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माधुर्य और शास्त्रीयता का इतिहास समेटे है विभाजन पूर्व हिन्दी फिल्म का संगीत

हिन्दी की पहली सवाक् फिल्म होने का गौरव आर्देशिर ईरानी की आलम आरा (1931) को प्राप्त है। आलम आरा के संगीतकार थे- फिरोजशाह मिस्त्री। शुरुआती दौर में गीत उसी को गाना पड़ता था, जिस पर वह चित्रित किया जाता था। पार्श्व गायन का प्रचलन अभी नहीं था। आलम आरा के गानों में सर्वाधिक लोकप्रिय वजीर […]

हिन्दी की पहली सवाक् फिल्म होने का गौरव आर्देशिर ईरानी की आलम आरा (1931) को प्राप्त है। आलम आरा के संगीतकार थे- फिरोजशाह मिस्त्री। शुरुआती दौर में गीत उसी को गाना पड़ता था, जिस पर वह चित्रित किया जाता था। पार्श्व गायन का प्रचलन अभी नहीं था। आलम आरा के गानों में सर्वाधिक लोकप्रिय वजीर मुहम्मद खान (जिसने घुमंतु फकीर का किरदार अदा किया था) का गाना दे दे खुदा के नाम पर प्यारे, ताकत हो गर देने की… था। इसमें कोरस का प्रयोग भी किया गया था। इसे हिन्दी सिनेमा का पहला गीत होने और वजीर मुहम्मद खान को पहला गायक होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। हिन्दी सिनेमा में आलम आरा से गीत, संगीत और नृत्य की परम्परा प्रारम्भ हुई। यह परम्परा आज तक चली आ रही है। अधिकतर फिल्में गीत और संगीत से लबालब हैं। संगीत का महत्व प्रारम्भ से आज तक स्थायी तौर पर बना हुआ है। प्रारंभिक दौर से ही अधिकतर निर्देशकों ने अपनी फिल्मों में संगीत द्वारा ही दर्शकों को भाव विभोर किया है। वी. शांताराम निर्देशित अयोध्या का राजा (1932) में राजा हरिश्चंद्र की भूमिका गोविंदराव टेम्बे ने अदा की थी। जो फिल्म के संगीतकार भी थे। गोविंदराव टेम्बे आरंभिक दौर के सिनेमा के सुप्रसिद्ध संगीतकारों में आते थे। वे गायक भी थे। उनका गाया गीत सकल जगत में छत्रपति सुमरत सकल जन… बहुत ही लोकप्रिय हुआ था। अमर ज्योति (1936) के संगीतकार मास्टर कृष्ण राव थे और गीतकार नरोत्तम व्यास थे। शांता आप्टे के स्वर में सुनो-सुनो वन के प्राणी, बनी हूँ आज तुम्हारी रानी… सबसे मधुर गीत गाया गया था। इस दौर में पार्श्व संगीत को बहुत महत्व नहीं दिया जाता था, लेकिन इसके पार्श्व संगीत को बहुत अधिक सराहा गया था। दुनिया न माने (1937) फिल्म में नायिका शांता आप्टे गीत की तर्ज पर अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि लांगफेलो की कविता पढ़ती हैं – In the words broad field of battle, Be not like dumb driven cattle. इसका प्रस्तुतीकरण गीत की तर्ज पर किया गया था। इसके संगीतकार केशव राव भोले ने इसे संगीत में ढालने हेतु मुंबई के ताजमहल होटल के ऑर्केस्ट्रा का प्रयोग किया था। आदमी (1939) में नायिका शांता हुबलीकर ने किसलिए कल की बात… गीत इतनी खूबसूरती से गाया था कि देखने सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो गए थे। इसके संगीतकार मास्टर कृष्ण राव थे। वी. शांताराम की फिल्मों का संगीत कथानुकूल होता था। संगीत में शोर की बजाय वह शास्त्रीय धुनों और लोक संगीत पर जोर देते थे। मराठी लोकनाट्य तमाशा का प्रभाव उनकी फिल्मों के संगीत पर नज़र आ ही जाता है। शकुंतला (1943) के संगीतकार वसंत देसाई थे। इसके लोकप्रिय गीत थे – मेरे बाबा ने बात मेरी मान ली…, जीवन की नाव न डोले… और कमल है मेरे सामने… आदि। डॉ. कोटनीस की अमर कहानी (1946) ख्वाजा अहमद अब्बास की कहानी And one did not comeback पर आधारित थी। यह द्वारकानाथ कोटनीस के जीवन की सत्यकथा पर आधारित थी। दीवान शरर के गीतों को वसंत देसाई ने स्वरबद्ध किया था। संगीत में वास्तविकता लाने हेतु वसंत देसाई ने रूसी लोकधुनों को गीतों में पिरोया है। नायिका जयश्री द्वारा गाए गीत चल आ गुलामी नहीं, तू जोश में आ… की धुन चीनी युद्ध संगीत पर थी।

