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कब खत्म होगी महिलाओं की दोयम नागरिकता

बलात्कार जिस तरह पुरुषप्रधान व्यवस्था के वर्चस्व-संबंधों की पाशविक अभिव्यक्ति होती है, उसी तरह (महज़) बलात्कार का किया जाने वाला; बलात्कार की घटनाओं को नाटकीय बनाने वाला विरोध भी ‘उनकी’ महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों के कारण ‘उनकी’ इज़्ज़त के ख़तरे में आने का कारण बन जाती है और फिर पुरुषप्रधान चर्चाओं की प्याली में तूफ़ान आ जाता है। इसके अंतर्गत महिलाओं पर होने वाले लैंगिक अत्याचारों की घटनाओं का ख़तरनाक तरीक़े से विरोध किया जाता है। ‘बलात्कारियों को तत्काल सरेआम फाँसी की सज़ा’ के केंद्रीय वक्तव्य के आसपास आज जो महिला सक्षमीकरण का चर्चा-विश्व निर्मित किया जा रहा है, वह महिलाओं के आत्मनिर्भर सामाजिक व्यवहार के लिए अनेक स्तरों पर ख़तरनाक साबित होता है।

वाराणसी की जुलाहा स्त्रियाँ : मेहनत का इतना दयनीय मूल्य और कहीं नहीं

बनारसी सदी उद्योग में आई गिरावट ने बुनकर परिवारों के सामने कई तरह के संकट खड़े कर दिये हैं। पहले जहां बुनकरों के पास लगातार काम होता था और बुनकर परिवार की महिलाओं को किनारा, दुपट्टा, शीशा लगाने आदि कामों से प्रतिदिन साठ-सत्तर रुपये मजदूरी मिलती थी वहीं अब यह बीते जमाने की बात हो चुकी है। अब वे जो काम करती हैं वह पीस के हिसाब से बहुत सस्ती दर पर करना पड़ता है और उन्हें प्रतिदिन बमुश्किल पाँच-दस रुपए ही मजदूरी मिल पाती है। गरीबी, मंदी और अर्द्धबेरोजगारी झेलते परिवार चलाने के लिए जद्दोजहद करती महिलाओं पर अपर्णा की ग्राउंड रिपोर्ट।

धर्म की अफीम महिलाओं ने अधिक चखी और राजनीति ने इनका भरपूर फायदा उठाया

महिलाएं परिवार और धर्म में इतना लिप्त हो जाती हैं कि उन्हें मालूम ही नहीं चलता कि उनके ऊपर पितृसत्ता, अर्थसत्ता, राजनीतिक शक्तियां, जातिवर्चस्व, धर्मसत्ता हावी हो गया है बल्कि वे इसे सहजता से स्वीकार कर लेती हैं। हर धर्म ने ही महिलाओं की तार्किक सोच को खत्म करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसका फायदा राजनीति को खूब हुआ है।

बिहार : मुजफ्फरपुर के कोठिया गांव में मशरूम की खेती से आत्मनिर्भर होती महिलाएं

पहले इस गांव की महिलाओं की स्थिति बद से बदतर थी। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि वे कैसे अपना घर परिवार चलाएं। लेकिन आत्मा नामक संस्था से मशरूम की खेती का प्रशिक्षण लेने के बाद आज इस गांव की महिलाएं बड़े पैमाने पर मशरूम की खेती कर आत्मनिर्भर बन रही हैं।

बिहार : महंगे सिलेंडर के कारण गाँव में फिर से लौट रहा है मिट्टी के चूल्हे का दौर, फ्लॉप हुई उज्ज्वला योजना

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की शुरुआत 1 मई 2016 को की गई थी जिसका मकसद जीवाश्म ईंधन की जगह एलपीजी गैस को बढ़ावा देना, महिला सशक्तीकरण के साथ ही उनके स्वास्थ्य की सुरक्षा करना आदि भी रहा है, लेकिन आज यह योजना महंगी गैस के चलते फ्लॉप होती जा रही है। बिहार के मुज़फ्फ़रपुर जिले के साहेबगंज प्रखंड के कई गाँवों में महिलाओं ने कहा कि महंगी गैस के चलते वे चूल्हे पर खाना बनाने लगी हैं।

राजस्थान : स्वरोजगार से बदल रही है महिलाओं की आर्थिक स्थिति

गैर सरकारी संस्था उरमूल द्वारा उपलब्ध कराये गये काम की बदौलत राजस्थान के लूणकरणसर इलाके की ग्रामीण महिलाएं न सिर्फ आत्मनिर्भर बन रही हैं बल्कि परिवार की आर्थिक तंगी को भी दूर कर रही हैं।

जैविक खेती : जीवन के साथ-साथ प्रकृति का भी पोषण कर रही हैं ये महिला किसान

शिवानी कहती हैं, ‘शहरों में तो काम करने के अनेकों मौके हैं और करिअर ग्रोथ भी काफी अच्छा है, पर अगर हर कोई यही सोच कर शहर का रुख करने लगे, तब तो गाँव खाली हो जायेंगे। फिर गांव का विकास कैसे होगा?’

दिल्ली स्टेट ने आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं पुलिस ने जंतर मंतर पर प्रदर्शन करने से रोका

आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सरकार से अपनी मांग पूरी करने के लिए आज जंतर मंतर पर प्रदर्शन के लिए एकत्रित हुईं, जहां पुलिस ने बल प्रयोग करते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया।

महिलाएं मासिक धर्म के समय सैनिटरी पैड के उपयोग में सतर्कता रखें

माहवारी कोई बीमारी नहीं है यह तो प्राकृतिक प्रक्रिया है । इस समय उपयोग में आने पैड,कॉटन या सैनिटरी का उपयोग सावधानी से करें जो हर स्थिति में सुरक्षित हों।

सोशल मीडिया महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही है

पूजा, एक 31 वर्षीय महिला है। वह दिल्ली के उत्तम नगर इलाके में अपने पति और दो पुत्रों के साथ किराए के मकान में...

