भारत की अधिकांश आबादी आज भी गांवों में बसती है। ग्रामीण भारत के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में प्राचीन भारतीय संस्कृति के विभिन्न रूपों में देखा जा सकता है। एक वक़्त था जब भारत को गांवों का देश कहा जाता था मगर शहरीकरण ने गांवों को अपने आगोश में तेजी से लिया है। बावजूद इसके आज भी ग्रामीण भारत का वजूद कायम है। या यूं कह लें कि भारत अभी तक गांवों में ही परिलक्षित होता आया है। विकासशील भारत में शहरीकरण व औद्योगिकीकरण ने गांवों को जितनी तेजी से निगला है यह तय कर पाना थोड़ा मुश्किल है कि आधुनिक भारत में गांवों का भविष्य क्या होगा लेकिन आज भी भारत का अतीत और वर्तमान गांव ही है। देश की बड़ी आबादी का निवास इन्ही सुदूरवर्ती गावों में है, इस वजह से मीडिया संस्थान और समाचार पत्रों के द्वारा ग्रामीण आबादी, अर्थव्यवस्था और प्रवृत्तियों के अनुसार योजनाएं बनायी जा रही हैं। ग्रामीण भारत में साक्षरता, शिक्षा एवं जागरूकता के बढ़ते स्तर के साथ ही समाचार पत्रों की पहुंच में भी काफी बढ़ोत्तरी हुई है। गांव तक विकास की किरण पहुंचाने के लिए मीडिया और समाचार पत्र बड़े माध्यम साबित हुए हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि ग्रामीण पहुंच के लिए बाजार ने मीडिया और समाचार पत्रों का सहारा लिया। अगर देखा जाए तो ग्रामीण आर्थिकी ने भी पत्रकारिता को अपनी तरफ बहुत ज्यादा आकर्षित किया है, जिस वजह से बीट, प्रखण्ड, तहसील व जिला स्तर पर समाचार पत्रों के ब्यूरो के साथ संस्करण बढ़े हैं।
[bs-quote quote=”आजादी के बाद पत्रकारिता जगत के सामने तमाम चुनौतिया आयी हैं, जिससे पत्रकारिता के उद्देश्य में भी बदलाव आया है। ग्रामीण पत्रकारिता सदैव ही सीमित संसाधनों के साथ विभिन्न चुनौतियों से भरा रहा है। सबसे बड़ी चुनौती अनियमित तनख्वाह है। ईमानदारी से कार्य करने वाले ग्रामीण पत्रकारों को कई बार दो वक्त का भोजना जुटा पाना भी मुश्किल हो जाता है, यही वजह है कि ग्रामीण अंचल में जो भी पत्रकारिता से जुड़ा है उसकी कोशिश रहती है कि उसके पास आमदनी का दूसरा जरिया रहे ताकि उसके परिवार का खर्च आसानी से चल सके। सुरक्षा एक महत्वपूर्ण विषय है जो ग्रामीण पत्रकारिता की चुनौतियों को बढ़ा देता है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
मीडिया को देश का चौथा स्तम्भ माना जाता है। मीडिया ने हमेशा ही आम आदमी के हक-हकूक की आवाज बुलन्द करने का काम आजादी से पहले और बाद में भी किया है। अगर दूसरे शब्दों में कहें तो पत्रकारिता सामाजिक जागरूकता का हथियार है। मीडिया ने सदैव ही सरकार, प्रशासन और आमजन के बीच सेतु बनने का काम किया है। पत्रकारिता चुनौतीपूर्ण कार्य है परन्तु ग्रामीण पत्रकारिता अन्तहीन चुनौतीपूर्ण व दुरूह कार्य है। सीमित संसाधनों के साथ कर्मनिष्ठा के रथ पर सवार होकर ग्रामीण पत्रकारिता आगे बढ़ती है। सुदूर ग्रामीण इलाकों से समाचार/फोटो संकल कर उसे ब्यूरो कार्यालय तक पहुंचाना उतना सरल नहीं होता। इसके लिए ग्रामीण पत्रकार को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
आजादी के बाद पत्रकारिता जगत के सामने तमाम चुनौतिया आयी हैं, जिससे पत्रकारिता के उद्देश्य में भी बदलाव आया है। ग्रामीण पत्रकारिता सदैव ही सीमित संसाधनों के साथ विभिन्न चुनौतियों से भरा रहा है। सबसे बड़ी चुनौती अनियमित तनख्वाह है। ईमानदारी से कार्य करने वाले ग्रामीण पत्रकारों को कई बार दो वक्त का भोजना जुटा पाना भी मुश्किल हो जाता है, यही वजह है कि ग्रामीण अंचल में जो भी पत्रकारिता से जुड़ा है उसकी कोशिश रहती है कि उसके पास आमदनी का दूसरा जरिया रहे ताकि उसके परिवार का खर्च आसानी से चल सके। सुरक्षा एक महत्वपूर्ण विषय है जो ग्रामीण पत्रकारिता की चुनौतियों को बढ़ा देता है। पत्रकारों को विभिन्न