बाबूराव पेंटर और वी. शांताराम निर्देशित मतवाला शायर रामजोशी (1947) में 18वीं सदी में महाराष्ट्र के लोक कवि रामजोशी की कथा को आधार बनाया गया है। उनके गायन और अभिनय की लोक कथाओं को बहुत ही खूबसूरत तरीके से इस फिल्म में दिखाया गया है। मराठी लोकनाट्य तमाशा की इसमें मनभावन प्रस्तुतियाँ थीं। सवाल-जवाबों में चित्रित किए गए अनेक गीत बहुत प्रभावशाली थे। इसके संगीतकार वसंत देसाई और गीतकार लोकप्रिय मराठी उपन्यासकार जी.डी. माडगुलकर थे। इसमें भई सावधान, सोन भंवर उड़ जाएगा…, सखी री मोहे निसि दिन बिरहा सताए…, देखो मोरी उमरिया है बाली… और यमुना तट पर खेले होरी… लोकप्रिय गीत थे। नितिन बोस निर्देशित चंडीदास (1934) फिल्म के गीतों को राय चंद बोराल द्वारा संगीतबद्ध किया गया था। अभिनेता-अभिनेत्री का किरदार अदा करने वाले कुंदन लाल सहगल और उमा शशि का गाया गीत प्रेम नगर में बनाऊँगी घर मैं, तज के सब संसार… अभी तक भारत में और विदेशों में भी बसे संगीत प्रेमियों के बीच बहुत मशहूर है। प्रेसिडेंट (1937) फिल्म में सहगल ने पाँच गीत गाये थे। जिनमें एक बंगला बने न्यारा… समय और काल को पीछे छोड़ देने वाली एक अद्भुत रचना थी। इसके अलावा एक राजे का उड़ने वाला घोड़ा… और प्रेम का है इस जग में पंथ निराला… आदि बहुत मधुर गीत हैं। इसके गीतकार केदार शर्मा और संगीतकार राय चंद बोराल और पंकज कुमार मलिक थे।

 

धरती माता (1938) फिल्म में सहगल ने पंकज कुमार मलिक के साथ सात गीत गाये थे, जिसमें दुनिया रंग-रंगीली बाबा… बहुत लोकप्रिय हुआ था। दुश्मन (1938) में आरजू लखनवी के गीतों को पंकज कुमार मलिक ने संगीतबद्ध किया था। इसमें करू क्या आस निरास भई… निराशा के अंधकार से निकलने की राह सुझाने वाला एक प्रेरणादायक गीत है। सहगल ने इसमें पाँच गीत गाये थे। जेजे मदान निर्देशित इन्द्र सभा (1932) जो कि सैयद आगा हसन अमानत के 1853 में लिखे गए नाटक पर आधारित थी। इसमें अभिनेता-अभिनेत्री का अभिनय मास्टर निसार और जहाँआरा कज्जन ने किया था। उन्होंने अपने गीत भी खुद गाए थे। ये नायक-नायिका के साथ ही गायक-गायिका भी रहे। इस फिल्म में 69 गीत थे, इसे गीतिनाट्य की तर्ज पर बनाया गया था। यूँ तो नाटकीय गीतात्मक संवादों का प्रचलन काफी बाद तक और कुछ हद तक आज तक भी प्रचलित है। यह एक काल्पनिक कथा पर आधारित रासलीला शैली में परम्परागत पारसी रंगमंच की जुबान के जरिये प्रस्तुतीकरण था। यह अपने गीत-संगीत से भी लोकप्रिय हुई थी। इसके संगीतकार नागरदास नायक थे। मास्टर निसार का क्या तड़पने का मजा जब दिलरूबा पर्दे में हो… और कज्जन का- चमककर मेरे साकी ने मैखाना बना डाला… आदि अनेक गीत बहुत लोकप्रिय हुए थे।

देबकी बोस निर्देशित पूरन भक्त (1933) में संगीतकार राय चंद बोराल थे। इसमें कुंदन लाल सहगल के गाये भजनों – भजो-भजो मन रामचरण निस दिन सुखदाई…, भजूं मैं तो भाव से श्रीगिरधारी…, सत्त प्रेम पर नर-नारी के हंसी न सुहाये…, मानो जीवन प्यारे जग का सिंगार… के अलावा मशहूर गायक के.सी. डे का गाया भजन जाओ-जाओ हे मेरे साधू रहो गुरु के संग… बहुत अधिक लोकप्रिय था। राजरानी मीरा (1933) में संगीतकार राय चंद बोराल थे। इसमें – मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई…, गिरधारी म्हाणे चाकर राखो जी…, बसो मेरे नैनन में नन्दलाल… आदि भजन दुर्गा खोटे ने गाये थे। नर्तकी इंदुबाला ने प्रिया मिलन की आस… और चन्द्रकला सी श्वेत रात थी… आदि गीत गाये थे। इसमें सहगल ने एक मात्र गीत गाया था – आओ, आओ हे बन्धु दयानिधान…। ये सभी गीत लोकप्रिय हुये थे।

