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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

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रमाकांत यादव : सामंतवाद के खिलाफ उठी आवाज सियासी गलियारे में पहुँचकर स्वयं सामंती चेहरे में बदल गई

बाहुबल का ऐसा रसूख कि पत्नी के खिलाफ जब पूर्व मुख्यमंत्री ने चुनाव लड़ा तो पूर्व मुख्यमंत्री को ना झण्डा उठाने वाले मिले, ना झण्डा लगाने की जगह मिली। आज भी हवा में फैली हुई यह बात मन को कंपा देती है कि इन्होंने चार ठाकुरों को जिंदा ही दफना दिया था, पर यह बात ना किसी कानून के पन्ने में दर्ज हुई है, ना इतिहास इसका कोई साक्ष्य देता है। लोग आज भी इस बात पर बस इतना बोलते हैं कि ‘सुना तो है पर जानते नहीं हैं कि सच्चाई क्या है?’ उत्तर प्रदेश की हर बड़ी पार्टी से मुहब्बत भी की और बगावत भी। दिग्गज राजनेता मुलायम सिंह यादव के खिलाफ भाजपा ने जब चुनाव मैदान में उतारा तो जीत के लिए मुलायम को भी लोहे के चने चबाने पड़ गए। जिस आदमी ने कभी पिता के दिखाए हुए रास्ते पर चलकर सामंतवाद के खिलाफ सामाजिक न्याय की लड़ाई शुरू की वही आगे चलकर आजमगढ़ का सामंती चेहरा बन गया। आज भी रमाकांत के खिलाफ बोलना गुनाह से कम नहीं है। RKY का स्टीकर होना ही किसी भी गलत पर पर्दा डालने के लिए काफी था। फिलहाल 2017 के बाद से रुतबे पर योगी के अंकुश का असर दिखने लगा है। 

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जुमलों के दौर में सपा का निराशाजनक घोषणापत्र, सामाजिक न्याय और डायवर्सिटी

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