एक ऐसा मामला जिसमें अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई और एक परिवार भुखमरी के कगार पर पहुँच गया । किसने की हत्या इसका कोई पता नहीं?
आज से करीब 20 वर्ष पूर्व उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले का कोइलासवा गाँव मष्तिष्क ज्वर और भूख से होनेवाली मौतों के सिलसिले में सुर्खियों में आया था। उसके बाद से ही पूर्वांचल, खासकर देवरिया और कुशीनगर आदि जिलों में मैंने मुसहर समुदाय के बीच जाने की शुरुआत की और उनकी समस्याओं को समझने के प्रयास किया।
अबकी बार भी कोइलासवा गाँव के मुसहर न्याय मांग रहे हैं लेकिन वे कहते हैं कि उनकी बात सुनी ही नहीं जा रही और और मीडिया के पास समय नहीं है। गाँव के बनारसी मुसहर, जिनकी उम्र 55 वर्ष की रही होगी, की 23 मई 2020 की रात में हत्या कर दी गयी। उनकी हत्या बेहद बेरहमी से की गयी। उनके पुत्र सुनील के अनुसार उनका सर कलम कर दिया गया था। सुनील बताते हैं कि रात में उनके पिता और उनके मित्र रामप्रीत नट दोनो राज कुमार जायसवाल के उस खेत पर गए जहाँ बनारसी मुसहर उनके 10 बीघा खेत की रखवाली करते थे और बदले में एक बीघा खेत में उन्हें अनाज बोने और खाने कमाने की छूट थी। स्थानीय भाषा में इस व्यवस्था को सीरवाई कहते हैं। यह काम के बदले में अनाज योजना का सामंती संस्करण है ।
उस तारीख की रात के 9 बजे सुनील अपने पिता और रामप्रीत को खेत तक छोड़ कर आया और साथ में उनका खाना भी था। दोनों बहुत गहन मित्र थे। अगले दिन सुबह करीब 8 बजे जब लोग शौच के लिए गाँव के बाहर की तरफ गए तो उन्होंने बनारसी का शव देखा और सड़क की दूसरी और रामप्रीत मूर्छित अवस्था में गिरा पडा था। गाँव में हड़कंप मच गया । ग्राम प्रधान केशव यादव ने तुरंत पुलिस को फोन किया और शव का पंचनामा करवा दिया । रामप्रीत को जिला अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया। उसकी हालत भी खराब थी लेकिन कुछ दिनों बाद जब वह ठीक हुआ तो पुलिस ने रामप्रीत को आरोपी बना कर जेल भेज दिया। बनारसी मुसहर की पत्नी राजमती और बेटा सुनील आरोप लगा रहे हैं कि पुलिस ने बिना कोई जांच किये असली हत्यारों को बचाने की कोशिश की है। रामप्रीत नट जेल में है और उसके छोटे बच्चे घर में परेशान हैं । दूसरे, बनारसी मुसहर के परिवार का जीवन अब दूभर हो गया है क्योंकि उन्हें न तो कोई सहायता मिली और न ही राजकुमार जायसवाल, जिनके खेत में वह काम करते थे, ने किसी भी प्रकार की कोई सहायता दी है।
क्या घटना है और परिवार क्या कहता है ?
बनारसी मुसहर और उनका परिवार बहुत मेहनती था । बनारसी पहले सरकारी सस्ते गल्ले की दूकान चलाते थे और यह बात वहाँ की सामंती जातियों को मंज़ूर नहीं थी। तत्कालीन वार्ड मेम्बर केशव यादव ने बनारसी के खिलाफ में भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर उनका कोटा छिनवा लिया था। बनारसी इस बात से बहुत परेशान थे लेकिन उनके आत्म सम्मान ने उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। उन्होंने राजकुमार जायसवाल के 10 बीघा खेत को सीरवाई पर ले लिया। उस समय जायसवाल के खेत की स्थिति बहुत ख़राब थी। बनारसी ने मेहनत कर खेत पर कई पेड़ लगाए और वहाँ की रखवाली करता था। परिवार के लोगों का कहना था कि जायसवाल के खेत से जुड़ा 10 बीघा खेत किसी यादव जी का है जिसके कारण दोनों में तनाव था। कई बार यादव समाज की गाय-भैंस अगर जायसवाल के खेत में आतीं तो बनारसी उन्हें खदेड़ देता और शायद ऐसे ही कई और कारण रहे होंगे जिसके कारण वे लोग नाराज रहे हों।