तरह से स्थानीय राजनीतिक दबाव का भी खूब सामना करना पड़ा है। भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले मुद्दों पर खबर प्रकाशित करने पर ग्रामीण पत्रकारों को बहुत अनुचित दबाव का सामना करना पड़ता है। जब व्यक्ति राजनीति से जुड़ा हो और उस पर भ्रष्टाचार के मामले हों तब खबर करना ज्यादा खतरनाक हो जाता है। कई बार तो पत्रकारों को नुकसान पहुंचाने, जान से मारने की धमकियां मिलने लगती हैं। आर्थिक आभाव के साथ जोखिम की स्थिति में कई बार पत्रकारों को इनके खिलाफ खबर न लिखना ही मुनासिब लगता है। इन सबके बावजूद अगर पत्रकार सच की आवाज बुलन्द करने पर अमादा हो जाता है तो उसे किसी भी हाल में खत्म करने पर दबंग उतारू हो जाते हैं जिसका परिणाम उत्तर प्रदेश के शाजहांपुर में स्वतंत्र पत्रकार जगेन्द्र सिंह की हत्या जैसे अनेक उदाहरण हैं।
[bs-quote quote=”ग्रामीण पत्रकारिता के सामने अनेक चुनौतियां हैं, बावजूद इसके ग्रामीण पत्रकार अपनी पूरी क्षमता और उर्जा के साथ समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, अशिक्षा सहित आम जन की आवाज को उठाता रहता है। ग्रामीण अंचल में विकास की खातिर वह जूझता है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
विचारणीय प्रश्न है कि अगर पत्रकार खुद सुरक्षित नहीं रहेंगे तो आमजन की समस्याओं को कौन जुबान देगा? आजादी के 70 साल का वक्त बीत जाने के बाद भी लोकतंत्र का पहरूवा आज खुद की पहरेदारी करने में असमर्थ नजर आ रहा है। सच की आवाज को कहीं सत्ता के बल पर तो कहीं ताकत के बल पर दबाने को प्रयास किया जाता रहा है। सत्ता और पद पर विराजमान लोगों के अन्दर आलोचना सुनने की शक्ति दिन-ब-दिन कम होती जा रही है, अपने विरोध में उठने वाली हर आवाज को कुचल देना चाहते हैं चाहे वो सही क्यों ना हो? पत्रकारों ने हमेशा ही गलत कामों के खिलाफ आवाज बुलन्द करने का काम किया है चाहे वह सरकार की गलत नीतियां रहीं हो या भ्रष्टाचार सहित दूसरे मुद्दे। सामाजिक आन्दोलनों को बल देने का काम भी मीडिया ने खूब किया है। कुछ एक घटनाओं को छोड़ दिया जाए तो पत्रकारिता ने आम आदमी के सवालों को बहुत दमदारी से उठाने का काम किया। ग्रामीण पत्रकारों ने तो लगातार मूलभूत समस्याओं को उठाया है। सड़क, नाली हो, गांव, गली-मुहल्ले की समस्या हो या शिक्षा, सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दे हों सबको पूरी शिद्दत से उठाकर हल कराने का प्रयास ग्रामीण पत्रकार करता रहा है। आंचलिक समस्याओं पर ग्रामीण पत्रकार सदैव ही जूझता नजर आता है। जनसरोकार और जोर-जुल्म के खिलाफ पत्रकारों की कलम चली है। पत्रकारों का एक ही मकसद रहा है सच की आवाज को बुलन्द करना, चाहे उसके लिए कितनी बड़ी कुर्बानी क्यों न देनी पड़े, देते आये हैं और देते रहेंगे।
ग्रामीण पत्रकारिता के सामने अनेक चुनौतियां हैं, बावजूद इसके ग्रामीण पत्रकार अपनी पूरी क्षमता और उर्जा के साथ समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, अशिक्षा सहित आम जन की आवाज को उठाता रहता है। ग्रामीण अंचल में विकास की खातिर वह जूझता है। समाज में व्याप्त कुरीतियों, बुराइयों के खिलाफ जनजागरण करके वह लोगों को सजग करता है। कम तनख्वाह, सीमित संसाधन, जोखिम भरे पेशे के साथ न्याय करना बहुत कठिन है फिर भी वह अपनी निष्पक्ष व सकारात्मक भूमि के प्रति सदैव चौकन्ना दिखता है। आज जरूरत है ग्रामीण पत्रकार को आर्थिक रूप से स्वावलम्बी बनाने की ताकि जब वह रिपोर्टिंग के लिए निकले तो उसके सामने परिवार को पालने की चिंता न हो। शासन और प्रशासन को पत्रकारों की सुरक्षा के बारे में गम्भीरता से सोचना होगा। पत्रकारों पर होते हमले को देखते हुए समूचे देश में ‘प्रेस प्रोटेक्शन एक्ट’ बनाए जाने की जरूरत है।
लेखक चंदौली निवासी स्तम्भकार एवं स्वतंत्र पत्रकार हैं।