प्रेमांकुर अटोर्थी निर्देशित यहूदी की लड़की (1933) आगा हश्र कश्मीरी के लोकप्रिय नाटक मिस्र कुमारी पर आधारित थी। इसके संगीतकार पंकज कुमार मलिक थे। सहगल को बतौर नायक इसी फिल्म से पहचान प्राप्त हुई। इसमें उनके द्वारा गाई गई गालिब की ग़ज़ल – नुक्ताचीं है गम-ए-दिल उसको सुनाए न बने… के अलावा दिये क्या-क्या फरेब-ए-जलवा…, तूने जलवागर होकर…, जान दीवानी तेरी दिल भी दिवाना…, तेरा निबाह उल्फत का इन दो नाजुकों में मुश्किल है… और यह गुलाब ताजा है या मुखड़ा किसी दिलदार का… गीतों ने धूम मचा दी थी। अभिनेत्री रतन बाई के स्वर में अपने मौला की जोगन बनूँगी… और निबाह उल्फत का इन दो नाजुकों में सख्त मुश्किल है… गाए गीत लोकप्रिय हुए। पंकज कुमार मलिक गायक भी थे और उन्होंने राय चंद बोराल के साथ न्यू थिएटर्स की सभी फिल्मों में संगीत रचनाएँ भी की थीं, उन्हें इस फिल्म में प्रथम बार स्वतंत्र रूप से संगीतकार का श्रेय दिया गया था।

फिल्म कर्मा का एक दृश्य।

अंग्रेजी और हिंदी में निर्मित जे.एल. फ्रीरहंट निर्देशित कर्मा (1933) के संगीतकार जर्मनी के अर्नस्ट ब्रॉडहर्स्ट थे। इसकी नायिका देविका रानी द्वारा गाया गया अंग्रेजी गीत विदेशों में मुख्य रूप से प्रसिद्ध हुआ था। काली प्रसाद घोष निर्देशित शहर का जादू (1934) के संगीत-निर्देशक के.सी. डे थे। इसमें हिंदी के पहले स्वाभाविक कलाकार मोतीलाल ने हमसे सुन्दर कोई नहीं है… गीत गया था। देवदास (1935) फिल्म को हिंदी में प्रमथेश चन्द्र बरूआ ने बनाई थी। शतरचंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास देवदास पर आधारित इस फिल्म में गायक-नायक कुंदन लाल सहगल ने दो गाने गाये थे – बालम आय बसो मोरे मन में… और दुख के दिन अब बीतत नाहीं…। इसके अलावा सहगल की गाई लोकप्रिय ठुमरी पिया बिन चैन आवत नाहीं… का एक टुकड़ा और था। इसके संगीतकार तिमिर बरन और गीतकार केदार शर्मा थे। फिल्म ज़िंदगी (1940) प्रबोध सान्याल की कहानी प्रिय बांघवी पर आधारित थी। इसमें सहगल की आवाज में सदाबहार गीत था – मैं क्या जानू क्या जादू है, इन दो मतवाले नैनों में जादू है…। इसका सर्वाधिक लोकप्रिय होने वाला गीत था – सोजा राजकुमारी सोजा…। इसके संगीतकार पंकज कुमार मलिक, गीतकार केदार शर्मा और आरजू लखनवी थे। जवाब (1942) में बुद्धिचंद्र अग्रवाल ‘मधुर’ के गीतों को कमलदास गुप्त ने संगीतबद्ध किया था। कानन देवी की आवाज में गाया गीत दुनिया ये दुनिया तूफान मेल… सारे हिन्दुस्तान में लोकप्रिय हुआ। इसके अन्य लोकप्रिय गीत थे – दुल्हनिया छमाछम छमाछम चली…, ऐ चाँद छुप न जाना… और कुछ याद रहे तो सुनता जा…होमी वाडिया निर्देशित हंटरवाली (1935) में जयदेव संगीतकार ही नहीं, बल्कि अभिनेता के तौर पर भी थे। इसमें संगीत मास्टर मोहम्मद का और गीत एक विदेशी जोसेफ डेविड के लिखे हुए थे। गीतों के मुखड़े हैं – हंटरवाली है भली, दुनिया की सुध लेत है…, क्या नील गगन में शमा शरद का छाया’, ‘गुजरी वो बातें और वो फसाना बदल गया’, ‘जमीनो-आस्मां की चक्की चल रही है’, ‘बदी का दौर गुजरा… और अब वक्त नेकी का आया है…। यह गीत-संगीत उस दौर के चलन के मुताबिक ही था। इसमें गायक गोविंद गोपाल और मास्टर मोहम्मद थे। फ्रैंच ऑस्टन निर्देशित अछूत कन्या (1936) अपने समय के समाज सुधारवादी स्वरूप में निर्मित कथा है। इसको सरस्वती देवी (खुर्शीद मिनोचर होमजी) के मधुर संगीत के साथ संजोया गया था। इसमें सरस्वती देवी के सहायक संगीतकार एस.एन. त्रिपाठी थे। इस फिल्म में मैं वन की चिड़िया बनके वन-वन डोलूं… गीत को नायिका की भूमिका अदा करने वाली देविका रानी ने गाया था। यह गीत हिन्दुस्तान के गली-कूचों में खूब गूँजा था। हेमचंद्र चंदर द्वारा निर्देशित अनाथ आश्रम (1937) के गीतकार केदार शर्मा और संगीतकार राय चंद बोराल थे। उमा शशि और पहाड़ी सान्याल के स्वर में ‘मन प्रेम की ज्योति जगाता है’ गीत बहुत लोकप्रिय हुआ था। मेरी बहन (1944) के गीतकार पं. भूषण और संगीतकार पंकज कुमार मलिक थे। इसमें गीतों को सहगल ने गाया था। इसके लोकप्रिय गीत थे – ‘दो नैना मतवारे तिहारे हम पर जुलुम करें’, छुपो न छुपो न ओ प्यारी सजनिया’ और ‘ए कातिबे तकदीर मुझे इतना बता दे’ आदि। विष्णुपंत गोविंद दामले और शेख फत्तेलाल के निर्देशन में निर्मित फिल्म गोपाल कृष्ण (1938) में शांताराम गोविंद अठावले के गीतों को मास्टर कृष्ण राव ने बेहद मधुर धुनों में बांधा था। इसमें ‘निर्धन का है तू धन’ और ‘तू मेरी मैया मैं लाल तेरा’ राम मराठे ने गाया था। ‘बचपन का याद आया भूला हुआ जमाना’ और ‘मोदमयी ये कपिला गाय सजाऊं’ शान्ता आप्टे ने गाया था। इन गीतों को बहुत लोकप्रियता मिली थी। इनकी खाशियत यह थी कि ये बेहद सहज लोकधुनों में बांधे गये थे। इसलिए आम आदमी भी इन्हें गुनगुनाता था। फणी मजूमदार के निर्देशन में बनी स्ट्रीट सिंगर (1938) में सहगल (नायक) और कानन बाला देवी (नायिका) ने भूमिका निभाई थी। इन्होंने अपने गीतों के माध्यम से लोकमानस को आनन्द सागर में डूबो दिया था।

