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बिहार : ‘हर घर शौचालय’ योजना में मिलने वाले बारह हजार से क्या कोई सामान्य सा शौचालय भी बन सकता है

पूरे देश स्वच्छता अभियान के तहत हर घर शौचालय बनवाने के लिए सरकार की तरफ से बारह हजार दिए गए हैं लेकिन सवाल यह है कि क्या बारह हजार में किसी शौचालय का निर्माण हो सकता है?सभी को पता है यह असंभव है, दीवार खड़ी हो जाती है लेकिन जाने लायक शौचालय नहीं बन पाता है। याने सरकारी कागजातों में गाँव के गाँव ओडीएफ घोषित हो रहे हैं लेकिन जमीनी सच्चाई इसके बिलकुल उलट है। बिहार में भी ओडीएफ की स्थिति जटिल बनी हुई है। आखिर सरकार किसी भी काम के लिए उचित पैसा क्यों नहीं देती है, जिससे लाभार्थी उसका फायदा उठा सकें।

सुल्तानपुर : एक गाँव जहां रोज ट्रांसफ़ार्मर ठीक कराना पड़ता है

बिजली की समस्या और कटौती से देश के ग्रामीण और किसान सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे है। जुलाई महीने में जब धान लगाने का मौसम था तब बारिश नहीं हुई और नहर में भी पानी नहीं आया। बिजली की बेतहाशा कटौती के कारण किसान अपने खेत की सिंचाई भी सही ढंग से नहीं कर पाए। आज भी कई ऐसे ग्रामीण इलाके है जो प्रतिदिन ट्रांसफार्मर फूंकने की समस्या से जूझ रहे है। बिजली की इसी समस्या पर प्रस्तुत है कमिया गाँव की रिपोर्ट।

सुल्तानपुर : बने इज्जतघर ढह रहे हैं, नए कागज़ पर बन गए हैं

सरकारी दावों के विपरीत, बनाये गए शौचालय आज जर्जर अवस्था में है। लोगों को रोजाना नित्यकर्म के लिए सड़क किनारे जाना पड़ता है। सड़क किनारे मल-मूत्र विसर्जन से गंदगी फैल रही है। लोगों का सड़क किनारे चलना दुश्वार हो गया है और रोगों के फैलने की आशंका से इंकार नही किया जा सकता है।सरकारी दावों एवं हकीकत की पड़ताल करती यह रिपोर्ट ।

वाराणसी : ओडीएफ के दावे साबित हुए खोखले, लोग खुले में कर रहे हैं शौच

किसी राज्य का ओडीएफ प्लस (खुले में शौच से मुक्त राज्य) का दर्जा हासिल हो जाना हमारे देश में एक बड़ी उपलब्धि है। उत्तर प्रदेश को वर्ष 2023 में सौ प्रतिशत ओडीएफ प्लस घोषित कर दिया गया था लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है। सरकार के दावे लगातार गलत साबित हो रहे हैं। वाराणसी के आराजी लाइन ब्लॉक का गाँव सजोई कुछ ऐसी ही तस्वीर पेश कर रहा है। पढ़िये ओडीएफ की सच्चाई की पड़ताल करती अपर्णा की ग्राउंड रिपोर्ट

राजस्थान : सरकार की ओडीएफ मुक्त योजना अभी भी हजारों गाँव से दूर

सरकार ने अनेक योजनाएं लागू की हैं लेकिन धरातल पर उतर कर देखें तो वे सफल नहीं हो पाईं। ऐसी ही एक योजना है खुले में शौच से मुक्ति दिलाने की, जिसमें सरकार की तरफ से 12 हजार रुपए मिलते हैं लेकिन इसके बाद भी हजारों घरों में शौचालय के नाम से चारदीवारी और छत के नाम पर शेड डाल दिया गया है क्योंकि कोई भी शौचालय 12 हजार रुपए में तैयार नहीं हो सकता और जिन्हें पैसा मिलता है उनकी इतनी हैसियत नहीं होती कि खुद का पैसा लगाकर उसे बनवा पाए। इस वजह से आज भी हजारों लोग खुले में शौच जाने के लिए मजबूर है।

स्वच्छ भारत मिशन का हाल, एससी-एसटी के शौचालय उपयोग में आई गिरावट से विश्व बैंक नाराज़

विश्व बैंक ने भारत सरकार के ‘स्वच्छ भारत मिशन’ की रिपोर्ट पर जताई चिंता देश भर में मोदी सरकार द्वारा दो अक्टूबर 2014 को शुरू...

‘स्वच्छता अभियान’ के बावजूद देश की बड़ी आबादी खुले में शौच के लिए मजबूर है

देश के 53.1 प्रतिशत घरों में शौचालय नहीं था, जिसकी वजह से महिलाओं और लड़कियों को सबसे ज्यादा मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। खुले में शौच जाने से महिलाओं और लड़कियों को न केवल मानसिक प्रताड़ना से गुज़ारना पड़ता है, बल्कि उनके स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

जाने कब से जमीन तलाश रही है बांस की खपच्चियों में उलझी हुई ज़िंदगी

यही झोंपड़ा उसका घर है, पर इसे घर भी भला कैसे कहा जा सकता है? बस पन्नियों का एक पर्दा भर है, इंसानों से भी और आसमान से भी। पन्नियों को ही पर्दे सा घेर लिया गया है और फिलहाल यही इनका घर है।

यहाँ बिखरे थर्माकोल से विचरते हुये बगुलों का भ्रम होता है

‘कोसी नव निर्माण मंच’ के साथी क्षेत्र में आन्दोलन के साथ साथ रचना का भी कार्य बखूबी कर रहे हैं इस क्रम में जहाँ स्कूल नही है अथवा शिक्षक नहीं आते हैं, वहां जीवन शाला का संचालन किया जा रहा है, डूबे क्षेत्र में ऐसी 4 जीवन शालायें वर्तमान में चल रही हैं यद्यपि आवश्यकता तो और अधिक की है, लेकिन संसाधन जुटाने की भी बड़ी चुनौती है।

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