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प्रेमकुमार मणि को पहला सत्राची सम्मान

सत्राची फाउंडेशन, पटना के द्वारा ‘सत्राची सम्मान’ की शुरुआत 2021 से की जा रही है। न्यायपूर्ण सामाजिक सरोकारों से जुड़े लेखन को रेखांकित करना ‘सत्राची सम्मान’ का उद्देश्य है। प्रो. वीर भारत तलवार की अध्यक्षता में चयन समिति गठित की गयी।  इस समिति के सदस्य पटना विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. तरुण कुमार […]

सत्राची फाउंडेशन, पटना के द्वारा ‘सत्राची सम्मान’ की शुरुआत 2021 से की जा रही है। न्यायपूर्ण सामाजिक सरोकारों से जुड़े लेखन को रेखांकित करना ‘सत्राची सम्मान’ का उद्देश्य है। प्रो. वीर भारत तलवार की अध्यक्षता में चयन समिति गठित की गयी।  इस समिति के सदस्य पटना विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. तरुण कुमार और ‘सत्राची’ के प्रधान संपादक डॉ. कमलेश वर्मा हैं। सत्राची फाउंडेशन के निदेशक डॉ. आनन्द बिहारी ने चयन समिति की सर्वसम्मति से प्राप्त निर्णय की घोषणा करते हुए बताया कि वर्ष 2021 का पहला ‘सत्राची सम्मान’ प्रसिद्ध विचारक-चिंतक-लेखक प्रेमकुमार मणि को दिया जाएगा।

प्रेम कुमार मणि ने सामाजिक सरोकारों से जुड़े लेखन द्वारा हिन्दी समाज को व्यापक रूप से प्रभावित किया है । उनके लेखन में हाशिये के समाज के सवाल मुखरता से उठाए गए हैं । उन्होंने एक सार्वजनिक बुद्धिजीवी की भूमिका में आगे बढ़कर काम किया है । मणि की विशेषता रही हैकि उन्होंने उन सभी मुद्दों पर बेबाकी से लिखा है जो भारत के वृहत्तर मानव समुदाय से जुड़े रहे हैं। उनका सम्बन्ध राजनीति से रहा है, मगर उनके लेखन की प्रतिबद्धता का आधार उत्पीड़ित समाज रहा है।  समाज के व्यापक रूप के भीतर मौजूद तल्खियों के बारे में वे बारीकी से लिखते रहे हैं। उनका लेखन एक न्यायपूर्ण समाज की खोज में लगा रहा है।

25 जुलाई, 1953 को नौबतपुर, पटना के एक स्वतंत्रता सेनानी और किसान परिवार में जन्मे प्रेमकुमार मणि हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार, विचारक और चिन्तक हैं। उन्होंने विज्ञान से स्नातक की पढ़ाई की, नालंदा में भिक्षु जगदीश काश्यप के सान्निध्य में रहकर बौद्ध धर्म दर्शन का अध्ययन किया और निरंतर नवोन्मेष हेतु  उन्मुख रहे। उन्होंने 1971 में मनुस्मृति : एक प्रतिक्रिया नामक आलोचनात्मक पुस्तिका से लेखन की शुरुआत की।  यह पुस्तिका बहुत चर्चित हुई।  मान्यवर कांशीराम ने इस पुस्तिका को पसंद किया था। 1977 से कहानी लेखन की शुरुआत करनेवाले मणि के अब तक चार कहानी-संग्रह प्रकाशित और चर्चित हो चुके हैं – अँधेरे में अकेले, घास के गहने, खोज और अन्य कहानियाँ, तथा उपसंहार।  उनका एकमात्र उपन्यास ढलान अपनी सामाजिक समझ के लिए रेखांकित किया जाता रहा है।

प्रेमकुमार मणि के लेखन का एक बड़ा पक्ष समकालीन विषयों से जुड़ा है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और अख़बारों में उनके द्वारा लिखे गए छोटे-बड़े लेखों की संख्या 500 से अधिक है । इधर के वर्षों में सोशल मीडिया पर लिखी गई उनकी पोस्ट को पढ़नेवालों में गंभीर लोगों की बड़ी संख्या है। मणि के वैचारिक लेखन के कुछ संग्रह प्रकाशित हैं – चरखे और चर्चे, चिंतन के जनसरोकार (अंग्रेजी में अनूदित – The Comman Man Speaks Out)’, सच यही नहीं है, खूनी खेल के इर्द-गिर्द.। पत्रिकाओं के संपादन में श्री मणि की गहरी रुचि रही है। उन्होंने अपनी जन-सरोकार की प्रकृति के अनुसार कुछ पत्रिकाओं के महत्त्वपूर्ण अंक प्रकाशित किए – जन विकल्प, साक्ष्य, संवाद, कथा कहानी, इस बार। वे अभी भी मगध नाम से एक पत्रिका के प्रकाशन-संपादन की तैयारी कर रहे हैं। आगामी 20 सितम्बर, 2021 को प्रेमकुमार मणि को प्रो. वीर भारत तलवार की अध्यक्षता में सम्मान-स्वरूप इक्यावन हजार रुपये, मानपत्र और स्मृति-चिह्न प्रदान किया जाएगा।

प्रेमकुमार मणि के संपूर्ण लेखकीय योगदान को ध्यान में रखकर ‘सत्राची सम्मान’ – 2021 से सम्मानित किए जाने के निर्णय से सत्राची फाउंडेशन स्वयं को सम्मानित महसूस कर रहा है।

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