Saturday, July 12, 2025
Saturday, July 12, 2025




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमग्राउंड रिपोर्टपर्यावरण दोहन के दौर में केदारनाथ और सुंदरलाल बहुगुणा की याद

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

पर्यावरण दोहन के दौर में केदारनाथ और सुंदरलाल बहुगुणा की याद

हर पांच मिनट में एक हेलीकाप्टर केदारनाथ मंदिर क्षेत्र में शोर मचा रहा है। इस नए संकट पर विशेषज्ञों का कहना है कि हेलीकाप्टर के लिए पवित्र मंदिर के ग्लेशियर को काटकर हेलीपैड बनाया गया है। इसके शोर से घाटी के दरकने और हेलीकाप्टरों के धुएं यानी कार्बन उत्सर्जन से पूरा इलाका खतरे की जद में है

21 मई को महान पर्यावरण चिन्तक एवं चिपको आंदोलन के प्रमुख नेता सुंदरलाल बहुगुणा (9 जनवरी, 1927 – 21 मई, 2021) की दुसरी पुण्यस्मृति होती है। इसी दिन दैनिक भास्कर के प्रथम पृष्ठ की बड़ी खबर थी- केदारनाथ मंदिर पर नया खतरा: 9 हेलिपैड से हर 5 मिनट में केदारनाथ के लिए उड़ान; शोर से ग्लेशियर कांपा तो मंदिर खतरे में। यहाँ के 9 हेलीपैड से हर 5 मिनट में केदारनाथ के लिए उड़ान; इनके शोर से ग्लेशियर कांपा तो मंदिर खतरे में।

बीते 25 अप्रैल से शुरू हुई केदारनाथ यात्रा 14 नवंबर, 2023 तक चलेगी। इन सात महीनों में भक्तों के अब तक के सारे रिकॉर्ड टूटेंगे। इसी बीच, पहाड़ियों में कंपन पैदा करते हेलीकॉप्टरों का शोर केदारनाथ घाटी के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है।

2023 में हर पांच मिनट में एक हेलीकाप्टर केदारनाथ मंदिर क्षेत्र में शोर मचा रहा है। इस नए संकट पर विशेषज्ञों का कहना है कि हेलीकाप्टर के लिए पवित्र मंदिर के ग्लेशियर को काटकर हेलीपैड बनाया गया है। इसके शोर से घाटी के दरकने और हेलीकाप्टरों के धुएं यानी कार्बन उत्सर्जन से पूरा इलाका खतरे की जद में है।

पर्यावरणविद और गंगापुत्र प्रोफेसर जीडी अग्रवाल

वर्तमान सरकार मंदिर-मस्जिद के नाम पर लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने की राजनीति से पर्यावरण संरक्षण की अनदेखी करते जा रहे हैं। पर्यावरणविद और गंगापुत्र प्रोफेसर जीडी अग्रवाल (स्वामी ज्ञानस्वरुप सानंद) तथा सुंदरलाल बहुगुणा ताउम्र इस मुद्दे पर काम करते रहे, क्योंकि हिमालय विश्व के सबसे तरुण पहाड़ी क्षेत्र में है। आज भी हिमालय पर्वत में भौगोलिक हलचलों के कारण भूस्खलन बदस्तूर जारी है। केदारनाथ के रास्ते से जोशीमठ के विलुप्त होने की शुरुआत हो चुकी है। हजारों लोगों को अपने जीवन की पूरी पूंजी लगाकर बने-बनाएं मकानों को छोड़कर सुरक्षित जगह पर जाने का सिलसिला शुरू हो चुका है। उस चर्चा की स्याही सुखने के पहले यह ‘खबर’, काफी चिंताजनक है।

