केरल सरकार ने राज्य विधानसभा द्वारा पारित आठ विधेयकों के संबंध में राज्यपाल की ओर से कार्रवाई नहीं किए जाने का दावा किया है और कहा कि इनमें से कई विधेयक व्यापक जनहित से संबंधित हैं और इसमें कल्याणकारी उपायों को शामिल किया गया है, जिनकी मंजूरी में देरी से राज्य की जनता इनसे मिलने वाले लाभों से वंचित है। याचिकाकर्ता केरल राज्य के लोगों के प्रति अपने कर्तव्य के निर्वहन को पूरा करने के उद्देश्य से राज्य विधानसभा द्वारा पारित आठ विधेयकों के संबंध में, राज्यपाल की निष्क्रियता के संबंध में न्यायालय से उचित आदेश चाहता है, जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत उनकी सहमति के लिए राज्यपाल को भेजा गया था।
केरल सरकार की ओर से याचिका में कहा गया, ‘इनमें तीन विधेयक दो साल से अधिक समय से राज्यपाल के पास लंबित हैं और तीन अन्य तकरीबन एक साल से अधिक समय से लंबित हैं। इन विधेयकों के माध्यम से जनता के लिए लागू की जाने वाली कल्याणकारी योजनाओं के संबंध में वर्तमान में राज्यपाल का जिस तरह का आचरण प्रदर्शित हो रहा है उससे राज्य के लोगों के अधिकारों के हनन के अलावा, कानून के शासन और लोकतांत्रिक सुशासन सहित हमारे संविधान के मूल सिद्धांतों और मूलभूत ढांचों के नष्ट होने का खतरा है।’ याचिका में यह भी कहा गया है कि संविधान का अनुच्छेद 200 किसी राज्यपाल के कर्तव्य से संबंधित है जिसमें कहा गया है कि राज्य विधानसभा द्वारा पारित कोई भी विधेयक उनके समक्ष पेश करने पर वह ‘या तो घोषणा करेंगे कि वह विधेयक पर सहमति देते हैं या उसे रोकते हैं अथवा वह विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखेंगे।’
याचिका में आगे कहा गया है कि विधेयकों को लंबे और अनिश्चित काल तक लंबित रखने का राज्यपाल का व्यवहार स्पष्ट रूप से मनमाना और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। तमिलनाडु और पंजाब ने भी इससे पूर्व विधेयकों को मंजूरी देने के मुद्दे पर अपने-अपने राज्यपालों की निष्क्रियता का दावा करते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया था। तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि और पंजाब के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित का क्रमश: एमके स्टालिन और भगवंत मान के नेतृत्व वाली द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) और आम आदमी पार्टी (आप) सरकारों के साथ विवाद जारी है।
स्टालिन सरकार भी पहुँची शीर्ष अदालत के पास
तमिलनाडु की एमके स्टालिन सरकार ने शीर्ष अदालत से विधानसभा द्वारा पास कराए विधेयकों को मंजूरी दिलाने के लिए हस्तक्षेप करने का आग्रह किया है। राज्य सरकार ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार के कामकाज में असंवैधानिक तरीके से व्यवधान डाला जा रहा है। अधिवक्ता सबरीश सुब्रमण्यम के जरिए दायर की गई याचिका में कहा, असाधारण परिस्थितियां इस तरह के उपायों को जन्म देती है। मांग करती हैं। सुप्रीम कोर्ट राज्यपाल आरएन रवि के हस्ताक्षर के लिए भेजी गई फाइलें और सरकारी आदेश पर विचार नहीं किये जाने को असंवैधानिक और अवैध घोषित करे।
पंजाब में आप ने राज्यपाल के खिलाफ दर्ज कराई शिकायत
उधर, पंजाब में आम आदमी पार्टी सरकार भी विधेयकों को मंजूरी न देने का आरोप लगाते हुए राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा चुकी है। हालांकि 28 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल करने के दो दिन बाद पुरोहित ने मंगलवार को विधानसभा में जीएसटी विधेयकों को पेश करने के लिए अपनी मंजूरी दे दी। इससे पहले राज्यपाल ने जीएसटी विधेयकों को अपनी सहमति देने से इनकार कर दिया था। जिस पर भगवंत मान सरकार को विशेष सत्र स्थगित करना पड़ा था। हालांकि, राज्यपाल ने अभी तक पंजाब राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (संशोधन) विधेयक 2023 को अपनी मंजूरी नहीं दी है।
नई दिल्ली (भाषा)। केरल सरकार ने राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के खिलाफ देश की सर्वोच्च अदालत में शिकायत की है। कहा है कि वह राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी नहीं दे रहे हैं। उनके पास 8 विधेयक लंबित पड़े हैं। केरल सरकार ने आरिफ मोहम्मद पर राज्य विधानसभा में पारित विधेयकों को मंजूरी देने में देरी करने का आरोप लगाते हुए इसके विरुद्ध उच्चतम न्यायालय का रुख किया है और दावा किया कि इससे ‘जनता के अधिकारों का हनन’ हुआ है। इससे पूर्व तमिलनाडु और पंजाब सरकारें भी अपने अपने राज्य के राज्यपालों पर संबंधित विधानसभा में विधेयकों के पारित होने के बावजूद उन्हें मंजूरी देने में देरी का आरोप लगाते हुए शीर्ष अदालत का रुख कर चुकी हैं। राज्यपाल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख करने वालों में केरल सरकार अकेली नहीं है, इससे पहले पंजाब की आम आदमी पार्टी और तमिलनाडु की एमके स्टालिन सरकार भी अपने राज्यों के राज्यपाल के खिलाफ मोर्चा खोल चुकी हैं।