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जौनपुर : क्या तबाही का सबब बनने वाला है गोमती रिवर फ्रंट

पुराने शहरों के नए विकास ने अनेक पुराने और हेरिटेज शहरों के स्वरूप को तहस-नहस कर दिया है। इसका एक बड़ा उदहारण बनारस है जो लगातार अपना पुराना स्वरूप खो रहा है। इसी तरह रिवरफ्रंट्स ने भी नदियों के स्वरूप और बहाव को कई विपरीतताओं से जोड़ दिया है। जौनपुर में गोमती रिवर फ्रंट के निर्माण से भी कई सवाल उठने लगे हैं कि क्या इससे शहर का पर्यावरण सुरक्षित रह पायेगा? जौनपुर से वरिष्ठ पत्रकार आनंद देव गोमती रिवर फ्रंट को लेकर खतरे की उठती आशंकाओं की रिपोर्ट कर रहे हैं।

गोमती नदी का किनारा- एक शांत सौंदर्य का प्रतीक, जो वर्षों से जौनपुर के दिल में अपनी जगह बनाए हुए है। ऐतिहासिक शाही पुल और सद्भावना पुल के बीच गोमती रिवर फ्रंट परियोजना को लखनऊ की तरह सजाने-संवारने का प्रयास अब अंतिम चरण में है। सद्भावना पुल से लेकर हनुमान घाट तक 650 मीटर लंबाई में निर्माण हो चुका है और अब शास्त्री पुल तक इसे विस्तार देने की योजना है। जौनपुर में इसे लेकर विकास के बड़े सपने दिखाए गए हैं, जिनमें पर्यटन को बढ़ावा देना, सुंदरीकरण करना, और आधुनिकता का दावा शामिल है। लेकिन इस विकास की चमक-धमक के पीछे नदी और उससे जुड़े पर्यावरण का क्या हाल होगा, यह सवाल अनुत्तरित है।

शाही पुल : इतिहास का दस्तावेज़ को अनदेखा कर रहा है बुलडोजर 

जौनपुर शहर की पहचान जिन ऐतिहासिक धरोहरों से होती है, उनमें शाही पुल का नाम प्रमुख है। मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में बने इस पुल को न केवल यातायात के लिहाज से, बल्कि जौनपुर की सांस्कृतिक धरोहर के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। इस पुल में 16 ताखे हैं, जिनके अंदर से गोमती नदी का पानी बहता है। इन ताखों का महत्व सिर्फ इतना ही नहीं है कि ये एक पुल के ढांचे का हिस्सा हैं;  ये उस दौर के जल प्रबंधन और नदी की स्वतंत्र धारा को सुरक्षित रखने की समझ को भी दर्शाते हैं। परंतु अब रिवर फ्रंट परियोजना के चलते शाही पुल के आठ ताखों को अवरुद्ध कर दिया गया है। अगर यही हाल रहा, तो किसी बाढ़ की स्थिति में पानी का निकलना मुश्किल होगा और जौनपुर शहर की सड़कों पर पानी का रेला उतर आएगा

काज़ी फरीद आलम

गोमती का सौंदर्य या विनाश : रिवर फ्रंट परियोजना के तहत क्या हो रहा है

रिवर फ्रंट परियोजना के तहत सद्भावना पुल से लेकर हनुमान घाट के आगे बजरंग घाट तक का हिस्सा आकर्षक बनाने की कोशिश की जा रही है। इस परियोजना का मूल उद्देश्य लखनऊ की तरह जौनपुर में भी पर्यटकों को लुभाना है। इसी सोच के तहत गोपी घाट को काशी की तर्ज पर पक्का किया गया है। किनारे को छोड़कर नदी के बीच में जाकर पक्के घाटों का निर्माण किया गया है, जो नदी के प्राकृतिक प्रवाह में हस्तक्षेप कर रहा है। अब प्रस्ताव है कि शास्त्री पुल तक इसे और बढ़ाया जाए, जिससे नदी की धारा के एक और हिस्से पर पक्के निर्माण का खतरा मंडराने लगा है। सवाल यह है कि क्या वास्तव में इस सौंदर्यीकरण के नाम पर नदी को बंधक बना दिया जाएगा?