क्या हमारे देश के कर्ताधर्ताओं की संवेदनशीलता को काठ मार गया है? सिर्फ लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़काने के अलावा और कोई भी काम इन्हें नहीं करना आता? पर्यावरण संरक्षण मंत्रालय किस बात के लिए बनाया गया है? जिस समय कोई जावड़ेकर नाम का नमूना जब पर्यावरण मंत्रालय की जिम्मेदारी सम्हाल रहा था, उसी दौरान अडानी ने कांडला पोर्ट जहाजरानी (गुजरात के लगभग सभी एयरपोर्ट) पहली बार अपने कब्जे में करने के बाद वहां के विश्व धरोहर मॅंग्रोह के पेड़ों को नष्ट कर दिया था। तत्कालीन राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने अडानी उद्योग समूह को इस अपराध के लिए कुछ दंड भरने का आदेश दिया तो जावड़ेकर ने कहा था कि एनजीटी के अधिकारियों को बर्खास्त कर देना चाहिए। जबकि जावड़ेकर की जिम्मेदारी हमारे देश के पर्यावरण संरक्षण की थी, बावजूद इसके वह एक उद्योगपति के लिए काम कर रहे थे। वह भूल गए थे कि उन्हें भारत के पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी सौंपी गई है। विदर्भ के झुड़पी जंगल के बारे में भी उन्होंने कहा कि यह विकास के मार्ग में रुकावट पैदा कर रहा है।

[bs-quote quote=”हिमालय के इस संवेदनशील एवं शांत क्षेत्र में 100 डेसीबेल शोर और हर पांच मिनट में कार्बन उत्सर्जन होगा तो मंदिर-पर्यावरण-वन्य जीवों के लिए खतरा तय है। उत्तराखंड की सरकार नुकसान की स्टडी कराए, फिर इस व्यापर का मानक तय करे। बीते 2013 में हम प्रकृति की ताकत को न समझने की भूल कर चुके हैं। उस समय अनगिनत लोग मरे थे। उसके बगल में जोशीमठ के विलुप्त होने की शुरुआत हो चुकी है। भूस्खलन से कई गाँव विलुप्त भी हो चुके हैं। उसके बाद भी हम लोग कुछ सबक नहीं ले रहे हैं?” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

नरेंद्र मोदी ने गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए और प्रधानमंत्री बनने के बाद अडानी समूह को उद्योग के छह सौ के नीचले पायदान से आज दो नंबर पर लाने का लाभ पहुँचाया। अडानी ने भारत के सभी पर्यावरणीय और आर्थिक नियमों की अनदेखी की। इस उद्योग समूह को फेवर करने की कृती निश्चित ही संशय की बात है। सर्वोच्च न्यायालय में यह मामला दर्ज भी है।

केदारनाथ तक पहुँचने के लिए इतने अवैज्ञानिक रास्ते, तथाकथित कॉरिडोर, हिमालय के पर्वत को काटकर सुरंग बनाने के बाद अब यह हेलीकॉप्टरों की यात्रा, काफी चिंताजनक है। केदारनाथ के लिए 1997-98 तक एक हेलीपैड था, अब बारह बना दिए हैं। उसमें से नौ खोल भी दिए गए हैं। नौ कंपनियों को नियुक्त कर दिया गया है, जो देहरादून से फाटा तक फैले हैं। आठ साल पहले केदारनाथ के लिए कुल 10-15 उड़ानें थीं। अब केदारनाथ वैली में सुबह छह से शाम छह बजे तक हेलीकाप्टर रोजाना 250 से अधिक फेरी लगाएंगे।

पहले ही ग्लेशियर को काटकर बनाए गए मंदिर और अब हेलीकाप्टर का शोर, पूरी घाटी के लिए नया संकट है। केदारनाथ की घाटी हिमालय की सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में आती है। तेजी से बढ़ रहे यात्रियों की संख्या पहले ही चिंतित करने वाली है। उत्तराखंड का राज्य पक्षी मोनाल और राज्य पशु कस्तुरी मृग अब इस सेंचुरी में नहीं दिखाई देते हैं। तितलियों की दुर्लभ प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं।

सुरक्षा मानकों को ध्यान में रखते हुए एनजीटी द्वारा 600 मीटर की ऊँचाई तय करने के बावजूद गंतव्य तक जल्द पहुँचने और फ्यूल की बचत के लिए हेलीकॉप्टर 250 मीटर तक की ऊँचाई पर उड़ाए जा रहे हैं। इससे आवाज भी दोगुनी हो रही है। देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालय जियोलॉजी के पूर्व विभागाध्यक्ष और वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. डीबी डोभाल ने कहा कि ‘हम सरकार को इन सबकी रिपोर्ट बहुत पहले ही दे चुके हैं।

