केंद्र सरकार की वन नेशन, वन इलेक्शन योजना के खिलाफ तमिलनाडु सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। एम. के. स्टालिन की सरकार ने इसके खिलाफ विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित किया है जिसमें वन नेशन, वन इलेक्शन को लागू नहीं करने का अनुरोध करते हुए कहा गया है, “एक राष्ट्र, एक चुनाव’ लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के खिलाफ है। एक राष्ट्र, एक चुनाव का सिद्धांत लोकतंत्र के आधार के खिलाफ है, अव्यावहारिक है और भारत के संविधान में निहित नहीं है।”
प्रस्ताव में आगे कहा गया है कि “वर्तमान में भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में स्थानीय निकायों, राज्य विधानसभाओं और संसद के चुनाव जन-केंद्रित मुद्दों के आधार पर अलग-अलग समय पर होते हैं और प्रस्तावित नीति इस विचार के खिलाफ है।“
मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने विधानसभा में दो प्रस्ताव पेश करते हुए कहा, ”सबसे पहले, ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ नीति एक खतरनाक, निरंकुश विचार है और इसका विरोध करने की जरूरत है। दूसरा, जनसंख्या के आधार पर परिसीमन प्रक्रिया के नाम पर तमिलनाडु का प्रतिनिधित्व (संसद में) कम करने के इरादे से साजिश की जा रही है। हमें एक स्वर में दोनों का विरोध करना होगा”
उन्होंने कहा कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ नीति अव्यावहारिक थी और भारतीय संविधान के बुनियादी सिद्धांतों और संविधान में निहित ‘स्वतंत्र और निष्पक्ष’ चुनावों के भी खिलाफ थी।
उन्होंने पूछा कि “यदि चुनाव एक ही समय पर होते हैं, तो इससे लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित राज्य विधानसभाओं को उनका कार्यकाल पूरा होने से पहले भंग करना होगा और यह भारतीय संविधान के खिलाफ होगा। अगर केंद्र सरकार अपना बहुमत खो देती है, तो क्या वे सभी राज्य विधानसभाओं को भंग कर देंगे और पूरे भारत में एक साथ चुनाव कराएंगे? अगर उन राज्यों में ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है जहां राज्य सरकार गिर जाती है, तो क्या केंद्र सरकार में सत्ता में बैठे लोग चुनाव कराने के लिए आगे आएंगे? क्या इससे अधिक हास्यास्पद कुछ और है? सिर्फ लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव ही नहीं क्या स्थानीय निकायों के चुनाव भी एक साथ कराना संभव है?”
स्टालिन ने कहा कि स्थानीय निकाय राज्य सरकारों के कंट्रोल में हैं और यह कहना संघवाद के सिद्धांतों के खिलाफ है कि स्थानीय निकायों के चुनाव भी एक साथ होंगे। उन्होंने कहा कि राज्य के अधिकारों, संघवाद और इसमें निहित समान अवसरों के हित में किसी को भी केंद्र में सत्ता में बैठे लोगों के स्वार्थ के लिए भारतीय संविधान में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
स्टालिन ने यह भी कहा कि 2026 के बाद परिसीमन प्रक्रिया दक्षिणी राज्यों और विशेष रूप से तमिलनाडु के प्रतिनिधित्व को कम करने की एक साजिश थी और इसे शुरुआत में ही खत्म किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि “परिसीमन तमिलनाडु के सिर पर लटकी हुई तलवार है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 88 और 170 के अनुसार, राज्य विधानसभाओं और लोकसभा में जनसंख्या के आधार पर नए निर्वाचन क्षेत्र बनाए जाते हैं। परिसीमन अधिनियम के अनुसार निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाएं पहले से ही फिर से निर्धारित की गई हैं। केंद्र ने 1952, 1962, 1972 और 2002 में परिसीमन आयोग की स्थापना की है। भारत में, 1976 तक, प्रत्येक जनसंख्या जनगणना के बाद, विधानसभाओं और लोकसभा और राज्यसभा में परिसीमन किया गया है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि जनसंख्या की गिनती के आधार पर राज्यों के लोकतांत्रिक अधिकार नष्ट न हों, 42वां संशोधन लागू किया गया। केंद्र सरकार ने 2001 की जनसंख्या जनगणना के साथ परिसीमन प्रक्रिया रोक दी थी। एक आश्वासन दिया गया था कि सीटों की संख्या 2026 तक नहीं बदलेगी और 2026 के बाद, राज्य विधानसभाओं और लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों को 2026 की जनगणना के अनुसार बदल दिया जाएगा।”
उन्होंने बताया कि बिहार और तमिलनाडु की जनसंख्या तुलनीय है और दोनों राज्यों में सीटों की संख्या समान है, लेकिन आज बिहार की जनसंख्या तमिलनाडु की तुलना में 1.5 गुना बढ़ गई है, जिससे इसकी सीटों की संख्या में बढ़ोतरी होगी।
उन्होंने कहा “केंद्र सरकार की योजना के अनुसार, तमिलनाडु में सीटों की संख्या आनुपातिक रूप से घट जाएगी। तमिलनाडु में, 39 लोकसभा सीटें हैं, अगर 2026 के बाद परिसीमन हुआ तो तमिलनाडु में सीटों की संख्या कम हो जाएगी। 39 लोकसभा सीटों के साथ भी हम केंद्र सरकार से गुहार लगा रहे हैं। अगर सीटों की संख्या और कम हुई तो तमिलनाडु अपना हक खो देगा और पिछड़ जाएगा। इसलिए हम अनुरोध करते हैं कि जनसंख्या बढ़ोतरी के आधार पर किसी भी परिस्थिति में सीटों की संख्या में बदलाव नहीं किया जाना चाहिए। इससे तमिलनाडु और दक्षिणी राज्य कमजोर हो जायेंगे। जब जनसंख्या के आधार पर राजस्व बंटवारे की बात आती है तो तमिलनाडु और दक्षिणी राज्य इस तरह के भेदभाव को महसूस करते हैं।“
एआईएडीएमके ने परिसीमन प्रक्रिया के खिलाफ प्रस्ताव को अपना समर्थन देते हुए तर्क दिया कि उसने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ नीति पर विचार करने के लिए गठित समिति के सामने अपने विचार रखे थे और अनुरोध किया था कि इस नीति को अगले 10 वर्षों तक नहीं लाया जाए। कांग्रेस, विदुथलाई चिरुथिगल काची, सीपीआई, सीपीआई (एम), कोंगुनाडु मक्कल देसिया काची, तमिलागा वाल्वुरिमई काची और मनिथानेया मक्कल काची ने भी दो प्रस्तावों का समर्थन किया।
भाजपा विधायक वनाथी श्रीनिवासन ने कहा कि उन्होंने सदन में उठाई गई चिंताओं को शेयर किया, लेकिन कहा कि केंद्र सरकार ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के संबंध में विभिन्न विचारों को प्रसारित करने के लिए पहले ही एक समिति का गठन कर दिया है और सरकार से अनुरोध किया है कि वह अब इस नीति की निराधार भय पर प्रतिक्रिया न दे।
(‘द हिंदू’ में प्रकाशित खबर पर आधारित।)