सहगल ने इस फिल्म में सात गीत गाये थे। ‘बाबुल मोरा नैहर छूटल जाय’ हारमोनियम पर रागिनी थी जो आज भी जीवंत है। इसके साथ ही ‘जीवन बीन मधुर न बाजै’ भी सर्वाधिक लोकप्रिय गाना था। महबूब खां निर्देशित एक ही रास्ता (1939) फिल्म में पं. इंद्र के गीतों को अनिल बिश्वास ने संगीतबद्ध किया था। ‘भाई हम परदेशी लोग, हमें कौन जाने’ और ‘छलके रस की गगरिया सारी, मैं पनिहारिन मतवाली’, इस फिल्म के मुख्य लोकप्रिय गीत थे। औरत (1940) के गीत डॉ. सफदर आह ने लिखे थे और संगीतकार अनिल बिश्वास थे। इस फिल्म के लिए अनिल बिश्वास ने अपनी धुनों में शास्त्रीयता के साथ लोक संगीत का मेल किया था और ग्रामीण जीवन जैसा वातावरण संगीत के द्वारा उत्पन्न किया था। इसके अधिकांश गीत समूह गीत की तरह हैं। इसके बारह में से छह गीत स्वयं अनिल बिश्वास की आवाज में हैं। ‘काहे करता देर बराती, जाना है तोहे पी की नगरिया’, आज होली खेलेंगे साजन के संग’, ‘जमना तट श्याम खेलें होली, बिंद्रा बन में धूम मची है’, ‘सुनो पंछी के राग कोयल करे पुकार’, ‘बादल आये बदल गया संसार’, ‘अपने मस्तों को बेसुध बना दे’, ‘क्यूँ रूठ गईं प्यारी सजनियां’ और ‘मोरे अंगने मंे लागा अमवा का पेड़’ – ये समस्त गीत बहुत लोकप्रिय हुए थे और उन्हें अनिल बिश्वास की श्रेष्ठतम रचनाओं में शामिल किया जाता है।