पर्यावरणीय दृष्टि से खतरे की घंटी : एनजीटी के निर्देशों का उल्लंघन 

विकास के इस मॉडल में पर्यावरण और नदी के अस्तित्व के प्रति प्रशासनिक स्तर पर न तो संवेदनशीलता है और न ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण। शाही पुल के आठ ताखों को बंद कर दिया गया है, जिससे बाढ़ के समय नदी का पानी निकलने में कठिनाई होगी। इन ताखों के पीछे भी गोमती का पानी उसी धारा में बहता रहा है, जो एक पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा है। विशेषज्ञों के अनुसार, नदी की धाराओं को अवरुद्ध करने से जल प्रवाह कम होगा और जल जमाव की स्थिति बनेगी, जिससे आसपास की कृषि भूमि, शहर, और गांवों में जलभराव का खतरा बढ़ जाएगा।

राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए हैं कि देश में कहीं भी नदी की धारा को अवरुद्ध नहीं किया जाएगा, न ही किसी प्रकार के सौंदर्यीकरण के नाम पर नदी के क्षेत्र में हस्तक्षेप किया जाएगा। लेकिन जौनपुर में गोमती रिवर फ्रंट का निर्माण एनजीटी के इन दिशा-निर्देशों का खुला उल्लंघन है। प्रशासन इस अवैध निर्माण को अनदेखा कर रहा है, और जब कोई संगठन इस मुद्दे को उठाता है, तो उसे विकास विरोधी करार दे दिया जाता है।

जल बिरादरी उत्तर प्रदेश के संयोजक ईश्वरचंद ने कहा, ‘एनजीटी के दिशा-निर्देश साफ-साफ कहते हैं कि नदी के सौंदर्यीकरण में जलधारा से कोई छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए। अगर जिम्मेदार अफसर अब भी नहीं चेते, तो जनता को इसके खिलाफ जन आंदोलन खड़ा करना पड़ेगा। यह प्रोजेक्ट जितना चमकीला दिखता है, उतना ही विनाशकारी भी है।’

शहरीकरण के दायरे में सिमटता गोमती का अस्तित्व

जौनपुर शहर में नदी के किनारे अवैध कब्जों का सिलसिला कोई नई बात नहीं है। जैसे ही गर्मियों में गोमती का जलस्तर घटता है, लोग किनारे के हिस्से को पाटकर पक्के निर्माण कर लेते हैं। शाही पुल के दक्षिणी छोर से ऐसे अतिक्रमण साफ देखे जा सकते हैं। ऐसे में जब सद्भावना पुल से शास्त्री पुल के बीच रिवर फ्रंट परियोजना को और बढ़ाने का प्रस्ताव भेजा गया है, तो नदी के असली किनारे का क्षेत्र और अधिक सिकुड़ता जाएगा। इससे नदी के मध्य का क्षेत्र भी अतिक्रमण की जद में आ जाएगा और गोमती का प्राकृतिक स्वरूप पूरी तरह से बदल जाएगा।

पिछले साल की भीषण बाढ़ ने दिल्ली को पानी में डुबो दिया था। वहां भी नदियों के किनारों पर अतिक्रमण और जल प्रवाह में बदलाव को बाढ़ के कारणों में शामिल किया गया था। इसके बावजूद जौनपुर में प्रशासन वही गलती दोहराने पर आमादा है। अगर जौनपुर में भी बाढ़ का पानी शहर में घुसा, तो यह प्रशासन की लापरवाही का ही परिणाम होगा। जल बिरादरी के सदस्य काज़ी फरीद आलम ने चेतावनी दी, ‘विकास के नाम पर नदी के क्षेत्र में किसी भी तरह का निर्माण, एनजीटी के नियमों का उल्लंघन है। यह गंभीर खतरे का संकेत है, जिसे अनदेखा करना विनाशकारी साबित हो सकता है।’

ईश्वरचंद, संयोजक, जल बिरादरी, उत्तरप्रदेश

गोमती नदी : रिवर फ्रंट या विनाश फ्रंट 

गोमती नदी जौनपुर के लोगों के लिए केवल एक जलस्रोत नहीं है; यह उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा है। ऐतिहासिक धरोहरों, जैसे कि शाही पुल, के साथ नदी का जुड़ाव एक सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। जल बिरादरी जैसे संगठनों का कहना है कि अगर प्रशासन ने इस परियोजना पर पुनर्विचार नहीं किया, तो इसे रोकने के लिए जनता के साथ एक व्यापक आंदोलन छेड़ा जाएगा। पर्यावरणविदों का कहना है कि गोमती का संरक्षण जौनपुर शहर के भविष्य के लिए अनिवार्य है।

शास्त्री पुल तक रिवर फ्रंट के विस्तार का प्रस्ताव उस विकास की सोच का प्रतीक है, जो प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर केवल पर्यटन के नाम पर सांस्कृतिक धरोहरों को मटियामेट कर रही है। यह जरूरी है कि सरकार, प्रशासन और जनता मिलकर इस परियोजना पर पुनर्विचार करें और गोमती को उसके मूल स्वरूप में बनाए रखें। अगर विकास का मतलब पारिस्थितिकी तंत्र का विनाश है, तो यह मॉडल कहीं न कहीं जौनपुर और उसके आसपास के इलाके के लिए एक गंभीर खतरे का सबब बन सकता है।

आनंद देव
आनंद देव
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और जौनपुर में रहते हैं।

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