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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

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अंदरूनी मामले कितने अंदरूनी, बाहरी आलोचनाएं कितनी बाहरी

वास्तव में यह दिन 1879 में इसी रोज शुरू हुई फ्रांसीसी क्रांति की सालगिरह के रूप में मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत इस कुख्यात जेल में बंद क्रांतिकारियों को छुड़ाने के लिए हमला कर जेल तोड़े जाने के साथ हुई थी। जाहिर है कि भारत से भी बढ़कर फ्रांस में, मानवता को 'स्वतंत्रता, समानता तथा भाईचारा' के लक्ष्य देने वाली, इस फ्रांसीसी क्रांति की सालगिरह की परेड में मुख्य अतिथि प्रधानमंत्री मोदी जैसे भाईचारा-विरोधी नेता को बनाए जाने की काफी आलोचना हुई है।

गरीबों और पटरी व्यवसायियों की अर्थव्यवस्था को आधार देता भदोही का मेला

उत्तर आधुनिकता के उभार और पूंजी के दबाव ने अकेलापन, व्यक्तिवाद और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देकर सामूहिकता और सामाजिकता के बोध को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया है। बावजूद इसके स्त्रियों का समूह में मेला देखने आने का चलन अभी ग्रामीण समाज में बचा हुआ देखना इस बात की बानगी है कि कृषि आधारित ग्रामीण बहुजन समाज में अभी पूंजी और उत्तरआधुनिकता का रंग उतना नहीं चढ़ा है और वहां सामूहिकता और सामाजिकता का भावबोध अभी भी बहुत ठोस और सघन दिखता है

सामाजिक सरोकार के झंझावात में उलझीं विधवा स्त्रियाँ

पितृसत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था में औरत का अस्तित्व उसके पति के कारण है। उसका मान-सम्मान, इज्जत, सजना-संवरना, समाज में उसकी हैसियत सभी कुछ पति से...

कुप्रथा डायन की सूली पर एक और औरत का क़त्ल, क्रूरता ऐसी की ऑंखें भी निकाल ली

बिहार। अरवल में कुछ दबंगों द्वारा एक दलित महिला को पहले लाठी-डंडे से पीटा गया। दबंगों का मन मारने पीटने से नहीं भरा तब...

गरीबी तो मिटाने दो यारो!

ये लो कर लो बात। अब क्या मोदीजी गरीबी भी नहीं मिटाएं। सीबीएसई की किताबों में से गरीबी का चैप्टर जरा-सा हटा क्या दिया‚...

स्वास्थ्य के साथ अर्थव्यवस्था के लिए भी गंभीर खतरा है दूषित भोजन

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में 600 मिलियन मामले केवल असुरक्षित भोजन और खाद्य जनित बीमारियों के कारण होते हैं। इससे लगभग प्रतिवर्ष चार लाख बीस हज़ार लोगों की मौत हो जाती है। असुरक्षित भोजन न केवल मानव स्वास्थ्य के लिए बल्कि अर्थव्यवस्था के लिए भी एक गंभीर खतरे का संकेत देता है।

मुख्तार को आजीवन कारावास, उच्च न्यायालय में फैसले को देंगे चुनौती

वाराणसी। तीन अगस्त, 1991 को लहुराबीर इलाके में हुए अवधेश राय हत्याकांड के 32 साल बाद आज वाराणसी की एमपी-एमएलए कोर्ट ने अपना फैसला...

जल संकट को लेकर खनन प्रभावित गांव के लोगों ने 13 घंटे तक किया चक्काजाम

माकपा के नेतृत्व में लोगों की नाराजगी देख एसईसीएल आया हरकत में कोरबा (छत्तीसगढ़)। बांकीमोंगरा क्षेत्र के खनन प्रभावित गांव बांकी बस्ती, मड़वाढोढा और पुरैना...

राज्य महिला आयोग के निर्देश पर दर्ज हुआ महिलाओं का बयान

जमुआ हरिराम गांव की महिलाओं से सीओ सीटी ने सुना उत्पीड़न का पूरा मामला। दो दलित महिलाओं ने कंधारपुर थाने के एसआई रतन कुमार सिंह पर आरोप लगाया कि वह खिरिया बाग आकर महिलाओं पर अभद्र टिप्पणी करते हैं।

