डॉ.राममनोहर लोहिया कहते थे कि ‘राजनीति अल्पकालिक धर्म है और धर्म दीर्घकालिक की राजनीति है’, अगर इसे एक विश्लेषित किया जाय तो पाएंगे कि इसमें चालीस साल पहले से भी अधिक समय से भारत की समस्त राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र-बिंदु सिर्फ धर्म ही बना हुआ है। वर्तमान सरकार ने हमारे देश के 140 करोड़ लोगों के लिए ऐसा कोई भी काम नहीं किया है कि लोग इन्हें चुनाव में वोट दें। हाँ कुछ मुठ्ठीभर पूंजीपतियों के लिए अवश्य सभी नियमों और कानूनों को ताक पर रखकर दिल खोलकर देश की संपत्ति सौंप रहे हैं और आए दिन धर्म की आड़ में अधर्म का खेल चल रहा है।
भारत में पिछले कुछ सालों से धर्म को लेकर जो राजनीतिक गतिविधियां चल रही हैं, उन्हें देखते हुए मुझे विवेकानंद के शिकागो का विश्व धर्मसभा का ऐतिहासिक भाषण बरबस याद आ रहा है। उन्होंने अपने पांच मिनट के संक्षिप्त भाषण की शुरुआत ही ‘मेरे अमेरिका के भाइयों और बहनों’ से की। शुरुआत के इन छह शब्दों के सम्बोधन के बाद पूरे सम्मेलन में तालियों की गड़गड़ाहट ही सुनाई दी, जो उनके हरेक वाक्य पर गूँजती रही।
उसके बाद उन्होंने कहा कि, ‘धर्म, पंथ और संप्रदायों के आपसी अहंकारों की वजह से, इस दुनिया में अनेक बार खूनखराबा हुआ। मानवीय सभ्यता के विनाश का यही कारण बना। जिसके चलते कई समृद्ध देश नष्ट हो गए। गौर करने वाली बात है कि विश्व की सबसे समृद्ध भाषा संस्कृत में ‘EXCLUSION’ शब्द का मतलब किसी को संपूर्ण रूप से बहिष्कृत करना है। यह शब्द संसार की किसी भी भाषा या संस्कृति तथा धर्म में नहीं रहना चाहिए।
सुबह सम्मेलन के उद्घाटन समारोह की शुरुआत करते हुए, विश्व के प्रमुख दस धर्मों की याद में जो घंटानाद हुआ, उसका अर्थ उन्होने अपने भाषण में जो बताया उसका परिणाम अद्भुत था। सिर्फ अपने पांच मिनट के भाषण को समाप्त करने के बाद विवेकानंद ने पाया कि हॉल में उपस्थित सभी लोगों ने खडे होकर दो मिनट तक तालियाँ बजाईं। उनके एक भाषण के बाद उनके नाम और व्यक्तित्व की चारों ओर चर्चा होने लगी। उन्होने जोरदार शब्दों में कहा था ‘यह सर्वधर्म सम्मेलन, धर्मों के पागलपन की मृत्युघंटा है। तलवार तथा कलम की मदद से मनुष्यों पर किए जा रहे, सभी तरह के अत्याचारों का अंतिम क्षण नजदीक आ चुका है।‘ उनकी वैचारिकी से उनकी ख्याति दिनों-दिन बढ़ती ही रही है और उनके जन्म के 161 वर्ष बाद भी कायम है।
हालांकि शिकागो में दिये गए भाषण के मूल अर्थ को अनदेखा करते हुए उनके नाम पर कुछ लोगों ने अदृश्य रूप से इसका पेटेंट करवा लिया है। वे लोग स्वामी विवेकानंद के भाषण और विचारों के विपरीत धर्म का उपयोग अपनी टुच्ची राजनीतिक भूख के लिए कलम और तलवार से नहीं बल्कि संचारक्रांति से कर रहे हैं। उसका पूरा दुरुपयोग करते हुए संपूर्ण देश में धर्म के नाम पर पाखंड करते नज़र आ रहे हैं।
इन पाखंडियों ने भले विवेकानंद के पदचिन्हों पर चलने का दावा किया हो लेकिन उनके भाषण को अपनी सुविधानुसार काट-छांट करते हुए इस्तेमाल करने की शुरूआत कर दी है। अब पिछले चालीस सालों से उन्होंने त्रेतायुगीन भगवान श्रीराम के आड़ में, सत्ता में आने के बाद अपने किए गुनाहों से ध्यान भटकाने के लिए 32 साल पहले अयोध्या स्थित मस्जिद को ध्वस्त कर उस जगह पर भगवान श्रीराम के आधे-अधूरे मंदिर में उनकी मूर्ति की स्थापना करने का ऐलान चुनाव से पहले 22 जनवरी को किया है।
इस ऐलान की शत-प्रतिशत राजनीतिक लालसा को देखते हुए हिंदू धर्म के चारों प्रमुख शंकराचार्यों ने बहिष्कार करने की घोषणा कर दी है। इस तरह बहिष्कार की घोषणा इन पाखंडियों के मुंह पर एक झन्नाटेदार तमाचा है लेकिन सत्ता के मद में यह लोग इतने पागल हो चुके हैं कि किसी बात की कोई परवाह करते दिख नहीं रहे हैं।
इन लोगों ने केवल राम से लेकर ही नहीं, बल्कि रामकृष्ण परमहंस तक अपने सभी आदर्शों की अवहेलना की है। पिछले चालीस साल से अधिक समय से इन लोगों का उद्देश्य सिर्फ धार्मिक ध्रुवीकरण करते हुए पूरे देश में भय पैदा करने, सांप्रदायिक दंगे करवाने तथा आतंकवादी घटनाओं के साथ-साथ राम मंदिर शिलान्यास द्वारा धार्मिक उन्माद फैलाना रह गया है। इन्होंने किसी के पहनावे तो किसी के खान-पान को देखते हुए लोगों को घेरकर मारना शुरू कर दिया है, जिसे अंग्रेजी में ‘MOBLYNCHING’ कहते हैं।
यह बात, आज भारत से लेकर विश्व के सभी देशों में धर्मों को लेकर चल रही राजनीति पर लागू है। कुछ भटके हुए लोगों को तात्कालिक रूप से भले ही इस बात से अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को तृप्त करने का शार्टकट मिल गया हो लेकिन वे हिंदू धर्म को भी बहुत बड़ा नुकसान पहुंचा रहे हैं। डॉ राममनोहर लोहिया ने अपनी ‘हिंदू बनाम हिंदू’ नामक किताब में बहुत ही अच्छी तरह इस बात का उल्लेख किया है। डाक्टर राममनोहर लोहिया की भाषा में कहूँ तो ‘हिंदू बनाम हिंदू’ को ही आपस में लड़ा कर, खत्म करने की साजिश, वर्तमान समय में चल रही है।