वादे के मुताबिक 30 अप्रैल को डोनाल्ड ट्रंप दोबारा अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के बाद से 100 दिनों का हिसाब देंगे। 20 जनवरी 2025 को राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद ट्रंप अब तक 140 कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर कर चुके हैं। इनमें से आठ फैसलों ने सबसे ज्यादा सनसनी मचाई, जिसका असर अमेरिका समेत पूरी दुनिया में देखने को मिल रहा है।
(1) पहला फैसला अमेरिका में रह रहे 2 करोड़ अवैध प्रवासियों को बाहर निकालने का था। उसके बाद पकड़े गए अवैध प्रवासियों की संख्या में 62.7% की बढ़ोतरी हुई है और सीमा पार करने वालों की संख्या में 94% की कमी आई है। 2 करोड़ अवैध प्रवासियों को वापस भेजने का काम शुरू कर दिया गया है। इसमें 332 भारतीय प्रवासी भी शामिल हैं। इन्हें जंजीरों से बांधकर कार्गो विमानों में डाला गया जिसमें ठीक से बैठने और बाथरूम की भी पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी। खाने-पीने की व्यवस्था भी बेहद खराब थी। इन्हें भेड़-बकरियों से भी बदतर हालात में भारत के चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर उतारा गया और यह बात उन्हीं प्रवासियों ने खुद बताया।
500 साल पहले 20 लाख मूल निवासियों के क्रूर नरसंहार वर्तमान अमेरिका के निर्माण किया गया और आज उसी कब्र पर अमेरिका खड़ा है। डोनाल्ड ट्रम्प के अपने पूर्वज अप्रवासी की श्रेणी में आते हैं। ट्रम्प शुद्ध अमेरिकियों के अमेरिका का गीत गा रहे हैं। पूरा अमेरिका बाहरी लोगों से भरा पड़ा है।
2) दूसरा फैसला टैरिफ को लेकर जैसे को तैसा वाली नीति लागू करना था। 2 अप्रैल को 75 देशों पर टैरिफ लगा दिए गए। इससे कई देशों में खलबली मच गई। मंदी की आशंकाओं के बीच चीन को छोड़कर बाकी सभी देशों पर 90 दिनों के लिए टैरिफ स्थगित कर दिए गए। इस फैसले का 75 देशों की जीडीपी पर नकारात्मक असर पड़ा। जिसकी वजह से जर्मनी, ब्रिटेन में उत्पादन और दक्षिण कोरिया को निर्यात में 5% की कमी आई है। और इसका असर भारत में भी खुलकर दिख रहा है। लेकिन मौजूदा सरकार खामोश बैठी है।
(3) विदेश नीति को लेकर, जिसकी वजह से कूटनीतिक भूचाल आ गया है। विदेशी सहायता यूएसएआईडी के तहत दुनिया भर के 83% अनुबंध रद्द कर दिए गए हैं। पनामा नहर और ग्रीनलैंड पर नियंत्रण की मांग की गई है। इसकी वजह से वैश्विक सहायता और कूटनीतिक अनिश्चितता बढ़ गई है। यूएसएआईडी के बंद होने की वजह से 100 देशों में हज़ारों लोगों को नौकरी से निकाल दिया गया है। जिसकी वजह से स्वास्थ्य सेवा और शैक्षणिक परियोजनाएं और महिलाओं और बच्चों के लिए योजनाएं और कई मानवीय सेवाएं बंद हो गई हैं। हालाँकि, अमेरिका की समृद्धि पूरी दुनिया के शोषण पर आधारित है। सबसे भयावह बात यह है कि अमेरिका पाँच सौ वर्षों से हथियारों और तथाकथित तकनीक के ज़रिए पूरी दुनिया का शोषण कर रहा है। अपने पापों का दोष कम करने के लिए वह USAID के नाम पर तथाकथित मदद दे रहा था।
(4) अमेरिका के विभिन्न विश्वविद्यालयों के कामकाज में हस्तक्षेप, विश्वविद्यालयों में DEI कार्यक्रमों पर रोक लगा दी गई है। और सभी विश्वविद्यालयों से विदेशी अनुदानों का रिकॉर्ड मांगा गया है। दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय हार्वर्ड की 2.3 बिलियन डॉलर की फंडिंग रोक दी गई है। एक हज़ार से ज़्यादा अंतरराष्ट्रीय छात्रों के वीज़ा रद्द कर दिए गए हैं। सैकड़ों को निर्वासित कर दिया गया है। इससे शिक्षा के क्षेत्र में तनाव और अनिश्चितता बढ़ गई है। 200 विश्वविद्यालयों ने स्वायत्तता को लेकर सवाल उठाए हैं। हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने इस मनमानी को लेकर अदालत में मामला दायर किया है।
(5) विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) में अमेरिका की सदस्यता रद्द कर दी गई। इसके कारण पूरी दुनिया में स्वास्थ्य सेवाएँ कमज़ोर हो गई हैं। अफ्रीकी देशों में वैक्सीन वितरण प्रभावित हुआ है।