बिहार : खेल प्रतिभा से सामाजिक वर्जनाओं को तोड़ रहीं लड़कियाँ

'सयानी लड़की होकर लड़कों के साथ हाफ पैंट पहनकर ग्राउंड में खेलती है, न इसको शर्म आती है और न इसके मां-बाप को!' इस...

लड़कियों की शिक्षा के प्रति उदासीन समाज का विकास थोथा है

बिहार और झारखंड सरकार भी बालिका शिक्षा को लेकर कई महत्वाकांक्षी योजनाएं चला रही है। इसके बावजूद आज भी ग्रामीण क्षेत्र में अशिक्षा, जागरूकता, गरीबी, पिछड़ेपन, रूढ़ियां आदि की वजह से लड़कियों को शिक्षा के अधिकार से अपने ही परिवार वाले महरूम रखते हैं। बिहार के मुजफ्फरपुर जिले से 65 किमी दूर साहेबगंज प्रखंड अंतर्गत पंचरुखिया गांव की लड़कियों को पहले पढ़ाया नहीं जाता था।

कुपोषित बच्चों से कैसे बनेगा स्वस्थ समाज और सशक्त देश?

यूएनडीपी द्वारा प्रकाशित मानव विकास सूचकांक, 2021 में भारत का स्थान 132वां है, जो पड़ोसी मुल्कों से भी नीचे है। इसके साथ ही वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2021 में भारत का स्थान 116 देशों में 101वां है, जो 2020 में 90वां था। यह गिरावट इंगित करता है कि अपने देश में खाद्यान्न की पर्याप्त उपलब्धता के बावजूद वितरण के स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार एवं सक्षम तंत्र की लुंज-पुंज स्थिति के कारण सभी नागरिकों को भरपेट भोजन भी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है।

पितृसत्ता की बेड़ियों में जकड़ी हुई हैं किशोरियां

मेगड़ी स्टेट (उत्तराखंड)। कभी कभी हमारे देश में देखकर लगता है कि देश तो आजाद हो गया है, जहां सभी के लिए अपनी पसंद...

घर सँवारने में ही नहीं आर्थिक जिम्मेदारियाँ निभाने में भी योगदान देती हैं महिलाएँ

बीज बोने से लेकर फसल कटाई के बीच की अवधि में फसल का पूरा ध्यान महिलाएं रखती हैं। वह उन्हें खरपतवार और कीट पतंगों के प्रकोप से बचाने के लिए उसका ध्यान रखती हैं। वह फसल को अपने बच्चों की तरह पालती हैं। भागुली देवी पूरे आत्मविश्वास के साथ कहती हैं कि भले समाज कृषि के क्षेत्र में महिलाओं के योगदान को सम्मानित नहीं करता हो, लेकिन समाज को यह बखूबी पता है कि हम महिलाओं के बिना कृषि का काम अधूरा है।

कोर्ट ने कहा, महिलाओं के लिए अलग नहीं हो सकते मानदंड

मुंबई (भाषा)। महाराष्ट्र में विभिन्न नगर निगमों ने दमकल कर्मी के पद के लिए आवेदन करने वाली महिला उम्मीदवारों के लिए लंबाई के अलग-अलग...

बेपरवाह स्वास्थ्य विभाग, बिना इलाज के जीने पर मजबूर हैं ग्रामीण किशोरियां

संकुचित सोच के कारण आज भी समाज में माहवारी को अभिशाप माना जाता है। हालांकि यह अभिशाप नहीं बल्कि वरदान है। आज भी समाज...

महिलाओं के प्रति रूढ़िवादी सोच को कब बदलेगा समाज

साइंस और टेक्नोलॉजी हो या फिर अर्थव्यवस्था, हर क्षेत्र में आज भारत विश्व के विकसित देशों के साथ आंख से आंख मिलाकर बातें करता है। लेकिन भारतीय समाज विशेषकर भारत का ग्रामीण समाज आज भी वैचारिक रूप से पिछड़ा हुआ है। शहरों की अपेक्षा गांव में महिलाओं के साथ इस दौर में भी शारीरिक और मानसिक हिंसा आम बात है।

दमघोंटू सामाजिक रीति-रिवाजों को तोड़कर महिलाएं बन रहीं परिवर्तन की अग्रदूत

महिलाएं समाज में किसी भी प्रकार के परिवर्तन में सक्रिय भूमिका निभाती हैं। उन्हें कमज़ोर समझने की आवश्यकता नहीं है। इसके बजाय, उनकी आवाज़ को सुनने और विकास की सभी प्रक्रियों में भागीदारी निभाने की आज़ादी देने की ज़रूरत है, क्योंकि यदि हम उन्हें अनदेखा करते हैं, तो हमें एक सभ्य समाज की कल्पना करना बेमानी होगी।

आरक्षण की वजह से लड़कियों के प्रति बदलेगी सामाजिक सोच

देश के ऐसे कई दूर दराज़ ग्रामीण क्षेत्र हैं जहां महिलाओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है। उसे शिक्षा से वंचित रखने का प्रयास किया जाता है। समाज की यह सोच बनी हुई है कि लड़की को शिक्षित करने से कहीं अधिक उसे चूल्हा चौका में पारंगत होना आवश्यक है।

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