दलित, पिछड़ों, मुसलमानों और आर्थिक रूप से कमज़ोर भूमिहीनों के लिए भूमि के अधिकार के लिए आन्दोलन कर रहे श्रवण कुमार ‘निराला’ से स्वतंत्र पत्रकार असद रिज़वी ने उनकी भविष्य की रणनीति बात की और जाना की मौजूदा सियासी हालातों में वह अपने आन्दोलन को कैसे आगे ले जाएंगे। ‘निराला’ को अक्तूबर के महीने में गोरखपुर से गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया गया था। फ़िलहाल वह ज़मानत पर रिहा हुए हैं और जनवरी में एक नया आन्दोलन जन आक्रोश मार्च के नाम से शुरू करने जा रहे हैं। अम्बेडकर जन मोर्चा के संयोजक निराला कहते हैं, सरकार के दमन या जेल भेजने से आन्दोलन कमज़ोर नहीं बल्कि और तीव्र होते हैं।
आप ने भूमि के अधिकार का आंदोलन कब और कहां शुरू किया?
इस आन्दोलन की शुरुआत 17, दिसम्बर को 2022 को गोरखपुर से हुई थी। पहले चरण में दलित अधिकार महारैली का आयोजन हुआ था। इसका आन्दोलन का दूसरा चरण 17 मार्च, 2023 को हुआ। आन्दोलन का तीसरा चरण डेरा डालो-घेरा डालो 10 अक्तूबर 2023 को, गोरखपुर कमिश्नर कार्यालय पर आयोजित किया गया।
आन्दोलन आगे बढ़ाने में किन रुकावटों का सामना करना पड़ रहा है ?
यह मुद्दा ग़रीब जनता का मुद्दा है। दलितों, पिछड़ों, और मुसलमानों का मुद्दा है, जिनकी बड़ी आबादी आज़ादी के 75 वर्ष बाद भी भूमिहीन हैं। हमको जनता का समर्थन मिल रहा है, लेकिन सरकार आन्दोलन के रास्ते में रुकावट है, क्योंकि वह ग़रीबों को उनका हक़ नहीं देना चाहती है। इसीलिए हमारी और आन्दोलन से जुड़े कई नेताओं की डेरा डालो -घेरा डालो 10 अक्तूबर 2023 के बाद गिरफ़्तारी हुई और हमको जेल भेजा गया।
आपको किस सरकार से शिकायत है?
हमारी नाराज़गी केवल सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से नहीं है बल्कि अतीत की दलितों और पिछड़ों की सरकारों से भी है। क्योंकि उन्होंने ने भी ग़रीबों को भूमि के अधिकार से वंचित रखा है। फ़िलहाल हम बीजेपी सरकार से लड़ रहे है क्योंकि सत्ता उसके पास है।
आप के पिछले आंदोलन में महिलाओं की संख्या काफी अधिक थी? महिलाओं का आंदोलन से जुड़ाव कैसे हुआ?
इसका बड़ा स्पष्ट कारण है, भूमिहीन होने के कारण सबसे अधिक और प्रतिदिन उत्पीड़न महिलाओं का ही होता है। जब गांवों में महिलाएं घास आदि लेने खेतों में जाती हैं तो उनका उत्पीड़न किया जाता है और वह ग़रीबी के कारण इसका विरोध भी नहीं कर पाती हैं। इसलिए भूमिहीन होने का सबसे अधिक दर्द उन्हीं को है।
क्या जेल जाने और मुक़दमा होने से आंदोलन पर कोई फर्क़ पड़ेगा?
जेल जाने से हमारा मनोबल टूटा नहीं है बल्कि हमको यह मालूम हुआ कि हमारा आन्दोलन सरकार पर असर छोड़ रहा है। जब भी सरकारें आन्दोलन से डरती हैं और सच्चाई से भागती हैं तो आन्दोलनकारियों को जेल भेजती है। मुक़दमों और जेल से आन्दोलन-कमज़ोर नहीं और तेज होते हैं
आप का अगला कदम क्या होगा?
हम आन्दोलन निरंतर आगे ले जा रहे हैं। अब 29 जनवरी, 2024 को चौरी-चौरा से गोरखपुर तक जन आक्रोश मार्च निकाला जायेगा। यह आन्दोलन सरकार की वादाखिलाफ़ी के विरुद्ध होगा। हमारे अक्तूबर के आन्दोलन के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक करोड़ 25 लाख को ज़मीन का पट्टा देने का वादा किया था। लेकिन अभी तक ज़मीन वितरण के लिए कोई क़दम नहीं उठाया गया है। इस मार्च/रैली में संभवत 5 लाख लोग शामिल होंगे।
क्या आंदोलन केवल पूर्वांचल तक सीमित है?