रोटी (1942) के संगीत-निर्देशक अनिल बिश्वास थे और गीतकार डॉ. सफदर आह थे। इसमें अशरफ खान ने अपनी खास खर्राट आवाज में गीत गाया है उसके बोल देखिये – ‘रोटी…रोटी…रोटी’ यह गीत राग मिश्र मालकोंस मंे रचा गया था और इसके अगले बोल थे – ‘मर जाएगा, मर जाएगा ……… मर जा, मर जा, मर जा…’ और यहाँ कोरस शुरू होता है – रोटी, रोटी, रोटी।’ अशरफ खान का गाया एक और गीत जो अंग्रेज शासकों के विरूद्ध था उसके बोल देखिए – ‘रहम न खाना, रहम न खाना, है मक्कार जमाना…’ और यह पूरी सच बात है, क्योंकि जो आया, हमने उसको मेहमान बनाकर यहीं रख लिया। अंग्रेजों को तो हुकूमत की बागडोर ही सौंप दी। अशरफ खान ने इसके आगे गाया – ‘इसी रहम ने तुझको मिटाया, राजपाट सब अपना गंवाया…’ गाने का दूसरा टुकड़ा देखिए – ‘दुखिया दुर्बल छीन ले रोटी…’, अशरफ खान द्वारा गाये गये एक और गाने का मुखड़ा देखिए – ‘हूं…हां…’ ‘गरीबों पर दया करके बड़ा अहसान करते हो…, इसमें अख्तरी बाई ने छह गाने गाये थे ये गाने थे – ‘फिर फसले-बहार आई दिले-दीवाना………’, ‘चार दिनों की जवानी, मतवाले पी ले पी ले……….’, ‘उलझ गए नयनवा, छूटे नहीं छुटाए……….’, ‘ऐ प्रेम तेरी बलिहारी हो, हम नया करीना सीख गये…………’, ‘वो हँस रहें हैं, आह किए जा रहा हूँ मैं………..’, ‘रहने लगा है दिल में अंधेरा तेरे बगैर……….’। ‘उलझ गए नयनवा’ की कंपोजीशन में अनिल विश्वास ने रंगीन-मिजाज ठुमरी और दादरा के साथ बहुत खूबसूरत ऑर्केस्ट्रा का प्रयोग किया था। सितारा देवी ने भी कुछ बहुत खूबसूरत गाने इस फिल्म में गाये थे। उनमें सबसे अच्छे और यादगार गाने हैं – ‘सजना साँझ भई……..’, और ‘स्वामी घरवा नीक लागे, नीक लागे, ठीक लागे, दूजा घरवा भावे ना, भावे ना। अनमोल घड़ी (1946) के संगीतकार नौशाद थे और गीतकार तनवीर नकबी। इसके गायक नूरजहाँ, सुरेन्द्र, सुरैया और मौ. रफी आदि थे। इसमें ‘आवाज दे कहां है’, ‘जवां है मुहब्बत हसीं है जमाना’, ‘क्या मिल गया भगवान तुम्हें दिल को दुखा के’, ‘क्यों याद आ रहे हैं गुजरे हुए जमाने’, ‘आजा मेरी बरबाद मुहब्बत के सहारे’, और ‘मेरे बचपन के साथी मुझे भूल न जाना’ आदि गीत हैं।

जयंत देसाई के निर्देशन में संत तुलसीदास (1939) फिल्म में विष्णुपंत पागणीस ने तुलसीदास की मुख्य भूमिका अदा की थी। पं. इंद्र और प्यारेलाल संतोषी के गीतों को खुद पागणीस ने ज्ञान दत्त के साथ मिलकर संगीतबद्ध किया था। पागणीस के गाए गीत ‘माली माली माली, मेरे मन की बगिया फूली’, ‘जाऊं कहां तजि चरण तुम्हारे’, ‘राम से कोई मिल रे’ के साथ ही सर्वाधिक लोकप्रियता अर्जित करने वाला ‘बन चले राम रघुराई’ फिल्म के मुख्य आकर्षण थे। तानसेन (1943) में सहगल-खुर्शीद की जोड़ी थी। प्रतिभावान संगीतकार खेमचंद प्रकाश की शास्त्रीय राग-रागिनियों पर आधारित धुनों एवं सहगल-खुर्शीद के अद्भुत गायन ने फिल्म में जान डाल दी थी। वीरान उपवन में पतझड़ का बसंत में बदल जाना, मदमस्त हाथी का शांत हो जाना, शुद्ध स्वर से प्रभावित होकर वाद्ययंत्रों का अपने आप बजना, रागिनी के प्रभाव से शमाओं का अपने आप जल उठना, मल्हार गाने से बादलों का बरसना जैसे चमत्कार भी संगीत द्वारा दर्शकों हेतु सहज बन गये थे। इसके लोकप्रिय गीत थे – ‘मोरे बालापन के साथी छैला भूल जइयो न’, ‘सत्य सुरं तीन ग्राम गावो सदगुणी जंग’, ‘रूमझुम रूमझुम चाल तिहारी’, ‘दिया जलाओ जगमग जगमग’, और ‘काहे गुमान करे री गोरी, काहे गुमान करे’। अब्दुल रशीद कारदार निर्देशित होली (1940) फिल्म में डी. एन. मधोक के गीतों को खेमचंद प्रकाश ने संगीतबद्ध किया था। इस फिल्म का गीत ‘धनवानों की दुनिया है’ बहुत प्रसिद्ध हुआ था। पूजा (1940) फिल्म के गीतकार खान गजनवी और संगीतकार अनिल बिश्वास थे। इसमें फिल्म कलाकारों द्वारा गाये गीत – ‘लट उलझी सुलझा जा बालम, मेरे हाथों में मेंहदी लगी’, ‘कौन गुमान भरी रे बांसुरिया, कौन गुमान भरी’, ‘झूलो झूलो मेरी आशा, नित नैनन में झूलो’, ‘आज पिया घर आएंगे’, ‘सुख क्या, दुख क्या, जीवन क्या’ और स्वयं संगीतकार अनिल बिश्वास के स्वर का गीत ‘जीवन है एक प्रेम कहानी, हाय मुहब्बत हाय जवानी’ लोकप्रिय थे। शाहजहान (1946) के संगीतकार नौशाद थे। इस फिल्म का गीत ‘जब दिल ही टूट गया, हम जी के क्या करेंगे’ सहगल के गाये सर्वश्रेष्ठ गीतों में शामिल किया जाता है।

