मेलबर्न। करीब एक वर्ष पहले फिलीपीन में आठ अरबवें व्यक्ति ने जन्म लिया था। मात्र 11 वर्षों में दुनिया की आबादी एक अरब तक और बढ़ चुकी है। यह सुनने में भले ही अजीबो-गरीब लगता हो लेकिन यह जानना बहुत ही जरूरी है कि पूरी दुनिया बांझपन की समस्या से जूझ रही है। असल बात यह है कि पिछले 60 वर्षों में वैश्विक जन्म दर प्रति महिला 5.3 से घटकर 2.3 हो गई है। बहुत से लोग इसे आधुनिक जीवन शैली के रूप में देख रहे हैं, जहां बहुत से दंपति अपने जीवन में काफी देर से बच्चों को जन्म देने की योजना बनाते हैं या फिर कम बच्चे पैदा करते हैं।
इस तरह के विकल्प जायज भी हैं और यह दुनिया भर में विशेष रूप से अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने के साथ-साथ महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार करने में योगदान देते हैं। हालांकि यह पूर्ण रूप से सत्य नहीं है।
‘पसंद-नापसंद’ की आड़ में असलियत छिप सी गई है। दरअसल विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लयूएचओ) का अनुमान है कि छह में से एक दंपति बांझपन का शिकार है। डब्ल्यूएचओ ने अप्रैल में एक रिपोर्ट में दावा किया था कि 17.5 प्रतिशत व्यस्क आबादी बांझपन का शिकार है और यह संख्या साल दर साल बढ़ रही है।
सबसे हैरानी वाली बात जो सामने आई वह ये थी कि बांझपन के मामलों में लिंग के बीच कोई खास अंतर नहीं है। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक, व्यस्क आबादी में जहां 35 फीसदी महिलाएं बांझपन का शिकार हैं तो वहीं 30 फीसदी पुरुष इस समस्या से जूझ रहे हैं हालांकि बाकी बचे लोगों में दोनों या फिर अज्ञात कारण हो सकते हैं। पुरुष बांझपन आम है और इसे आय या फिर भौगलिकता के आधार पर बांटा नहीं जा सकता है। पुरुष स्वास्थ्य के बारे में यह एक ऐसी चीज है, जिसपर ज्यादातर लोग बात करना नहीं चाहते हैं।
पुरुष बांझपन के सही स्तर को नहीं पहचान पाना स्वास्थ्य क्षेत्र की विफलता को दर्शाता है और कहीं न कहीं बांझपन दूसरी बीमारियों की एक प्रमुख वजह या फिर कारण हो सकता है।
ज्यादातर पुरुषों के लिए कारण अज्ञात ही रहते हैं। दरअसल इसके पीछे की वजह प्रजनन कोशिकाओं के उत्पादन की पर्याप्त जानकारी न होना है। इन कोशिकाओं को युग्मक के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा लोगों को इस बात की जानकारी भी नहीं है कि कैसे पर्यावरण व जीवनशैली कारक इन कोशिकाओं के उत्पादन को प्रभावित करते हैं।
पुरुष बांझपन के प्रमुख कारणों का पता लगाने के लिए जरूरत है कि इसके उपप्रकारों की पहचान के लिए प्रयास बढ़ाए जाएं। हमें सिर्फ सीमेन संघटन के आधार पर मरीजों की पहचान कर उन्हें प्रजनन में सहायता देने की कवायद पर जोर नहीं देना चाहिए बल्कि हमें समस्या से दूर भागने के बजाए इसके इलाज की रणनीति बनानी चाहिए।
सबसे खतरे की बात यह है कि पुरुष बांझपन के सटीक निदान के लिए जांच बहुत ही दुर्लभ है, जिसके कारण इलाज के कुछ चुनिंदा विकल्प ही मौजूद हैं।