मध्य प्रदेश के हरदा शहर में एक पटाखा फैक्ट्री में हुए भीषण विस्फोट ने 11 मजदूरों की जान ले ली। इसके अलावा, फैक्ट्री के आसपास रहने वाले लोगों सहित 200 से अधिक लोग घायल हुए हैं और राज्य के विभिन्न अस्पतालों में उनका इलाज चल रहा है। घटना का संज्ञान लेते हुए मजदूर एकता केंद्र, भारत (डब्ल्यू.यू.सी.आई.) ने राज्य में औद्योगिक उद्यमों में खतरनाक कार्यस्थितियों पर आंखें मूंदने के लिए मध्य प्रदेश सरकार की कड़ी भर्त्सना की है।
ज्ञात हो कि मध्य प्रदेश वह राज्य है जहां विश्व की सबसे कुख्यात औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक, भोपाल गैस त्रासदी हुई थी। भर्त्सनीय है कि बार-बार होने वाली ऐसी घटनाओं के बावजूद सभी सरकारें औद्योगिक उद्यमों में खतरनाक कार्यस्थिति व कार्यरत मजदूरों की सुरक्षा के प्रति पूरी तरह से उदासीन बनी हुई हैं।
औद्योगिक इकाइयों में व्याप्त अनौपचारिकता और अविनियमन के प्रकाश में यह कहा जा सकता है कि मजदूर सिर्फ आग लगने से मरे नहीं, बल्कि वो कार्यस्थलों और कार्य-सम्बन्धों में सरकारी नियंत्रण की गैर-मौजूदगी रूपी एक बहुत बड़े संकट के शिकार हैं।
आज ज़रूरी हो गया है कि कभी-कभी उजागर होने वाले औद्योगिक हादसों के पीछे के कारणों को भी देखा जाए। यह उजागर करना बेहद ज़रूरी है कि लाखों मजदूर रोज़ खतरनाक और जानलेवा कार्यस्थिति में काम करने को मजबूर किए जाते हैं क्योंकि उनकी कार्यस्थिति पर कोई भी सरकारी नियंत्रण नहीं है और श्रम क़ानून भी इन कामगारों को अपने प्रावधानों के दायरे में नहीं लाते हैं। नागरिक एजेंसियों द्वारा नज़रअंदाज़गी का आलम यह है कि हरदा की इस फैक्टरी में पहले भी विस्फोट हुआ था, लेकिन फिर भी इसे एक रिहायशी इलाके में खोलने की इजाज़त दे दी गयी।
ऐसी नजरंदाजगी के अतिरिक्त, काम की जगह पर सुरक्षा के मानक, काम के घंटे, न्यूनतम मजदूरी, मुआवजे, औद्योगिक झगड़े, इत्यादि संबन्धित जो मौजूदा श्रम कानून हैं वो सरकारों द्वारा समय-समय पर बदले भी जाते रहे हैं, जिस कारण कार्य-सम्बन्धों में अनौपचारिकता व्याप्त है और असुरक्षित अनौपचारिक क्षेत्र में बेहिसाब बढ़ोत्तरी हुई है। इसलिए हरदा में विस्फोट की घटना सिर्फ एकलौता हादसा नहीं है, बल्कि यह एक बड़ी अविनियमन और अनौपचारिकता के संकट की ओर इंगित करती है।
इस बढ़ती हुई अनौपचारिकता को बढ़ाने में मददगार सत्तारूढ़ पार्टियों के नेताओं की भी कलई खोलना आवश्यक है। इन नेताओं द्वारा जनता के बीच भावुकता दिखाना घड़ियाली आँसू बहाने के समान है क्योंकि इन्हीं नेताओं की पार्टियों ने श्रम क़ानूनों में संशोधन कर उद्योग मालिकों की ताकत को बढ़ाया है। इसका एक उदाहरण श्रम क़ानूनों के पालन का उद्योग मालिकों द्वारा स्वयं-प्रमाणन प्रणाली है जिसको लाने में इन नेताओं की पार्टियों का हाथ है। सरकारों द्वारा स्वयं-प्रमाणन प्रणाली को बढ़ावा देना और श्रम-निरीक्षण को लगातार कमजोर करना, मालिकों की ताकत को बढ़ाता है, जो श्रम कानून का उल्लंघन कर अविनियमित श्रम-सम्बन्धों के समय में खुद का कानून लागू करने वाले बन गए हैं।
मजदूर एकता केंद्र इस घटना के लिए जिम्मेदार मध्य प्रदेश सरकार की कड़ी भर्त्सना करता है और तुरंत मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग करता है। साथ ही, इस घटना की उच्च न्यायालय की निगरानी में एक जांच, इसके लिए जिम्मेदार नागरिक एजेंसियों के अधिकारियों की बर्खास्तगी, और सभी मृतकों के परिवारों को 50 लाख व घायलों को 25 लाख मुआवज़े की मांग करता है।
(आलोक कुमार, जनरल सेक्रेटरी, मजदूर एकता केंद्र, भारत द्वारा जारी)