लखनऊ। राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 7 अगस्त, 1990 को मंडल कमीशन लागू करने की घोषणा कर क्षत्रिय वर्ग के न्यायिक चरित्र का उत्कृष्ट परिचय दिया। भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता लौटन राम निषाद ने कहा कि वीपी सिंह ने सामाजिक न्याय के मसीहा के रूप में अपना नाम दर्ज कराया है। उन्होंने भारत सरकार से मण्डल मसीहा वीपी सिंह को भारत रत्न देने एवं संसद भवन परिसर में उनकी आदमकद प्रतिमा स्थापित कराने की माँग की है। उन्होंने बताया कि शरद यादव, रामविलास पासवान, अजित सिंह, जार्ज फर्नान्डिस, मधु दंडवते, सुबोधकांत सहाय आदि की सदन के अंदर धारदार बहसों व सड़क पर लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान जैसे नेताओं के संघर्षो की परिणति वीपी सिंह द्वारा पिछड़ोत्थान के लिए ऐतिहासिक, साहसिक व अविस्मरणीय फैसले के रूप में हुई।
वीपी सिंह के वक्तव्य जनमानस पर आज भी अंकित हैं। उन्होंने कहा कि हमने मंडल रूपी बच्चा माँ के पेट से बाहर निकाल दिया है, अब कोई माई का लाल इसे माँ के पेट में वापस नहीं डाल सकता। यह बच्चा अब प्रगति ही करेगा। मंडल से राजनीति का व्याकरण बदल गया और वंचित समाज में एक चेतना आई है। पिछड़ों के उन्नायक वीपी सिंह ने अपनी जातीय सीमा खारिज करते हुए बुद्ध की परम्परा का निर्वहन कर इस देश के अंदर लगातार बढ़ती जा रही विषमता की खाई को पाटने हेतु कमीशन की रपट को लागू करने का साहसिक, ऐतिहासिक व सराहनीय कदम उठाकर यह स्पष्ट संदेश दिया कि इच्छाशक्ति हो व नीयत में कोई खोट न हो, तो मिली-जुली सरकार भी कुर्बानी की क़ीमत पर बड़े फैसले ले सकती है। यह आरोप नहीं लगाना चाहिए कि मंडल सफल हुआ या विफल, क्योंकि पंचायत से लेकर पार्लियामेंट तक का सामजिक सरोकार देखें तो वह बदल रहा है।
लौटन राम निषाद ने समाजशास्त्री गेल ऑम्वेट के उस कथन का जिक्र भी किया जिसमें उन्होंने कहा था कि, ’90 के मंडल आंदोलन के बाद भारत में कोई बड़ा आंदोलन नहीं हुआ’। उस दौर की राजनीति के भविष्य पर होने वाले असर को लेकर विश्वनाथ प्रताप सिंह का मानना था कि भारत की राजनीति में आज जो हो रहा है, उसका कारण सदियों से हाशिये पर रखे गये लोगों में उनके अधिकारों के प्रति जागृति आना है। ।