बनारसी की पत्नी राजमती कहती है कि रामप्रीत नट के साथ उनके पारिवारिक रिश्ते हैं और वह ऐसा नहीं कर सकता। आखिर वह ऐसा करेगा क्यों ? उसका कहना है रामप्रीत कोर्ट में गवाही देने को तैयार है लेकिन अभी तक उससे किसी ने कोई बात नहीं कही है।
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राजमती का कहना है कि प्रधान केशव यादव ने अपने आप ही शव का पंचनामा करवाया जिसमें उसके परिवार का कोई सदस्य नहीं था। खुद ही पुलिस से सब कुछ करवा कर मामले को रफा-दफा करवाने की कोशिश की है। आज तक प्रधान और अन्य कोई लोग, चाहे यादव हो या जायसवाल, उनके घर पर नहीं आये और न ही किसी पुलिसकर्मी ने उन तक पहुंचने की कोशिश की। राजमती स्थानीय चौकी पर कई बार जा चुकी है । वहाँ से उसे थाने में भेज देते हैं और जब वह थाना जाती है तो वहाँ के पुलिसकर्मी उसे पुलिस चौकी में जाकर पता करने के लिए कहते हैं । जिला मुख्यालय पडरौना में है जो उसके यहाँ से बहुत दूर है। ऐसे समय में जब परिवार के खुद के खाने के लाले पड़े हों तो वह सीनियर पुलिस अधिकारियों तक भी नहीं पहुँच सकती। एक बार मुसहर लोगों ने कोशिश भी की लेकिन लॉकडाउन के चलते उन्हें बताया गया कि अभी अधिकारी किसी से नहीं मिल रहे हैं।
बनारसी के बेटे सुनील का कहना है कि उसके पिता शरीर से काफी तंदुरस्त थे और रामप्रीत नट अगर कोशिश भी करते तो हत्या करना संभव नहीं था। वह यह भी कह रहा था कि घटनास्थल से हॉकी स्टिक भी मिली लेकिन जब दोनों लोग घर से निकले थे तब उनके पास कुछ भी नहीं था। सुनील का कहना है कि यदि रामप्रीत को उसके पिता का मर्डर करना होता तो वह उनके खेत में ही करता क्योंकि वह तो सुनसान जगह थी। आखिर जायसवाल और यादव के खेतों से दूर गाँव के अंतिम छोर पर सरेराह सड़क पर तो हत्या करने का कोई मतलब नहीं था। फिर वह स्वयं भी इतनी बुरी तरह से घायल थे कि बेहोशी की अवस्था में ही उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया था।
क्या हुआ होगा
राजमति और सुनील कहते हैं कि 23 मई की रात को 11 बजे तक यादव लोगों ने खेतों में ट्रेक्टर चलाया और अपने अलावा अन्य लोगों के खेतों को भी जोत दिया। रात भर डीजे चल रहा था और भयंकर शोर था। उन्हें लगता है कि जब बनारसी और रामप्रीत अपने खेत की और जा रहे होंगे तभी उन्हें एक योजना के तहत मारा गया होगा। बनारसी अपने कोटे के लिए लड़ाई लड़ रहे थे और इसमें उनका काफी पैसा खर्च हो चुका था। उनके पास जो थोड़ी-बहुत जमीन थी वह ‘रेहन’ पर दे कर उन्होंने पैसे इकठ्ठा किये। बनारसी का ईमानदारी से अपने ‘मालिक’ राजकुमार जायसवाल की सेवा करना और उनका स्वाभिमान शायद उनके विरोधियो को नहीं भाया और इसीलिए उनकी हत्या की गयी।
इस पूरे प्रकरण में राजकुमार जायसवाल की चुप्पी पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं । राजमति कहती है कि बनारसी की हत्या के बाद से जायसवाल ने उन्हें किसी भी प्रकार की मदद करने से इनकार कर दिया । यहाँ तक कि उनसे सीरवाई भी छीन ली। एक दिन उनकी पत्नी अपने जानवरों के लिए कुछ घास लेने जा रही थी तो उन्हें वहाँ आने से मना कर दिया गया। सबसे बड़ी बात है कि राजकुमार जायसवाल ने परिवार को किसी भी प्रकार का आर्थिक और नैतिक सहयोग देने से इनकार कर दिया। अब राजकुमार जायसवाल ने वह खेत यादव बिरादरी के किसी व्यक्ति को सीरवाई पर दिया है।
पुलिस की भूमिका कैसी रही है ?