(6) 10 फरवरी को उसने NATO की फंडिंग रोकने की धमकी दी। इसके कारण यूक्रेन को युद्ध सहायता प्रभावित होने की संभावना है। क्योंकि रूस के साथ युद्ध विराम वार्ता यूक्रेन की सहमति के बिना शुरू हो गई है। 4 मार्च को यूक्रेन को सैन्य सहायता भी रोक दी गई, जिसे बाद में जारी कर दिया गया।
(7 ) पिछले 20 महीनों से गाजा पर इजरायल के हमले जारी हैं। हर दिन सैकड़ों मासूम बच्चे मर रहे हैं। इसे रोकने के बजाय, उन्होंने इजरायल का पूरा समर्थन किया है। 20 मार्च को उन्होंने गाजा पट्टी पर कब्ज़ा करके इसे समुद्री सैरगाह में बदलने की बात कही है। इजरायल गाजा पट्टी में रहने वाले फिलिस्तीनियों का वैसा ही नरसंहार कर रहा है, जैसा हिटलर ने यहूदियों के साथ किया था। वर्तमान यहूदी प्रधानमंत्री नेतन्याहू गाजा में यही कर रहे हैं। डोनाल्ड ट्रम्प उनकी मदद कर रहे हैं और गाजा पट्टी को उन्हें सौंपने की बात कर रहे हैं। सौ साल से भी पहले ट्रम्प के रूप में दूसरा हिटलर उभर रहा है।
(8) अमेरिकी प्रशासनिक सेवा के 50,000 कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य और ऊर्जा विभाग शामिल हैं। 77,000 कर्मचारियों ने खुद ही इस्तीफा दे दिया है। इसके कारण अमेरिका में बेरोजगारी दर बढ़कर 4.2% हो गई है। इसके अलावा कॉरपोरेट टैक्स को 21% से घटाकर 15% कर दिया गया और फेडरल रिजर्व बैंक पर ब्याज दरें कम करने का दबाव बनाया गया। बंदरगाहों पर स्वचालन अनिवार्य कर दिया गया। इन सबके परिणामस्वरूप अमेरिका में मुद्रास्फीति बढ़ गई और ब्याज दरें 4.25 पर पहुंच गईं। गैस 4.3%, ऑटो पार्ट्स 6% महंगे हो गए और आयातित वस्तुओं की कीमत में 7% की वृद्धि हुई। फलों और सब्जियों की कीमत में 4.8% और आवास की कीमत में 5.1% की वृद्धि हुई। अमेरिका के सभी स्थानों पर लाखों लोगों ने ट्रम्प के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है।
भारत में, मई 2014 में शपथ लेने के बाद, नरेंद्र मोदी ने सबसे पहले योजना आयोग को बर्खास्त कर दिया। रोजगार कार्यालयों को भी बंद कर दिया। बेरोजगारी के आंकड़े देना बंद करने का आदेश दिया। लेकिन विपक्षी दलों या देशवासियों की ओर से विरोध का एक भी उदाहरण नहीं है। फिर, काले धन को खत्म करने के नाम पर नोटबंदी जैसा फैसला लेकर, काला धन वापस आना तो दूर लेकिन छोटे उद्योग बंद होने से लाखों लोग बेरोजगार हो गए। रिजर्व बैंक के इतिहास में पहली बार किसी ने रिजर्व बैंक के रिजर्व फंड को छुआ। इसी तरह से जीएसटी और अन्य कर आम लोगों की जेब से काटे जा रहे हैं। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप की तरह ही कॉरपोरेट जगत के करों में कमी की गई। बैंकों से लिए गए उनके लाखों-करोड़ों रुपए के कर्ज को माफ कर दिए गए। उदाहरण के लिए अनिल अंबानी का 48,500 करोड़ रुपए का कर्ज उनके बड़े भाई मुकेश अंबानी ने 450 करोड़ रुपए देकर माफ कर दिया। इसी तरह से अन्य उद्योगपतियों के कर्ज भी माफ किए गए हैं। कुछ उद्योगपतियों ने हमारे बैंकों से कर्ज लेकर आराम से विदेश भागना पसंद किया है। लेकिन जब कोई आम आदमी अपने परिवार की समस्याओं के लिए बैंक से कर्ज लेता है तो बैंक उससे ब्याज सहित कर्ज की रकम कॉलर पकड़ कर वसूल करता है। इस कारण पांच लाख से ज्यादा लोग आत्महत्या कर चुके हैं।
जिस तरह से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पूंजीपतियों को सुविधाएं दे रहे हैं, नरेंद्र मोदी जी ने भारत में यह काम दस साल पहले ही शुरू कर दिया था। इसलिए दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। भारत और अमेरिका के आम नागरिकों के लिए जिसे सामाजिक कल्याण कहते हैं, उसे कम करने की प्रक्रिया दोनों देशों में चल रही है। स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को निजी मालिकों को सौंपा जा रहा है। क्योंकि अमेरिका का नागरिक समाज सतर्क है, इसलिए अमेरिका में लोग ट्रंप के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन सबसे दुखद बात यह है कि हमारे देश के अधिकांश लोग हिंदू-मुस्लिम जुगलबंदी में उलझे हुए हैं। हमारे रोजमर्रा के मुद्दों पर कोई खास प्रतिरोध नहीं हो रहा है। यह सबसे बड़ी त्रासदी है।