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पितृसत्तात्मक गुलामी में छटपटाती औरत की कहानी है धरती भर आकाश

तसनीम पटेल की आत्मकथा धरती भर आकाश, उन औरतों की त्रासदपूर्ण जिंदगी की ऐसी कहानी है जिसमें साहित्य के नए और अनूठे आयाम गढ़े गए हैं। मुस्लिम समुदाय की औरतों की जिंदगी के तमाम नए और उन अनछुए पहलुओं को इस आत्मकथा में बेबाकी से उद्घाटित किया है। जिन पर अमूमन किसी का ध्यान नहीं […]

तसनीम पटेल की आत्मकथा धरती भर आकाश, उन औरतों की त्रासदपूर्ण जिंदगी की ऐसी कहानी है जिसमें साहित्य के नए और अनूठे आयाम गढ़े गए हैं। मुस्लिम समुदाय की औरतों की जिंदगी के तमाम नए और उन अनछुए पहलुओं को इस आत्मकथा में बेबाकी से उद्घाटित किया है। जिन पर अमूमन किसी का ध्यान नहीं जाता है। धरती भर आकाश मुस्लिम समाज में त्रासदपूर्ण जीवन जाने वाली औरतों के जीवन कों बेबाकी से सामने रखता है। साथ ही अपनी तमाम त्रासदियों के साथ अपने संघर्षपूर्ण जीवन को सहेजने की कोशिश करता रहता है, फिर भी अंत तक उन समस्याओं से निजात नहीं मिलती। धरती भर आकाश मुस्लिम समाज की औरतों को एक बड़ा मंत्र जरूर देता है कि सामाजिक कुरीतियों में फंसने के बजाए पढ़ो और आगे बढ़ो। गंधाते पितृसत्ता की गुलामी से बाहर निकलने और जुल्म-ज्यादती से मुक्ति पाने का और कोई दूसरा रास्ता है ही नहीं।

तसनीम पटेल

इस आत्मकथा में ढेरों कथानक हैं जो उनके अपने हैं। समाज के हाशिये पर खड़ी मुस्लिम औरत अपने लोगों के बीच ही छली जाती है। इस शोषणगाथा में उसके सहयोग के लिए कोई सामने नहीं आता। अपनी परिस्थितियों से लड़ती-जूझती हुई मुस्लिम औरतें जीवन की सीढ़ियां चढ़ती हैं। तसनीम कहती हैं, जिंदगी के कुछ सवाल आसानी से नहीं छूटते। मसलन-तुम अभी बहुत छोटी हो। यह सब जानने और समझने की तेरी उम्र नहीं। सिर्फ परियों और राजा-रानियों की कहानियां सुनने की उम्र है, सवाल करने का नहीं।

तसनीम ने गरीबी और विपन्नता में जीने वाली मुस्लिम महिलाओं के  परजीवी समाज को चित्रित किया है और यह बताया है कि मुस्लिम समाज की हर औरत पुरुषों पर क्यों निर्भर हैं। त्रासदी यही है कि औरतों की कई पीढ़ियां पुरुषों की गुलामी करते खप जाती हैं। अपनी परिस्थितियों से असंतुष्ट होकर तसनीम इस शोषण तंत्र को तोड़ने की कोशिश करतीं हैं और काफी हद तक सफल भी रहीं।

तसनीम ने उन बातों को बेहिचक बयां किया है कि मुस्लिम औरतों की जिंदगी कितनी बदसूरत और खुरदुरी होती है। परम्परागत मुस्लिम समाज की औरतों की जिंदगी तो उस आईने की तरह होती हैं, जिनका हर स्तर पर शोषण होता है। उनके पास पुरुषों की तरह कोई अधिकार नहीं होता। स्त्रियों की स्थिति निरीह नजर आता है। अगर किसी घरेलू काम में हीला-हवाली करें तो इस्लाम का पालन करते हुए इन्हें तलाक़ दे दिया जाता है। हर तरह से उनका उपयोग करो। जहां कहीं वे कम साबित हों वहीँ उनसे मुक्ति पा लो।

