वाराणसी। यूपी के कई जिलों में बसने वाले गोंड समुदाय के लोग वर्षों से अनुसूचित जनजाति प्रमाण-पत्र के लिए कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। फिलहाल उनमें सरकार की मंशा को लेकर भारी नाराजगी है।
अखिल भारतवर्षीय गोंड महासभा के प्रदेश अध्यक्ष राजेश गोंड कहते हैं कि ‘शिक्षक भर्ती की तरह पुलिस कॉन्स्टेबल भर्ती में भी वर्तमान सरकार को खेल कर सकती है। शिक्षक भर्ती (यूपी) में 1370 सीटें आई थीं, जिसमें मात्र 250 अभ्यर्थियों ने ही फॉर्म भरा। शेष 1170 लोग जाति प्रमाण-पत्र के अभाव में लटक गए। इन 1170 सीटों क्या हुआ इसकी कोई जानकारी नहीं है। न ही सरकार की कोई जवाबदेही दिख रही है।’
राजेश गोंड ने आगे बताया कि भारत के राजपत्र के अनुसार, यूपी के सत्रह जिलों में गोंड समुदाय के लोगों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया है।
बलिया, चंदौली, मऊ, आजमगढ़, सोनभद्र, मिर्जापुर, भदोही, जौनपुर, महाराजगंज, बस्ती, सिद्धार्थ नगर, गोरखपुर, संत कबीर नगर, कुशीनगर, गाजीपुर और वाराणसी की कई तहसीलों में अनुसूचित जनजाति प्रमाण-पत्र के लिए गोंड समुदाय के लोग वर्षों से चक्कर काट रहे हैं। देवरिया में सभी लोगों को जनजाति प्रमाण-पत्र जारी कर दिए गए हैं।
जानकारी के अनुसार, अनुसूचित जनजाति प्रमाण-पत्र को लेकर बलिया में गोंड समुदाय के लोग बीते 2 जनवरी से धरना-प्रदर्शन पर बैठ गए थे। वहीं, मऊ में कुछ दिन पूर्व अनुसूचित जनजाति के पाँच लोगों को गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया गया। आरोप है कि आंदोलनकारी घोसी तहसीलदार का आवास घेरकर तोड़फोड़ करने की कोशिश कर रहे थे।
अखिल भारतवर्षीय गोंड महासभा के जिलाध्यक्ष (मऊ) फौजी किशनलाल ने कहा कि पाँचों लोगों को छुड़वाए जाने की प्रक्रिया चल रही है। उम्मीद है कि आज यह लोग छूट जाएँगे। हालांकि, खबर लिखे जाने तक वह नहीं छूटे थे।
फौजी ने कहा कि धरना-प्रदर्शन के बावजूद मात्र 25-30 लोगों को जाति प्रमाण-पत्र जारी किया गया है। जबकि मऊ में गोंड समुदाय की आबादी लगभग 1 लाख 30 हजार है। हाल ही में भाजपा के मंत्री एके शर्मा आए थे, उन्हें भी ज्ञापन दिया गया था।
’अपने’ लोगों के लिए सरकार नहीं दे रही है जाति प्रमाण-पत्र?
‘अभागोम’ के प्रदेश अध्यक्ष राजेश गोंड ने कहा कि ‘भाजपा सरकार गोंड जाति के लोगों को संदिग्ध दृष्टि से देखते हैं।’ इसकी वजह वह बताते हैं कि समाजवादी पार्टी के शासन में गोंड समुदाय के हजारों-लाखों लोगों का जाति प्रमाण-पत्र बना था। भाजपा के लोग यह समझते हैं कि हम लोग ‘सपाई’ हो गए हैं। यह भी एक कारण है कि हमें जाति प्रमाण-पत्र नहीं दिए जा रहे हैं।
धारा 144 को लेकर रोक दिया गया धरना
बलिया में गोंड जाति के युवाओं का आरोप है कि अनुसूचित जनजाति प्रमाण-पत्र के लिए ऑनलाइन फॉर्म भरने की व्यवस्था दी गई है, लेकिन लेखपाल और तहसीलदार कोई न कोई बहाना करके आवेदन को निरस्त कर दे रहे हैं।
जिले में गोंड-खरवार जाति के लोग कई वर्षों से अनुसूचित जनजाति प्रमाण-पत्र के लिए धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। लोगों के अनुसार, ‘उन्हें हर बार आश्वासन ही मिलता आया है। इसी कारण हम लोग सरकारी जॉब के लिए भी आवेदन नहीं कर पा रहे हैं। हाल ही में पुलिस भर्ती के लिए भी जाति प्रमाण-पत्र माँगा जा रहा है जो हमारे पास नहीं है।’
