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नांदेड़ : राजनीति और शासन जाति की सड़ांध से प्रेमियों को नहीं बचा सकते
इस कहानी का सबसे बुरा हिस्सा यह है कि सक्षम और आंचल के रिश्ते के बारे में परिवार में सभी जानते थे और उन्होंने उनके रिश्ते को स्वीकार करने का नाटक किया, लेकिन यह परिवार की एक चाल थी और आखिरी दिन उन्होंने सक्षम की हत्या कर दी। बात यहीं खत्म नहीं हुई, आंचल ने अपना विरोध दिखाया और सक्षम की लाश से शादी कर ली। 'सिंदूर' लगाया और मांग की कि उसके माता-पिता और भाइयों को फांसी दी जाए।
उत्तर प्रदेश : जाति की राजनीति के बहाने विपक्ष को कमजोर करने की रणनीति
उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि पुलिस रिकॉर्ड, एफआईआर और गिरफ्तारियों में जातिगत उल्लेख नहीं होगा। सार्वजनिक स्थानों से जातिसूचक स्टिकर हटाए जाएँगे और जाति-आधारित रैलियों पर रोक लगाई जाएगी। सतही तौर पर यह कदम जातिगत भेदभाव खत्म करने की दिशा में क्रांतिकारी प्रतीत होता है, लेकिन जब इसे राजनीतिक संदर्भ में देखा जाता है, तो इसके पीछे कई गहरे प्रश्न खड़े हो जाते हैं।
भारतीय गणतंत्र के केंद्रीय तनावों का समाधान है जाति जनगणना
अठाहरवीं लोकसभा चुनाव में जनता के बड़े हिस्से ने जिस तरह से सामाजिक न्याय के मुद्दे को प्रमुख प्रश्न में तब्दील किया है, उससे अब यह साफ हो गया है कि आने वाले समय में जाति जनगणना को ज्यादा देर तक रोका नहीं जा सकता। जाति जनगणना भारतीय समाज के कई तालों को खोलने वाली चाभी साबित हो सकती है।
जातिगत भेदभाव : मैं ‘जय भीम’ वालों को काम पर नहीं रखती, कहने वाली महिला के खिलाफ केस दर्ज
14 अप्रैल को कम्पनी मालिक नेहा दत्त ने युवक को व्हाट्सएप पर एक मैसेज किया था। इस मैसेज में नेहा ने युवक से पूछा था कि, 'तू जय भीम वाला है क्या' इस पर युवक ने जवाब देते हुए हामी भरी थी, इसके बाद नेहा ने उत्तर में लिखा, 'मैं जय भीम वाले को नौकरी नहीं देती हूँ।'
रसोई से विद्यालय तक फैला है जातिवाद का जहर
आज भी उच्च जाति के लोग छोटी जाति के लोगों के साथ बैठकर खाना नहीं खाते हैं। अभी भी गांव में शादी समारोह से जुड़े कामकाज में दो रसोई लगाई जाती है, जिसमें बड़ी जाति और छोटी जाति वालों के लिए अलग अलग खाने की व्यवस्था होती है। हालांकि नई पीढ़ी के लोग यह भेदभाव बहुत कम करते हैं, लेकिन फिर भी गांव की पुरानी सोच के लोग नई पीढ़ी के लोगों को यह भेदभाव करने के लिए मजबूर करते हैं।
भारत में कौन है जिसकी कहानी जाति से अलग है ….
भारत में हर व्यक्ति की कहानी जाति और उसे प्राप्त विशेषाधिकारों अथवा बहिष्करण से जुड़ी हुई है। बड़ा से बड़ा प्रगतिशील किसी न किसी रूप में जाति के लाभ और जाति की हानि से बच नहीं सकता। इसलिए यह सहज और स्वाभाविक है कि हर व्यक्ति जाति व्यवस्था से अच्छे या बुरे रूप में प्रभावित होता है। प्रसिद्ध सामाजिक चिंतक और राजनीतिक कार्यकर्ता चौधरी लौटनराम निषाद का यह आत्मकथ्य जाति-व्यवस्था की जटिल बनावट की परतों को बहुत बारीकी से खोलता है। यह जितना रोचक है उतना ही मारक भी है।

