Saturday, July 27, 2024
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जातीय आग में जलता हुआ मणिपुर, गुजर गए पचास दिन

मणिपुर जल रहा है,  यकीन मानिए यह मणिपुर भी भारत का ही हिस्सा है। भारत का हिस्सा है तो यह कहना भी गलत नहीं होगा कि भारत जल रहा है पर अफसोस इस बात का है कि शेष भारत इस आग की तपिश को उस शिद्दत के साथ महसूस नहीं कर पा रहा है, जिस […]

मणिपुर जल रहा है,  यकीन मानिए यह मणिपुर भी भारत का ही हिस्सा है। भारत का हिस्सा है तो यह कहना भी गलत नहीं होगा कि भारत जल रहा है पर अफसोस इस बात का है कि शेष भारत इस आग की तपिश को उस शिद्दत के साथ महसूस नहीं कर पा रहा है, जिस सवेदंशीलता की आवश्यकता है। यदि भारत इस तपिश को पूरी संवेदना के साथ महसूस करता तो इस हिंसा की अवधि इतनी लम्बी नहीं होती। इस हिंसा की भयावहता इतनी है कि इस हिंसा की वजह से  अब तक 50 हजार लोग विस्थापित हो चुके हैं और सैकड़ों की संख्या में लोग मारे जा चुके हैं। कांग्रेस की पुर्व अध्यक्ष सोनिया गाँधी शांति की अपील कर रही हैं तो राहुल गांधी विपक्ष के प्रतिनिधि मंडल को मणिपुर भेजने की मांग कर रहे हैं जबकि देश के प्रधानमंत्री 50 दिन बाद भी इस मुद्दे पर मुखर नहीं हुए हैं।

मणिपुर हिंसा की वजह

इस जातीय घृणा के पीछे मणिपुर का एक कानून है, जिसके अनुसार सिर्फ आदिवासी जाति के लोग ही पहाड़ी क्षेत्र में बस सकते हैं। राज्य के क्षेत्रफल का 89 प्रतिशत हिस्सा पहाड़ी है। इस कानून के तहत सिर्फ 45.5 प्रतिशत लोगों के लिए 89 प्रतिशत भू-भाग आरक्षित हो जाता है। यह आदिवासी नागा और कूकी जातियों से हैं। गैर आदिवासी समुदाय की संख्या 64.4 प्रतिशत है और वह गैर पहाड़ी भू-भाग वाले 11 प्रतिशत हिस्से में ही से रह सकते हैं। इस 64.4प्रतिशत गैर आदिवासी समुदाय में 53 प्रतिशत हिस्सेदारी मैतेई समुदाय की है। शेष 7 प्रतिशत आबादी अन्य समुदाय की है। इस बेमानी-सी लगने वाली बात को लेकर हाईकोर्ट ने मैतेई समुदाय के हित का ख्याल रखते हुए उनको अनुसूचित जाति से अनुसूचित जनजाति में रखने के लिए सरकार से प्रस्ताव मांगा। यदि मैतेई समुदाय को यह दर्जा मिल जाता है तो वह नागा और कूकी जाति की तरह कहीं भी जमीन लेने और घर बनाने की स्वतंत्रता प्राप्त कर लेता। यह बात नागा और कूकी समुदाय को बर्दाश्त नहीं हुई।

कैसे शुरू हुई मणिपुर हिंसा

इस मांग के खिलाफ ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स ऑफ मणिपुर ने 3 मई को एकता मार्च निकाला, जिसमें हजारों की संख्या में प्रदर्शनकारी शामिल हुए। विरोध-प्रदर्शन के दौरान चूराचांदपुर में यह एकता मार्च अचानक उग्र हो गया। एकता मार्च से भड़की हिंसा ने देर रात तक पूरे राज्य को अपनी गिरफ्त में ले लिया। अपने आर्किड के फूलों के लिए दुनिया भर में अपनी एक अलग पहचान बनाने वाला मणिपुर राज्य 3 मई की रात में हिंसक हो उठा। जहां जिसका बाहुल्य था वहाँ वह जातियाँ अल्प समुदाय की जातियों पर हमला करने लगीं। एक रात में तकरीबन 10,000 लोग बेघर हो गए। तात्कालिक हिंसा, सख्त मिलेट्री बंदोबस्त के बीच आग अब भले ही धीमी पड़ चुकी हो पर अंदर पनप चुकी घृणा अब भी दोनों समुदाय के बीच कायम है। राज्य के आठ जिले इस हिंसा की गंभीर चपेट में हैं। असम राइफल्स और सेना की कंपनियां सड़कों पर दिन-रात मार्च कर रही हैं। मणिपुर सरकार ने दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश दे दिया है। यह जातीय हिंसा आने वाले समय में सांप्रदायिक हिंसा का भी रूप ले सकती है। वजह साफ है, मैतेई समुदाय अपने को हिन्दू मानता है। मैतेई समुदाय का एक छोटा हिस्सा इस्लाम धर्म को भी मानता है। जबकि नागा और कूकी जातियाँ अब ईसाई धर्म स्वीकार कर चुकी हैं। मणिपुर की आदिवासी जातियों द्वारा ईसाई धर्म अपनाने का किस्सा 1884 के आसपास मणिपुर के ब्रिटिश राज्य बनने के साथ ही शुरू हो गया था।

