चुनाव जैसे जैसे नजदीक आते जा रहे हैं, भाजपा सरकार अपने कार्यकाल के उपलब्धियां बताने के बदले चर्चा में बने रहने के लिए आए दिन नए-नए जुमले उछालने में लग गई है। पुराने संसद भवन से नए संसद भवन में स्थानांतरित होते ही भाजपा सरकार ने महिला आरक्षण बिल को लागू करने का अप्रत्याशित मसला सदन में उछाल दिया। केंद्र सरकार ने जब संसद का विशेष सत्र बुलाने की घोषणा की तो दिल्ली का राजनीतिक पारा चढ़ गया और कयास के बादल मंडराने लगे कि अचानक विशेष सत्र क्यों बुलाया गया? महिला आरक्षण विधेयक लाने की घोषणा के बाद यह साफ हुआ कि सरकार की मंशा 2024 की लोकसभा चुनाव के मद्देनजर महिला वोटरों में पैठ बनाने की कोशिश है। लेकिन यह बिल 2029 तक भी लागू नहीं हो सकता क्योंकि, इस विधेयक में परिसीमन और जनगणना की दो ऐसी शर्तें लगाई गईं हैं, जिनके कारण आम चुनाव 2024 के बाद 2026 से पहले जनगणा का होना संभव नहीं। जनगणना के बाद ही परिसीमन का काम हो सकेगा। इस प्रकार महिला बिल का 2039 से पहले लागू होने की संभावाना नहीं लगती। इन दोनों शर्तों के लगाने से महिला आरक्षण भी एक चुनावी जुमला ही कहा जाएगा… कि नहीं? अगर ये दोनों शर्तें नहीं होतीं तो इसे सरकार का ईमानदारी से लिया गया निर्णय माना जा सकता था। अब विपक्ष सवाल कर रहा है कि इसे 2029 तक क्यों टाला जा रहा है? उसकी मांग है कि पुरानी जनगणना के आधार पर महिला आरक्षण को 2024 लोकसभा चुनाव से ही लागू होना चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो महिला बिल का लाना एक चुनावी जुमला ही सिद्ध होगा।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस योजना को नया नाम नारी शक्ति वंदन अधिनियम देकर इसे अपनी असीम उपलब्थि जताने का काम किया है। मोदी ने कहा कि ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ के माध्यम से लोकतंत्र मजबूत होगा। सरकार द्वारा महिला आरक्षण बिल को संविधान के 128वें संशोधन विधेयक के रूप में पेश किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिला आरक्षण को लेकर बड़ा ऐलान करते हुए ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ लाने की जानकारी देने के साथ-साथ नई लोकसभा में सभी सांसदों से इस बिल को सर्वसम्मति से पारित कराने की अपील की। पीएम मोदी ने नई संसद में अपने पहले संबोधन में महिला आरक्षण बिल का जिक्र करते हुए कहा कि ‘अनेक सालों से महिला आरक्षण के संबंध में बहुत चर्चाएं हुई हैं, बहुत संवाद हुए हैं। पहली बार यह साल 1996 में पेश हुआ था। अटलजी के समय भी कई बार पेश हुआ, लेकिन पास नहीं करा पाए। शायद ईश्वर ने ऐसे पवित्र काम के लिए मुझे चुना है।’ अब पीएम के इस कथन को क्या माना जाए कि वह अपने आप को ईश्वर का अवतार बताने का प्रयास कर रहे हैं।