नहीं, यह प्रदेश व्यापक आन्दोलन है। गोरखपुर इसका केंद्र है। इसका आधार क्षेत्र गोरखपुर, आजमगढ़ और बस्ती मंडल है।
क्या आम चुनावों 2024 में भूमि का अधिकार एक मुद्दा बन सकेगा?
हमने आन्दोलन डेढ़ वर्ष पहले शुरू किया था, यह बात अलग है की वह बढ़ते-बढ़ते चुनावों तक आ गया। सरकार अगर ज़मीन देती है तो ठीक वरना सत्तारूढ़ दल की विदाई तय है ।
जब हिन्दुत्व राजनीति के केंद्र में है, मंदिर-मस्जिद के नाम पर चुनाव हो रहे हैं, ऐसे में क्या कृषि संकट, मज़दूर उत्पीड़न, महिला सुरक्षा आदि जैसे मुद्दे राजनीति के केंद्र में आ सकेंगे?
हिन्दुत्व या ध्रुवीकरण की राजनीति केवल बीजेपी का राजनितिक एजेंडा है, इसका गाँव की जनता पर कोई असर नहीं है। गांवों की जनता जिन समस्याओं का सामना कर रही है वह उस से बाहर निकलना चाहती है। भूमिहीनता गांवों के लोगों का एक बड़ा सवाल है। ग्रामीण जनता पर ‘हिन्दुत्व’ की राजनीति असर नहीं पड़ेगा।
आप ‘मनरेगा’ को लेकर अक़्सर माँग करते है, आप की क्या माँग है?
हमारे मोर्चा की मांग है की ‘मनरेगा’ मजदूरों को प्रति दिन की मज़दूरी 1000 रुपये और कम से कम 200 दिन का रोज़गार सुनिश्चित किया जाये।
देश की एक बड़ी आबादी को सरकार 5 किलो मुफ्त अनाज दे रही है तो यह ‘लाभार्थी वर्ग’ आन्दोलन से क्यों जुड़ेगा?
जनता का कहना है कि उसको फ्री अनाज नहीं, एक एकड़ ज़मीन चाहिए है। सरकार उनको ज़मीन आवंटित करे वह स्वयं हर महीने सरकार को 10 किलो अनाज मुफ्त देंगे।
बहुजन समाज पार्टी के कमज़ोर होने से बहुजन आंदोलन पर क्या फर्क़ पड़ेगा?
ग़रीब जनता की लड़ाई से पीछे हटने का खामियाज़ा है कि 2007 में पूर्ण बहुमत से उत्तर प्रदेश में सरकार बन्नने वाली बहुजन समाज पार्टी 2022 में एक सीट पर सिमित हो गई है। केवल एक्स (ट्विटर) पर लिखने से राजनीति नहीं की जा सकती है, मायावती को ग्राउंड पर उतरना होगा। अब दलित निराश होकर बहुजन समाज पार्टी से दूर हट रहा है।
जातीय संघर्ष के बीच क्या समाजवादी पार्टी का पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक (पी डी ए) का फ़ार्मूला सफल होगा?
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपनी विश्वसनीयता खो दी है। क्योंकि उनके भाषण और आचरण में अंतर है। प्रमोशन में आरक्षण का बिल उनके सामने फाड़ा गया, और वह ख़ामोश रहे थे। ठेकेदारी में जो दलितों को अरक्ष्ण मिला था उनको अखिलेश ने खत्म कर के दलितों को आर्थिक रूप से कमज़ोर किया।
दूसरी बात जातियों के बीच कोई संघर्ष या तनाव नहीं है, केवल अमीर वर्ग ग़रीबों का शोषण और उत्पीड़न कर रहा है। जब तक आर्थिक रूप से बराबरी नहीं होगी यह चलता रहेगा।
कांग्रेस ने मनरेगा दिया और बीजेपी ने प्रधानमंत्री किसान निधि, भूमिहीन किसान के लिए किसका महत्व अधिक है?
मेरे अनुसार दोनों में किसी कि नीति बेहतर नहीं है, दोनों ने ग़रीबी का मज़ाक उठाया है, उनको हक अधिकार नहीं दिया है, बल्कि उनको असहाय बनाया है। केवल इतना दिया है की वह जीवित रह सके, लेकिन सम्मानजनक जीवन नहीं मिला है।