फिलहाल, सबसे बड़ी लड़ाई जमीन और जंगल की है। आदिवासी समुदाय का कहना है कि यदि मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा मिल गया तो वह हमारी ज़मीनें हथिया लेंगे। जबकि मैतेई समुदाय भाजपा की एनआरसी व्यवस्था की मांग करते हुए कह रहा है कि ज्यादातर कूकी समुदाय के लोग म्यांमार से विस्थापित होकर यहाँ आए हैं। वह यहाँ के मूल निवासी नहीं है। इसके बावजूद जंगलों पर 80 प्रतिशत कब्जा उनका है।

[bs-quote quote=”कांग्रेस नेता ने मणिपुर हिंसा के पचास दिन पूरा होने को लेकर कहा कि “प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा की तमाम खबरों के बीच हमें यह भी याद रखना चाहिए कि आज लगातार 50वां दिन है, जब मणिपुर इस दर्द, तकलीफ और दुख का सामना कर रहा है। लेकिन दुख की बात है कि तमाम मुद्दों पर इतना ज्ञान देने वाले प्रधानमंत्री ने मणिपुर की त्रासदी पर अब तक एक शब्द भी नहीं कहा है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

विपक्ष की आवाज की अनसुनी और सत्ता के साहसहीन प्रयास

मणिपुर की हिंसा का दर्द विपक्ष लगातार महसूस कर रहा है। राहुल गांधी सरकार से मांग कर रहे हैं कि विपक्ष का एक प्रतिनिधि मंडल मणिपुर भेजा जाये, सोनिया गाँधी शांति की अपील कर रही हैं। कांग्रेस के ट्विटर हैंडल से जारी वीडियो के माध्यम से सोनिया गांधी ने कहा है कि, ”मैं शांति और सद्भाव की अपील करती हूं। जिस उपाचारात्मक पथ पर चलने की हमारी पसंद होगी वो उसी तरह के भविष्य को आकार देगी जो हमारे बच्चों को विरासत में मिलेगी।’मुझे मणिपुर के लोगों से अपार आशा और विश्वास है और जानती हूँ कि हम साथ मिलकर इस अग्नि परीक्षा को पार कर लेंगे।”

विपक्ष के नेता मणिपुर के मामले पर प्रधानमंत्री के साथ बैठक करने की भी बात कर रहे हैं।  सरकार विपक्ष की बात पर ना ही ध्यान दे रही है ना ही हिंसा रोकने में सफल हो पा रही है। कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मणिपुर पर मंशा को लेकर भी सवाल उठाती रही है और उन्हें देश के प्रति असंवेदनशील प्रधानमंत्री बताया है।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने आरोप लगाते हुए कहा है कि मणिपुर में बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार “मैक्सिमम साइलेंस, मिनिमम गवर्नेंस” यानी “ज्यादा से ज्यादा चुप्पी और कम से कम काम” की नीति पर चल रही है। कांग्रेस नेता ने मणिपुर हिंसा के पचास दिन पूरा होने को लेकर कहा कि “प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा की तमाम खबरों के बीच हमें यह भी याद रखना चाहिए कि आज लगातार 50वां दिन है, जब मणिपुर इस दर्द, तकलीफ और दुख का सामना कर रहा है। लेकिन दुख की बात है कि तमाम मुद्दों पर इतना ज्ञान देने वाले प्रधानमंत्री ने मणिपुर की त्रासदी पर अब तक एक शब्द भी नहीं कहा है।

मणिपुर से मिजोरम भाग रहे हैं लोग

पिछले पचास दिन से हिंसा के झंझावात में उलझे मणिपुर के लोग अब सुरक्षा को लेकर राज्य सरकार पर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं। बड़ी मात्रा में लोग घर-बार छोड़ कर पलायन कर रहे हैं। घर-बार ही नहीं उम्मीदें भी जल गई हैं। अपने ही राज्य में आजादी का अमृत महोत्सव आग और बन्दूक की गोलियों में तब्दील हो गया है। नए ठिकाने के तौर पर बड़ी मात्रा में लोग मिजोरम में पनाह ले रहे हैं। आंकड़ों के आधार पर देखा जाय तो 1500 से ज्यादा बच्चे अब तक मिजोरम के स्कूलों में प्रवेश ले चुके हैं।

 अब कैसा है हाल

अब भी मणिपुर उसी शोक गीत में डूबा आंसू बहा रहा है जिसकी पहली इबारत 3 मई 2023 को चुरचंद पुर में लिखी गई थी। हिंसा रोकने के अब तक के प्रयास कमतर साबित हो रहे हैं। किसी न किसी हिस्से से लगातार गोली-बारी की ख़बरें आ रही हैं। इंटरनेट बंद है। स्कूल खुलने की स्थितियां फिलहाल तो नहीं दिख रही हैं। राज्य और केंद्र दोनों में भाजपा की सरकार होने के बावजूद अब तक हिंसा रोकने का मजबूत प्रयास नहीं  दिख रहा है ।

गाँव के लोग
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