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आरक्षण तो सवर्णों का है बहुजन तो बस भागीदारी चाहते हैं

सरकारी नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था अंग्रेजी शासनकाल के अंतिम समय में लागू हो चुकी थी लेकिन इस नीति का उद्देश्य समाज में उपेक्षित सामाजिक असमानता को दूर कर समतामूलक समाज की स्थापना के लिए नहीं था बल्कि इसकी जरूरत शासकीय सेवाओं में सांप्रदायिक असमानता दूर कर प्रतिनिधित्व प्रदान किए जाने तक ही सीमित था। लेकिन आज यह व्यवस्था पिछड़े व दलितों का संवैधानिक अधिकार है। 

सामंती दमन के खिलाफ 18 वर्ष चले मुकदमे में जीत, संघर्ष की मिसाल हैं डॉ विजय कुमार त्रिशरण

आज दलितों के ऊपर जो भी अत्याचार हो रहे हैं, उसका मूल कारण उनका आर्थिक रूप से कमजोर होना है। वर्तमान बीजेपी की सरकार के कार्यकाल में दलितों के ऊपर अत्याचार की घटनाओं में इजाफा हुआ है ।

पवार ने असमानता के लिए मनुस्मृति को बताया जिम्मेदार एवं मुंबई की अन्य खबरें

मुंबई (भाषा)।  राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के संस्थापक शरद पवार ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर निशाना साधते हुए सोमवार को कहा कि अयोध्या...

कभी भी सामाजिक न्याय के पक्षधर नहीं कहे जा सकते धर्माश्रित राजनैतिक दल

बात पुरानी है, किंतु आज भी प्रासंगिक है। 12.06.2017 को नरेन्द्र तोमर ने यह टिप्पणी की थी, ‘वे (आरएसएस और भाजपा) भारत को 2023...

उदयनिधि का ‘सनातन धर्म को मिटाओ’ आह्वान वही है जो पेरियार, अंबेडकर चाहते थे

हिंदू धर्म कोई पैगंबर-आधारित धर्म नहीं है, न ही इसकी कोई एक किताब है, न ही हिंदू शब्द पवित्र ग्रंथों का हिस्सा है। यह...

सनातन व्यवस्था में दलितों और पिछड़ों की जगह

जो व्यवस्था बराबरी की बात नहीं करेगी उस पर सवाल तो होंगे ही। उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म की सामाजिक विषमताओं को अन्यायपूर्ण गैर-बराबरी वाली...

नई बोतल में पुरानी शराब… है जाति पर भागवत का सिद्धांत

अछूत व्यवस्था लगभग पहली सदी ईस्वी में जाति व्यवस्था का अंग बनी। मनुस्मृति, जो दूसरी या तीसरी सदी में लिखी गई थी, में तत्कालीन लोक व्यवहार को संहिताबद्ध किया गया है और इससे पता चलता है कि उत्पीड़क वर्गों द्वारा पीड़ितों पर कितने घृणित प्रतिबंध और नियम लादे जाते थे।

विश्व असमानता, ग्लोबल जेंडर गैप, ग्लोबल हंगर इंडेक्स और 74वां गणतंत्र

आज 26 जनवरी है। हमारा गणतंत्र दिवस! इसी दिन 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ था, इसीलिए हम उस दिन से गणतंत्र दिवस...

तुलसी पर कोहराम तो बहाना है, मकसद मनु और गोलवलकर को बचाना है

जैसे इधर मदारी का इशारा होता है और उधर जमूरे का काम शुरू होता है, ठीक उसी तरह इधर संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत...

जातिवादी साहित्य चाहे कितना भी ललित हो उसे ज़हर की तरह त्याग दीजिये

लखनऊ। कटिंग चाय व उल्टा चश्मा से अपनी पहचान बनाने वाली यादवजी की दुल्हनिया प्रज्ञा मिश्रा का ब्राह्मण प्रेम आखिर कुलांचे मारने ही लगा।...

भारतीय राजनीति के विपरीत ध्रुव हैं अम्बेडकर और सावरकर

इंडियन एक्सप्रेस (3 दिसंबर, 2022) में प्रकाशित अपने लेख नो योर हिस्ट्री में आरएसएस नेता राम माधव लिखते हैं कि राहुल गांधी, अम्बेडकर और...

संविधान दिवस के आलोक आरक्षण की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर एक नज़र

भारत वर्ष में जाति के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था कोई नई बात नहीं है। प्राचीन काल में अल्पसंख्या वाली जाति समुदायों को बहुसंख्य...

भारत जोड़ो यात्रा की चुनावी चुनौतियां और भारतीय समाज

भारत जोड़ो यात्रा की शानदार सफलता के चलते भारतीय समाज और राजनीति से जुड़े कई मसले उभरकर सामने आए हैं। यद्यपि भारत जोड़ो यात्रा...

हिन्दू धर्म त्यागकर क्यों प्रसन्न थे डॉ. अम्बेडकर

मैं आज बहुत ही प्रफुल्लित हूं। मैं जरूरत से ज्यादा प्रसन्न हूं। मैंने जिस क्षण हिन्दू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म स्वीकार किया है, मुझे...

मनुवाद पर चौतरफा प्रहार का सही समय

सभी समाजों के स्त्री-पुरुषों के संख्यानुपात में बंटवारे के लिए वंचितों का संयुक्त मोर्चा खोला जाय तो हिन्दू उर्फ़ ब्राह्मण-धर्म की रक्षक भाजपा बहुजन आकांक्षा के सैलाब को झेल नहीं पायेगी और 2024 में तिनकों की भांति बह जाएगी। अगर हम ऐसा नहीं कर सके तो 2024 में सत्ता में आकर भाजपा वह कर देगी कि बहुजन शक्ति के स्रोतों में भागीदारी का सपना देखना छोड़ देंगे!

आरएसएस फासीवाद के खिलाफ आक्रामक होने का किया आह्वान

कोझीकोड। 24 से 29 सितंबर तक कोझिकोड केरल के शिवराम-शर्मिष्ठा हॉल (एसके पोट्टेकड़ हॉल) में आयोजित भाकपा (माले) रेड स्टार के 12वीं कांग्रेस का...

राह दिखाने के लिए संविधान ज़रूरी है या मनुस्मृति

भारत में जिस राजनैतिक व्यवस्था को हमने चुना है उसमें विधायिका कानून बनाती है, कार्यपालिका उन कानूनों के अनुरूप देश की शासन व्यवस्था का...

सावरकर देशभक्त भी हैं और देशद्रोही भी

आज कल सावरकर ज़ेरे बहस हैं, एक समूह उनका महिमामंडन कर रहा है तो दूसरा उन्हें कायर, डरपोक और भारत की आज़ादी की लड़ाई...

गीता का लेखक कौन था और उसकी जरूरत क्या थी

शूद्रों को गुमराह करने के लिए गीता का आधार थोड़ा व्यापक बनाया गया है और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए इसे भगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकला हुआ धर्म ग्रंथ बताते हैं। लेकिन दुर्भाग्य है कि इसी गीता को श्रीकृष्ण के वंशजों को पढ़ने की बात दूर रही, छूने तक का अधिकार नहीं था।

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