पुलिस ने इन केस को दोनों द्वारा ताड़ी पीकर एक दूसरे से झगड़ाकर मारपीट करने और रामप्रीत द्वारा बनारसी की हत्या कर देने का दावा किया है। पुलिस का कहना है कि दोनों ने रात को साथ में ताड़ी पी और फिर किसी बात के लिए दोनों के बीच झगड़ा हो गया। आपसी मारपीट में बनारसी की मौत हो गयी और रामप्रीत घायल हो गया। लेकिन पुलिस की ये बातें पूर्वाग्रहों से भरी और स्थानीय लोगों के कहने के आधार पर बनाई गयी लगती हैं। पहला सवाल तो यही उठता है, और जो खुद बनारसी के परिवार वाले कह रहे हैं कि यदि शराब पीकर दोनों को झगड़ा करना होता तो वह राजकुमार जायसवाल के खेत में किया जा सकता है, जहाँ वे रात को रहते भी थे। वह जायसवाल और यादवों के खेत में न होकर स्कूल के पास रोड पर की गयी। परिवार वाले यह भी कहते हैं कि शारीरिक क्षमता में बनारसी रामप्रीत से बहुत अधिक बलिष्ठ था। प्रश्न यह भी उठता है कि क्या इस घटनाक्रम में पुलिस ने बनारसी और रामप्रीत के परिवार वालों और अन्य ग्रामीणों से कोई बात की ? बनारसी और रामप्रीत के परिवार वालों का कहना है कि उनसे कोई पूछताछ नहीं की गई । दूसरा सवाल यह कि क्या पुलिस को जायसवाल और ग्राम प्रधान केशव यादव से सवाल नहीं पूछना चाहिए था? आखिर, बनारसी मुसहर गाँव का 7 वर्ष तक कोटेदार भी था और निश्चित तौर पर अपने समाज के हिसाब से एक सम्मानित व्यक्ति भी था। राजमति मुसहर कहती है कि अब यादव और जायसवाल मिल गए हैं और हमें दूर कर दिया गया है। वह पूछती है क्या इसके लिए उनके पति की बलि देना जररूरी था?
घटना की दोबारा जांच हो और एस सी एस टी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज हो
बनारसी के परिवार के सदस्य पुलिस के रवैये से बहुत परेशान हैं। राजमति और सुनील कई बार चौकी और थाने के चक्कर लगा चुके हैं लेकिन उन्हें कुछ नहीं पता कि क्या हो रहा है? प्रधान केशव यादव के ही आधार पर एफ़आईआर दर्ज की गयी है जबकि राजमति से एक भी बार नहीं पूछा गया कि उसका शक किस पर है? वह कहती है पुलिस रामप्रीत से गवाही क्यों नहीं दिलवा रही? पुलिस ने एक भी दिन उससे बात नहीं की। पुलिस का यह रवैय्या केवल यह दिखाता है कि मुसहरों के बारे में व्याप्त पूर्वाग्रहों के आधार पर इस मामले में कोई गंभीरता नहीं दिखाई गयी है । आज तक परिवार के लोगों को पूरे मामले में चार्जशीट नहीं मिली है और वे नहीं जानते के क्या हो रहा है? वे रामप्रीत से भी मिलना चाहते हैं लेकिन उन्हें मिलने की अनुमति नहीं मिलती।
बनारसी मुसहर ने करीब 7 साल सरकारी राशन की दुकान चलाई जो गाँव की सभी दबंग जातियों को नापसंद थी और उसके खिलाफ साजिश कर उससे कोटा छिनवाया गया था। बनारसी मेहनतकश था और उसने सीरवाई करना स्वीकार किया। वह अपनी जिंदगी को अच्छे से चला रहा था। क्या उसका स्वाभिमान से रहना गाँव के दबंगों को नागवार लगा? क्या यह मात्र हत्या थी या कोई साजिश ताकि मुसहरों को भयभीत रखकर उनसे मनमर्जी का काम लिया जा सके?
हमारा कहना यह है कि इस मामले में ईमानदारी से जांच होनी चाहिए और मामले में एससीएसटी एक्ट लगाया जाना चाहिए ताकि न केवल असली अपराधी पकड़े जाएँ अपितु बनारसी के परिवार को मुआवजा भी मिल सके। बनारसी मुसहर की हत्या इस क्षेत्र में मुसहरों को दबाने और उनमें स्वाभिमान को ख़त्म करने की साजिश है जो बेहद खतरनाक है। जैसे जैसे मुसहर समाज अपने अधिकारों के लिए सजग हो रहा है वैसे वैसे जातिवादी ताकतें भी उनके आत्म सम्मान को षड्यंत्रपूर्वक तोड़ने का प्रयास कर रही हैं । इसलिए यह आवश्यक है कि प्रशासन और सरकार इस बात को गंभीरता से ले ताकि समाज के इस सबसे दबे-कुचले समुदाय को न्याय मिले और वह भी राष्ट्र की मुख्यधारा में आकर अपना योगदान कर सके।
[…] आखिर कब मिलेगा बनारसी मुसहर को न्याय? […]