कर्नाटक विधानसभा चुनाव (मई 2023) के लिए अपने घोषणापत्र में कांग्रेस ने नफरत फैलाने वाले संगठनों पर प्रतिबंध लगाने का वादा किया है। अपने घोषणापत्र में कांग्रेस ने बजरंग दल को आरएसएस का सहयोगी संगठन बताते हुए बजरंग दल की तुलना पीएफआई से की।
कांग्रेस द्वारा बजरंग दल की तुलना पीएफआई से करना भाजपा द्वारा प्याली में तूफान खड़ा करने के लिए काफी था। भाजपा को उसका पसंदीदा चुनावी मुद्दा मिल गया और नरेंद्र मोदी ने इसे प्रमुख चुनावी अभियान बना दिया। उन्होंने भगवान हनुमान की तुलना बजरंग दल से करते हुए कांग्रेस पर आरोप लगाया कि कांग्रेस भगवान हनुमान को भी भगवान राम की तरह नजरबंद करने की कोशिश कर रही है। इसके बाद कांग्रेस ने पलटवार करते हुए कहा कि भगवान हनुमान की तुलना बजरंग दल से करना भगवान हनुमान का अपमान है। बीजेपी इस तरह की तुलना करके हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुँचा रही है। कांग्रेस ने याद दिलाया कि प्रमोद मुतालिक की श्रीराम सेना को बीजेपी ने ही गोवा में बैन कर दिया था। भगवान राम के नाम पर एक संगठन पर प्रतिबंध लगाने वाली बीजेपी द्वारा भगवान हनुमान और बजरंग दल की बात करने को कांग्रेस ने बीजेपी का राजनीतिक अवसरवाद बताया।
भगवान हनुमान अधिकांश स्थानों पर बहुत पूजनीय हैं। तुलसीदास की हनुमान चालीसा शायद लोकप्रिय स्तर पर सबसे अधिक बार पढ़ी जाने वाली हो सकती है। भगवान हनुमान भी भक्ति के प्रतीक हैं। क्या बजरंग दल किसी भी तरह बजरंग बली का पर्याय हो सकता है?
समुदाय का ध्रुवीकरण करने के लिए बीजेपी की जनसभाओं में बजरंग बली के नारे लगाए जा रहे हैं। किसी ने इशारा किया कि जिन लोगों ने भारतीय संविधान की कसम खाई है, क्या वे राजनीतिक जनसभाओं में देवी-देवताओं का आह्वान कर सकते हैं? क्या दूसरे धर्मों के नेता नारा-ए तदबीर या अल्लाहो अकबर के नारे लगा सकते हैं?
बजरंग दल- आरएसएस के सहयोगी विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) का ही एक विंग है बजरंग दल। 1980 के दशक में राम मंदिर का मुद्दा उठाकर विहिप चर्चा में आया। शुरुआत में यूपी और बाद में अन्य राज्यों में भी राम मंदिर अभियान में युवाओं को शामिल करने के लिए बजरंग दल का गठन विहिप की युवा शाखा के रूप में किया गया था। कार सेवा, मस्जिद गिराने के लिए युवाओं की भर्ती में बजरंग दल की अहम भूमिका थी। उन्होंने बाबरी विध्वंस के लिए लामबंदी में प्रमुख भूमिका निभाई। उनकी रथयात्रा के दौरान श्री आडवाणी के माथे पर रक्त का प्याला चढ़ाने और रक्त का तिलक लगाने से हिंसा का पंथ दिखाई दे रहा था। हिंसा का पंथ उनके कार्यक्रमों का एक अंतर्निहित हिस्सा था।
बाबरी विध्वंस के बाद बड़े पैमाने पर भड़की हिंसा को याद किया जा सकता है। गौरतलब है कि बजरंग दल प्रमुख और भाजपा सांसद विनय कटियार ने बाबरी विध्वंस की पूर्व संध्या पर कहा कि मस्जिद को गिरा दिया जाएगा और उसके मलबे को सरयू नदी में फेंक दिया जाएगा। बजरंग दल ने युवा जोड़ों द्वारा वैलेंटाइन डे मनाने के मुद्दे को भी उठाया। वैलेंटाइन डे की बधाई देने वाले और साथ समय बिताने वाले जोड़ों को अलग-अलग जगहों पर पीटा गया। समय के साथ इसने लड़कियों द्वारा जींस पहनने का विरोध करना शुरू कर दिया और लड़कियों के लिए एक ड्रेस कोड भी बनाया।
