सुल्तानपुर जिले के उत्तरी-पूर्वी छोर पर स्थित कमिया बहाउद्दीनपुर गाँव एक सड़क के किनारे है जो ताजद्दीनपुर, जिसे लोकभाषा में तदीपुर के नाम से जाना जाता है, से हमीदपुर तक जाती है। इस समय गाँव हरे-भरे हैं और सितंबर के शुरुआती दिनों में जरूरत से ज्यादा बढ़ गई गर्मी और उमस के बावजूद आँखों को राहत दे रहे हैं। इस वर्ष बारिश अधिक नहीं हुई है और खेतों के नज़दीक जाने पर मालूम होता है ज़्यादातर खेतों की नमी गायब हो रही है। सुबह साढ़े छह बजे से ही लगने लगा है कि आज भी असहनीय धूप होनेवाली है।
मै गाँव में घूम रहा हूँ। सोचा हमीदपुर की दिशा में कुछ दूर चला जाय लेकिन जैसे ही बस्ती खत्म हुई सड़क पर चलना दुश्वार हो गया। लोगों ने अपनी दिनचर्या यहीं से शुरू की थी। इसलिए उधर आगे नहीं बढ़ा और कमिया बाज़ार से गुजरते माइनर के किनारे-किनारे चलने लगा लेकिन वहाँ भी गंदगी और बदबू का वही आलम था। अंततः मैं लौट आया।
ऐसा क्यों है कि इस गाँव के लोग दिशा मैदान के लिए सड़को और रास्ते का उपयोग कर रहे हैं। जबकि सरकार यह दावा कर रही है कि हर गाँव खुले में शौच की समस्या से मुक्त हो चुका है। इसलिए यह जिज्ञासा स्वाभाविक है कि सरकार ने जिस दावे के साथ लोगों को इज्जतघर दिया था उनका उपयोग क्यों नहीं हो रहा है?
मैंने लोगों से पूछा कि क्या सरकार द्वारा दिया गया इज्जतघर का उपयोग लोगों ने बंद कर दिया? इस पर बाज़ार में मौजूद एक बुजुर्ग सत्यदेव सिंह ने थोड़े आक्रोश में कहा कि वह इज्ज़तघर नहीं रहा बेइज्जत घर हो गया है। उन्होंने कहा कि जो इज्जतघर बनवाया गया था वह तो बैठ गया है। उसमे न पानी की व्यवस्था है और न ही उसकी शीट बैठने लायक है। 12 हजार में क्या बनेगा?
यह भी देखें – Varanasi: आँगनवाड़ी में बच्चों को नहीं मिल रहा पोषाहार | Ground Report
कमिया बाज़ार में सत्यदेव सिंह इतने ऊर्जावान व्यक्ति माने जाते हैं कि वे जहां खड़े होते हैं वहीं चार-छह लोग जुट जाते हैं। यही हुआ और उनकी बात को लोगों ने लपक लिया। एक युवक ने कहा कि इस सरकार ने पिछले 10 साल से 12 हजार के बजट के हिसाब से अरबों-खरबों रुपये बांटे हैं लेकिन सवाल यह है कि ये रुपए जाते कहाँ हैं हैं? एक अन्य व्यक्ति ने कहा कि जब प्रधान ही ठेकेदार तो शौचालय कहाँ बन पायेगा। सबने बंदरबांट कर पैसा खा लिया और और चारदीवारी बना के एक दरवाजा लगवा उसपर इज्जतघर लिख दिया।
बाज़ार में ही कमिया बहाउद्दीनपुर के वर्तमान प्रधान राजेश यादव मिले तो मैंने कहा आइये। आरोप आपके ऊपर भी लग रहा है। इस पर राजेश ने कहा ‘मैं 2021 में प्रधान हुआ हूँ और इज्जतघर की स्कीम 2018 में ODF द्वारा शुरू की गई थी। जो पिछला कार्य हुआ है मै उस विषय में कुछ नहीं कह सकता।‘
अक्सर गाँवों में रिपोर्टिंग करते हुये हमने पाया है कि वहाँ सार्वजनिक शौचालय बनवाए गए हैं लेकिन उनपर ताला लगा मिलता है। राजेश यादव कहते हैं कि ‘यहाँ सार्वजनिक शौचालय है जो चलता भी है और अच्छा भी हैं। 12 हजार वाले लोगों के जो व्यक्तिगत शौचालय हैं उन्हें मेरे प्रधान होने से पूर्व ही बनवा लिया गया था। मैंने सिर्फ 40 या 45 शौचालय ही बनवाए हैं। यह सरकार का कार्य है जिसे सरकार और उनके अधिकारी देखें।‘
