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ग्राउंड रिपोर्ट

शिद्दत से याद किए गए बाबू शिवदयाल चौरसिया

यह गांव पहले एक अपमानजनक नाम से पुकारा जाता था जो कि सवर्ण जातियों का सबसे प्रिय शगल था, लेकिन अब इसका नाम सम्मान से लिया जा रहा है। कार्यक्रम के मुख्य आयोजक बुजुर्गवार राममगन वर्मा बहुत उत्साह से सारा इंतजाम देख रहे थे और इस बात पर प्रसन्न थे कि कार्यक्रम में दूर-दराज से लोग आए हैं।

गोंडा। सुबह-सुबह हमने गोरखपुर के रामायण राय पार्क में आरएसएस के लोगों को देखकर अपने मित्र से पूछा कि पार्क में शाखा? तो उन्होंने कहा कि यह तो एक ही पार्क है यहाँ तो हर पार्क और ऑफिस में यही सब हो रहा है। बहुजन समाज के कार्यक्रम तो लगभग बंद ही हो चुके हैं। शाम को गोंडा जिले के सुदूर गाँव रामनगर झिन्ना में हमें बाबू शिवदयाल चौरसिया की जयंती कार्यक्रम में जाने का मौका मिला। यह गाँव काफी बड़ा है और इसके कई पुरवे हैं। कार्यक्रम एक ऐसे हिस्से में आयोजित किया गया था जो वर्मा और सोनकर बहुल गाँव है और इसका पुराना नाम खटिकवनपुरवा था लेकिनअब यह भीमनगर के नाम से जाना जा रहा है।

बलरामपुर जिले की सीमा से बीस किलोमीटर दूर इस गाँव का नाम कुछ ही महीनों पहले बदला गया है इसलिए कार्यक्रम के बैनर में इसका पुराना नाम खटिकनपुरवा भी दर्ज है। फिलहाल यह जयप्रभा ग्राम डाकखाने के तहत आता है। जयप्रभा मतलब जयप्रकाश नारायण और उनकी पत्नी प्रभावती देवी की स्मृति में रखा गया नाम। हम आते हुए रामनगर झिन्ना का रास्ता पूछते रहे और कई किलोमीटर दूर निकल गए क्योंकि जयप्रभा ग्राम अभी बहुत प्रचलित नहीं है। गाँव के पुराने नाम से ही लोग परिचित हैं इसीलिए एक जगह रुककर पूछने पर मालूम हुआ कि हम छः-सात किलोमीटर आगे आ गए हैं। रामनगर झिन्ना गांव के निवासी जीवन बीमा का काम करने वाले बच्चाराम वर्मा बताते हैं कि 6 महीने लगातार मीटिंग चली और उसके बाद यह तय हुआ कि इस गांव का नाम बदल दिया जाए। इसमें जगीरा सोनकर और सुखराम चौरसिया की विशेष भूमिका है। अब रामनगर झिन्ना के पोस्ट ऑफिस का नाम जयप्रभा ग्राम है।

सुखराम चौरसिया मानव जागृति संघ के अध्यक्ष और आज के कार्यक्रम के संचालक हैं। उन्होंने बताया कि यह गांव पहले एक अपमानजनक नाम से पुकारा जाता था जो कि सवर्ण जातियों का सबसे प्रिय शगल था, लेकिन अब इसका नाम सम्मान से लिया जा रहा है। कार्यक्रम के मुख्य आयोजक बुजुर्गवार राममगन वर्मा बहुत उत्साह से सारा इंतजाम देख रहे थे और इस बात पर प्रसन्न थे कि कार्यक्रम में दूर-दराज से लोग आए हैं।

बुद्ध वंदना के समय उपस्थित गाँव के लोग

इस गांव में दो साल से बाबू शिवदयाल चौरसिया की जयंती मनाई जा रही है। पिछले साल यह कार्यक्रम रात भर चला था। इस वर्ष यह दूसरा आयोजन है। निमंत्रण के पैम्फलेट में इस दो दिवसीय कार्यक्रम की अवधि बारह घंटे सूचित की गई है। अर्थात शाम छः बजे से सुबह छः बजे तक। लेकिन साढ़े छः बजे तक मंच खाली ही था। बच्चे खेल रहे थे और बीच-बीच में संचालक महोदय लोगों से अपील कर रहे थे कि अगर अब आप अपने काम से खाली हो चुके हों तो कृपया पंडाल में आने की कृपा करें।

इसलिए मैंने आसपास का जायज़ा लेना शुरू किया। धीरे-धीरे लोग आते जा रहे थे। लोगों में उत्साह था और कोई भी आता तो वह सभी लोगों से हाथ मिलाता। कार्यक्रम स्थल के बगल में ही लोगों को खाने के लिए पूरी-सब्जी का इंतजाम किया गया था और सब्जी की भीनी-भीनी खुशबू चारों ओर फैल रही थी।