पीएम मोदी ने इसके लिए महिलाओं को बधाई भी दी। सभी साथियों से इस बिल को सर्वसम्मित से पारित कराने की प्रार्थना करते हुए सदन का आभार भी व्यक्त किया। महिला आरक्षण बिल को संविधान के 128वें संशोधन विधेयक के रूप में पेश किया गया है। बिल पास भी हो गया। किंतु खबर है कि इस बिल में प्रावधान है कि राज्यों की विधानसभा और संसद में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित रखी जाएंगी।इसके लागू होते ही देश की संसद में और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण लागू हो जाएगा। इस बिल के मुताबिक, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों में से एक-तिहाई सीटें एससी-एसटी समुदाय से आने वाली महिलाओं के लिए आरक्षित रखी जाएंगी। इन आरक्षित सीटों को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अलग-अलग क्षेत्रों में रोटेशन प्रणाली से आवंटित किया जा सकता है। अफसोसजनक तो यह है इस विधेयक मेंओबीसी समुदाय की महिलाओं के लिए आरक्षण की कोई व्यवस्था ही नहीं की गई है। ऊपर से इस बिल के तहत महिला आरक्षण केवल 15 साल के लिए मिलेगा। उसके बाद इसे जारी रखने के लिए फिर से बिल लाना होगा।
याद रहे कि यह कोई पहला अवसर नहीं है, जबकि महिला आरक्षण को लागू करने का प्रावधान संसद में लाया गया है। महिला आरक्षण बिल साल 1996 से ही अधर में लटका हुआ है। उस समय एचडी देवगौड़ा की सरकार ने 12 सितंबर, 1996 को इस बिल को संसद में पेश किया था, लेकिन यह पारित नहीं हो सका था। यह बिल 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में पेश हुआ था। फिर साल 2010 में यूपीए सरकार में भी महिला आरक्षण विधेयक संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा में पेश किया गया था। हालांकि, राज्यसभा में यह पास हो गया था, लेकिन सहयोगी पार्टियों के दबाव के कारण विधेयक लोकसभा में नहीं लाया जा सका।
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18 सितम्बर, 2023 की शाम अचानक केंद्रीय कैबिनेट की बैठक बुलाई गई और मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, मोदी कैबिनेट ने महिला आरक्षण बिल को मंज़ूरी दे दी। यह बिल पिछले 27 साल से लटका हुआ था। कैबिनेट का फ़ैसला सार्वजनिक नहीं किया गया। किंतु चहुँओर इस बात की चर्चा तेज़ हो गई कि सरकार विशेष सत्र में महिला आरक्षण बिल पेश कर सकती है, और हुआ भी ऐसा ही।
महिला आरक्षण लागू कब से होगा? इस पर अलग-अलग कयास लगाए जा रहे हैं। द टाइम्स ऑफ इंडिया ने अनुसार, महिला आरक्षण 2024 से नहीं, 2029 के चुनावों से लागू होगा। कुछ दिन पहले ही कांग्रेस कार्य समिति ने मोदी सरकार से संसद के विशेष सत्र में इस बिल को पास करवाए जाने की मांग की थी। जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पर लिखा था, ‘कांग्रेस पार्टी पिछले नौ साल से मांग कर रही है कि महिला आरक्षण विधेयक, जो पहले ही राज्यसभा से पारित हो चुका है, उसे लोकसभा से भी पारित कराया जाना चाहिए।’ कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने लिखा, ‘आज पंचायतों और नगर पालिकाओं में 15 लाख से अधिक निर्वाचित महिला प्रतिनिधि हैं। यह 40 फ़ीसदी के आसपास है।
नवभारत टाइम्स (22.09.2023) में धर्मेंद्र कुमार सिंह लिखते हैं, ‘वैसे राजनीति अपनी जगह, लेकिन 27 साल के लंबे इंतजार के बाद महिला आरक्षण विधेयक का संसद से पारित हो जाना वाकई ऐतिहासिक है। संयोग देखिए, 27 साल से धूल फांकते इस बिल की किस्मत नई संसद में खुली है। इस बिल के कानून बन जाने और लागू होने के बाद संसद के स्वरूप में अधोलिखित महत्वपूर्ण बदलाव दिखेंगे।
