राजनैतिक दल और स्वयंसेवी संस्थाएं अक्सर समाज सेवा के नाम पर आदिवासी समाज के लिए किए गए कामों को करने का जिम्मा उठाते हुए इस तरह से बातें करते व श्रेय लेते दिखाई देते हैं कि उन्होंने ही उनके उद्धार का ठेका लिया है। उन्हें यह गुमान रहता है कि उनके द्वारा किए जा रहे कामों से क्रांतिकारी बदलाव आएंगे। जबकि उनका समाज क्या और कैसा बदलाव चाहता है, इस पर उनसे कोई सलाह-मशविरा नहीं लिया जाता। आज भी आदिवासी समाज हाशिये पर है और शिक्षा, स्वास्थ्य व बुनियादी सुविधाओं के अभाव में जीवन जीने को विवश है। ऐसे में उन समाज सेवी संस्थाओं से सवाल किया जाना जरूरी है कि क्यों वे अपनी योजनाओं को थोपते हैं? आदिवासियों से सलाह लेकर काम क्यों नहीं किया जाता? इन्हीं सवालों को उठाते हुए पढ़िए देवेंद्र गावंडे के मूल मराठी लेख का हिंदीअनुवाद
भूमि अधिग्रहण अधिनियम कहता है कि बिना उचित सहमति और उचित मुआवज़े के सार्वजनिक या औद्योगिक उद्देश्यों के लिए भूमि नहीं ली जा सकती, लेकिन गारे के ग्रामीणों को अपनी भूमि और संपत्ति के अधिकार की रक्षा के लिए शक्तिशाली कंपनियों के खिलाफ लड़ाई में अकेला छोड़ दिया गया है। पढ़िए राजेश त्रिपाठी की तमनार से ग्राउंड रिपोर्ट
ग्रामीण क्षेत्रों के आदिवासियों का रोजगार की तलाश में परिवार सहित पलायन, उनके बच्चों को शिक्षा से दूर कर देता है। आर्थिक समस्या के कारण परिवार भी शिक्षा के महत्व को समझ नहीं पाता है। सरकार द्वारा कई सरकारी योजनाओं के संचालित किये जाने के बाद भी आदिवासियों की आर्थिक समस्याओं का निदान नहीं हो पा रहा है।
झारखण्ड में भाजपा लगातार बांग्लादेशी घुसपैठिये, लैंड जिहाद, लव जिहाद आदि के नाम पर साम्प्रदायिकता व झूठ फैला रही है। इसका बहुत ही खुला एजेंडा है झारखंड में हिंदुओं, मुस्लिमों और आदिवासियों के बीच सांप्रदायिक विभाजन करके, उनमें दरार पैदा करके चुनावी वैतरणी पार करना। अपने इसी दुष्प्रचार को विश्वसनीय बनाने के लिए अब भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को इस काम में लगा दिया है। लेकिन झारखण्ड की जनता इन सारे सांप्रदायिक खेल को समझ रही है इसलिए लोकसभा चुनाव से शुरू हुआ भाजपा की हार का सिलसिला झारखंड में रुकने वाला नहीं है।
कांग्रेस का घोषणा पत्र पूरी तरह से आंबेडकरवाद से प्रभावित है। इस घोषणा पत्र में दलित, आदिवासी,पिछड़ों के उत्थान के मार्ग को प्रशस्त करने का खाका खीचा गया है। इसी कड़ी में विविधता आयोग की स्थापना करने का वादा कर कांग्रेस ने आंबेडकरवाद को सम्मान देने का ऐतिहासिक कार्य भी किया है।
यह घटना ऐसे समय में हुई है जब बस्तर में 19 अप्रैल को मतदान होना है। माओवादी छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव के बहिष्कार का ऐलान पहले ही कर चुके हैं। माओवादियों के मध्य रीजनल ब्यूरो के प्रवक्ता प्रताप की ओर से प्रेस रिलीज जारी कर चुनाव बहिष्कार का ऐलान किया गया था।
वन अधिकार कानून 2006 को धरातल पर लागू करने से सरकार की घबराहट भरी मंशा आम आवाम के समझ से भले ही परे हो, लेकिन यह स्पष्ट होता है कि सरकार और पूंजीपतियों, खासकर कॉरपोरेट घरानों से जो तालमेल है, वह इस विधेयक के धरातल पर लागू होने से गड़बड़ा सकता है।