हक़ की हर आवाज़ पर पहरेदारी है और विकास के नाम पर विस्थापन जारी है

[भव्यता के ख्वाब तले कुचले जा रहे स्वपन अब एक बड़े वर्ग की आँखों में चुभने लगे हैं। लोग दर्द में हैं और हक़ की आवाज पर सरकार की पहरेदारी है। धमकियाँ हैं। बावजूद इसके लोग अब भी लड़ रहे हैं। जब तक लोग लड़ रहे हैं तब तक उम्मीद जिंदा है। इस जिंदा उम्मीद के लिए न्याय की नियति क्या होगी, भविष्य क्या होगा, इस पर अभी तो प्रश्नवाचक का पेंडुलम वैसे ही झूल जा रहा है, जैसे समय के साथ चलने वाली घड़ी के बंद हो जाने पर उसका पेंडुलम खामोशी से झूलता रहता है और इंतजार करता रहता है कि कभी तो कोई उसकी चाभी भरकर उसे चला देगा।

बिहार की गर्म जलवायु में भी सेब की सफल खेती

बिहार के अधिकतर किसान परंपरागत खेती करते हैं। धान, गेहूं, मक्के और सब्जी की खेती के अलावा कुछ हिस्सों में मखाना, मसाले की भी खेती होती है। हालांकि महंगे बिजली, पानी, खाद-खल्ली एवं खेतिहर मजदूरों की कमी के कारण परंपरागत खेती करना उतना फायदेमंद नहीं रहा कि किसान अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिला सकें।

नई संसद के उद्घाटन का विपक्ष द्वारा बहिष्कार लोकतांत्रिक विरोध का एक रूप है

सार्वजनिक जीवन में प्रतीकों का बहुत महत्व होता है। प्रतीकों का चुनाव और प्रक्षेपण विचारधारा, संस्कृति, इतिहास, विश्वदृष्टि आदि-इत्यादि को दर्शाता है। 75 साल...

आए क्यों थे, गए किसलिए… के प्रश्नों में घिरे रहे 2000 के नोट

जितने धूम धड़ाके, आन-बान-शान और गुलाबी गरिमा के साथ 2000 रुपये के नोट प्राणवान हुए थे, उतनी ही फुस्स और अनुल्लेखनीय, निराश विदाई के...

‘आवास योजना’ के रहते कच्चे घरों में रहने को हैं मजबूर

इंदिरा आवास योजना का उद्देश्य यह है कि आर्थिक रूप से कमजोर लोग, जिनके पास रहने के लिए घर नहीं है और वह अपनी जिंदगी झुग्गियों-बस्तियों में रहकर गुजारा करते हैं। इसके अंतर्गत जिनके पास घर खरीदने के लिए भी पैसे नहीं होते हैं, ऐसे लोगों को पक्के मकान उपलब्ध कराना होता है।

‘खुशियों की सवारी’ के इंतजार में गर्भवती महिलाएं

कपकोट (उत्तराखंड)। 'खुशियों की सवारी' योजना की शुरुआत उत्तराखंड सरकार ने वर्ष 2011 में की थी। यह एक एम्बुलेंस सर्विस है जिसकी मदद से...

वाराणसी : बुनाई उद्योग को प्रभावित कर रहा है पूर्वांचल का साम्प्रदायिक विभाजन

वाराणसी। महामारी कोविड-19 के समय आर्थिक और सामाजिक अलगाव की विशेष परिस्थिति में भारत के मजदूर वर्ग में बढ़ते अनियमितीकरण से तीन तरफा मार...

दिल्ली में तानाशाही का हमला जारी है

दिल्ली। राजधानी दिल्ली के प्रशासनिक तंत्र और खासतौर पर नौकरशाही के ढांचे पर अपना सीधा नियंत्रण बनाए रखने के लिए मोदी सरकार द्वारा शुक्रवार...

स्कूल होकर भी शिक्षा की कमी

उदयपुर (राजस्थान)। शिक्षा हमारे देश की प्रगति का एक मज़बूत स्तंभ है। यही कारण है कि आज़ादी के बाद से ही सभी सरकारों ने...

इन बस्तियों में आकर बिखर जाता है स्वच्छ भारत मिशन

मुजफ्फरपुर (बिहार)। वर्तमान में केंद्र सरकार देश को स्वच्छ बनाने के लिए बड़े पैमाने पर स्वच्छ भारत-स्वस्थ भारत अभियान चला रही है। इसके लिए...

विपक्षी एकता की बिछने लगी बिसात, क्या मिलकर मोदी को दे सकेंगे मात?

कर्नाटक की जीत से उत्साहित विपक्ष क्या भाजपा के खिलाफ एक हो सकेगा? यह बड़ा सवाल है और हर पार्टी इसका उत्तर खोजने में...

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