23 जनवरी, 1999 को ओडिशा (तब उड़ीसा) में पादरी ग्राहम स्टुअर्ट स्टेन्स और उनके दो बच्चों को जिंदा जलाए जाने के वीभत्स कृत्य में बजरंग दल की संलिप्तता सामने आई। शुरू में तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने बजरंग दल के इस वीभत्स कृत्य में शामिल होने से इनकार किया था। जाँच के दौरान बजरंग दल के सदस्य राजेंद्र पाल उर्फ दारा सिंह पर अँगुली उठी। राजेंद्र पाल सिंह उर्फ दारा सिंह वर्तमान में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। पूर्व राष्ट्रपति के.आर. नारायणन ने इस वीभत्स कृत्य को ‘समय-परीक्षित सहिष्णुता और सद्भाव के एक स्मारकीय विपथन’ और इन हत्याओं को दुनिया के काले कारनामों की सूची से संबंधित बताया है। 2006 से 2008 की अवधि में बजरंग दल द्वारा आतंक के कई कार्य देखे गए। प्रारंभिक कृत्यों में से एक यह था कि बजरंग दल के दो कार्यकर्ता नरेश और हिमांशु पांसे बम बनाते समय मारे गए। घटनास्थल के पास कुर्ता-पायजामा और नकली दाढ़ी रखी थी। देश के अलग-अलग हिस्सों से भी ऐसे कई मामले सामने आए। जनवरी 2019 में बुलंदशहर में मृत गाय के मामले में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार की हत्या के आरोप में बजरंग दल के कार्यकर्ता योगेश राज को गिरफ्तार किया गया था।
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ऐसी एक दर्जन घटनाएं हैं। हाल ही में बिहार शरीफ में रामनवमी के दौरान हुई हिंसा में भी बजरंग दल की संलिप्तता सामने आई है। बिहार शरीफ हिंसा मामले में बजरंग दल के कुंदन कुमार को गिरफ्तार किया गया है।
पीएफआई- घृणा और प्रतिक्रियात्मक हिंसा का प्रसार पीएआई की गतिविधियों की पहचान रही है। 2010 में ईशनिंदा के लिए केरल के प्रोफेसर जोसेफ के हाथ काटने की भयानक घटना याद आती है। धर्म के नाम पर काम करने वाले ऐसे संगठनों के बीच समानता यह है कि वे असहिष्णु, नफ़रत फैलाने वाले और हिंसा का सहारा लेते हैं। इस प्रकार दोनों में समानताएँ और भिन्नताएँ हैं। इससे पहले राहुल गांधी ने आरएसएस की तुलना मुस्लिम ब्रदरहुड से की थी। राहुल गांधी ने कहा, ‘आरएसएस भारत की प्रकृति को बदलने की कोशिश कर रहा है। भारत में कोई अन्य संगठन नहीं है जो भारत के संस्थानों पर कब्जा करना चाहता है। यह अरब दुनिया में मौजूद मुस्लिम ब्रदरहुड के विचार के समान है। इनका विचार यह है कि प्रत्येक संस्था में एक विचारधारा चलनी चाहिए। अन्य सभी विचारों को कुचल देना चाहिए।’ राहुल गांधी ने दोनों संगठनों की तुलना करते हुए यह भी कहा कि, ”अनवर सादात की हत्या के बाद मुस्लिम ब्रदरहुड पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। सबसे दिलचस्प बात यह है कि इनमें से किसी भी संगठन में महिलाओं को जाने की अनुमति नहीं है।’ इन संगठनों के तौर-तरीके भले ही अलग हैं, लेकिन धर्म आधारित इनकी समझ और उसे समाज पर थोपना तथा उसे अपनी राजनीति का आधार बनाना इन्हें एक ही पाले में खड़ा करता है। ऐसे संगठन स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के मूल्यों का भी विरोध करते हैं। वे समाज में दान कार्य के प्रचार में भी हिस्सा लेते हैं।
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पिछले कुछ दशकों के दौरान धार्मिकता तेज हो गई है। धर्म के नाम पर राजनीति दिन-प्रतिदिन शक्तिशाली होती जा रही है। समाज का आधार समाज के अधिकांश पहलुओं में रूढ़िवादी और विश्वास आधारित दृष्टिकोणों की ओर स्थानांतरित हो गया है। इसका परिणाम यह होता है कि धर्मनिरपेक्ष दल भी साम्प्रदायिक ताकतों द्वारा राजनीति में धर्म के तीव्र प्रयोग को नज़रअंदाज़ करने का साहस नहीं करते। आज महिलाओं के लिए तालिबान का हुक्म सबसे खराब हो सकता है। इस नजरिए से देखा जाए तो जींस पहनने वाली लड़कियों का विरोध करना और बुर्का थोपना एक ही घटना के दो पहलू हैं।
(अंग्रेजी से अनुवाद विभांशु केशव)
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