यह भी पढ़ें…

हिंदुत्ववादियों से मुक्त करने की ज़रुरत है बोधगया को

पर्यावरणविद और पद्मभूषण डॉ. अनिल जोशी बताते हैं कि हिमालय के इस संवेदनशील एवं शांत क्षेत्र में 100 डेसीबेल शोर और हर पांच मिनट में कार्बन उत्सर्जन होगा तो मंदिर-पर्यावरण-वन्य जीवों के लिए खतरा तय है। उत्तराखंड की सरकार नुकसान की स्टडी कराए, फिर इस व्यापर का मानक तय करे। बीते 2013 में हम प्रकृति की ताकत को न समझने की भूल कर चुके हैं। उस समय अनगिनत लोग मरे थे। उसके बगल में जोशीमठ के विलुप्त होने की शुरुआत हो चुकी है। भूस्खलन से कई गाँव विलुप्त भी हो चुके हैं। उसके बाद भी हम लोग कुछ सबक नहीं ले रहे हैं?

विकास की अंधी दौड़ में सब कुछ भूलकर सिर्फ सैर-सपाटे के लिए आठ-आठ लेन की सड़कों का निर्माण कर रहे हैं। हजारों-लाखों पेड़ों की कटाई करते हुए यह सब हो रहा है। पिछले सितंबर में मैं जम्मू से श्रीनगर के लिए सुबह एक मिनीबस में बैठकर निकला था और उधमपुर के आसपास बारिश शुरू होने के बाद तथाकथित चौड़ी सड़क पर पहाड़ से बड़े-बड़े बोल्डर लगातार गिर रहे थे। मैं ड्राइवर के बगल की सीट पर ही बैठा था। बोल्डर गिरते देख उसे तुरंत गाड़ी रोकने के लिए कहा।

चंद पलों में मिनीबस के आगे एक बड़ा बोल्डर आकर गिरा। सब यात्री दहशत में थे। तीन घंटे तक जाम लगा रहा। बारिश भी लगातार हो रही थी। इस कारण साढ़े तीन सौ किलोमीटर की दूरी बारह घंटे में तय कर हम लोग रात के दस बजे श्रीनगर पहुँचे।

यह भी पढ़ें…

किसानों की मर्ज़ी के खिलाफ सरकार ज़मीन नहीं ले सकती

यही नज़ारा मैंने सिलीगुड़ी से गंगटोक के रास्ते में देखा, जो तिस्ता नदी के किनारे से जाता है। यहाँ 90 प्रतिशत फौजी शक्तिमान ट्रक और कुछ उससे भी बड़ी गाड़ियों में बैठकर दोनों ओर से आते-जाते हैं। इस समय भी बड़ा बचकर चलना पड़ता है। हिमालय के कच्चे पहाड़ी क्षेत्र में इस तरह की हरकतों से भूस्खलन के हादसे की संभावना बढ़ जाती है। सबसे महत्वपूर्ण बात बेतहाशा पेड़ों की कटाई भी है जिसके कारण हिमालय पर्वत की मिट्टी बारिश में पूरे मलबे को लेकर बह जाती है। नदियों में गाद भरने से उनका प्रवाह भी बाधित होता है। प्रोफेसर जीडी अग्रवाल और सुंदरलाल बहुगुणा यह सब बातें बोलते-लिखते, जिंदगी भर आंदोलन और उपवास करते हुए इस दुनिया से चले गए।

प्रोफेसर जीडी अग्रवाल और सुंदरलाल बहुगुणा का जन्मदिन व पुण्यस्मरण दिवस मनाने के साथ ही हर नागरिक को हिमालय बचाने एवं पानी/ पर्यावरण के लिए जागरूक होना पड़ेगा, तभी दोनों महानुभावों के लिए हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। नहीं तो संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप की प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने के लिए हम ही जिम्मेदार होंगे। हमें यह सोचना चाहिए नहीं तो आने वाले पीढ़ी इस विरासत को नहीं देख पाएगी।

गाँव के लोग
गाँव के लोग
पत्रकारिता में जनसरोकारों और सामाजिक न्याय के विज़न के साथ काम कर रही वेबसाइट। इसकी ग्राउंड रिपोर्टिंग और कहानियाँ देश की सच्ची तस्वीर दिखाती हैं। प्रतिदिन पढ़ें देश की हलचलों के बारे में । वेबसाइट को सब्सक्राइब और फॉरवर्ड करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Bollywood Lifestyle and Entertainment