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मेरे गाँव ने वतनदारी प्रथा को कब्र में गाड़कर बराबरी का जीवन अपनाया

आशालता कांबले सुप्रसिद्ध मराठी लेखिका, कवियत्री, कहानीकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। महात्मा फुले और अंबेडकरवादी साहित्य सृजन में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। वह एक कुशल वक्ता हैं जिन्होंने मराठी सामाजिक, सांस्कृतिक आंदोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। आशालता की अनेक पुस्तकें छप चुकी हैं। बहिनाबाई चौधरी, सावित्रीबाई फुले, रमाबाई, अहिल्याबाई होल्कर और कवि कुसुमाग्रज पर उनकी उल्लेखनीय किताबें हैं। अपनी माँ के जीवन पर उनकी एक किताब ‘आमची आई’ बहुत प्रसिद्ध हुई थी। इनके अलावा जनजागृति के लिए आशालता जी ने एक दर्जन से अधिक पुस्तिकाएँ लिखी हैं। पेशे से वह अध्यापिका रही हैं। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर शुरू किए जा रहे कॉलम ‘मेरा गाँव’ में उन्होंने अपने गाँव कांदलगाँव के अनुभवों को प्रस्तुत किया है। इस आलेख में कोंकण इलाके में दलितों के जीवन और उस पर डॉ अंबेडकर के प्रभावों का बहुत सघन परिचय मिलता है।

हिंसा का उत्सव जायज नहीं (डायरी 12 अक्टूबर, 2021)

आडंबर और पाखंड से कोई धर्म नहीं बचा हुआ है। या कहिए कि हर धर्म में केवल और केवल आडंबर और पाखंड ही है।...

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