[bs-quote quote=”धरती भर आकाश में तसनीम उन तमाम सच्चाइयों को उजागर करतीं है। एक समाज दुनिया का है। एक समाज भारत का है। एक समाज मुसलमानों का है, दूसरा हिन्दुओं का है। एक समाज उन लोगों का है जो लड़कियों को पढ़ने की आजादी नहीं देते। यह समाज कई अर्थों में दुनिया के हर समाज से अलग है। ज़िन्दगी सबकी एक ही है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

तसमीन की आत्मकथा झंझावातों से भरी पड़ी है, जिसमें है मुस्लिम औरतों की मेहनत और उनकी कंगाली की गाथा भी है। लेखिका की उपलब्धि यही है कि उन्होंने इतना मौलिक विषय चुना और मुस्लिम औरतों की बदहाल जिंदगी को बेहद संजीदगी से उभारा। मुस्लिम औरतों की जिंदगी पर इतना कड़वा सच अब से पहले किसी पुस्तक में नहीं लिखा गया। धरती भर आकाश न केवल मुस्लिम समाज के धार्मिक-सांस्कृतिक परिवेश को, बल्कि उनकी आर्थिक-सामाजिक विसंगतियों को भी विस्तृत फलक पर उभारता है।

धरती भर आकाश में तसनीम उन तमाम सच्चाइयों को उजागर करतीं है।” एक समाज दुनिया का है। एक समाज भारत का है। एक समाज मुसलमानों का है, दूसरा हिन्दुओं का है। एक समाज उन लोगों का है जो लड़कियों को पढ़ने की आजादी नहीं देते। यह समाज कई अर्थों में दुनिया के हर समाज से अलग है। ज़िन्दगी सबकी एक ही है।”

 धरती भर आकाश में तसनीम की निजी जिंदगी की दस्तक भी मिलती है, जो अपने समाज के सत्य से परिचित कराती है। बिना किए काम नहीं चलेगा और मुस्लिम औरतों को रहना होगा परदे में। खुली हवा में घूमने का सवाल नहीं।  समाज के नियम सत्य हैं। उन्हें तोडना गुनाह है। सिर्फ भारत ही नहीं, समूची दुनिया में मुस्लिम औरतों के लिए नियम एक जैसा ही है। धरती भर आकाश में कहीं बीमार औरतों की कराहें हैं तो कहीं उनकी उखड़ती सांसों के बीच फंसी मन की बेचैनी। आर्थिक पिछड़ेपन, भेदभाव, पितृसत्तात्मक शोषण के बीच शौहर के जुल्म-ज्यादती की कहानियां मुस्लिम औरतों की गुलामी की ग्राफ खींचती नजर आती हैं।

इस आत्मकथा में उन बातों का भी जिक्र किया है जो मुस्लिमल समुदाय की संस्कृति का हिस्सा हैं। धार्मिक आडम्बरों पर सवाल खड़ा करते हुए वह कहती हैं, ”बेजुबान जानवर की तरह जीना, पति की मार खाना, स्वयं का दुख, स्वयं ही मौन होकर सहना और अपने व्यक्तित्व को जीते जी समाप्त करने को पतिव्रता कहते हैं क्या? मेरा बालमन बार-बार सोचता यातना सहना, किसी से न कहना, पति की मार खाना, हर रोज यातनामय जीवन जीना, लेकिन मरणोपरांत जन्नत में जाना ही पतिव्रता होना है तो फिर क्यों पतिव्रता होना।”

लेखिका ने जिस संजीदगी के साथ मुस्लिम समाज की औरतों की जिंदगी को बेबाकी के साथ उकेरा है इससे पता चलता है कि लेखक की नजर धार्मिक परिदृश्य पर भी है। कोई भी समाज इन धार्मिक रूढ़ियों की वजह से ही आगे नहीं बढ़ पाता। तसनीम को लगता है कि जब अपने पराए बन जाते हैं, जाने हुए लोग अनजानों की तरह बर्ताव करते हैं, तब मजलूम और गरीब का सहारा सिर्फ आसमान वाला ही होता है।