वो इस प्रकार हैं :-
- लोकसभा में महिला सदस्यों की संख्या 82 से बढ़कर 181 हो जाएगी।
- इस बिल में आरक्षण की अलग से कोई व्यवस्था नहीं की गई है।
- दलित और आदिवासियों के लिए जितनी सीटें लोकसभा और विधानसभा के लिए आरक्षित हैं, उनमें से 33% इस समुदाय की महिलाओं के लिए निर्धारित हो जाएंगी। कानूनविदों और संविधान विशेषज्ञों के मुताबिक, आरक्षण की व्यवस्था में जिस वर्ग के लिए पहले से ही लोकसभा और विधानसभाओं में सीटें आरक्षित हैं तो उसी वर्ग के लिए दोबारा से और सीटें आरक्षित नहीं की जा सकती हैं। संवैधानिक प्रक्रिया के अनुसार, उसी आरक्षण में विशेष वर्ग के लिए निर्धारण किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता व बार काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन मनन मिश्रा के मुताबिक, अगर कोई भ्रमित है तो उसे यह समझ लेना चाहिए कि एसटी-एसटी महिलाओं को अलग से कोई आरक्षण नहीं दिया जाएगा।
- ओबीसी समुदाय के लिए आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। हालांकि, ओबीसी आरक्षण की मांग के चलते यह बिल इतने समय लटका रहा।
- इस बिल के तहत महिला आरक्षण 15 साल के लिए मिलेगा। उसके बाद इसे जारी रखने के लिए फिर से बिल लाना होगा।
दिलचस्प है कि आजादी के आंदोलन में अच्छी भागीदारी के बावजूद आजादी के बाद महिलाओं को राजनीति में ठीकठाक नुमाइंदगी नहीं मिल सकी। आज भी लोकसभा में महिलाओं की भागीदारी करीब 15 फीसदी और राज्यसभा में 13 फीसदी ही है। लोकसभा में 15 फीसदी की भागीदारी भी पहली बार 2019 के चुनाव में ही हो पाई। 1977 में जेपी आंदोलन के बावजूद महिलाओं का प्रतिनिधित्व सबसे खराब स्तर पर था, महज 3.5 फीसदी। लोकसभा में महिला सदस्यों की संख्या 82 से बढ़कर 181 हो जाएगी। इस बिल में आरक्षण की अलग से कोई व्यवस्था नहीं की गई है।
इन सबका परिणाम रहा कि 2019 लोकसभा चुनाव में करीब 50 फीसदी महिलाओं ने बीजेपी गठबंधन को वोट दिया। मगर 2019 के आंकड़े आगे काम नहीं आएंगे। अब 2024 के लोकसभा चुनाव सामने हैं और यह एक तथ्य है कि पूरे ताम-झाम से लाया जा रहा महिला आरक्षण विधेयक 2024 लोकसभा चुनावों में लागू नहीं होने जा रहा। ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि देरी से महिला वोटरों पर कैसा असर होता और उनका रुझान किस दल की तरफ होता है? लेकिन विपक्ष ने यह कहते हुए सवाल खड़े किए हैं कि आखिर सरकार ने इस विधेयक में परिसीमन और जनगणना की शर्त क्यों जोड़ी? अगर ये दोनों शर्तें नहीं होतीं तो 2024 के लोकसभा चुनाव से ही महिलाओं को आरक्षण का लाभ मिल सकता था। अब 2029 के लोकसभा चुनाव के बाद ही इसके लागू होने की उम्मीद है।
दरअसल, विधेयक के जरिये संविधान में एक नया अनुच्छेद 334(ए) जोड़ने का प्रस्ताव रखा गया है। यह अनुच्छेद कहता है, महिलाओं को दिया जाने वाला आरक्षण सीटों के परिसीमन के बाद प्रभावी होगा। यह परिसीमन कानून अधिसूचित होने के बाद होने वाली पहली जनगणना के आंकड़ों के प्रकाशन के बाद किया जाएगा। आरक्षण 15 सालों के लिए होगा और इसके बाद संसद की इच्छा के अनुसार लागू रहेगा। विधेयक की इस शर्त के कारण ही कांग्रेस ने सीधे-सीधे सरकार के इस कदम को चुनावी जुमला करार दे दिया।