प्रो.चंद्रशेखर पर अँगुली उठाने वाले सनातनियों से खुली बहस की चुनौती
लखनऊ में भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ.लौटनराम निषाद तुलसीदास की रामचरितमानस, मनुस्मृति,...
तुलसीदास के लिये तो सभी स्त्रियाँ 'सभी धान बाइस पसेरी' की कहावत की तरह हैं लेकिन स्त्रियों द्वारा ही जब स्त्रियों का आकलन होता है तो जातिगत दंभ की भावना हावी हो जाती है। यही भारतीय समाज का स्थाई रोग है जो अपना असर दिखाये बिना नहीं चूकता और यही एक ब्राह्मण की सृजन प्रक्रिया है जो अपना वार चलाने में नहीं चूकता और तुलसीदास तो इस हुनर के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी हैं।
तुलसीदास कृत रामचरित मानस उत्तर भारत की पिछड़ी जातियों के लिए धर्मग्रंथ बना दिया गया। बहुत स्पष्ट रूप से बहुजन संतों और समाजों को अपमानित करने वाली इस किताब की यह स्वीकार्यता यूं ही नहीं है बल्कि बहुजन समाजों को भ्रमजाल में बनाए रखने का एक मजबूत सांस्कृतिक हथियार है। सवर्ण बुद्धिजीवी भले ही इसे बहुत महिमामंडित करते हैं लेकिन बहुजनों को लिए यह एक जहरीली किताब है। सुप्रसिद्ध दलित साहित्यकार मूलचंद सोनकर ने इसे स्त्रियॉं की गुलामी और अपमान के मद्देनजर देखा है।