Saturday, July 27, 2024
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रोज़मर्रा का संघर्ष करता गोंडा का बेहना समाज

बेहना जाति पसमांदा मुसलमानों में गिनी जाती है और पारंपरिक रूप से रुई धुनने का काम करती रही है लेकिन अब कोई भी यह काम नहीं करता। मशीनें आ जाने से उनको काम मिलना धीरे-धीरे बंद होता गया। जाड़ा शुरू होते ही अपनी धुनकी कंधे पर लिए वे दूर-दराज के इलाकों में निकल जाते और बसंत आते-आते अच्छी-ख़ासी कमाई करके वे वापस आते। बाकी के दिनों में मेहनत-मजदूरी के दूसरे काम भी करते। लेकिन बनी-बनाई रजाइयाँ आने और मशीनों की बढ़ती संख्या ने उन्हें खदेड़ दिया।

मधुमक्खी पालन से फसल का उत्पादन कई गुना बढ़ जाता है

बहराइच के किसान मेले में शहद के स्टाल पर पहुंचने के बाद शिव चन्द्र सिंह ने हमें जामुन, अजवाइन और तुलसी के फ्लेवर वाला...

गाँव का नाम बदल गया है लेकिन हालात उतने ही बुरे हैं

गोंडा। 'हम लोगों ने पचीस साल से ब्राह्मणों के जबड़े में पड़ी प्रधानी खींचकर निकाल ली और इनको प्रधान बनाया लेकिन अब ये हमारी...

लोक अदालत के जनक बाबू शिवदयाल चौरसिया

बाबू शिवदयल चौरसिया के जन्मदिन 13 मार्च को गोंडा जिले के भीमनगर रामनगर, झिन्ना में उन्हें याद करते हुए मनाया गया। इस कार्यक्रम में ...

शिद्दत से याद किए गए बाबू शिवदयाल चौरसिया

गोंडा। सुबह-सुबह हमने गोरखपुर के रामायण राय पार्क में आरएसएस के लोगों को देखकर अपने मित्र से पूछा कि पार्क में शाखा? तो उन्होंने...

बातों-बातों में यह क्या कह गईं बेबी रानी मौर्य

बेबी रानी मौर्य के बयान ने अपने सरकार पर ही सवाल खड़ा कर दिया है। एक ओर जहां बीजेपी कानून व्यवस्था के बारे में...

क्या कोई मेरे गाँव का नाम बता सकता है

भाई संतोष कुमार भारत से यहाँ फरवरी में आये और मुझे मिले तो मुझे लगा जैसे भारत से मेरा कोई भाई आया है| हम एक ही भोजपुरी भाषा बोलते हैं जो की मेरे बचपन में यहाँ बोली जाती थी (आजकल लोग सिर्फ अंग्रेजी बिल्ट हैं जिसपर मुझे काफी दुःख होता है)| हमें अब अपनी पुरानी भाषा को वापस लाना है और अपने पुरानी संस्कृति को जिन्दा करना है|

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