‘ए दिल-ए-बेकरार झूम’ और ‘चाह बरबाद करेगी हमें मालूम न था’ गीत खुमार बाराबंकवी ने लिखे थे और ‘कर लीजिए चलकर मेरी जन्नत के नजारे’, ‘गम दिए मुस्तकिल कितना नाजुक है दिल ये न जाना’ और ‘मेरे सपनों की रानी रूही’ के गीतकार मजरूह सुलतानपुरी थे। ये सभी गीत सहगल ने गाये थे। ‘मेरे सपनों की रानी रूही’ में सहगल के साथ मोहम्मद रफी की आवाज भी थी। मजरूह सुल्तानपुरी ने इसी फिल्म के साथ फिल्मों में प्रवेश किया और दादा साहब फाल्के पुरस्कार प्राप्त करने वाले एकमात्र गीतकार बने। सरदार चंदूलाल शाह निर्देशित अछूत (1940) में नायिका की भूमिका में गौहर मामाजीवाला और नायक की भूमिका में मोतीलाल ने प्रभावशाली अभिनय किया था। पी.एल. संतोषी के गीतों को ज्ञानदत्त ने संगीतबद्ध किया था। ‘नाहीं बोलूं लाख मनाए कृष्ण कन्हैया’ और ‘बंसी बनूं बंसीधर की’ आदि गीतों ने लोकप्रियता अर्जित की थी। एन.आर. आचार्य द्वारा निर्देशित बंधन (1940) में लीला चिटनिस और अशोक कुमार ने गीतों को स्वर दिया था। अशोक कुमार का ऊँची आवाज में गाया गीत ‘चल चल रे नौजवान’ और अरूण का गाया ‘चना जोर गरम बाबू मैं लाया मजेदार’ ये दो गीत तो आज तक आज भी चलन में हैं। इसके अतिरिक्त लीला चिटनिस के स्वर में ‘मन भावन लो सावन आया रे’ और ‘कैसे छुपोगे अब तुम ओ सलोने’ आदि गीत भी मनमोहक थे। इससे परम्परा और आधुनिकता के संघर्ष के मेेलोड्रामा को सहज संवेद्य बनाने में और फिल्म को संगीतबद्ध करने में सरस्वती देवी की धुनों की अहम भूमिका थी। इसके गीतकार कवि प्रदीप थे। नया संसार (1941) मूलतः ख्वाजा अहमद अब्बास की कहानी पर आधारित थी। अब्बास की दृष्टि में सिनेमा शिक्षित करने का भी माध्यम है। फिल्म में लोकप्रिय गीत थे – ‘मैं हरिजन की छोरी’, ‘अखबार का दफ्तर है ये’ और ‘एक नया संसार बसा लें’ आदि।