एक अन्य व्यक्ति ने कहा कि ‘मेरे घर 12 हजार रुपये वाले शौचालय का निर्माण तो किया गया है पर वह गिर रहा है, जिसका उपयोग हम लोग नहीं करते है। शौच के लिए हम बाहर जाते हैं।
रामजीत नामक एक गाँववासी ने बताया ‘हमारे यहाँ के पूर्व प्रधान ने सबके यहाँ शौचालय बनवाया। मेरा नाम भी उस सूची में था। जब मैंने प्रधान से इस बात की शिकायत की तो उन्होंने कहा कि मै आपका शौचालय नहीं बनवाऊंगा। आपको जो करना है वह कर लो। मै इसकी शिकायत लेकर ब्लॉक प्रमुख और BDO के पास भी गया पर अधिकारियों ने कहा कि जाओ कुछ होने वाला नहीं है तो मैं वापस चला आया। आप सुनिए, मेरा शौचालय कागज़ पर बन गया है लेकिन ज़मीन पर आज तक नहीं बन पाया है।‘
इस पर वहाँ मौजूद वर्तमान प्रधान राजेश कहते हैं कि ‘जो पहले 2018 में सूची बनी हुई है उसमें 204 नाम हैं, जिनमे इनकी पत्नी का नाम भी दर्ज हैं। सच है कि कागज पर इनका शौचालय बन गया है। अब इनका शौचालय कहाँ बना है यह या तो ये खुद जानें या जिसने सूची बनाई है वो जाने। इनके लिए हमने 2 बार प्रयास भी किया है। अब सिस्टम ऑनलाइन का हैं। आप अप्लाई करिए। आधार के जरिये पैसा सीधे आपके खाते में आ जाएगा। पहले पैसा चेक से आता था। जब पहली बार इन्होंने ऑनलाइन अप्लाई किया उस समय चुनाव आ गया। ब्लॉक से ही इनके फॉर्म को रिजेक्ट कर दिया गया। अब इन्होंने दूसरी बार अप्लाई किया हैं।
यह भी पढ़े –‘एक देश एक चुनाव’ का जुमला लोकतंत्र को कहाँ ले जायेगा
एक अन्य व्यक्ति ने कहा ‘मेरा नाम रामपाल है। हमारे गाँव में शौचालय की समस्या है। पात्र लोगों को अभी भी आवास प्राप्त नहीं हुआ हैं। इसके पीछे सरकार की क्या मंशा है यह सरकार ही जाने। सरकार जब बन जाती है तो सरकार के खिलाफ कौन जायेगा। सरकार के खिलाफ जो आवाज उठाएगा वो जेल चला जायेगा।‘
गाँव में कई घरों के बाहर बने इज़्ज़तघरों को देखने से ऐसा लगता है जैसे इनका कोई उपयोग ही नहीं है। किसी का दरवाज़ा उखड़कर झूल रहा है तो किसी के आगे घास उगी हुई है। पूछने पर लोगों ने बताया कि यह सरकार की देन है इसलिए सरकारी ढंग से खड़ा है। अब यह उपयोग के लायक है कि नहीं है इससे सरकार को क्या मतलब।
ज़्यादातर लोगों ने बताया जब किसी को शौचालय का पैसा दिया जाता है तो प्रधान और अधिकारी का दबाव रहता है कि उनके द्वारा बताते गए ठेकेदार से ही काम कराया जाय। अगर हम ऐसा नहीं करते तब काम अधर में लटका दिया जाता है।
कुल मिलाकर सार्वजनिक शौचालय की योजना अदूरदर्शिता, जल्दबाज़ी और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी है। सरकार को रिकॉर्ड बनाना है और सरकारी तंत्र-प्रधान गँठजोड़ को पैसा बनाना है। सरकारी अधिकारी चाहते हैं कि पात्र माना गया व्यक्ति उनके अहसान तले दबा हुआ दिखना चाहिए। अब ऐसे में कोई भी योजना किस तरह और कितनी सफल होती है इसपर गौर करने की जरूरत है।