इस बीच, मैंने गांव की छवि लेनी चाही लेकिन रात हो गई थी और किसी भी तरीके से गांव का फोटो बिना लाइट के संभव नहीं था। जहां तक बत्ती जल रही थी, वहीं तक यह संभावना थी। आस-पास के खेतों में गन्ने लगे थे।

कार्यक्रम के आयोजक राममगन वर्मा

मैंने वहां उपस्थित कुछ बच्चियों से बातचीत की तो उन्होंने बहुत निराशाजनक स्थिति का बयान किया। वे ठीक से हिंदी भी नहीं बोल पा रही थी। उन्हें हिंदी समझ में नहीं आ रही थी। जब मैंने भोजपुरी में बात शुरू की तब उन्होंने अवधी में जवाब दिया और बताया कि उन्हें कुछ भी नहीं पढ़ाया जाता। उनके स्कूल में एक मास्टर है जो लगभग नहीं आता है लेकिन वे स्कूल जाती हैं और लौट आती हैं। वे पढ़ना चाहती हैं लेकिन स्कूल में कुछ पढ़ाई ही नहीं होगी तो वे कैसे पढ़ेंगी? एक बच्ची ने बताया कि मेरे  माँ-बाप को पढ़ना नहीं आता इसलिए वे मुझे नहीं पढ़ा सकते लेकिन स्कूल में पढ़ाई होती तो मुझे कोई दिक्कत न होती।

छठी कक्ष में पढ़ने वाली एक अन्य बच्ची ने कहा कि हमारे स्कूल में पढ़ाई इसलिए नहीं होती क्योंकि एक ही मास्टर साहब हैं और वह अक्सर बाहर काम से चले जाते हैं। वह कहते हैं कि सरकार का आदेश है जाना पड़ेगा।

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पास खड़े एक व्यक्ति ने कहा कि आठवीं कक्षा तक फेल होने की संभावना न होने के कारण पढ़ाई का कोई भी मानक पूरा नहीं किया जा रहा है। बस सरकारी आदेश के मुताबिक किसी को फेल नहीं किया जा रहा है। कोई क्या पढ़ रहा है इस बात की जिम्मेदारी शिक्षा विभाग नहीं लेना चाहता। वहाँ उपस्थित ज्यादातर महिलाएं बिल्कुल ही पढ़ी-लिखी नहीं थी ना ही उन्हें हिंदी में कही हुई बात अच्छी तरह समझ आ रही थी। उन्होंने बताया कि वे खेतों में काम करती हैं।

खाली पड़ा किताबों का स्टाल

कार्यक्रम स्थल पर एक बुक स्टाल लगा था, जहां सम्यक प्रकाशन, दिल्ली और अन्य प्रकाशनों की किताबें बिक रही थीं। लोग उलट-पलट कर देख रहे थे लेकिन विक्रेता से छूट के बारे में पूछने पर निराश होकर किताब वापस रख देते और कार्यक्रम का रुख करते। पुस्तक विक्रेता लगभग बिना किसी छूट के पुस्तक बेचने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन किताब में लिखे हुए दाम पर कोई खरीद नहीं रहा था। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। मोबाइल का अधिक उपयोग, शिक्षा के प्रति उदासीनता, क्रय-शक्ति का अभाव अथवा कुछ और भी। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि बहुजन समाजों में अभी भी पुस्तकों के प्रति कोई ललक नहीं दिखती। बच्चा राम वर्मा कहते हैं कि यह क्षेत्र बामसेफ के प्रभाव वाला रहा है लेकिन एक तो उसमें बहुत गुटबाजी हो गई और अब मिशन की भावना गायब हो रही है। सही मायने नई पीढ़ी पूरी तरीके से अनपढ़ बनाई जा रही है। उसे किसी तरीके की रचनात्मक शिक्षा नहीं दी जा रही। यहां तक कि ककड़ी और बुनियादी व्याकरण और भाषा का भी ज्ञान लगभग नहीं है। ऐसे में वह राहुल सांकृत्यायन का वोल्गा से गंगा अथवा आनंद कौसल्यायन द्वारा संपादित धम्मपद खरीद कर क्या करेंगे?

हालांकि, बहुजन आंदोलन से संबंधित किताबों के विक्रेता यह जानते हैं कि बहुत सारे लोग किताबें खरीदते हैं ताकि उनका वैचारिक विकास हो सके। ऐसा भी नहीं था कि यहां लोग विपन्न हों। जहां कार्यक्रम के सहयोग की राशि स्वीकार की जा रही थी, वहां कई लोग ऐसे थे जो सामर्थ्य के अनुसार चंदा दे रहे थे।

