सत्यवान नायक की फर्जी नियुक्ति को बचाने में लगा है सीएमपी डिग्री कालेज का प्रबंध तंत्र
आयोग और हाईकोर्ट के आदेश, निर्देश के बिना वास्तविक जाति प्रमाणपत्र से सेवा बहाली चाहता है नायक
प्रयागराज। सीएमपी महाविद्यालय के विधि विभाग में असि. प्रोफेसर के पद पर डा. सत्यवान कुमार नायक की फर्जी नियुक्ति की गई। नियुक्ति के संबंध में पूर्वांचल दलित अधिकार मंच (पदम) के जिलाध्यक्ष उच्च न्यायालय के अधिवक्ता कुमार सिद्धार्थ ने कुलपति इलाहाबाद विश्वविद्यालय और प्राचार्य सीएमपी महाविद्यालय को आवश्यक कार्यवाही करने का प्रार्थना पत्र दिया है।
बता दे कि सीएमपी महाविद्यालय के विधि विभाग में डा. सत्यवान कुमार नायक को अनुसूचित जनजाति हेतु आरक्षित असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर फर्जी नियुक्ति दी गई थी जिसके लिये सक्षम अधिकारी द्वारा जारी अधिकतम छः माह पुराना जाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य था। डा. सत्यवान न तो साक्षात्कार के समय और न ही ज्वाइनिंग के समय निर्धारित प्रारूप पर अनुसूचित जनजाति का प्रमाणपत्र प्रस्तुत कर सके। सत्यवान बिना जाति प्रमाण पत्र के ही अनुसूचित जनजाति की सीट पर नौकरी लेने का अनोखा उदाहरण बन गए। अनेक संस्थानों और व्यक्तियों के द्वारा कुलपति आदि को प्रमाण सहित शिकायत करने के बाद प्राचार्य ने तीन सदस्यीय शिक्षकों की जांच समिति भी बनाई थी जिसने अपनी रिपोर्ट प्राचार्य को दी थी। जांच समिति ने डा. सत्यवान को अनेक बार अनुसूचित जनजाति का जाति प्रमाण पत्र देने का मौका भी दिया था किंतु सत्यवान कम्प्यूटराइज्ड जनजाति का जाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं कर सके।
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बता दे कि डा. सत्यवान ने भयंकर जालसाजी करते हुए आवेदन के समय ही फर्जी जनजाति का जाति प्रमाण पत्र लगाया था जिसे जिलाधिकारी गोरखपुर ने 2014 में फर्जी बता कर रद्द कर दिया था और इसकी सूचना जिलाधिकारी ने डा. सत्यवान को भी की थी। फर्जी हाथ से बने प्रमाण पत्र को लगाकर सत्यवान ने जो नौकरी की थी उस पर आईपीसी की धारा 420 के तहत मुकदमा दर्ज कराया जाना चाहिए था। पदम के जिलाध्यक्ष एडवोकेट कुमार सिद्धार्थ ने महाविद्यालय द्वारा दी गयी आरटीआई के उत्तर में पाया था कि डा. सत्यवान कोई जनजाति का जाति प्रमाणपत्र नहीं दिये थे इसीलिए जांच समिति गठित की गई थी। पदम के जिलाध्यक्ष ने अध्यक्ष राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को भी इस प्रकरण की शिकायत की थी।
आयोग ने तत्कालीन प्राचार्य से इसकी आख्या तलब की थी। वर्तमान में सरकार ने नायक, ओझा और गोंड जाति को शायद नायक की उपजाति मानकर अनुसूचित जनजाति माना है। शायद 2022-23 से जनजाति का प्रमाणपत्र बनने लगे है किंतु वर्तमान में अनुसूचित जनजाति कोटे में परिगणित जाति भूतकाल में अनुसूचित जनजाति कोटे की हकदार नहीं हो सकती। आवेदन करते समय साक्षात्कार/ ज्वाइनिंग के समय जो जिस श्रेणी का प्रमाण पत्र देता है वह उस श्रेणी का अभ्यर्थी होता है। भविष्य में कोई जाति किसी श्रेणी में जोड़ दी जाएगी तो जब से वो जाति जोड़ी जाती है उसके बाद उसको उस श्रेणी का आरक्षण उसे मिलेगा।
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भविष्य में बना हुआ जाति प्रमाण पत्र भूतकाल के विज्ञापन पर लागू नहीं हो सकता। इसी प्रकार कोई जाति भूतकाल में किसी श्रेणी में होती है किंतु भविष्य में शासन द्वारा यदि यह जाति उस श्रेणी से बाहर कर दी जाती है तो भविष्य में भूतकाल के प्रमाण पत्र के आधार पर वह पद प्राप्त नहीं कर सकता। कुमार सिद्धार्थ ने इसीलिए कुलपति इविवि और प्राचार्य सीएमपी महाविद्यालय से मांग किया है कि 2017 के विज्ञापन के आधार पर विधि विभाग में कोई वैध अनुसूचित जनजाति का अभ्यर्थी शामिल नहीं हुआ इसलिए अनुसूचित जनजाति का पद रिक्त रखने का कष्ट करें भविष्य में कई साल बाद किसी जाति के अनुसूचित जनजाति श्रेणी में शामिल करने या अन्य किसी कारण से बने हुए अनुसूचित जनजाति का प्रमाणपत्र को भूतकाल के विज्ञापन में लागू नहीं किया जा सकता। एक बार डा. सत्यवान कुमार नायक फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर नौकरी कर वेतन ले चुके है पुनः उनके द्वारा उक्त विज्ञापन के सापेक्ष किसी भी प्रकार का प्रस्तुत किया गया प्रत्यावेदन अवैध होगा। कृपया उक्त विज्ञापन का अनुसूचित जनजाति हेतु आरक्षित पद रिक्त रखने की कृपा करे अन्यथा अनुसूचित जनजाति के प्रति अत्याचार होगा और उक्त प्रकार के अवैध कार्य का उत्तरदाई कौन होगा।
पी. गिरीश प्रयागराज के वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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