[bs-quote quote=”लेखिका ने जिस संजीदगी के साथ मुस्लिम समाज की औरतों की जिंदगी को बेबाकी के साथ उकेरा है इससे पता चलता है कि लेखक की नजर धार्मिक परिदृश्य पर भी है। कोई भी समाज इन धार्मिक रूढ़ियों की वजह से ही आगे नहीं बढ़ पाता। तसनीम को लगता है कि जब अपने पराए बन जाते हैं, जाने हुए लोग अनजानों की तरह बर्ताव करते हैं, तब मजलूम और गरीब का सहारा सिर्फ आसमान वाला ही होता है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

लेखिका ने सम्पूर्णता के साथ सच्चाई को अभिव्यक्ति दी है, जो यह उनकी सूक्ष्म संवेदना का परिचायक है। उन्होंने बारीकी से उस समाज का चित्रण किया है जिनके संदर्भ अभी तक अछूते थे। तसनीम ने मुस्लिम औरतों के जीवन और उनके इर्दगिर्द बुने गए शोषण चक्र को बेबाकी से उजागर किया है। वैसे भी अपनों पर और खुद पर लिखना आसान नहीं होता। खासतौर पर तब, जब लेखक ही विवेचक और खुद वही विषय हो तो तटस्थ हो पाना बहुत कठिन होता है। पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के अंतर्जगत में बहुत कुछ घटता है, लेकिन आत्मकथाओं के अंतरंग कम और बहिर्जगत ज्यादा होता है। दूसरी आत्मकथाएं की तरह तसनीम का धरती भर आकाश नहीं है, इसमें आत्म अंतरंग भी है। यह अंतरंग अलग-अलग तरह के हैं। मसलन, “घर में बेटी छोटी हो या बड़ी, उसे पिता की मार खानी पड़ती है। भाई कभी बड़ा होकर मारता है तो कभी छोटा होकर। यही उसका भाग्य है। कई बार प्रतिभा और यश देखकर भाई का पुरुष अहंकार क्रोध बनकर फूट पड़ता है। अंहाकर का मुकाबला बल से नहीं, ज्ञान से किया जा सकता है।”

लेखिका तसनीम पटेल महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले की रहने वाली हैं, जहां कभी हैदराबाद के निजाम का शासन था। इनके पिता निजाम के शासन में मुख्तार हुआ करते थे। धरती भर आकाश में तसनीम की कर्मठता, जुनून और संवेदनशीलता दिखती है। यह लेखिका का सर्जनात्मक व्यक्तित्व ही है कि जिसने समाज के हाशिये पर खड़े लोगों को अपनी रचना के केंद्र में जगह दी और उसे इतना प्रभावशाली बना दिया कि धरती भर आकाश में वह छा गईं। स्थानीय भाषा के प्रयोग के कारण इस आत्मकथा में जीवंतता है। भाषा की सजीवता और शिल्प के वैशिष्ट्य के कारण यह पुस्तक रचनात्मक रूप से उत्कृष्ट बन पड़ी है। तसनीम का हौसला और वैचारिक दृढता, उन सभी औरतों को एक बड़ा संबल और ताकत देती हैं और उन सभी स्त्रियों को आजाद होकर बाहर निकलने का रास्ता भी दिखाती है, जो पितृसत्तात्मक शोषण के भंवर में फंसकर पीढ़ी दर पीढ़ी पुरुषों की गुलामी करने के लिए बाध्य हैं।

धरती भर आकाश

अगोरा प्रकाशन, वाराणसी

मूल्य-400

संपर्क नम्बर- 9479060031  

विजय विनीत जाने माने पत्रकार और कथाकार हैं।  

गाँव के लोग
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4 COMMENTS
  1. यह मुस्लिम समुदाय में ही नहीं हिन्दू समुदाय में इससे कहीं ज्यादा है पर देखने की कोशिश किया जाय तो ।

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