मैंने वोल्गा से गंगा तक की प्रति उठाई और पूछा कि कितने में दे रहे हैं? किताब पर ₹275 प्रिंट था। उन्होंने कहा पौने तीन सौ। मैंने कहा कुछ छूट नहीं दे रहे हैं। उन्होंने कहा, मैडम आंदोलन के लिए हम बहुत दूर से चले आ रहे हैं और किराया भी नहीं निकल पा रहा है। ऐसे में हम क्या छूट दें। हम तो कोई बड़े प्रकाशक हैं नहीं। उनका भी कहना भी गलत नहीं है। कई लोग वहां बिल्ले और दूसरी चीजें खरीद रहे थे, लेकिन किताबों में किसी तरह की कोई दिलचस्पी नहीं थी।

बच्चाराम वर्मा

लोगों के जुटते-जुटते लगभग 8:45 बज गए। इसके पश्चात भंते रतन सागर ने बुद्ध वंदना की शुरुआत की और त्रिशरण-पंचशील के बाद विधिवत कार्यक्रम की शुरुआत हो गई। सुखराज चौरसिया ने संचालन संभाला। पहले वक्ता के रूप में रामकुमार राव ने बहुत गंभीरता से शिवदयाल चौरसिया के व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में बातें की। उन्होंने साइमन कमीशन के सामने पिछड़ी जातियों की स्थिति की अभिव्यक्ति के लिए किए गए बाबू शिवदयाल चौरसिया के काम को रेखांकित किया तथा लोक अदालतों की शुरुआत करने जैसे उनके अन्य  महत्वपूर्ण कामों के साथ ही उनके पूरे कृतित्व का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया। थोड़ा लंबा होने के बावजूद उनका वक्तव्य रोचक और सूचनाप्रद था।

इसके बाद जाने-माने अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता नंदकिशोर वर्मा खड़े हुए और उन्होंने अपनी जोशीली आवाज में कहा कि ‘देखो एक ये लोग हैं जिनके न रहने के बावजूद हम उनकी तस्वीरों पर फूल चढ़ा रहे हैं और एक हम लोग हैं जिन्हें कोई नमस्कार भी नहीं करना चाहता तो इससे अंदाजा करो कि समाज के लिए काम करना कितना जरूरी है। जब तक समाज के लिए कुछ नहीं करोगे तब तक कोई तुम्हें नहीं पूछेगा?’

कार्यक्रम में गौतम बुद्ध, शाहूजी महाराज, सावित्रीबाई फुले, बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर और बाबू शिवदयाल चौरसिया के लगे चित्र

लोक अदालतों को लेकर किए गए बाबू शिवदयाल चौरसिया के काम को रेखांकित करते हुए नंदकिशोर वर्मा ने कहा कि लोक अदालत का कॉन्सेप्ट एक संवेदनशील कॉन्सेप्ट था जिसमें कोर्ट का चक्कर और भारी जुर्माने से जनता को राहत मिलती थी। यह पहले नहीं था लेकिन बाबू शिवदयाल चौरसिया ने इसे  एक महत्वपूर्ण पहलू बना दिया।

इस अवसर पर माता सावित्री फाउंडेशन जिला गोंडा की अध्यक्ष सविता वर्मा ने बिन्दू मौर्या (महासचिव), मीना बौद्ध (उपाध्यक्ष), कंचनरानी राव (उपाध्यक्ष), प्रीति गौतम, बिन्दू गौतम, सरिता कश्यप (वरिष्ठ समाजसेवी) तथा शीला देवी चौरसिया को बाबू शिवदयाल सिंह चौरसिया की तस्वीर तथा वर्ष 2023 की डायरी व‌ शाहूजी महाराज, माता सावित्री पंचांग देकर सम्मानित किया। साथ ही आयोजक मंडल ने सभी को बाबू शिवदयाल सिंह चौरसिया की तस्वीरें देकर सम्मानित किया। मुख्य अतिथियों में राम कुमार राव, नन्द किशोर वर्मा (टैक्स एडवोकेट एवं प्रबंधक राम करन वर्मा बुद्ध विहार), एके नन्द, (सम्पादक मास संदेश पत्रिका) , शारदा प्रसाद चौधरी, देवी प्रसाद चौरसिया, प्रिंस चौरसिया, लालजी लहरी (लंकेश), रजत चौरसिया, देवी प्रसाद चौरसिया, सविता वर्मा, कंचन रानी‌ राव, प्रीति गौतम ने अपने विचार रखे। विद्या प्रसाद (गुरुजी), राम प्रसाद वर्मा, राकेश वर्मा, बलराम यादव, रवि प्रकाश बौद्ध, एमएल गौतम, किशोरी लाल (गुरुजी), अजय सरोज, पवन कुमार बौद्ध, बच्चा राम वर्मा (प्रधानजी) बालक राम वर्मा, जगन्नाथ चौरसिया, संतराम वर्मा, संतोष चौरसिया, अनुपम राव, दीनानाथ चौरसिया सहित हजारों की संख्या में लोग मौजूद थे।

अपर्णा रंगकर्मी और गाँव के लोग की कार्यकारी संपादक हैं। 

अपर्णा
अपर्णा
अपर्णा गाँव के लोग की संस्थापक और कार्यकारी संपादक हैं।
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