ज्ञान मुखर्जी निर्देशित झूला (1941) को सरस्वती देवी ने संगीतबद्ध किया और कवि प्रदीप ने गीत लिखे। इसमें लीला चिटनिस और अशोक कुमार ने मुख्य भूमिका निभाई। ‘न जाने आज किधर आज मेरी नाव चली रे’, ‘मैं तो दिल्ली से दुल्हन लाया रे’ ‘आज मौसम सलोना-सलोना रे’ और ‘देखो हमारे राजा की आज सगाई है’ आदि अनेक गीतों ने बहुत लोकप्रियता प्राप्त की थी। किस्मत (1943) के गीतकार पं. प्रदीप और संगीतकार अनिल बिश्वास थे। फिल्म में गीत-संगीत सफलता का आधार स्तंभ कहे जाते हैं। इस फिल्म के गीत थे – ‘आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है, दूर हटो ऐ दुनियावालो हिन्दुस्तान हमारा है’, ‘धीरे-धीरे आ रे बादल, धीरे-धीरे जा’, ‘घर-घर में दीवाली है, मेरे घर में अंधेरा’, ‘पपीहा रे मेरे पिया से कहियो जाय’ और ‘अब तेरे सिवा कौन मेरा कृष्ण कन्हैया’ आदि गीतों ने बहुत लोकप्रियता हासिल की थी। इन गीतों को स्वर अशोक कुमार, अमीर बाई कर्नाटकी और अरूण कुमार ने दिया था। मोती बी. गिडवानी के निर्देशन में निर्मित खजांची (1941) के संगीतकार गुलाम हैदर और गीतकार वली साहब थे। गुलाम हैदर का संगीत हिन्दुस्तान के गली-कूचों में गूंज उठा था। पंजाबी लोक संगीत की धुनों ने दर्शकों के दिलों में जादू जगा दिया था। इस फिल्म के ‘सावन के नजारे हैं’, ‘पीने के दिन आए पिए जा’ और ‘दीवाली फिर आ गई सजनी’ आदि गीत बहुत लोकप्रिय हुए थे। बतौर पार्श्व गायिका शमशाद बेगम इसी फिल्म से मशहूर हुई थीं।

विजय भट्ट के निर्देशन में निर्मित भरत मिलाप (1942) के संगीतकार शंकर राव व्यास थे। इसमें तुलसीदास का भजन ‘श्री रामचंद्र कृपालु भजमन हरण भवभय दारूणं’ प्रार्थनाओं की तरह घर-घर गाया गया था। अन्य लोकप्रिय गीत थे – ‘रघुकुल रीति सदा चलि आई’ और ‘आए रघुवर आए गंगा के तीर’। राम राज्य (1943) मंे प्रेम अदीब और शोभना समर्थ की आवाज में गीत थे। रमेश गुप्ता के गीतों ने और शंकर राव व्यास के संगीत ने फिल्म को और लोकप्रिय बना दिया। इसके गीत थे ‘वीणा मधुर मधुर कछु बोल’, ‘हे सूर्यदेव जगदीश’, ‘अजब लेख, बिधि का पढ़ा न जाए’ और ‘चल तू दूर नगरिया’ आदि। रामचंद्र ठाकुर द्वारा निर्देशित गरीब (1942) हिंदी सिनेमा में यथार्थवाद की आवाज बुलंद करने वाली पहली फिल्म मानी जाती है। डॉ. सफदर आह के गीतांे को अशोक घोष ने संगीतबद्ध किया था। फिल्म के गायक सुरेंद्रनाथ थे। उनका गाया गीत – ‘जा तेरा जग देख लिया’ खूब मशहूर हुआ था। चतुर्भुज दोषी के निर्देशन में बनी भक्त सूरदास  (1942) में नायक सहगल ने ग्यारह गाने गाये थे साथ में नायिका खुर्शीद थी – ‘निस दिन बरसत नैन हमारे’, ‘मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो’, ‘मधुकर श्याम हमारे चोर’, ‘नैन हीन को राह दिखा प्रभु’, ‘सर पे कदम की छैयां मुरलिया बाज रही’, ‘कदम चले आगे मन पीछे भागे’, ‘चाँदनी रात और तारे खिले हुए’, ‘दिन से दुगुनी हो जाये रतिया हाय’, ‘रैन गई अब हुआ सबेरा’, ‘जिस दिन जोगी का जोग लिया’ और ‘मनुवां कृष्ण नाम रट’। इसके संगीतकार ज्ञानदत्त और गीतकार थे दीनानाथ मधोक। सोहराब मोदी के निर्देशन में बनी पृथ्वी वल्लभ (1943) फिल्म कन्हैया लाल माणिकलाल मंुशी के उपन्यास पर आधारित थी। जिसके गीत पं. सुदर्शन ने लिख थे और संगीतबद्ध रफीक गजनवी और सरस्वती देवी ने किया था। इसमें ‘पंछी उड़ चल अपने देश’ और ‘आंखों में मुस्कुराए जा’ लोकप्रिय गीत थे। अमिय चक्रवर्ती के निर्देशन में बनी ज्वार भाटा (1944) में गीत पं. नरेंद्र शर्मा ने लिखे थे और संगीतकार थे अनिल बिश्वास। इसके ‘साँझ की बेला है, पंछी अकेला है’, ‘सरसों पीली धान सुनहली साजन मोरा साँवरिया हो’ और ‘मोरे आँगन में छिटकी चाँदनी घर आजा साजन’ आदि गीत आज भी संगीत-प्रेमियों की पसन्द हैं।

