पीयूसीएल ने भारतीय महिला फेडरेशन की नेताओं पर मणिपुर में दर्ज एफआईआर वापस लेने की मांग की
मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल (पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज) ने नेशनल फेडरेशन आफ इंडियन वुमेन (एनएफआईडब्ल्यू) की राष्ट्रीय महासचिव एनी राजा, राष्ट्रीय सचिव निशा सिद्धू और एडवोकेट दीक्षा द्विवेदी के खिलाफ एफआईआर दर्ज किये जाने की कड़ी निंदा की है और इसे तुरंत वापस लेने की मॉंग की है। तीनों सम्मानित महिला नेताओं ने मणिपुर में तथ्य संकलन के लिए किये गए दौरे के समापन पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया था, जिसमें उन्होंने बताया कि मणिपुर की हिंसा राज्य प्रायोजित है। मणिपुर में फैक्ट फाइंडिंग टूर के समापन पर इंफाल में आयोजित इस प्रेसवार्ता के माध्यम से पीयूसीएल की ओर से कहा गया कि तीन लोगों की टीम ने अपनी जांच से यह बात सामने रखी कि इंफाल और आसपास के इलाकों में हुए दंगे ‘राज्य प्रायोजित हिंसा’ के परिणाम थे। इस बात के साथ मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के इस्तीफे को भी सत्ता द्वारा प्रायोजित नाटक बताने के लिए तीनों नेताओं पर आपराधिक मुकदमा चलाया जा रहा है।
तीन सदस्यीय टीम ने इम्फाल और अन्य क्षेत्रों की अपनी यात्रा के दौरान कई वर्ग के लोगों से मुलाकात की। रिपोर्ट के अनुसार, दोनों पक्षों के लोग शांति की वापसी चाहते हैं। इसके लिए राज्य सरकार ईमानदारी से प्रयास करे।
चौंकाने वाली बात यह है कि शांति और सद्भाव बहाल करने का आह्वान करने के बावजूद, इंफाल पुलिस द्वारा तीनों महिला नेताओं के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं। इनमें धारा 121-ए (भारत या राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ने का अपराध करने की साजिश), 124ए (देशद्रोह), 153/ 153-ए/ 153-बी (दंगा भड़काने के इरादे से उकसाना, विभिन्न देशों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) के तहत अपराध शामिल हैं। इसके साथ ही आईपीसी की धारा 499, 504 और 505 एवं धारा 34 में भी मामला पंजीकृत किया गया है।
पीयूसीएल का मानना है कि मणिपुर पुलिस द्वारा दर्ज इस एफआईआर को सरकार के डर के रूप में देखा जाना चाहिए। मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं के साथ इस तरह का उत्पीड़न पुलिस द्वारा शक्ति का क्रूर, दुर्भावनापूर्ण और अनावश्यक दुरुपयोग को दिखाता है। पुलिस कानून का उपयोग उन नागरिकों को डराने-धमकाने के रूप में कर रही है, जो संघर्ष क्षेत्रों में व्यक्तिगत दौरे के माध्यम से सच्चाई का पता लगाना चाहते हैं। इसमें शामिल विभिन्न हितधारकों और पार्टियों से मिलने वाले तथ्यों एवं अपने निष्कर्षों को चर्चा के लिए सार्वजनिक डोमेन में रखना चाहते हैं।
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पीयूसीएल का कहना है कि ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में देखा जाए तो मणिपुर पुलिस द्वारा तथ्यों की खोज करने और प्राप्त परिणामों की रिपोर्ट प्रकाशित करने तथा प्रेस कॉन्फ्रेंस जैसे मानवाधिकार उपकरणों के उपयोग को अपराध मानने की कार्यवाही की निंदा की जानी चाहिए।
इसी तरह से भारतीय महिला फेडरेशन की मध्य प्रदेश इकाई ने भी राष्ट्रीय महिला आन्दोलन की तीनों नेताओं के खिलाफ मणिपुर पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर की कड़ी भर्त्सना की गयी है। कहा है कि मणिपुर हमारे देश का ही हिस्सा है, वहाँ लंबे समय से हिंसा और तनाव का माहौल है। 55 दिन तक राज्य व केंद्र ने शांति बहाल करने के लिए कुछ नहीं किया। भारतीय महिला फेडरेशन की अन्य राज्यों की तरह मणिपुर में भी इकाई है, तो अपने साथियों का हाल-चाल जानना और सरकार की अकर्मण्यता की जानकारी सामने लाना अपराध कैसे हो गया?
यह भी दिखाई दे रहा है कि सरकार एन-केन-प्रकारेण हर उस आवाज को दबा देना चाहती है, जो उसकी नाकामी और बर्बरता को सामने लाने की कोशिश करता है।
भारतीय महिला फेडरेशन की मध्य प्रदेश इकाई द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि केंद्र और राज्य सरकार, एक-एक कर राज्यों को भेदभाव, सामुदायिक और सांप्रदायिक हिंसा में झोंक कर उनके तमाम मौलिक और संवैधानिक अधिकारों से वंचित कर तबाह कर रही हैं। किसी को उनके इरादों को बाहर लाने का भी अधिकार नहीं देना चाहती है। यह अघोषित आपातकाल की तरह है, जिसके माध्यम से पूरे देश को धीरे-धीरे एक जेल में बदल देने और सरकारी पुलिस द्वारा नागरिकों की आवाज कुचलने का अधिकार केंद्र और राज्य सरकारों ने हासिल कर लिया है। जान हथेली पर लेकर आम जनता के सामने सच्चाई लाने वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाती है।
भारतीय महिला फेडरेशन की मध्य प्रदेश इकाई ने अपने साथियों की बहादुरी पर उन्हें बधाई और धन्यवाद देते हुए उनके खिलाफ दर्ज हुई इस बेबुनियाद एफआईआर को तुरंत वापस लेने की मांग सरकार से की है।
पीयूसीएल ने मणिपुर में अब भी जारी हिंसा पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए बताया कि इस संघर्ष में 140 से अधिक लोग बेरहमी से मारे गए हैं, जिनमें कुकी, जो और मैतेई समुदाय के लोग भी शामिल हैं। कथित तौर पर 300 से अधिक चर्चों को नष्ट कर दिया गया। प्रेसवार्ता के माध्यम से पीयूसीएल ने सरकार से मांग की है कि मणिपुर दौरे के बाद फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट जारी करने के लिए एनएफआईडब्ल्यू की एनी राजा, निशा सिद्धु और दीक्षा द्विवेदी के खिलाफ एफआईआर तुरंत वापस लें। साथ ही मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं का अपराधीकरण बंद करें तथा तथ्यों की जांच करने एवं सार्वजनिक चर्चा के लिए उनकी रिपोर्ट प्रकाशित करने के नागरिकों के मौलिक अधिकारों का सम्मान करें।