विज के पुतला जलाया।
किसी भी तरह मोदी और खट्टर सरकार इस आंदोलन को आगे आने नहीं देना चाहती जबकि आंदोलनकारी अपनी मांग रखने मार्च करते हुए दिल्ली पहुँचना चाहते हैं।
क्या चाहते हैं किसान
2020-21 में भी लगभग 13 माह किसानों ने तीन कृषि कानून को को रद्द करवाने और एमएसपी गारंटी कानून लाने के लिए शांतिपूर्वक हजारों की संख्या में आंदोलन किया था, इसके बाद सरकार ने तीन कृषि कानून रद्द कर एमएसपी लागू करने का वादा भी किया था। इस आंदोलन में 700 किसानों की मौत हुई थी, जिस पर सरकार की तरफ से एक भी बयान जारी नहीं किया गया। लेकिन ढाई वर्ष गुजर जाने के बाद सरकार ने इस पर कभी कोई बात नहीं की न ही कानून लाने का विचार ही किया। इस बात से नाराज किसान लोकसभा चुनाव से ठीक पहले 23 फसलों पर एमएसपी की अपनी मांगों की याद दिलाने के लिए फिर से दिल्ली चलो के आंदोलन शुरू किया।
लेकिन हरियाणा सरकार ने किसान आंदोलन के शुरू होते ही हरियाणा-दिल्ली शंभू बार्डर पर किसानों को रोक दिया, रोकने के लिए सीमा पर कीलें, तार, दीवार की सात बेरिकेडिंग की गई ताकि किसान किसी भी तरह इसे पार न कर सके। इस व्यवस्था को देखकर यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि इस आंदोलन से सरकार कितनी भयभीत है।
सरकार का रवैय्या
हरियाणा सरकार हो या केंद्र की सरकारें, भाषणों और वादों में खुद को किसान हितैषी बताती हैं। अनेक किसान हित की योजनाएँ लागू करती हैं।
प्रधान मंत्री ने किसान सम्मान निधि योजना किसानों के लिए लाई गई है, जिसमें मात्र 2000/- की तीन किस्त (वर्ष भर में 6000/-) किसानों के खाते में जाएगी। किसान के सम्मान की कीमत मात्र 2000/- है। इस राशि से न खाद आ पाएगा, न सिंचाई की लागत ही निकल पाएगी न ही बीज खरीदा जा सकेगा।
किसान को लगातार खाद जिसमें यूरिया, डीएपी की जरूरत होती है, कमी के चलते भी परेशान होना पड़ रहा है। सुबह से शाम तक कतार में लगाने के बाद भी खाद नहीं मिल पा रहा है। किसान सरकारी दुकानों में खाद की अनुलब्धता के कारण खुले बाजार से खरीदने को विवश हैं। इसके लिए उन्हें कर्ज लेना पड़ता है और फसल का यदि सही दाम नहीं मिल पाया या प्राकृतिक नुकसान हुआ तो कर्ज के बोझ के चलते आत्महत्या ही एकमात्र रास्ता बचता है। किसान हफ्तों तक एक-एक बोरी डीएपी खाद के लिए सोसाइटी, पीसीएफ केन्द्रों के चक्कर लगाते रहते हैं।
सरकार लगातार खाद की उपलब्धता और कीमत में छूट लेकर भ्रामक जानकारी देते रहती है।
सरकार यदि इतनी उदार है तो किसानों की आत्महत्या को रोकती क्यों नहीं
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के मुताबिक हर दिन 19 किसान आत्महत्या करते हैं। एक्सीडेंटल डैथस एंड स्यूसाइड्सइन इंडिया 2022 के अनुसार वर्ष 2021 में 10881 किसान और खेती से जुड़े मजदूरों ने, 2022 में 11290 किसानों ने आत्महत्या की। महाराष्ट्र में 4248 ने आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए थे। वर्ष 2023 में महाराष्ट्र के आठ जिलों में 1088 किसानों ने आत्महत्या की, जो 2022 में दर्ज आत्महत्या की संख्या से 65 अधिक है। (मराठवाड़ा संभागीय आयुक्त से प्राप्त जानकारी के अनुसार) इसी तरह कर्नाटक में 2,392 और आंध्र प्रदेश में 917 किसानों ने आत्महत्या की।
एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार अन्य राज्यों में उत्तर प्रदेश और छतीसगढ़ में क्रमश: 42.13 प्रतिशत और 31.65 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई।
आत्महत्या का कारण किसानों की फसलों को भारी नुकसान, मौसम की मार, खाद की कीमत में बेतहाशा वृद्धि, मंडी में समय से फसल का नहीं बिकना, जिसके कारण खेती की लागत वसूल नहीं हो पाती और और लगातार कर्ज के दबाव में रहना पड़ता है।
खेती के जुड़े सभी सामानों की कीमत में लगातार वृद्धि हो रही है और किसानों को पहले वाले एमएसपी की कीमत पर अपनी फसल बेचना पड़ रहा है। जिसके कारण उनके हाथ कुछ भी हासिल नहीं आ पा रहा है।
यदि सरकार किसानों की शुभचिंतक होती और उनके प्रति संवेदनशील होती तो किसानों को सड़क पर आकर आंदोलन करने की जरूरत कभी न होती।