आंदोलन में शामिल बलिया तहसील के मुकेश गोंड बताते हैं कि फिलहाल धरना बंद कर दिया गया है, क्योंकि 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर धारा 144 लगा दी गई है। जिलाधिकारी ने कहा है कि इस भीषण ठंड में धरना-प्रदर्शन मत करिए। जाति प्रमाण-पत्र बनाने का काम कुछ दिन बाद शुरू हो जाएगा।
समाजवादी पार्टी ने समर्थन किया
अनुसूचित जनजाति प्रमाण-पत्र को लेकर चल रहे आंदोलन को समाजवादी पार्टी ने अपना समर्थन दिया है। सपा के पूर्व मंत्री नारद राय ने कहा कि ‘सपा शासन में गोंड-खरवार के लोगों को जाति प्रमाण-पत्र के लिए तहसीलों के चक्कर नहीं काटने पड़ते थे, लेकिन भाजपा सरकार इस वर्ग का शोषण कर रही है।’
वहीं, बलिया के सपा उपाध्यक्ष सुशील पांडेय ने सवाल किया कि ‘जब जिलाधिकारी ने प्रमाण-पत्र जारी करने का आदेश दिया है तो हीलाहवाली क्यों की जा रही है?’ इस मामले में तहसीलदार और लेखपालों की काफी शिकायतें आ रही हैं। सैकड़ों आवेदनों को बेवजह अस्वीकृत और निरस्त कर दिया गया।
प्रमाण-पत्र न मिलने से भाजपा के लोग भी हैं परेशान
गोंड-खरवार को अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र न जारी करने के मामले को लेकर भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रदेश महामंत्री विद्या भूषण गोंड ने कहा कि ‘सरकारी कर्मचारी लोकसेवा अधिनियम का उल्लंघन कर रहे हैं। तहसीलों में फाइलें बनाकर तो रखी गई हैं, लेकिन बिना पैसे लिए जाति प्रमाण-पत्र नहीं जारी किया जाता है।’
विद्या भूषण गोंड ने आरोप लगाया कि ‘लेखपाल और तहसीलदार एक जाति प्रमाण-पत्र जारी करने के लिए कम से कम पाँच हजार रुपये की डिमांड करते हैं।’
वहीं, अखिल भारतवर्षीय गोंड महासभा ने भी जाति प्रमाण-पत्र के बदले तहसीलकर्मियों पर मोटी रकम माँगने का आरोप लगाया है। राजेश गोंड ने कहा कि ‘एक प्रमाण-पत्र के लिए कम से 20 से 25 हजार रुपये तक माँगें जाते हैं।’ इसकी वजह पूछने पर वह बताते हैं कि ‘गोंड जाति के अधिकतर लोग इतनी बड़ी रकम नहीं दे पाएँगे। इस कारण वह अपना जाति प्रमाण-पत्र नहीं बनवा पाते हैं। सरकारी नौकरियों में जाति प्रमाण-पत्र नहीं मिलने पर गोंड जाति के लोग छंट जाते हैं। खाली ‘सीटों’ पर सवर्ण जातियों के लोग काबिज हो जाते हैं।’
वह बताते हैं कि ‘गोंड जाति के कुछ लोगों को नौकरियाँ एफिडेविड यानी शपथ-पत्र के बलबूते मिलती हैं। नौकरी लगने के बाद तहसीलकर्मियों द्वारा जाति प्रमाण-पत्र के लिए और अधिक पैसों की डिमांड की जाती है।
माले ने भी प्रशासन को चेताया
भाकपा माले ने गोंड-खरवार को अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र जारी करने में जिला प्रशासनों द्वारा हीलाहवाली को बंद करने तथा शासनादेश के पालन करने की चेतावनी दी है। माले नेता लक्ष्मण यादव ने कहा कि ‘सरकार और प्रशासन छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है।’ माले नेता ने जल्द से जल्द शासनादेश पर अमल करते हुए जाति प्रमाण-पत्र जारी करने की माँग की। अन्यथा की दृष्टि में छात्रों के आंदोलन को माले भी अपना समर्थन देगी।
आजमगढ़ में भी मिला है आश्वासन
अखिल भारतवर्षीय गोंड महासभा के प्रदेश उपाध्यक्ष सुहेल प्रसाद गोंड ने कहा कि आजमगढ़ में जिलाधिकारी ने आश्वासन दिया है कि कुछ दिन बाद अनुसूचित जनजाति का प्रमाण-पत्र आवेदनकर्ताओं को जारी कर दिया जाएगा। वह बताते हैं कि जिले में गोंड जाति की आबादी लगभग दो लाख है। 1891 में गोंड जाति की आगादी 10 से 12 हजार लोग थे।
बीते 10 जनवरी को बैठक के दौरान जिलाधिकारी, एडीएम प्रशासन सहित अन्य अफसरों ने प्रमाण-पत्र जाति के लिए आश्वस्त कराया। शासन के आदेश को जल्द ही पारित किया जाएगा।