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सुप्रीम कोर्ट : पत्रकारिता की अभिव्यक्ति की रक्षा के संवैधानिक आदेश को कम करके न आंकें अदालतें

सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला अंतरराष्ट्रीय मीडिया समूह ब्लूमबर्ग को आपत्तिजनक लेख को हटाने वाले निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतों को दूसरा पक्ष सुने बिना किसी भी लेख पर रोक लगाने से बचना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने 22 मार्च को निचली अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें अंतरराष्ट्रीय मीडिया समूह ब्लूमबर्ग को ज़ी एंटरटेनमेंट के खिलाफ कथित रूप से आपत्तिजनक समाचार लेख हटाने का निर्देश दिया गया था। 

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए निचली अदालतों को महत्वपूर्ण निर्देश दिए। इसके साथ ही मीडिया की अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है।

कोर्ट ने कहा कि अदालतों को अपवाद वाले मामलों को छोड़कर किसी समाचार के प्रकाशन के खिलाफ एक पक्षीय निषेधाज्ञा जारी नहीं करनी चाहिए। अगर ऐसा होता है तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जानकारी प्राप्त करने के लोगों के अधिकार पर गंभीर प्रभाव देखने को मिल सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला अंतरराष्ट्रीय मीडिया समूह ब्लूमबर्ग को आपत्तिजनक लेख को हटाने वाले निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतों को दूसरा पक्ष सुने बिना किसी भी लेख पर रोक लगाने से बचना चाहिए। यदि ऐसा होगा तो दूसरे पक्ष की ओर से बचाव के लिए दी गई दलील पूर्ण रूप से असफल होगी।

पीठ ने कहा कि सुनवाई शुरू होने से पहले, अंतरिम निषेधाज्ञा जारी करने का परिणाम सार्वजनिक चर्चा को रोकना है…दूसरे शब्दों में, अदालतों को अपवाद वाले मामलों को छोड़कर एकपक्षीय निषेधाज्ञा नहीं जारी करनी चाहिए…।

पीठ ने यह कहा कि बिना जांचे ऐसा कोई आदेश जारी नहीं किया जाना चाहिए कि जिस सामग्री को हटाने का अनुरोध किया गया है वह दुर्भावनापूर्ण एवं झूठी है। दरअसल निचली अदालत ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया समूह ब्लूमबर्ग को जी एंटरटेनमेंट के खिलाफ कथित आपत्तिजनक लेख को हटाने का निर्देश दिया था। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए निचली अदालत के फैसले को रद्द कर दिया।

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल थे।

सुप्रीम कोर्ट ने ज़ी एंटरटेनमेंट को नए सिरे से निषेधाज्ञा की मांग की अपील करने के लिए निचली अदालत में नया मुकदमा दायर करने की भी स्वतंत्रता दी।

क्या है मामला

दरअसल अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थान ब्लूमबर्ग ने जी ग्रुप के ऊपर 21 फरवरी को एक लेख छापा था। खबर में इस बात का भी जिक्र था कि जी इंटरटेनमेंट के अकाउंट में 2000 करोड़ से ज्यादा की गड़बड़ी मिली है। लेख में यह दावा किया गया था कि यह पैसा अवैध तरीके से डायवर्ट किया गया है। सेबी के अधिकारियों ने शुरुआत में जितना अनुमान लगाया उससे यह आंकड़ा 10 गुना ज्यादा था। इस लेख के छपने के बाद ही ब्लूमबर्ग के खिलाफ जी ग्रुप ने मानहानि का मुकदमा दर्ज किया था और लेख में छपे दावों को खारिज किया। जी ग्रुप ने कहा कि यह लेख ग्रुप को बदनाम करने के मकसद से छापा गया है। जी ग्रुप ने इस लेख को हटाने के लिए कोर्ट में अपील की है।

निचली अदालत ने सुनाया था लेख हटाने का फैसला

बता दें कि दिल्ली की निचली अदालत ने एक मार्च को जी ग्रुप के पक्ष में फैसला सुनाया था। वहीं ब्लूमबर्ग को लेख हटाने का निर्देश दिया था। निचली अदालत के इस फैसले पर ब्लूमबर्ग ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिस पर सुनवाई करते हुए 14 मार्च को हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। अंतत: ब्लूमबर्ग ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

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