एम. सादिक निर्देशित रतन (1944) के संगीतकार नौशाद एवं गीतकार दीनानाथ मधोक थे। अमीर बाई कर्नाटकी और जोहरा बाई अंबालेवाली के गाए गीतों की धूम मच गई थी। यहाँ तक कि फिल्म के नायक करन दीवान के स्वयं के स्वर मंे गाया गया गीत ‘जब तुम ही चले परदेश लगाकर ठेस’ बहुत लोकप्रिय हुआ था। इसके प्रमुख गीत थे – ‘मिलके बिछड़ गईं अँखियाँ, बिछड़ गई अँखियाँ, हाय रामा’, ‘अँखियाँ मिला के जिया भरमा के चले नहीं जाना’, ‘अँगड़ाई तेरी है बहाना’, ‘आई दिवाली आई’ और ओ जाने वाले बालमवा, लौटके आ लौटके आ’ आदि। इस फिल्म की ताल में ढोलक का प्रयोग बहुत अच्छी तरह किया गया था।

बिमल राय निर्देशित हमराही (1945) उनकी बांग्ला फिल्म ‘उदयेर पाथे’ का हिन्दी संस्करण था। इसके गीतों के रूप में संगीतकार राय चंद बोराल ने रविन्द्रनाथ टैगोर के गीतों को चुना था। ‘जन गण मन अधिनायक जय हे’ फिल्म का शीर्षक गीत था। इसके गीतकार जाकिर हुसैन थे। मास्टर विनायक द्वारा निर्देशित सुभद्रा (1946) के संगीत निर्देशक वसंत देसाई थे। इसमें एक छोटी भूमिका लता मंगेशकर ने भी की थी। लता के स्वर में ‘साँवरिया ओय बाँसुरिया बजाय गयो रे’ और लता के साथ नायिका शांता आप्टे के स्वर में ‘मैं खिली खिली फुलवारी’ युगल गीत बहुत लोकप्रिय हुआ था। इसके गीतकार मोती, पं. इन्द्र और पं. सुदर्शन थे। एलिस आर. डंगन के निर्देशन में निर्मित मीरा (1947) मूलतः तमिल में निर्मित थी। इसे बाद में हिंदी में बनाया गया। लोकप्रिय शास्त्रीय गायिका एम.एस. सुब्बालक्ष्मी ने मीरा की भूमिका भी अदा की थी और मीरा बाई के अठारह पदों का गायन भी।

इन गीतों का आकर्षण अभी तक कायम है। इसके संगीतकार एस.वी. वेंकटरमन थे। निर्देशक पी.एल.संतोषी ने शहनाई (1947) में गीत लेखन का कार्य भी किया था। इस फिल्म के संगीतकार सी. रामचंद्र थे। इस फिल्म के अनेक गीत बहुत लोकप्रिय हुए थे जो आज तक लोगों की जुबां पर हैं – ‘आना मेरी जान मेरी जान संडे के संडे’, ‘जवानी की रेल चली जाए रे’ और ‘मार कआरी मर जाना’ आदि। वीणापाणि मुखर्जी के स्वर में ‘जय कृष्ण श्री कृष्ण हरे हरे’ भजन भी लोकप्रिय था। सी. रामचंद्र के संगीत ने पहली बार पाश्चात्य संगीत का प्रभावशाली उपयोग किया था। सी. रामचंद्र उन संगीतकारों में थे जो अपनी धुनों में शास्त्रीय संगीत से लेकर लोक धुनों तक का पाश्चात्य संगीत के साथ आज की भाषा में कहें तो फ्यूजन किया करते थे। केदार शर्मा निर्देशित चित्रलेखा (1941) भगवतीचरण वर्मा के कालजयी उपन्यास ‘चित्रलेखा’ पर आधारित है। इस श्वेत-श्याम में नायिका महताब थीं और बीज गुप्त की भूमिका में नांद्रेकर तथा आचार्य गिरी की भूमिका में  ज्ञानी थे। इसके संगीतकार थे झंडे खां और दूसरी के रोशन। इसके गीतकार स्वयं केदार शर्मा थे। इसमें ‘नीलकमल मुसकाए भँवरा झूठी कसमें खाए’ और ‘सैंया साँवरे भए बावरे’ आदि अन्य लोकप्रिय गीत थे।

यह आलेख विभाजन पूर्व हिंदी फिल्म संगीत का एक परिचय है। इसमें हिन्दुस्तान की समकालीन समस्याओं और उनका समाधान करने के साथ संगीत की धारा में आम आदमी अपने आपको खोजता है और उसमें खो जाता है। सिनेमा माध्यम से व्यष्टि से समष्टि की जड़ों तक जाते हैं और समस्याओं का समाधान भी पाते हैं। इस आलेख में कुछ फिल्मों और गीतों के जरिए जीवन में सरसता लाने का प्रयास हुआ है।

 

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